9/29/2021

अवधान/ध्यान के प्रकार

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अवधान या ध्यान के प्रकार 

अवधान या ध्यान के निम्नलिखित प्रकार हैं--

1. ऐच्छिक अवधान 

किसी उद्दीपक पर जब हम अपनी इच्छानुसार अवधान को केन्द्रित कर देते हैं तथा सुख प्राप्त करते है, तो उसे ऐच्छिक अवधान कहा जाता हैं। उदाहरणार्थ, एक विद्यार्थी परीक्षा के समीप आने पर अथवा ध्यान किसी दुरूह गंद्यांश के अर्थ को समझने के लिये लगता है तब वह अपनी इच्छा से ही अपने मन को सक्रिय करके अर्थ को समझने का प्रयास करता हैं, यही ऐच्छिक अवधान या ध्यान कहलता है क्योंकि इस ध्यान का उद्देश्य परीक्षा में पास होना हैं। इसी प्रकार किसी अन्य उपयोगी वस्तु या उत्तेजिना पर जान बूझ कर सप्रयास ध्यान देना भी ऐच्छिक ध्यान होता हैं। 

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ऐच्छिक ध्यान को प्रयास पूर्ण ध्यान या सक्रिय ध्यान भी कहा जाता हैं क्योंकि ध्यान की इस स्थिति में चेतना का केन्द्रीयकरण इच्छा शक्ति द्वारा होती है इसलिए इसमें ध्यान को केन्द्रित करने का प्रयत्न भी किया जाता हैं। 

2. अनैच्छिक अवधान 

जब हमारा अवधान या ध्यान बिना इच्छा के किसी वस्तु पर केन्द्रित हो जाता है तो उसे अनैच्छिक अवधान कहा जाता हैं। उदाहरणार्थ, जब हम किसी कमरे मे पुस्तक पढ़ने में लीन होते हैं किन्तु बाहर से संगीत की आवाज आने पर हमारा ध्यान अनायास ही उस पर चला जाता है अथवा लाउडस्पीकर पर होने वाली किसी तेज आवाज के विज्ञापन पर चला जाता हैं तब यह अनैच्छिक ध्यान कहलाता हैं। इस ध्यान को स्वाभाविक ध्यान भी कहा जाता हैं। 

इसके अतिरिक्त इस ध्यान को प्रयासहीन अथवा निष्क्रिय ध्यान भी कहा जाता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि यह ध्यान की वह स्थिति है जो प्रत्येक व्यक्ति में जन्म से पाई जाती हैं। बालक भी किसी तेज आवाज को सुनकर अथवा किसी तेज प्रकाश को देखकर अपने ध्यान को उसी ओर मोड़ लेते हैं। इस प्रकार बाल्यावस्था के अधिकांश समय में ध्यान की यही स्थिति हैं। 

3. अभिप्रेरित अवधान 

जब हम किसी खतरे से बचने के लिये अपनी इच्छा के विपरीत प्रयास करकें किसी उत्तेजना पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं तो इस प्रकार के ध्यान को अभिप्रेरित या इच्छा के विरूद्ध ध्यान कहा जाता है। यह ध्यान अनैच्छिक ध्यान की भांति प्रयासहीन न होकर ऐच्छिक ध्यान की भांति सप्रयास होता है किन्तु ध्यान की इस स्थिति में और ऐच्छिक ध्यान की स्थिति में यह अंतर होता हैं कि ऐच्छिक ध्यान में अपनी इच्छा के अनुकूल किसी उत्तेजना पर चेतना को केन्द्रित किया जाता है जबकि इच्छा के विरूद्ध ध्यान में इच्छा के प्रतिकूल किसी उत्तेजना पर चेतना को केन्द्रित किया जाता हैं।

4. मूर्त अवधान 

किसी विचार अथवा व्यक्ति, वस्तु को जब उद्दीपक मानकर अध्ययन किया जाता हैं जिससे उसका पूर्ण ज्ञान हो जाए तब उसे मूर्त अवधान कहा जाता हैं जैसे-- कुर्सी, किताब, कलम आदि वस्तुएँ। 

5. अमूर्त अवधान 

जब हम किसी ऐसी उत्तेजना पर अपनी चेतना केन्द्रित करते हैं जिसका निश्चित आकार एवं स्वरूप नहीं होता तब हमारा ध्यान अमूर्त ध्यान कहलाता है। उदाहरण, धैर्य, परोपकार, प्रेम, ईमानदारी आदि का कोई निश्चित आकार एवं स्वरूप नहीं होता इसलिए जब हम अपनी चेतना इन पर केन्द्रित करते हैं तो हमारा ध्यान अमूर्त होता हैं। 

6. अर्जित अवधान 

किसी ऐसी उत्तेजना पर जो स्वयं रूचिकर न होकर किसी अन्य उत्तेजना के साथ मिलकर रूचिकर बनती हैं, चेतना केन्द्रित करना अर्जित ध्यान कहलाता हैं। उदाहरणार्थ, गणित विषय में रूचि न होने पर भी परीक्षा के कारण गणित विषय पर ध्यान देना अर्जित ध्यान कहलाता हैं। 

7. तात्‍कालिक अवधान 

बिना किसी उद्देश्य के जब क्षणिक अवधि के लिए व्यक्ति का अवधान किसी उद्दीपक पर केन्द्रित हो जाता हैं, तो उसे तात्‍कालिक अवधान कहा जाता हैं जैसे-- रसोईघर में बिल्ली का आ जाना।

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