सांख्यिकी सिद्धांतों को वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत करने का श्रेय जर्मनी विद्वान एवं गणितिज्ञ गाॅटफ्रायड एचेनवाला को हैं। इन्होंने सन् 1749 मे सांख्यिकी की विस्तृत विवेचना प्रस्तुत की थी। सांख्यिकी का जनक गाॅटफ्रायड ऐचेनवाला को कहा जाता हैं। इस लेख मे हम सांख्यिकी क्या हैं? सांख्यिकी का अर्थ, परिभाषा, सांख्यिकी का महत्व और विशेषताएं जानेगें।
सांख्यिकी क्या हैं? सांख्यिकी का अर्थ
सांख्यिकी शब्द का प्रयोग दो रूपों में किया जाता है-- एक वचन और बहु वचन। प्राचीन समय मे जब सांख्यिकी का विकास पूर्णतः नही हो पाया था, तब इसे बहुवचन अर्थात् समंको के रूप मे ही स्वीकार किया जाता था, लेकिन आगे चलकर इस विज्ञान के पूर्ण विकसित होने पर इसे एकवचन अर्थात् सांख्यिकी विज्ञान के रूप मे प्रयोग मे लिया जाने लगा।
एकवचन के रूप मे सांख्यिकी का अर्थ 'सांख्यिकी विज्ञान' के रूप में हैं। बहुवचन के रूप मे 'सांख्यिकी का अर्थ 'आँकड़ों या समंको' के रूप मे हैं।
एकवचन के रूप मे सांख्यिकी का अर्थ 'सांख्यिकी विज्ञान' के रूप में हैं। बहुवचन के रूप मे 'सांख्यिकी का अर्थ 'आँकड़ों या समंको' के रूप मे हैं।
सांख्यिकी की विशेषताएं (sankhyiki ki visheshta)
सांख्यिकी की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--
1 . समंक तथ्यों के समूह होते हैं
श्री होरेस स्क्रिस्ट के विचारों से समंक किसी व्यक्ति या वस्तु विशेष के लिए नही होते हैं अपितु वे किसी समूह के तथ्यों को प्रदर्शित करते हैं। अर्थात् यह एक व्यक्ति के लिए कोई संख्या दी जाये तब वह समंक नही होगा, लेकिन एक समूह के लिए दी जाये तब समंक कहलाने लगेगी।
2. सांख्यिकी साधन प्रस्तुत करती है, निष्कर्ष नही
सांख्यिकी केवल साधन प्रस्तुत करती है, निष्कर्ष नही। यदि अनुसन्धानकर्ता की भावना पक्षपातपूर्ण हो, तो सांख्यिकी निष्कर्ष अशुद्ध हो जाते है, क्योंकी ऐसी दशा मे अनुसन्धानकर्ता सदैव ऐसा प्रयास करता है कि परिणाम उसकी पूर्व धारणा के अनुसार हो।
3. समंको की गणना अथवा अनुमान द्वारा संकलित किया जाता है
होरेस स्क्रिस्ट का विचार है कि समंको का संकलन या तो साधारण गणना के आधार पर किया जाता है या फिर पूर्व घटनाओं एवं अनुभवो के आधार पर अनुमान लगाकर किया जाता है। यदि समंक संकलन का क्षेत्र सीमित है, तब गणना विधि के द्वारा और यदि क्षेत्र विस्तृत है, तब अनुमानित आधार पर इनका संकलन किया जाता है।
4. गणितीय शुद्धता का अभावा
सांख्यिकी के नियम केवल औसतन ही सही होते है, उनमे गणितीय शुद्धता का अभाव पाया जाता हैं।
5. संकलन सुव्यवस्थित तरीके से हुआ हो
समंको का संकलन स्क्रिस्ट के अनुसार सुव्यवस्थित ढंग से होना चाहिए। यदि उनका संकलन योजनानुसार नही किया गया है तब वे समंक नही कहलायेंगे।
6. सजातीय आवश्यक
सांख्यिकी समंको की तुलना हेतु उनका सजातीय होना आवश्यक है। कपड़ों और जूतों की तुलना संभव नही हैं।
7. समंक अंको अथवा संख्या मे व्यक्त किये जाते हैं
समंक हमेशा अंकों मे अथवा संख्या मे प्रस्तुत किये जाते है। यदि कोई तथ्य संख्या मे प्रस्तुत नही किया गया है, तब वह समंक नही होगा।
श्री होरेस स्क्रिस्ट के विचारों से समंक किसी व्यक्ति या वस्तु विशेष के लिए नही होते हैं अपितु वे किसी समूह के तथ्यों को प्रदर्शित करते हैं। अर्थात् यह एक व्यक्ति के लिए कोई संख्या दी जाये तब वह समंक नही होगा, लेकिन एक समूह के लिए दी जाये तब समंक कहलाने लगेगी।
2. सांख्यिकी साधन प्रस्तुत करती है, निष्कर्ष नही
सांख्यिकी केवल साधन प्रस्तुत करती है, निष्कर्ष नही। यदि अनुसन्धानकर्ता की भावना पक्षपातपूर्ण हो, तो सांख्यिकी निष्कर्ष अशुद्ध हो जाते है, क्योंकी ऐसी दशा मे अनुसन्धानकर्ता सदैव ऐसा प्रयास करता है कि परिणाम उसकी पूर्व धारणा के अनुसार हो।
3. समंको की गणना अथवा अनुमान द्वारा संकलित किया जाता है
