ध्यान या अवधान का अर्थ (avdhan kise kahte hai)
avdhan arth paribhasha visheshta;अवधान या ध्यान एक मानसिक क्रिया है। अवधान केन्द्रति करने पर ही हमें विभिन्न वस्तुओं का ज्ञान होता हैं। अतः किसी बात को सीखने अथवा किसी वस्तु का ज्ञान प्राप्त करने के लिये अवधान की आवश्यकता होती हैं। सप्तावस्था में ही हम इस क्रिया से वंचित रहते हैं, क्योंकि उस समय हममें चेतना का अभाव रहता है। चेतना व्यक्ति का स्वभाविक गुण हैं। चेतना के कारण उसे विभिन्न वस्तुओं का ज्ञान होता हैं। जब हम किसी कमरे में जाग्रत अवस्था में बैठे पुस्तक पढ़ रहे होते हैं, तो कमरे की सभी चीजें जैसे-- मेज, कुर्सी, घड़ी, अल्मारी आदि के प्रति हमारी कुछ न कुछ चेतना अवश्य होती है किन्तु चेतना का केन्द्र-बिन्दु वह पुस्तक होती है जिसे हम पढ़ रहे होते हैं। चेतना के किसी वस्तु पर इस प्रकार केन्द्रित होने की स्थिति को अवधान कहते हैं। अन्य शब्दों में, किसी वस्तु पर चेतना को केन्द्रित करने की मानसिक प्रक्रिया को ध्यान या अवधान कहते हैं।
अवधान या ध्यान की परिभाषा (avdhan ki paribhasha)
श्री.बी.एन.झा के अनुसार," किसी विचार या संस्कार को चेतना में स्थिर करने की प्रक्रिया अवधान हैं।"
स्पीयरमैने के अनुसार," अवधान एक प्रकार की शक्ति या प्रेरणा है जिसका संचालन ज्ञानात्मक क्षेत्रों में गुणात्मक क्षेत्रों के द्वारा होता है।"
रौस के अनुसार," ध्यान विचार की वस्तु को मन के सामने स्पष्ट बतलाने की प्रक्रिया हैं।"
स्टाउट के अनुसार," ध्यान सरल रूप मे उस सीमा तक क्रिया है जहाँ तक वस्तुओं के पूर्णज्ञान से उसकी सन्तुष्टि होती हैं।"
डम्बिल के अनुसार," अवधान अन्य वस्तुओं की अपेक्षा एक वस्तु पर चेतना का केन्द्रीयकरण हैं।"
वैलेन्टाइन के अनुसार," अवधान मस्तिष्क की शक्ति न होकर संपूर्ण रूप से मस्तिष्कीय क्रिया या अभिवृत्ति हैं।"
वुण्ड के अनुसार," अवधान एक प्रक्रिया हैं जिसके द्वारा उद्दीपक चेतना के सीमा प्रदेश में चेतना के केन्द्र में आता हैं।"
मन के अनुसार," अवधान एक अभिप्रेरणात्मक क्रिया हैं।"
राॅस के अनुसार," अवधान, विचार की किसी वस्तु को मस्तिष्क के सामने स्पष्ट रूप से उपस्थित करने की प्रक्रिया हैं।"
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते है कि ध्यान या अवधान एक ऐसी मानसिक प्रक्रिया है जिसमें मन को किसी वस्तु या विचार पर केन्द्रित करना होता हैं।
अवधान या ध्यान की विशेषताएं (avdhan ki visheshta)
अवधान की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--
1. उद्यमशीलता
अवधान देते समय मस्तिष्क व शरीर को श्रम करना पड़ता है। व्यक्ति को अवधान केन्द्रित करने में प्रयास करना पड़ता हैं। इसमें उसकी शारीरिक व मानसिक शक्ति व्यय होती हैं।
2. मानसिक सक्रियता
