10/08/2021

संवेदी स्मृति क्या हैं? विशेषताएं, प्रकार

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संवेदी स्मृति क्या हैं? (samvedi smriti ka arth)

samvedi smriti arth visheshta prakar;सांवेदिक स्मृति संवेदनाओं से संबंधित हैं यह चेतना का फाटक (gateway) माना जाता हैं। संवेदी स्मृति में उद्दीपक से प्राप्त होने वाली सूचनाओं को बिना किसी परिवर्तन के मौलिक रूप में संकलित किया जाता हैं। सांवेदिक स्मृति में सूचनाओं का संचय अधिक से अधिक एक सेकण्ड तक किया जाता हैं। इस प्रकार की स्मृति में सूचनाएं यथार्थ रूप से उपस्थित होती हैं और असंसाधित (unprocessed) रूप में होती हैं।

संवेदी स्मृति की विशेषताएं (samvedi smriti ki visheshta)

संवेदी स्मृति में पाई जाने वाली प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं--

1. संवेदी स्मृति अत्यन्त क्षणिक होती है।

2. संवेदी स्मृति की अवस्था में सूचनाओं का प्रक्ररण (Processing) नहीं हो पाता हैं, जैसे-- कूटसंकेतन या नामकरण आदि प्रक्रियाएँ इसमें सत्रिहित नहीं होती हैं। 

3. संवेदी स्मृति में सूचनाएँ मूल रूप में रहती हैं। इसके विपरीत अन्य स्मृतियों जैसे-- अल्पकालिक स्मृति (STM) दीर्घकालिक स्मृति (LTM) में उनका रूप परिवर्तन भी होता हैं, जैसे, BTU को TUB या BUT के रूप के रूप कूटसंकेतित करना और दोहराने के समय मूल रूप में बोलना। परन्तु यह संवेदी स्मृति में नही हो पाता हैं। 

4. इसकी संचयन क्षमता (Storage capacity) अधिक परन्तु अवधि (Duration) अत्यन्त कम होती हैं (जैसे-- एक से0)। 

5. संवेदी स्मृति पर अभ्यास का प्रभाव नहीं पड़ता हैं।

संवेदी स्मृति के प्रकार (Types of Sensory Memory in hindi) 

संवेदी स्मृति दो प्रकार की होती है। इन्हें प्रतिमात्मक या प्रतिचित्रात्मक स्मृति (Iconic memory) या चाक्षुष स्मृति (Visual memory) एवं प्रतिध्वन्यात्मक स्मृति (Echoic memory) या श्रवणात्मक स्मृति (Auditory memory) भी कहते हैं। 

1. प्रतिमात्मक स्मृति (Iconic Memory) 

किसी उद्दीपक या अधिगम सामग्री को प्रयोज्य या व्यक्ति के सामने से हटा लेने के बाद भी जो क्षणिक प्रतिमा रेटिना पर बनती है उसे प्रतिमात्मक या चाक्षुष स्मृति कहते हैं। इसमें उद्दीपक या सामग्री अत्यन्त लघुकाल के लिए (जैसे- 50 मि० से ०) प्रदर्शित की जाती है। प्राइस इत्यादि ( 1982 ) के अनुसार," प्रतिमात्मक स्मृति ऐसा चाक्षुष स्मृति चिन्ह या उद्दीपक का सतत् पश्चात् प्रभाव है जिसकी संचयन क्षमता अपेक्षाकृत विस्तृत परन्तु अवधि एक सेकेण्ड से अधिक नहीं होती है।

