9/27/2020

सांख्यिकी की सीमाएं और कार्य

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सांख्यिकी की सीमायें (सीमाएं) {sankhyiki ki simaye}

सामाजिक अनुसंधान मे सांख्यिकी विधि का महत्वपूर्ण स्थान है परन्तु फिर भी इसकी अपनी सीमांए है, जिन पर नियंत्रण करना संभव नही है। अतः इस विधि का प्रयोग अत्यंत सावधानीपूर्वक करना चाहिए। सांख्यिकी की निम्नलिखित सीमायें है-- 

1. केवल संख्यात्मक अध्ययन 

सांख्यिकी विधि के द्वारा किसी समस्या के केवल संख्यात्मक पक्ष का ही अध्ययन किया जा सकता है। गुणात्मक तथ्य जैसे तनाव, क्षमता, ईमानदारी, भय आदि का अध्ययन सांख्यिकी विधि के द्वारा करना संभव नही है। विशेषकर समाजशास्त्री अध्ययनों मे इस कारण से सांख्यिकी विधि का प्रयोग अत्यंत सीमित हो जाता है क्योंकि अधिकांश सामाजिक घटनायें गुणात्मक होती है और उन्हें मापा नही जा सकता।

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2. व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन संभव नही 

सांख्यिकी विधि के द्वारा केवल व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन संभव नही होता। इसमे केवल समूहों का अध्ययन कर निष्कर्ष निकाले जाते है और ये निष्कर्ष समूह पर ही लागू किये जा सकते है। लेकिन इससे वैज्ञानिक इकाई की विशेषताएं स्पष्ट नही होती है। जैसे किसी राज्य की प्रति व्यक्ति आय 1500 रूपयें है परन्तु वास्तव मे सभी व्यक्ति 1500 रूपये प्राप्त नही करते है। अधिकांश की आय इससे कम होती है और कुछ की तो इससे कहीं अधिक होती है। सांख्यिकी विधि इन कमियों पर प्रकाश डालने मे असमर्थ है।

3. गहन अध्ययन के लिये अनुपयुक्त 

सामाजिक घटना के क्षेत्र मे जहाँ गहन अध्ययन आवश्यक होता है, सांख्यिकी विधि अनुपयुक्त होती है क्योंकि इसके द्वारा केवल घटनाओं की सामान्य विशेषताओं का ही अध्ययन संभव होता है। सामाजिक घटनायें इतनी सरल एवं स्थूल नही है कि केवल थोड़ी सी सांख्यिकी को एकत्रित कर उनके आधार पर सार्वभौमिक निष्कर्ष प्राप्त किये जा सके। इसके लिये गहन एवं सूक्ष्म अध्ययन की आवश्यकता होती है।

4. केवल सजातीय तथ्यों का अध्ययन 

चूंकि सांख्यिकी विधि मे तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। अतः उनमे एकरूपता एवं सजातीयता होना आवश्यक है। जैसे-- प्रति व्यक्ति आय की तुलना प्रति व्यक्ति आय से ही जा सकती है। प्रति व्यक्ति आय की तुलना आयात अथवा निर्यात के समंको से नही की जाती।

5. केवल विशेषज्ञ ही इसका उपयोग कर सकते है

सांख्यिकी विधि का प्रयोग केवल विशेषज्ञ ही कर सकते है क्योंकि तथ्यों के वर्गीकरण, सारणीयन, विश्लेषण, निर्वाचन आदि के लिये विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है। यह कार्य सामान्य व्यक्ति नही कर सकते है। इस संबंध मे यूल एवं केण्डाल का मत है कि," अयोग्य व्यक्ति के हाथ मे सांख्यिकी विधियाँ खतरनाक औजार है।" आयोग व्यक्ति के हाथ मे सांख्यिकी विधियाँ बंदर के हाथ में उस्तरे के समान है।

6. एक मात्र विधि नही 

सांख्यिकी पद्धति अनुसंधान की एक मात्र विधि है, यह मान लेना सर्वथा अनुचित है। साथ ही यह भी मान लेना अनुसूची है कि इस विधि के द्वारा प्रत्येक प्रकार की समस्या का सर्वोत्तम हल निकल सकता है। डाॅ. बाऊले के अनुसार " सांख्यिकी विधि किसी समस्या के समाधान के लिये उतनी ही आवश्यक है जितना की भवन-निर्माण के लिये यथार्थ माप।" 

7. अनिश्चित निष्कर्ष 

सांख्यिकी के निष्कर्ष भ्रामक एवं अनिश्चित होते है। बिना संदर्भों के हम उन्हें नही समझ सकते। सांख्यिकी निष्कर्षों को ठीक से समझने के लिये संदर्भ होना आवश्यक है। समंको पर अत्यधिक निर्भर रहने के कारण गलत निष्कर्ष निकलने की संभावनायें बनी रहती है। 

