बोल्बी का लगाव सिद्धांत
lagav ka siddhant;जाॅन बोल्बी (1907-1990) फ्रायड की तरह ही एक मनोविश्लेषण थे एवं मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार की समस्याओं के लिए बचपन को जिम्मेदार ठहराया जा सकता हैं, ऐसा मानते थें।
बोल्बी का लगाव सिद्धांत मनुष्यों के बीच अवधि के पारस्परिक संबंधों की गतिशीलता का वर्णन करने का प्रयास करता हैं। यह एक मनोवैज्ञानिक माॅडल है जिसे बोल्बी ने निर्मित किया है। लगाव सिद्धांत रिश्तों को एक सामान्य रूप में स्वीकार नही करता है बल्कि रिश्तों का एक विशिष्ट पहलू व्यक्त करता है। बोल्बी का मानना है कि लगाव सिद्धांत यह मानता है कि जब बच्चा जगत में आता है वह जैविक रूप से पूर्व निर्धारित रूप में दूसरों से लगाव रखता हैं क्योंकि वे उसकी जीवित रहने में सहायता करते हैं। बोल्वी का मत हैं कि लगाव व्यवहार आंतरिक होता है यह किसी भी परिस्थिति में क्रियान्वित हो सकता हैं, बच्चे को डराने अथवा धमकाने में, अलग करने पर असुरक्षा एवं डर में भी यह देखा जा सकता है। बोल्वी (1969-1988) ने कहा कि अजनबियों से डरना जीवित रहने के लिए एक मैकेनिज्म है जो प्राकृतिक रूप से बच्चों में पाया जाता है। लगाव सिद्धांत का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि शिशु से सफल सामाजिक तथा भावनात्मक विकास के लिए उसको कम से कम एक प्राथमिक संबंध विकसित करने की जरूरत होती है जिसके साथ यह प्रभावी ढंग से अपनी भावनाओं को विनियमित करता है। एक संवेदनशील देखभालकर्ता की उपस्थित में शिशु सुरक्षित महसूस करता हैं।
शिशु माता के साथ यह लगाव संबंध सुनिश्चित करते हैं। वे रेंगकर, मुस्कराकर एवं रोकर माता से संपर्क सुनिश्चित करते हैं तथा वे इस विशिष्ट व्यवहार के साथ ही जन्म लेते हैं। बोल्वी का मानना है कि शिशु एक ही लगाव फार्म विकसित करता हैं तथा यह लगाव आँकड़ा रिश्तों में एक सुरक्षित आधार के रूप में कार्य करता हैं।
बोल्वी के लगाव सिद्धांत के मुख्य बिन्दु
जाॅन बोल्बी के लगाव सिद्धांत के प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं--
1. एक बच्चे को जन्म से ही लगाव फिगर की जरूरत होती हैं
बोल्बी का मानना है कि ऐसा कोई नियम नही है कि बच्चा किसी अन्य के साथ लगाव संबंध नही रख सकता है लेकिन बच्चे को यह यकीन होता है कि वह उसके लिए प्राथमिक हैं। वे इसे प्राथमिक बन्धन मानतें हैं लेकिन विशेष तौर पर यह लगाव वे माता के साथ बनाते हैं।
बोल्बी का विश्वास है कि यह लगाव अन्य सभी तरह के लगाव से अलग तरह का लगाव होता हैं। बोल्वी का कहना है कि शिशु का अपनी माता के साथ जो संबंध होता हैं वह किसी भी अन्य संबंध से बिल्कुल अलग तरह का संबंध होता हैं। बोल्बी कहते हैं कि सिर्फ बच्चे का एक व्यक्ति के साथ लगाव एक करीबी रिश्ता बन जाता हैं तथा इसके टूटने पर बच्चे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, यह भी हो सकता है कि बच्चा मनोरोगी हो जाये। बच्चे की देखभाल करने हेतु उससे निकटता प्राप्त की जाती है। बच्चा इस तरह का व्यवहार करता हैं जिससे उसकी देखभाल करने वाले को कुछ सिग्नल प्राप्त हो जाते हैं जिससे उसकी आवश्यकता की जानकारी हो जाती है या तो वह रोता है अथवा मुस्कुराता है। इन सिग्नल व्यवहार का देखभाल करने वाला बच्चे को प्रयुत्तर पारस्परिक पैटर्न बनाने हेतु देता हैं।
2. एक बच्चे को जीवन के लगभग पहले दो वर्षों हेतु एक सबसे महत्वपूर्ण लगाव आँकड़ा की लगातार देखभाल प्राप्त होनी चाहिए
