दैव निदर्शन का अर्थ (dev nirdeshan kya hai)
दैव निदर्शन निदर्शन के सभी प्रकारों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और सर्वाधिक प्रचलित विधि है। इस प्रविधि के द्वार निदर्शन का चुनाव स्वतंत्र रूप से नही होता। इसमें इकाईयों का चयन संयोग पर छोड़ दिया जाता है। अर्थात् समग्र की सभी इकाईयों को चुने का समान अवसर दैव निदर्शन मे मिलता है।
दैव निदर्शन की परिभाषा (dev nirdeshan ki paribhasha)
फ्रैंक येट्स के शब्दों मे," दैव निदर्शन वह है जिसमें कि समग्र अथवा जनसंख्या की प्रत्येक इकाई को निदर्शन में सम्मिलित होने का अवसर प्राप्त होता है।
गुडे एवं डट के शब्दों में," दैव निदर्शन के लिए समग्र इकाईयों को इस प्रकार क्रमबद्ध किया जाता है कि, चयन-प्रक्रिया समग्र की प्रत्येक इकाई को चुनाव की समान संभावना देती है।
दैव निदर्शन की प्रविधियां
दैव निदर्शन को प्राप्त करने हेतु कई प्रविधियों का उपयोग किया जाता है। ये निम्नलिखित है--
1. लाटरी प्रणाली
यह देव निदर्शन की सबसे सरल विधि होती है। इसमें समग्र की सारी इकाइयों को अलग-अलग पर्चियों पर लिख लिया जाता है फिर किसी थैले या ढोल मे डालकर अच्छी तरह हिलाया जाता है। इसके बाद जितनी इकाइयों का चयन अध्ययन के लिए करना होता है उतनी पर्चियां निकाल ली जाती है। एक पर्ची निकालने के बाद पुनः ढोल हिला दिया जाता है।
2. कार्ड प्रणाली
यह लाटरी प्रणाली का संशोधित रूप होती है। इसमें सामान आकार तथा रंग के कार्डों पर समग्र की इकाइयों को लिख लिया जाता है तथा ड्रम में डाल दिया जाता है। इसके बाद जितनी इकाइयों का चयन करना होता है उतने कार्ड निकाले जाते हैं। हर बार कार्ड निकालने के बाद ड्रम को हिला दिया जाता है।
3. नियमित अंकन प्रणाली
इसके अंतर्गत समग्र की सभी इकाइयों का वर्णक्रम के आधार पर सूचीबद्ध किया जाता है। अब कुल इकाइयों में से जितनी इकाइयों का चयन होना है, उसके अनुपात में अध्ययन हेतु इकाइयों का चयन कर लिया जाता है। यदि समग्र में कुल एक हजार इकाइयां हैं और अध्ययन के लिए एक की इकाइयां चाहिए तो 10, 20, 30, 40, 50, 60, 70 और इसी क्रम में आगे इकाइयों पर निशान लगा लिए जाते हैं तथा इन निशान लगी इकाइयों को अध्ययन हेतु चुन लिया जाता है। क्योंकि एक इकाई से दूसरी इकाई में समान अंतर रखकर चुना जाता है। अतः इसे नियमित अंकन प्रणाली कहते है।
4. अनियमित अंकन प्रणाली
इसके अंतर्गत सभी इकाइयों को सूची में लिखा जाता है। फिर बिना किसी क्रम को निर्धारित किए हुए इकाइयों का चयन किया जाता है जैसे-- 5, 12, 23, 25, 58, 61, 65 आदि।
5. टिपेट प्रणाली
इस विधि को प्रो. टिपेट ने प्रस्तुत किया है। उन्होंने 4 अंकों वाली 10,400 संख्याओं की एक लम्बी और अव्यवस्थित सूची पुस्तक के रूप में बनाई जिसकी प्रकृति को निम्न संख्याओं से समझा जा सकता है--
2952 6641 3992 9792 7979 5911 3170
4167 9524 1545 1396 7203 5356 1300
2370 7483 3408 2762 3563 1089 6913
0560 5246 1112 6107 6008 8126 4433
