10/02/2021

बुद्धि की प्रकृति/स्वरूप

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बुद्धि की प्रकृति या स्वरूप 

मनोविज्ञान की उत्पत्ति से लेकर आज तक बुद्धि का स्वरूप निश्चित नहीं हो पाया है। समय-समय पर जो परिभाषाएं विद्वानों द्वारा पेश की जाती रहीं, वह इसके एक पक्ष अथवा विशेषता या क्षमता से संबंधित थीं। अतः आज तक उपलब्ध सामग्री के आधार पर बुद्धि का स्वरूप एवं इसकी प्रकृति क्या है? इसका वर्णन हम निम्न तरह से करेंगे--- 

1. सीखने की योग्यता

भारतीय मनीषियों तथा ऋषियों ने 'ज्ञान' को जीवन का प्रमुख साधन और साध्य माना है। अतः जो व्यक्ति अधिक से अधिक ज्ञान ग्रहण कर लेता है, उसे समाज उच्च स्थान देता है। मनोवैज्ञानिकों ने अधिक से अधिक ज्ञान को ग्रहण करने वाली योग्यता को ही 'बुद्धि' माना है। जैसा कि 'डियर वान' ने लिखा है," बुद्धि सीखने अथवा अनुभव से लाभ उठाने की क्षमता है।" 

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2. समस्या समाधान की योग्यता

हर व्यक्ति को विकास के साथ-साथ विभिन्न तरह की समस्याओं का सामना करना होता है, जो व्यक्ति इन समस्याओं पर जितनी जल्दी विजय प्राप्त कर लेता है अथवा उनसे छुटकारा प्राप्त कर लेता है, वही सबसे ज्यादा बुद्धिमान माना जाता है। अतः समस्या समाधान में प्रयोग की गयी योग्यता ही 'बुद्धि' है। जैसा रायबर्न ने लिखा है," बुद्धि वह शक्ति है, जो हमको समस्याओं का समाधान करने तथा अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने की क्षमता देती है।" 

3. अमूर्त चितन की योग्यता

प्रत्येक व्यक्ति दो तरह चिंतन प्रक्रिया को अपनाता है। प्रथम, मूर्त रूप से चिंतन करके ज्ञान प्राप्त करना तथा द्वितीय, अमूर्त रूप से चिंतन करके। अमूर्त रूप से चिंतन से अभिप्राय जो चीजें हमारे समक्ष नहीं हैं, उनका कल्पना एवं स्मृति के आधार पर ज्ञान प्राप्त करना। इसलिए अमूर्त चिंतन में जो व्यक्ति ज्यादा सफल होता है, उसे बुद्धिमान कहा जाता। जैसा कि टनमन ने कहा है," एक व्यक्ति उसी अनुपात में बुद्धिमान होता है, जितनी उसमें अमूर्त चिंतन की योग्यता होती हैं। 

4. पर्यावरण में सामंजस्य की योग्यता

प्रत्येक व्यक्ति जीवन में विकास करता है। विकास के समय सफलताएं तथा असफलताएं दोनों ही आती हैं। जो व्यक्ति दोनों में समाजीकरण तथा सामंजस्य करते हुए विकास करता है, उसे बुद्धिमान व्यक्ति माना जाता है अथवा जो जितनी जल्दी पर्यावरण को अपने अनुकूल कर लेता है। जैसा कि विलियम स्टर्न ने लिखा है," जीवन की परिस्थितियों तथा नवीन समस्याओं में सामान्य मानसिक अनुकूलन ही बुद्धि है। 

उपर्युक्त मतों के दोष

उपर्युक्त मतों में वर्तमान में निम्न दोष प्रतीत होते हैं-- 

1. सीखने की योग्यता ही बुद्धि है में दोष यह है कि शिक्षण तथा बुद्धि दोनों एक नहीं होते हैं। यह बुद्धि के एक पक्ष अथवा एक संकुचित स्वरूप का वर्णन करती है। 

2. समस्या समाधान की योग्यता ही बुद्धि है, में दोष यह है कि जिन व्यक्तियों के जीवन में कोई समस्या नहीं होती, क्या उनमें बुद्धि नहीं है? तथा जो समस्याओं का समाधान नहीं कर पाते हैं क्या उनमें भी बुद्धि नहीं है?

3. अमूर्त चिंतन की योग्यता ही बुद्धि है, में दोष यह है कि बुद्धि मूर्त तथा अमूर्त दोनों का ही चिंतन करती है। 

4. पर्यावरण से सामंजस्य की योग्यता ही बुद्धि है, में दोष यह है कि सामंजस्य तथा बुद्धि दोनों एक नहीं होते हैं, वरन् बुद्धि जन्मजात होती है तथा सामंजस्य अर्जित होता है। 

बुद्धि के स्वरूप की परिवर्तनशीलता तथा विस्तार ने बुद्धि के बारे में विद्वानों की राय एकमत नहीं होने दी है। अतः आज हम बुद्धि के स्वरूप को निर्धारित करते समय सृजनात्मकता पर ज्यादा ध्यान देंगे। यह ऐसा तत्व है, जिसके अंतर्गत सभी पूर्व मत सीखना, सामंजस्य, अमूर्त चिंतन तथा समस्या समाधान आते हैं। इसके अतिरिक्त इसका क्षेत्र विस्तृत है। यह किसी भी व्यक्ति की किसी एक योग्यता का निर्धारण नहीं करती है, वरन संपूर्ण मानसिक योग्यताओं का, चाहे वे जन्मजात हों अथवा अर्जित। अतः हम बुद्धि की परिभाषा करते हुए कह सकते हैं, " बुद्धि, एक व्यक्ति की जन्मजात योग्यता है, जिसका प्रकटीकरण सृजनात्मकता के द्वारा होता है।"

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