abhivritti ya manovriti arth paribhasha visheshta;समाज-मनोविज्ञान में अभिवृत्तियों के अध्ययन का विशेष महत्वपूर्ण स्थान है। वर्तमान युग के समाज मनोवैज्ञानिकों ने अभिवृत्तियों को मानव-व्यवहार का केन्द्र माना हैं। अतः समाज मनोवैज्ञानिक साहित्य में अभिवृत्तियों से संबंधित विवेचन की भरमार है। हम जानते है कि समाज मनोविज्ञान का कार्य सामाजिक परिवेश में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करना हैं। व्यक्ति के व्यवहार के दो पक्ष होते हैं-- बाहरी या प्रगट पक्ष और आंतरिक अथवा अप्रगट पक्ष। इन दोनों पक्षों में आंतरिक पक्ष का महत्व अधिक हैं, क्योंकि व्यवहार का यही पक्ष हमारे बाहरी पक्ष का भी निर्धारण करता हैं। व्यवहार के बाहरी पक्ष का अध्ययन सरल हैं, यह साधारण निरीक्षण द्वारा किया जा सकता हैं लेकिन आंतरिक पक्ष का अध्ययन अपेक्षाकृत रूप से कठिन होता हैं, क्योंकि यह अप्रगट होता हैं। व्यवहार के आंतरिक पक्ष का संबंध व्यक्ति की अभिवृत्तियों से है इसलिए समाज मनोविज्ञान में अभिवृत्तियों के अध्ययन को विशेष महत्व दिया जाता है। समाज में कई समस्याएं व्यक्तियों की संबंधित अभिवृत्तियों के ही कारण उत्पन्न होती हैं। उदाहरण के लिए क्षेत्रवाद, भाषावाद, सांप्रदायिकता आदि की समस्याएं व्यक्तियों की अभिवृत्तियों के ही कारण उत्पन्न होती हैं। इन समस्याओं सै मुक्ति प्राप्त करने लिए संबंधित वर्ग के व्यक्तियों की अभिवृत्तियों को परिवर्तित करने की प्रविधियों का भी अध्ययन करता हैं। इसके अतिरिक्त अभिवृत्तियों की वैज्ञानिक माप भी समाज मनोविज्ञान के अंतर्गत की जाती हैं। स्पष्ट है कि समाज मनोविज्ञान में अभिवृत्तियों का बहुपक्षीय अध्ययन किया जाता हैं। इस विस्तृत अध्ययन से पूर्व अभिवृत्तियों के अर्थ परिभाषा एवं विशेषताओं को स्पष्ट करना अनिवार्य हैं।
अभिवृत्ति या मनोवृत्ति का अर्थ (abhivritti kya hai)
अभिवृत्ति या मनोवृत्ति को अंग्रेजी भाषा में attitude कहा जाता हैं। सामान्य रूप से अभिवृत्ति या मनोवृत्ति एक मानसिक तथ्य है जिसको विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में प्रयुक्त किया जाता है। एक व्यक्ति की किसी वस्तु तथा विचार के प्रति क्या व्यवहार करता है, उसका अध्ययन अभिवृत्ति के माध्यम से होता है। मनोवैज्ञानिकों ने मानव के व्यवहार का प्रमुख कारक अभिवृत्ति को ही माना है। अभिवृत्ति किसी संस्था तथा परिस्थिति के प्रति मानव के व्यवहार को प्रदर्शित करती है।
दूसरे शब्दों में, अभिवृत्ति सामान्य रूप से वह विशेष दृष्टिकोण होता है जो किसी व्यक्ति के व्यवहार तथा विचार को प्रदर्शित करता है, जो कि वह संसार की वस्तुओं के सन्दर्भ में ज्ञान रखता है। इस दृष्टिकोण को विद्वानों ने अपने-अपने शब्दों में परिभाषित किया है।
अभिवृत्ति की परिभाषा (abhivritti ki paribhasha)
प्रमुख विद्वानों की परिभाषाएं निम्न हैं--
फ्रीमेन के अनुसार," अभिवृत्ति निश्चित परिस्थितियों, व्यक्तियों तथा वस्तुओं के प्रति संगत रूप से प्रत्युत्तर देने वाली स्वाभाविक तत्परता है, जिसे सीखा जाता है एवं यह किसी व्यक्ति विशेष के प्रत्युत्तर देने की लाक्षणिक विधि बन जाती है।"