इस प्रणाली से निदर्शन लेने हेतु समग्र की सभी इकाइयों को क्रम से सूचीबद्ध किया जाता है। उसके बाद टिपेट की पुस्तक का एक पृष्ठ खोल कर उस पर अंकित संख्याओं की सहायता से निदर्शन का चुनाव कर लिया जाता है। यदि कोई संख्या दोबारा आ जाती है तो उसे छोड़ देते हैं। 99 तक की संख्या का चुनाव करने के लिए प्रथम 2 अंक तथा 100 से ऊपर बाली संख्या का चुनाव करने के लिए प्रथम 3 अंकों को आधार माना जाता है। देव निदर्शन में टिपेट प्रणाली को बहुत वैज्ञानिक माना जाता है क्योंकि इसमें पक्षपाती कोई संभावना नहीं होती।
6. ग्रिड प्रणाली
ग्रिड प्रणाली के द्वारा यह निर्धारित किया जाता है कि कोई विशेष अध्ययन किसी क्षेत्र या किन क्षेत्रों के अंतर्गत किया जावेगा। इस प्रणाली में सेल्युलाईड या पारदर्शी धातु की पट्टी लेकर उसमें चौकोर आकार के छेद कर लिए जाते हैं तथा उन पर क्रमांक लिख देते हैं। निदर्शन क्षेत्र का चुनाव करने के लिए पहले से ही यह निर्धारित किया जाता है कि पट्टी पर से किन-क्रमांको को लिया जावेगा।
अब अध्ययन क्षेत्र के भौगोलिक मानचित्र इस पट्टी को या ग्रिड को रखा जाता है तथा पूर्व निर्धारित क्रमांकों वाले खानों को मानचित्र पर अंकित कर लिया जाता है।
मानचित्र पर जिस क्षेत्र का अंकन होता है उस क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली सभी इकाइयों का अध्ययन होता है। इस प्रकार देव निदर्शन को प्राप्त करने की अनेक प्रणालियां होती है। अध्ययनकर्ता अपनी सुविधा से किसी भी प्रणाली का प्रयोग कर इकाइयों का चुनाव कर सकता है।
दैव निदर्शन के गुण (dev nirdeshan ke gun)
दैव निदर्शन के गुण इस प्रकार हैं--
1. यह प्रणाली मितव्ययी समझी जाती है क्योंकि समय, धन व परिश्रम की बचत होती है।
2. इस पद्धति के अंतर्गत निदर्शनों विभ्रमों की सही माप तथा परिणाम के महत्व का सही मूल्यांकन किया जा सकता है। क्योंकी यह रीति संभावना सिद्धांत पर आधारित है।
3. इस प्रणाली में सभी इकाइयों को चुनाव का समान अवसर प्रदान किया जाता है अतः निष्पक्षता बनी रहती है।
4. बिना बुद्धि प्रयोग अथवा पूर्व ज्ञान के चुनाव हो जाने से सरलता रहती है।
5. इसके आधार पर लिए गए निदर्श समग्र का सही रूप में प्रतिनिधित्व करते है।
दैव निदर्शन के दोष/सीमाएं (dev nirdeshan ke dosh)
देव निदर्शन प्रणाली के दोष इस प्रकार है--
1. यह प्रणाली कभी-कभी अनुपयुक्त भी कही जाती है विशेषकर उस समय जब किन्ही विशेष इकाइयों को निदर्श के रूप में लेना अनिवार्य हो और ऐसा न किया जा सकता हो।
2. जब किसी समग्र का आकार छोटा होता है या उसमे विषमता अधिक होती है तो संभव हो सकता है कि विषम व विजायतीय समग्र में से एक ही विशेषता व प्रकृति वाले निदर्श छटकर आ जायें।
3. निदर्शन इकाइयों का विस्तृत फैलाव होने के कारण उनसे संपर्क कठिन होता है।
सावधानियां
1. सभी इकाइयों का आकार लगभग समान होना चाहिए।
2. समस्त इकाइयों को एक-दूसरे से स्वतंत्र होना चाहिए।
3. प्रत्येक इकाई तक अनुसन्धानकर्ता की पहुंच होनी चाहिए।
4. जिन इकाइयों का एक बार चुनाव कर लिया जाये उन्हें बदलना नही चाहिए।
5. निदर्शन से पूर्व अनुसन्धान समस्त इकाइयों की अनुक्रमणिका बना ली जाये।
देव निर्देशन के प्रकार konse है सर
जवाब देंहटाएंप्रविधियां को ही प्रकार कह सकते हैं।
हटाएंYadrieck Dev ndarsan Vedic se aapkay samaj ti
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