2/22/2020

प्रयोगात्मक विधि का अर्थ, परिभाषा एवं गुण दोष

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प्रयोगात्मक पद्धति का अर्थ (प्रयोगात्मक का मतलब)

प्रयोगात्मक पद्धति सामाजिक अनुसंधान की वह पद्धति हैं, जो प्रयोग के आधार पर की जाती हैं। समाजशास्त्रीय अनुसंधान मे परीक्षणात्मक या प्रयोगात्मक अनुसंधान अभिकल्प प्रणाली एक विकसित एवं उन्नत विधि हैं, जिसके अन्तर्गत हम सूक्ष्म समस्या का सूक्ष्म समाधान प्रस्तुत कर सकते है। प्रयोगात्मक अनुसंधान पद्धति उपयोगिता की दृष्टि से अत्यंत व्यावहारिक है, क्योंकि इसमे भी प्राकृतिक विज्ञानों की तरह ही यथार्थ निश्चित परिणाम प्राप्त करने के लिए सामाजिक घटनाओं का अध्ययन नियन्त्रित परिस्थिति मे किया जाता हैं प्रयोगात्मक अथवा परिस्थिति पर सावधानीपूर्वक नियन्त्रण करके प्रयोगात्मक चर अनुसंधान इस बात की स्पष्ट व्याख्या करता है कि जब सम्बंधित चरों मे परिवर्तन किया जाये तो क्या परिणाम प्राप्त होंगे।

प्रयोग की परिभाषा 

जहोड़ा के अनुसार, " प्रयोग उपकल्पना के परीक्षण की एक विधि हैं।"
ग्रीनवुड, "प्रयोग कार्य-कारण सम्बन्ध को व्यक्त करने वाली उपकल्पना के परीक्षण की विधि है, जिसमें नियन्त्रण परिस्थितियों के कार्य-कारण सम्बन्धों का मूल्यांकन करते हैं।"
एवडवर्सन, "जब एक अनुसंधान समस्या के संबंध मे एक अध्ययनकर्ता कुछ चरों पर नियंत्रण या प्रत्यक्ष हस्तक्षेप स्थापित करता है, तब इस प्रकार की अनुसंधान प्रक्रिया को प्रायः एक प्रयोग कहा जाता है।"
चेपिन, " समाजशास्त्रीय शोध मे प्रयोगात्मक अभिकल्पना की धारणा नियन्त्रण की दशाओं मे अवलोकन के द्वारा मानव सम्बन्धों के व्यवस्थित अध्ययन की ओर संकेत करती है।"

प्रयोगात्मक विधि के गुण

प्रयोगात्मक विधि के निम्नलिखित गुण है-- 
1. समय की बचत
सामाजिक अनुसंधान एक लम्बी प्रक्रिया है, जिसमें अत्यन्त ही अधिक समय लगता हैं। किन्तु सामाजिक अनुसंधान मे जब प्रयोगात्मक पद्धति का प्रयोग किया जाता है, तो इससे समय की बचत होती हैं।
2. अधिक प्रमाणिकता
सामाजिक अनुसंधान से प्राप्त तथ्यों की प्रमाणिकता सबसे बड़ी उपलब्धि होती है। अन्य विधियों से प्रमाणिकता की गारंटी संभव नही है। कारण यह है कि अन्य विधियों के द्वारा किए जाने वाले अध्ययनों पर शोधकर्ता की भूमिका केवल दर्शक जैसी होती हैं, निष्कर्ष और परिणाम मशीनीकृत होते हैं।
3. भविष्यवाणी
प्रयोगात्मक पद्धति के माध्यम से जो निष्कर्ष प्राप्त होते हैं, वे वैध तथा विशुद्ध होते है। इस विधि के माध्यम के किए जाने वाले अध्ययनों के आधार पर भविष्यवाणी कि जा सकती हैं।
4. वस्तुनिष्ठता
प्रत्येक सामाजिक अनुसंधान का जो उद्देश्य होता है, वह हैं-- वस्तुनिष्ठ निष्कर्षों की प्राप्ति। सामाजिक अनुसंधान की अनेक विधियाँ है। इन विधियों की सहायता से वस्तुनिष्ठ निष्कर्ष प्राप्त करना कठिन हैं। किन्तु प्रयोगात्मक पद्धति के माध्यम से जो अनुसंधान किए जाते है और जो निष्कर्ष निकाले जाते है वे वस्तुनिष्ठ होते हैं और उनकी कही भी कभी भी परीक्षण और पुनः परीक्षण किया जा सकता है।
5. सार्वभौमिकता
प्रयोगात्मक पद्धति के माध्यम से जब सामाजिक अनुसंधान किए जाते हैं, तो इनके द्वारा प्राप्त निष्कर्ष सार्वभौमिक होते हैं।
6. विशुद्ध परिणाम
प्रयोगात्मक विधि को इसलिए सर्वश्रेष्ठ विधि कहा जाता है, क्योंकि यह प्रयोगशाला आधारित होती है। चूंकि प्रयोगशाला आधारित होने के कारण वस्तुनिष्ठता अधिक होती है। इसी वस्तुनिष्ठता के कारण जो निष्कर्ष प्राप्त होते है, वे विशुद्ध वैधानिक होते हैं।

प्रयोगात्मक विधि के दोष

प्रयोगात्मक विधि के निम्नलिखित दोष है-- 
1. प्रयोगात्मक पद्धति मे घटकों या चरों पर नियंत्रण किया जाता है। घटनाओं मे नियंत्रण के कारण शोध निष्कर्ष वास्तविक से दूर होते हैं।
2. प्रयोगात्मक विधि का सबसे बड़ा दोष यह हैं कि सभी सामाजिक घटनाओं पर इसे प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
3. प्रयोगात्मक विधि अनुसंधानकर्ता चरों को घटा-बढ़ाकर अपने हिसाब से प्रयोग करता है। चरों को इधर-उधर करने से भी शोध निष्कर्ष मे वैधता का अभाव होता है।
4. प्रयोगशाला मे आते ही प्रयोज्यों के व्यवहार मे परिवर्तन हो जाता है। इससे शोध निष्कर्ष प्रभावित होते हैं।
5. प्रयोगात्मक पद्धति मे प्रयोगशाला मे कृत्रिम परिस्थितियां निर्मित की जाती है, जो वास्तविक परिस्थितियों से भिन्न होती है। इसलिए निष्कर्षों मे उतनी वैधता नही होते है।
6. प्रयोगात्मक विधि मे अधिक संख्या मे प्रयोज्य न चुने जाने के कारण जो निष्कर्ष निकलते है, वे व्यापक तथा सार्वभौम नही होतें।
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