रेमर्स, समेल तथा गेज के अनुसार," अभिवृत्ति अनुभवों के द्वारा व्यवस्थित वह संवेगात्मक प्रवृत्ति है जो किसी मनोवैज्ञानिक पदार्थ अथवा वस्तु के प्रति सकारात्मक या नकारात्मक रूप से प्रतिक्रिया करती है।"
थर्स्टन के अनुसार," कुछ मनोवैज्ञानिक पदार्थों से सम्बन्धित सकारात्मक तथा नकारात्मक प्रभावों की मात्रा को अभिवृत्ति की संज्ञा दी जाती है।"
प्रो. एस.के. दुबे के अनुसार," अभिवृत्ति बाह्य व्यवहार का वह महत्त्वपूर्ण कारक है, जो व्यक्ति की किसी मनोवैज्ञानिक पदार्थ के प्रति अनुकूल तथा प्रतिकूल भावना को प्रदर्शित करता है।"
उपरोक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि व्यक्तित्व किसी चिह्न, वाक्य खण्ड, स्थान, आदर्श, विचार तथा राष्ट्र के प्रति व्यक्ति के सकारात्मक और नकारात्मक व्यवहार को करता है। जब हम किसी वस्तु के प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति रखते हैं तो उसके प्रति अनुकूल व्यवहार करते हैं एवं जब किसी वस्तु के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति रखते हैं तो उसके प्रतिकूल व्यवहार करते हैं।
अभिवृत्ति की विशेषताएं (abhivritti ki visheshta)
अभिवृत्ति के बारे में विद्वानों के विचार तथा परिभाषाओं के विश्लेषण के आधार पर इसमें निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएं पायी जाती हैं--
1. अभिवृत्ति में स्वाभाविक रूप से तत्परता पायी जाती हैं, जिसे व्यक्ति किसी वस्तु के प्रति प्रदर्शित करता हैं।
2. यह सदैव परिवर्तनशील होती हैं। समय तथा परिस्थिति के अनुसार इसमें परिवर्तन पाया जाता हैं।
3. यह एकरूपता पर आधारित होती हैं अर्थात् व्यक्ति किसी एक वस्तु के प्रति सकारात्मक अथवा नकारात्मक एक ही तरह की अभिवृत्ति रखता हैं।
4. अभिवृत्ति का संबंध भाव तथा संवेगो से होता हैं। भावना तथा संवेगों का प्रभाव अभिवृत्ति पर व्यापक रूप से होता हैं।
5. यह व्यक्ति के व्यवहार की दिशा को निर्धारित करती है क्योंकि व्यक्ति का व्यवहार अभिवृत्ति के आधार पर ही निर्धारित होता हैं।
6. अभिवृत्ति अनुभव के आधार पर भी अर्जित की जाती हैं। व्यक्तियों के संबंध तथा मूल्यों के आधार पर इसका निर्धारण होता हैं।
7. अभिवृत्ति सामान्य तथा विशिष्ट रूपों मे पायी जाती है। किसी वर्ग के प्रति व्यवहार सामान्य अभिवृत्ति में आता है एवं किसी व्यक्ति विशेष के प्रति व्यवहार विशिष्ट अभिवृत्ति में आता हैं।
8. अभिवृत्ति के माध्यम से हमारा व्यवहार प्रभावित होता हैं क्योंकि एक व्यक्ति की अभिवृत्ति किसी दूसरे व्यक्ति की अभिवृत्ति को प्रभावित करती है।
9. अभिवृत्ति हमारी रूचि तथा अरूचि का द्योतक हैं।
10. महत्वपूर्ण मनोवृत्तियों का संबंध, संवेगों तथा भावनाओं से होता हैं।
11. मनोवृत्तियां आंतरिक अचेतन आदतों की विशिष्ट स्वरूप होती हैं। मनोवृत्तियों का निर्माण भी अत्यंत अचेतन रूप से निर्मित होता हैं।
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