व्यक्तित्व संबंधी मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत, फ्राॅयड
सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमण्ड फ्रायड ने व्यक्तित्व के संबंध में मनोविश्लेषणवादी सिद्धांत का का प्रतिपादन किया जो मनोवैज्ञानिकों में काफी प्रचलित हुआ। व्यक्तित्व के संबंध मे फ्रायड ने अपने विचार लक्षणवाद तथा संरचावाद से भिन्न करते हुए मनोविश्लेषणवाद पर आधारित किये हैं। उन्होंने अपने विचारों के आधार पर यह सिद्ध किया है कि मानव व्यक्तित्व चेतना, अर्थ चेतना एवं अवचेतना पर निर्भर करता हैं। ये तीनों चेतना के स्तर होते हैं। द्वितीय तथ्य के रूप में व्यक्तित्व संगठन के लिए फ्रायड इदं, अहं, तथा अत्यहम् का वर्णन करते हैं। इसके द्वारा मानव व्यक्तित्व का व्यवस्थित रूप पदर्शित होता है अर्थात मानव व्यवहार का अध्ययन फ्राॅयड ने चेतना तथा संगठन के आधार पर किया हैं।
फ्राॅयड के व्यक्तित्व के सिद्धांत के बिन्दु
फ्राॅयड के व्यक्तित्व के सिद्धांत के निम्नलिखित बिन्दु हैं--
1. इदम्
फ्राॅयड के अनुसार व्यक्तित्व संगठन का यह वह स्तर होता है जो जन्मजात तथा मानव संरचना में निश्चित रूप से पाया जाता है। बालक जब जन्म लेता है तो जो कुछ भी उसकी संरचना मे निहित होता है वह पूरी तरह से इदम् होता है। अतः यह जन्मजात व वंशानुगत होता है। इदम् इच्छाओं का जनक है। इसे उचित अनुचित का ज्ञान नही होता है और यह केवल सुख चाहता है। इसलिए कुछ लोग इसे 'सुखवाद का सिद्धांत' भी कहते है क्योंकि यह केवल आनंद चाहता है। इदम् किसी तरह का तनाव सहन नही कर सकता है। इदम् न कुछ भूलता है न उसमें कुछ भूत-कालीन होता है। इसका मुख्य कार्य शारीरिक इच्छाओं की संतुष्टि तथा पूर्णतः अचेतन मन में कार्य करना है।
2. अहम्
अहम् के द्वारा जीवन की यथार्थता तथा प्रतिमाओं मे विभेद करना चाहिए। अहम् इड का ही एक भाग होता है जो इड एवं बाहरी संसार के मध्य माध्यम का कार्य करता है। अहम् के द्वारा वातावरण के बीच सामंजस्य की स्थिति बनाये रखने का कार्य होता हैं। इस तरह यह स्पष्ट हो जाता है कि अहम् के द्वारा व्यवहार में यथार्थता का प्रदर्शन होता है। कोई व्यक्ति अपनी आवश्यकता पूर्ति यथार्थ व्यवहार के माध्यम से ही करता है तथा जब तक उसकी आवश्यकता की पूर्ति नही होती है एवं उसका तनाव दूर नही होता है।
जैसे-जैसे बालक बड़ा होता है वह सामाजिक एवं नैतिक नियम सीखने लगता है, जिनकी सहायता से वह इदम् पर नियंत्रण करने लगता है और वह वास्तविकता से संबंध स्थापित करने लगता है। अहम् का विकास होने पर व्यक्ति वास्तविकताओं के जगत् में विचरण करने लगता है। यहाँ पर वह सामाजिक एवं नैतिक नियमों का पालन करने लगता हैं।
3. अत्यहम्
अत्यहम् के संबंध मे फ्रायड का कहना है कि व्यक्ति मे अपने अभिभावकों पर निर्भरता के कारण होता है। अभिभावकों द्वारा अपने बालक पर विशेष स्थायी छाप छोड़ी जाती है जो अहम् के भीतर एक विशेष स्थान बना लेती है यही अत्यहम् के रूप में जानी जाती है। अभिभावकों द्वारा छोड़ा गया यह प्रभाव बालक के व्यक्तित्व में कहीं न कहीं पर स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता हैं क्योंकि माता-पिता द्वारा अपने बालक पर अपने विचार किसी न किसी रूप मे आरोपित किये जाते हैं जिनका थोड़ा अथवा बहुत अंश बालक के व्यक्तित्व में बना रहता हैं। इस कार्य के लिए माता-पिता बालक को दण्ड देते हैं तथा पुरस्कार भी देते हैं। अतः इन कार्यों के द्वारा अत्यहम् के विकास में अपना पूर्ण योगदान देते हैं।
4. चेतन
चेतन का अर्थ ज्ञान से है जैसे यदि कोई व्यक्ति पढ़ रहा है तो उसमें पढ़ने की चेतना है। जिन क्रियाओं के प्रति व्यक्ति जागरूक होता हैं, वे चेतना स्तर पर होती हैं। चेतना स्तर पर सामाजिक रूप से स्वीकृत अनुभूतियाँ प्रबल होती हैं। चेतन मन का संबंध वर्तमान से होता है। चेतना में निरंतरता का गुण पाया जाता है परन्तु इसमें परिवर्तन होते रहते हैं तथा यह गायब नही होता हैं।
5. अर्द्धचेतन