होरेस स्क्रिस्ट का विचार है कि समंको का संकलन या तो साधारण गणना के आधार पर किया जाता है या फिर पूर्व घटनाओं एवं अनुभवो के आधार पर अनुमान लगाकर किया जाता है। यदि समंक संकलन का क्षेत्र सीमित है, तब गणना विधि के द्वारा और यदि क्षेत्र विस्तृत है, तब अनुमानित आधार पर इनका संकलन किया जाता है।
4. गणितीय शुद्धता का अभावा
सांख्यिकी के नियम केवल औसतन ही सही होते है, उनमे गणितीय शुद्धता का अभाव पाया जाता हैं।
5. संकलन सुव्यवस्थित तरीके से हुआ हो
समंको का संकलन स्क्रिस्ट के अनुसार सुव्यवस्थित ढंग से होना चाहिए। यदि उनका संकलन योजनानुसार नही किया गया है तब वे समंक नही कहलायेंगे।
6. सजातीय आवश्यक
सांख्यिकी समंको की तुलना हेतु उनका सजातीय होना आवश्यक है। कपड़ों और जूतों की तुलना संभव नही हैं।
7. समंक अंको अथवा संख्या मे व्यक्त किये जाते हैं
समंक हमेशा अंकों मे अथवा संख्या मे प्रस्तुत किये जाते है। यदि कोई तथ्य संख्या मे प्रस्तुत नही किया गया है, तब वह समंक नही होगा।
सांख्यिकी का महत्व (sankhyiki ka mahatva)
1. व्यक्तिगत अनुभवों मे वृद्धि
सांख्यिकी पद्धति के अभाव मे अनुसन्धानकर्ता द्वारा निकाले गये निष्कर्ष केवल अनुमान मात्र होते है। उनमे दृढता नही होती। सांख्यिकी पद्धति अनुसन्धानकर्ता के ज्ञान व अनुभव मे वृद्धि करती हैं।
2. जटिल तथ्यों को सरल बनाना
अनुसंधान के दौरान संकलित जानकारी अत्यन्त जटिल तथा अव्यवस्थित होती हैं। सामान्य व्यक्ति न उसे समझ सकता है और न कोई निष्कर्ष ही निकाल सकता है।
3. सामान्य नियमों का निर्माण
सांख्यिकी पद्धति से मिले परिणामों को छोटे अथवा विशेष क्षेत्र पर नियम रूप मे लागू किया जा सकता है एवं क्षेत्र यदि विस्तृत है तो उस सम्बन्ध मे विभिन्न नियम भी इन परिणामों के आधार पर बनाये जा सकते है।
4. संक्षिप्त व्याख्या
सांख्यिकी अनुसंधान के निष्कर्षों व परिणामों मे से अनावश्यक एवं अवांछित सामग्री हटाकर उन्हें संक्षिप्त एवं सरल रूप मे प्रस्तुत करता हैं।
5. सामाजिक समस्याओं के समाधान मे सहायक
सांख्यिकी कि सहायता से देश में अशिक्षा, बेकारी, अपराध, भिक्षावृत्ति आदि सामाजिक समस्याओं के सम्बन्ध मे जानकारी प्राप्त की जाती है। साथ ही इन समस्याओं के समाधान के उपाय तथा वे उपाय कहां तक सफल हुए है, इनका पता भी सांख्यिकी की मदद से लगाया जा सकता है।
6. भविष्य के लिए पूर्वानुमान
सांख्यिकी के द्वारा पूर्वानुमान भी लगाये जाते है। इसमे वर्तमान तथ्यों का विश्लेषण करके प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर भविष्य के लिए अनुमान लगाये जाते है।
सांख्यिकी पद्धति के अभाव मे अनुसन्धानकर्ता द्वारा निकाले गये निष्कर्ष केवल अनुमान मात्र होते है। उनमे दृढता नही होती। सांख्यिकी पद्धति अनुसन्धानकर्ता के ज्ञान व अनुभव मे वृद्धि करती हैं।
2. जटिल तथ्यों को सरल बनाना
अनुसंधान के दौरान संकलित जानकारी अत्यन्त जटिल तथा अव्यवस्थित होती हैं। सामान्य व्यक्ति न उसे समझ सकता है और न कोई निष्कर्ष ही निकाल सकता है।
3. सामान्य नियमों का निर्माण
सांख्यिकी पद्धति से मिले परिणामों को छोटे अथवा विशेष क्षेत्र पर नियम रूप मे लागू किया जा सकता है एवं क्षेत्र यदि विस्तृत है तो उस सम्बन्ध मे विभिन्न नियम भी इन परिणामों के आधार पर बनाये जा सकते है।
4. संक्षिप्त व्याख्या
सांख्यिकी अनुसंधान के निष्कर्षों व परिणामों मे से अनावश्यक एवं अवांछित सामग्री हटाकर उन्हें संक्षिप्त एवं सरल रूप मे प्रस्तुत करता हैं।
5. सामाजिक समस्याओं के समाधान मे सहायक
सांख्यिकी कि सहायता से देश में अशिक्षा, बेकारी, अपराध, भिक्षावृत्ति आदि सामाजिक समस्याओं के सम्बन्ध मे जानकारी प्राप्त की जाती है। साथ ही इन समस्याओं के समाधान के उपाय तथा वे उपाय कहां तक सफल हुए है, इनका पता भी सांख्यिकी की मदद से लगाया जा सकता है।
6. भविष्य के लिए पूर्वानुमान
सांख्यिकी के द्वारा पूर्वानुमान भी लगाये जाते है। इसमे वर्तमान तथ्यों का विश्लेषण करके प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर भविष्य के लिए अनुमान लगाये जाते है।
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