अवधान की सबसे मुख्य विशेषता यह है कि अवधान केन्द्रित करने के लिये मानसिक सक्रियता का होना अत्यंत आवश्यक है। यदि हम काम कुछ कार्य कर रहे हैं और मन हमारा और कहीं हैं तो अवधान केन्द्रित करना संभव नही हैं। उदाहरणार्थ, जब हम चन्द्रमा पर ध्यान लगाना चाहते हैं तो सबसे पहले हमे ध्यान को बाहरी संवेगो तथा संवेदनाओं से मुक्त करके चन्द्रमा से केन्द्रित करना होता है। यही मानसिक सक्रियता हैं।
3. गतिशील
अवधान गतिशील होता हैं। अवधान की कई श्रृंखलाबद्ध क्रियायें कार्य करती हैं इसलिए पढ़ते समय हम एक के बाद दूसरी पंक्ति क्रमशः पढ़ते चले जाते हैं।
4. चयनात्मकता
अवधान की एक मुख्य विशेषता यह भी है कि अवधान मे चयन की प्रवृत्ति पायी जाती है। व्यक्ति की अभिरूचि और मनोवृत्ति के अनुसार ही उसका अवधान किसी वस्तु या व्यक्ति पर केन्द्रित हो पाता हैं, ऐसी स्थिति में वह अन्य वस्तु या व्यक्ति पर ध्यान नहीं देता।
उदाहरणार्थ, कमरे मे रखी अनेक वस्तुयें जैसे-- मेज, कुर्सी-टेबल, पुस्तकें आदि हमारे ध्यान को आकर्षित करते हैं किन्तु अपने ध्यान को अन्य सभी वस्तुओं से हटाकर किसी एक वस्तु पर लगाना होता हैं।
5. संकुचीकरण
ध्यान की प्रक्रिया में हम विभिन्न वस्तुओं मे से किसी एक वस्तु को चुनकर उसके किसी एक विशेष पक्ष को चुनते है। इस प्रकार ध्यान में चेतना का संकुचन होता हैं।
6. कार्य तत्परता
अवधान की स्थिति में व्यक्ति मानसिक एवं शारीरिक रूप से कार्य करने हेतु तत्पर होता हैं।
7. खोज की प्रवृत्ति
व्यक्ति का अवधान किसी नवीन वस्तु की ओर केन्द्रित और आकर्षित इसलिए होता हैं, क्योंकि वह उसके संबंध में जानकारी प्राप्त करना चाहता हैं।
8. गति का समायोजन
अवधान के समय भिन्न गतियों का समायोजन हो जाता हैं। जैसे किसी भाषण देने वाले को देखना और सुनना।
9. शारीरिक अभियोजन
अवधान की प्रक्रिया मे अनेक शारीरिक अभियोजना पाए जाते हैं। जैसे-- ग्राहक अभियोजन, माँसपेशीय तनाव तथा केन्द्रित स्नायुविक अभियोजन आदि।
10. संश्लेषणात्मक प्रवृत्ति
व्यक्ति किसी वस्तु का पहले विश्लेषण करता हैं तथा बाद में उन तत्वों का संश्लेषण करता है। अतः अवधान की क्रिया में संपूर्ण से अवयव और अवयव से संपूर्ण की रचना होती हैं।
11. सजीव केन्द्र
ध्यान हमेशा अनुभव का सजीव केन्द्र होता है। हम जिन वस्तुओं पर ध्यान देते हैं वे सर्वथा हमारी चेतना में सजीव एवं स्पष्ट हो जाती है। इस प्रकार ध्यान ही सर्वदा स्पष्ट चेतना का कारण होता हैं।
12. चंचलता
अवधान बहुत ही 'चंचल' होता हैं। यह जैसे ही एक वस्तु पर केन्द्रित होता है कि तुरन्तु ही दूसरी वस्तु पर चला जाता हैं। इस चंचलता के ही कारण वह सदैव नवीन वस्तुओं की परीक्षा करता रहता हैं।
13. प्रयोजन की पूर्ति
जब व्यक्ति किसी वस्तु पर अपना अवधान केन्द्रित करता हैं तो उसके पीछे कोई न कोई प्रयोजन निहित होता है जिसकी पूर्ति भी संभव हो जाती हैं।
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