इस अवस्था में व्यक्ति अर्द्धचेतन में होता है। यह पानी की ऊपरी सतह को स्पर्श करता हुआ भाग होता है यदि वह कुछ भूल जाता हैं तो उन्हें थोड़ा याद करने पर वे याद आ जाती हैं। जैसे किसी परिचित का नाम भूलना आदि। अर्द्धचेतन, चेतन एवं अचेतन के बीच पुल का कार्य करता हैं। इस भाग में व्यक्ति की वो यादें रहती है जिन्हें याद करने के लिए उसे प्रयास करना पड़ता हैं।
6. अचेतन
फ्राॅयड के अनुसार मानव मस्तिष्क 9/10 भाग अचेतन अवस्था में रहता है एवं 1/10 भाग चेतन अवस्था मे रहता है। अचेतन अवस्था का अध्ययन एक जटिल कार्य है, इसका पता लगाना अन्तर्दर्शन द्वारा भी संभव नही होता हैं। अचेतन भाग में वे सभी इच्छाएं एकत्रित हो जाती हैं जिनको समाज द्वारा स्वीकार नही किया जाता है। वे दमित इच्छाएं होती हैं। कभी-कभी ये इच्छाएं इतनी ज्यादा तीव्र हो जाती हैं कि विस्फोटक रूप में सामने आती हैं जो मानव व्यवहार तथा व्यक्तित्व को असामान्य बना देती हैं। इसके कारण मानव का सुप्तावस्था में चलना, हकलाना, हाथों को लगातार साफ करना तथा वामहस्तता जैसी असामान्य प्रवृत्ति पैदा हो जाती है। चेतन अवस्था का प्रत्यक्ष संबंध मानव व्यवहार से होता है, जो कि मानव व्यक्तित्व को निर्धारित करता हैं। अतः चेतन तथा अचेतन अवस्था दोनों ही मानव व्यक्तित्व को प्रभावित करती हैं।
इस तरह यह स्पष्ट हो जाता है कि फ्राॅयड मानव व्यक्तित्व को असामान्य स्थिति हेतु अचेतन अवस्था को उत्तरदायी मानता हैं। इसलिए दमन की प्रवृत्ति मानव के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं होने देती हैं। इसके आगे फ्राॅयड यह भी स्पष्ट करता हैं कि इदम् एवं अत्यहम् पूर्व कल्पना से होता है तथा अहम् का संबंध हमारे जीवन की यथार्थ परिस्थिति से होता हैं।
फ्राॅयड के मनोविश्लेषणवादी सिद्धांत के लाभ
फ्राॅयड के मनोविश्लेषणवादी सिद्धांत के लाभ इस प्रकार हैं--
1. इस सिद्धांत के अंतर्गत अचेतन मन, व्यवहार स्वरूपों को किस प्रकार प्रभावित करता हैं, यह समझाने की कोशिश की गई है। फ्राॅयड ने अचेतन प्रेरणाओं के महत्व को स्वीकार किया हैं।
2. फ्राॅयड के इस सिद्धांत के अंतर्गत समग्र मानव व्यवहार का समावेश होता हैं। इस सिद्धांत की परिधि में मनुष्य के चेतन एवं अचेतन दोनों व्यवहार सम्मिलित हो जाते हैं।
3. किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण में उसके बाल्यकालीन अनुभव एवं क्रिया-कलाप अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अतः इस सिद्धांत के अंतर्गत व्यवहार के कारणों को सुनिश्चित करने को महत्व प्रदान किया हैं।
4. इस सिद्धांत के अंतर्गत व्यक्तित्व को विभिन्न विशेषकों (traits) में बाँटकर एक समग्र रूप में समझने पर बल दिया गया हैं।
5. मनोविश्लेषणवादी सिद्धांत के अंतर्गत व्यक्ति को संपूर्ण व्यवहार की स्वतन्त्रता प्रदान की जाती हैं।
फ्राॅयड के मनोविश्लेषणवादी सिद्धांत के दोष
फ्राॅयड के मनोविश्लेषणवादी सिद्धांत पर हुए अनुसंधानों ने इस सिद्धांत में कुछ दोष को भी इंगित किया हैं, जो इस प्रकार हैं--
1. इस सिद्धांत का प्रमुख दोष यह हैं कि इसमें प्रमाणन को स्थान न देकर व्यक्तित्व निष्कर्षों को प्रस्तुत कर दिया गया जिससे इसमें परिकल्पनाओं की वैधता की कसौटियों का अभाव पाया गया।
2. इस सिद्धांत के अंतर्गत मनोवैज्ञानिकों ने फ्राॅयड के द्वारा काम-ऊर्जा को केन्द्र-बिन्दु बनाए जाने को अमान्य घोषित कर दिया।
3. इस सिद्धांत में पूर्व अनुभवों को अत्यधिक महत्व दिया गया हैं, जबकि आधुनिक वैज्ञानिक मापन एवं विश्लेषण को इस सिद्धांत में कोई स्थान प्रदान नहीं किया गया।
4. यह सिद्धांत मूल प्रवृत्तियों पर आधारित हैं जबकि वर्तमान मनोविज्ञान ने इसे त्याग दिया हैं।
5. फ्राॅयड का यह सिद्धांत मानसिक रोगों का कारण काम-ऊर्जा ही हैं। मानसिक रोग काम प्रवृत्ति की दमित इच्छा, प्रतिगमन एवं स्थिरीकरण के कारण उत्पन्न होते हैं। यह आधुनिक मनोवैज्ञानिक नही मानते।
6. फ्राॅयड ने अनेक सम्प्रत्ययों, जैसे काम ऊर्जा, दमन, जिजीविषा तथा मुमूर्षा आदि को अलग-अलग संदर्भों में परिभाषित किया है जबकि वास्तविकता यह है कि एकमात्र जिजीविषा ही मनोवृत्ति हैं। मृत्यु तभी आती है जब जीवन के प्रवाह की संभावना नहीं रहती।
मनोविश्लेषणात्मक की अवस्थाएं
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