बोल्वी (1951) ने यह दावा किया हैं कि दो से ढाई साल के बच्चों में यह लगाव आँकड़ा टूट जाता है अथवा बाधित हो जाता है। यह जोखिम पाँच साल तक चलती हैं। बोल्बी ने लगाव विकसित करने हेतु विफलता के रूप में माता की जुदाई के लिए मातृ अभाव शब्द का इस्तेमाल किया है। समय के साथ प्राथमिक माता के साथ संबंधों में कुछ व्यवधान पड़ने लगते हैं। बच्चे का सामाजिक क्षेत्र विकसित होने लगता है। शिशु के समक्ष भावनात्मक कठिनाइयाँ भी आने लगती हैं। माता अगर कामकाजी होती हैं तो बच्चे को क्रच में छोड़कर अपने काम के लिए चली जाती है। ऐसी स्थिति में भी बच्चे के लगाव आँकड़े में बाधा पैदा होती हैं।
3. दीर्घ अवधि तक मातृवंचिता का प्रभाव
दीर्घ अवधि तक मातृ अभाव के कुछ बुरे परिणाम भी सामने आते है जो निम्नलिखित हैं--
(अ) अपराध
(ब) कम बुद्धि
(स) आक्रामकता में वृद्धि
(द) अवसाद
(ई) मनोरोग।
4. लगाव आँकड़े से लघु अवधि अलगाव का प्रभाव
बोल्वी का मत है कि लगाव आँकड़े से लघु अवधि की जुदाई भी बच्चे के लिए संकट पैदा कर देती हैं। यह संकट बच्चों में तीन चरणों में पाया जाता हैं--
1. प्रोटेस्ट
जब माता उसे छोड़कर जाती है तो बच्चा रोता है एवं चिल्लाता है एवं विरोध प्रदर्शित करता है तथा माता को न छोड़ने के लिए उससे चिपकने की कोशिश करता हैं।
2. निराशा
बच्चे में निराशा दिखाई देती है। वह छोड़ने के बाद भी ऊपर से शान्त दिखाई देता है परन्तु किसी भी कार्य अथवा खेल में रूचि नहीं लेता हैं एवं अगर दूसरे उसे आराम करने के लिए कहते हैं तो वह मना कर देता हैं।
3. टुकड़ी
अगर लगाव आँकड़े से जुदाई जारी रही एवं उसे अन्य लोगों के साथ संलग्न कर देते हैं तो लगाव आँकड़े की वापसी पर वह उसको क्रोध से अस्वीकार कर देता हैं तथा क्रोध को दृढ़ता से दिखाता हैं।
4. अपने प्राथमिक देखभालकर्ता के साथ बच्चे का लगाव रिश्ता एक आन्तरिक वर्किंग माॅडल का विकास होता हैं
यह आन्तरिक काम माॅडल विश्व को समझने हेतु एवं दूसरों को समझने हेतु एक मानसिक अभ्यावेदन होता है जिसमें एक संज्ञानात्मक रूपरेखा होती है। यह आन्तरिक माॅडल एक व्यक्ति के दूसरों के साथ अन्तःक्रियाओं को स्मृति तथा अपेक्षाओं के द्वारा निर्देशित करता हैं। अन्य लोगों के साथ एक व्यक्ति की बातचीत के प्रभाव एवं दूसरों की सहायता के साथ अपने संपर्क का मूल्यांकन करता हैं जो उनके आन्तरिक माॅडल से यादों एवं अपेक्षाओं द्वारा निर्देशित हैं।
जाॅन बोल्वी जीवन के प्रथम पाँच वर्षों को अधिक महत्वपूर्ण मानते थे। उनका मत है कि जीवन के प्रथम पाँच वर्षों के दौरान शिशु तथा उनकी माता के बीच का रिश्ता समाजीकरण हेतु बहुत महत्वपूर्ण होता है। उन्होंन कहा कि इन वर्षों में माता एवं शिशु के बीच प्राथमिक संबंध बनते हैं एवं इन प्राथमिक संबंधों के विघटन के कारण ही बाल-अपराध, शिशु के सामने आने वाली भावात्मक समस्याएँ तथा उनका असामाजिक व्यवहार हो सकता हैं। बोल्वी ने इस परिकल्पना का परीक्षण करने हेतु 44 अपराधी किशोरों का निरीक्षण किया एवं परिणाम में उन्होंने पाया की मातृ अभाव के कारण बच्चों को भावात्मक समस्याओं का सामना करना पड़ा एवं बच्चों का असामाजिक व्यवहार पाया गया इसलिए ऐसे बच्चे रिश्ता बनाने में असमर्थ पाये गये। इसलिए बोल्बी ने मातृ स्नहे को बच्चों के सुदृढ़ व्यक्तित्व हेतु जरूरी माना हैं।
समझ विकसित किस तरह करना चाहिए
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