9/26/2021

सीखने/अधिगम का सिद्धांत, ब्रूनर

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ब्रूनर का सीखने या अधिगम का सिद्धांत 

bruner ka adhigam siddhant;ब्रूनर के सीखने के सिद्धांत के अनुसार," पाठ-योजना में सूचना प्रक्रिया तथा माॅडल का लेखा-जोखा होता है। इसमें सीखने की समस्या का समाधान एवं तथ्यों, प्रत्ययों के बोध के लिए उद्दीपन एवं समुचित वातावरण को पैदा किया जाता हैं। सीखने के लिए इस पाठ-योजना में ब्रूनर विकसित प्रतिमान (माॅडल) 1956 में प्रस्तुत किया गया हैं।

इसका प्रयोग पाठ-योजना सम्प्रेषण प्रत्यय-निष्पत्ति प्रतिमान सूचना-प्रकरण में प्रमुख स्त्रोत के रूप में किया जाता है। आगमन तर्क के विकास के लिए यह प्रतिमान विशेष उपयोगी हैं। 

ब्रूनर एवं अन्य मनोवैज्ञानिकों ने अपने शोधों के द्वारा यह जानने का प्रयास किया कि मानव अपने प्रत्ययों की रचना कैसे करता है एवं उसके अनुसार पर्यावरण में वस्तुओं के परस्पर संबंधों और सादृश्य को किस तरह देखता हैं? 

ब्रूनर के सीखने के सिद्धांत में मुख्य रूप से चार प्रतिमान के अवयवों का प्रयोग किया जाता हैं-- 

1. वस्तुओं, व्यक्तियों अथवा घटनाओं की पहचान 

इस प्रतिमान का पहला अवयव हैं-- आधार सामग्री को प्रस्तुत कर प्रत्ययों का बोध कराने के उद्देश्य से रोचक क्रियाओं के द्वारा वस्तुओं, व्यक्तियों अथवा घटनाओं की पहचान करना। 

2. उचित रचना कौशलों का विश्लेषण करना 

पाठ-योजना में प्रयुक्त इस प्रतिमान का दूसरा अवयव हैं-- आधार सामग्री का विशेष अध्ययन करने हेतु प्रयुक्त किये जाने योग्य रचना कौशलों का विश्लेषण करना। 

3. प्रत्ययों का विश्लेषण करना 

यह तीसरा अवयव हैं-- विवरण-वार्ता एवं लिखित सामग्री में मिलने वाले प्रत्ययों का विश्लेषण करना। 

4. अभ्यास 

इसका चौथा अवयव हैं-- अभ्यास। अभ्यास में छात्रों को प्रत्ययों की रचना करने हेतु कहा जाता है। छात्रों को यह अवसर दिया जाता है कि वे इन प्रत्ययों को परिभाषित एवं परिष्कृत करें। 

ब्रूनर का यह सीखने का सिद्धांत अध्यापक तथा अधिगमकर्त्ता हेतु निम्न रूप से उनयोगी हैं-- 

1. शिक्षण में सम्प्रत्ययों के अधिगम को विशेष महत्व दिया गया है। कक्षा मे शिक्षक को एक कुशल नियन्त्रक की भूमिका निभानी पड़ती है। विषय-वस्तु के चयन से लेकर उसके प्रस्तुतीकरण एवं विश्लेषण तक उसका सजग रहना छात्रों को जरूरी हैं। 

2. आत्मसातीकरण के लिए शिक्षक को अधिकाधिक उदाहरण देने पड़ते हैं। उदाहरणों का विश्लेषण तथा अवबोध कराना भी जरूरी है। 

3. कक्षा-शिक्षण में अनुक्रियात्मक तथा सामाजिक संदर्भ का अपना महत्व होता हैं। छात्र अपने प्रत्ययों एवं व्यूह-रचना का विश्लेषण शुरू कर देते है। छात्र सबसे सरल तथा प्रभावशाली रचना-कौशलों को प्रयुक्त करते हैं ताकि नवीन प्रत्ययों का बोध हो सके। 

4. इस तरह पाठ-योजना में ब्रूनर द्वारा निर्मित ये सिद्धांत प्रतिमान के रूप मे ज्यादा उपयोगी हैं। ब्रूनर ने अपने कार्यपरक उपागम का निर्माण उपरोक्त माॅडल के प्रयोग के साथ निम्न सिद्धांतों को पाठ-योजना का प्रमुख बिन्दु माना-- 

1. अभिप्रेरणा, 

2. संरचना, 

3. अनुक्रम, 

4. पुनर्बलन।

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