8. गणितीय शुद्धता का अभाव 

सांख्यिकी के नियम केवल औसतन ही सही होते है, उनमे शुद्धता का अभाव पाया जाता है। शत-प्रतिशत वाले कार्यों मे सांख्यिकी विधियां सहायक नही होती है।

सांख्यिकी के निम्नलिखित कार्य हैं--

1. तथ्यों की तुलना करना 

सरलीकृत आँकड़ों का तब तक कोई महत्व नही होता जब तक कि उसी प्रकार के दूसरे आँकड़ों से उसकी तुलना न की जाय और उनमे सम्बन्ध स्थापित न किया जाय। तुलना के कार्य द्वारा समंकों के सापेक्ष महत्व को प्रस्तुत करने मे सहायता मिलती है। उदाहरण के लिए भारत मे प्रति व्यक्ति आय की जानकारी तब उपयोगी होगी जब अन्य देशों की प्रति व्यक्ति आय से तुलना की जाये।

2. व्यक्तिगत अनुभव व ज्ञान मे वृद्धि 

सांख्यिकी के अध्ययन और प्रयोग से व्यक्ति के ज्ञान और अनुभव मे वृद्धि होती है, उसके विचारों को स्पष्ता औथ निश्चितता मिलती है, विश्लेषण और तर्कशक्ति का विकास होता है तथा इसके आधार पर वह विभिन्न विषयों और समस्याओं को उचित प्रकार समझने लगता है। 

3. नीतियों के निर्धारण मे सहायता 

सांख्यिकी विभिन्न क्षेत्रों मे (अर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक) नीतियाँ निर्धारित करने मे पथ प्रदर्शन का काम करती है। सांख्यिकी सामग्री के वैज्ञानिक विश्लेषण के द्वारा विभिन्न नीतियों का निर्माण होता है। आँकड़ों एवं उनकी प्रवृत्तियों के आधार पर देश मे आयात-निर्यात नीति, कर नीति निर्धारण होती है।

4. सांख्यिकी दूसरे विज्ञानों के नियमों की जाँच करती है

सांख्यिकी से विभिन्न विषयों और विज्ञानों के नियमों का निर्माण किया जाता है और निगमन प्रणाली के आधार पर बने नियमों सत्यता की जांच की जाती है। आवश्यकतानुसार उन नियमों मे परिवर्तन भी किये जाते है। उदाहरण के लिए समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, तर्कशास्त्र के नियम सांख्यिकी की सहायता से बनते है। ऐसे नियमों मे स्थिरता रहती है और वै सार्वभौमिक होते है।

5. तथ्यों का अनुमान एवं पूर्वानुमान 

सांख्यिकी रीतियों के आधार पर वर्तमान तथ्यों का अनुमान और भावी तथ्यों का पूर्वानुमान लगया जाता है। योजनाओं के लिए यह बहुत आवश्यक होता है और इसी के आधार पर योजनाएं बनायी जाती है। यह कार्य बाहरी गणन व आन्तर गणन से किया जाता है।

6. सांख्यिकी तथ्यों को निश्चितता प्रदान करती है

सांख्यिकी का प्रथम कार्य तथ्यों को संख्यात्मक रूप मे एकत्र और प्रस्तुत करना है। सांख्यिकी सामान्य विवरणों को संक्षिप्त एवं निश्चित रूप से प्रस्तुत करता है। उदाहरण के लिए यह कहा जाये कि जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है तो यह कथन तब तक प्रभावशाली नही होगा जब तक उसे संख्यात्मक रूप मे भी प्रस्तुत न किया जाये।

7. सांख्यिकी जटिलता को सरल बनाती है

सांख्यिकी का कार्य विशाल और जटिल तथ्यों को सरल संक्षिप्त बनाना है क्योंकि एकत्र किये हुए आँकड़ों की विशाल राशि को समझना कठिन होगा। अतः सांख्यिकी की विभिन्न रीतियों, जैसे-- माध्य, अपकिरण, बिन्दुरेखीय या चित्रमय प्रदर्शन इत्यादि के द्वारा इन तथ्यों को सरल एवं संक्षिप्त बनाया जा सकता है।

8. परिकल्पनाओं की जाँच 

सांख्यिकी का एक कार्य परिकल्पनाओं का निर्धारण और उनकी सत्यताओं का पता लगाना है। जैसे-- क्या पेट्रोल के मूल्य मे वृद्धि से उसके उपयोग मे कमी हुई है। इत्यादि।

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