"Iconic memory is a visual memory trace or the persisting after effects of stimuli, that has a relatively large storage capacity but a duration of not more than one second" अर्थात् प्रतिमात्मक स्मृति का स्वरूप चाक्षुष (Visual) होता है, क्योंकि यह मूलतः अवलोकन की दशाओं (Viewing conditions) पर निर्भर करती है (Hulse et al., 1980)। प्रतिमात्मक स्मृति क्षणिक होती है। वस्तु या उद्दीपक प्रदर्शन के बाद विलम्ब बढ़ने के साथ स्मृति में हास भी बढ़ता जाता है, वैसे इसकी अवधि प्रतिध्वन्यात्मक स्मृति (Echoic memory) से अधिक होती है। इस पर जार्ज स्पर्लिंग (George Sperling, 1960) तथा कुछ अन्य शोधकर्ताओं ने भी उल्लेखनीय कार्य किया है। स्पलिंग (1960) ने एक प्रयोग में प्रयोज्यों के समक्ष टेथिस्टास्कोप की सहायता से अक्षरों अंकों की कुछ पंक्तियाँ 1/10 से ० की दर से प्रस्तुत की। इसके बाद प्रयोज्यों से इन्हें दोहराने के लिए कहा गया। प्रयोज्य ने औसतन 3.50 संख्या तक प्रस्तुत उद्दीपकों (अक्षर -अंक l) को दुहराने में सफलता प्राप्त की। इससे स्पष्ट होता है कि यह स्मृति अत्यन्त क्षणिक होती हैं। इसका कारण सम्भवतः यही है कि प्रयोज्य प्रदर्शित सामग्री को निर्धारित समय में न तो ठीक से प्रत्यक्षित कर पाते हैं और न ही स्मृति चिन्हों का क्षणिक समय में प्रक्रमण (Processing) ही हो पाता है (जैसे - कूटसंकेतन, नामकरण, संचयन इत्यादि) (Posner and Keele, 1967)। इस कारण वे कमजोर पड़ जाते हैं और विस्मरण गति बढ़ जाती है ।  

2. प्रतिध्वन्यात्मक स्मृति (Echoic Memory) 

प्रतिमात्मक स्मृति के अतिरिक्त प्रतिध्वन्यात्मक या श्रवणात्मक संवेदी स्मृति का भी अस्तित्व प्रमाणित करने में शोधकर्ताओं को सफलता प्राप्त हुई (Crowder, 1967, 1971; Massaro, 1970) अलरिक नीशर (U. Neisser, 1967 ) ने कहा है कि इसकी भी विशेषताएँ प्रतिमात्मक स्मृति  Iconic memory) की ही भाँति होती हैं। अन्तर यह है कि प्रतिमात्मक स्मृति दृष्टि उद्दीपकों (Visual stimulus) की दशा में और प्रतिध्वन्यात्मक स्मृति श्रवणात्मक उद्दीपकों के प्रयुक्त करने पर प्राप्त होती है। प्राइस इत्यादि ( 1982 ) के अनुसार," प्रतिध्वन्यात्मक मृत श्रवणात्मक स्मृति चिन्ह या उद्दीपक का सतत् पश्चात् प्रभाव है, चाक्षुष या प्रतिमात्मक स्मृति की भाँति इसकी भी अवधि अत्यन्त लघु होती है।"

"Echoic memory is an auditory memory trace or the persisting after effe of stimuli , for a very short duration similar to the visual or iconic trace" 

इस प्रकार स्पष्ट होता है कि प्रतिध्वन्यात्मक स्मृति भी अत्यन्त क्षणभंगुर होती है। मैश (Massaro, 1970) ने इस पर विशेष अध्ययन किया है। इनके अनुसार, स्मृति प्रणाली में श्रवणात्म सूचना भण्डार (Auditory information store) पाया जाता है। इनका निष्कर्ष यह है कि यदि कि ध्वनि उद्दीपक के बाद कोई प्रच्छादन ध्वनि उद्दीपक (Masking auditory stimulus) भी दिया जान हो तो प्रथम ध्वनि उद्दीपक की पहचान में कठिनाई आती हैं। यदि दोनों उद्दीपकों के बीच समय अन्तरा बढ़ाया जाये (जैसे- 20 से 250 MS), तो प्रथम उद्दीपक की पहचान की शुद्धता में वृद्धि होती है। इससे स्पष्ट है कि बाद वाला उद्दीपक पूर्व के उद्दीपक की पहचान को अवरोधित करता है। इनके प्रयोग की यह विधि पश्चगामी प्रच्छादन अभिकल्प (Backward masking paradigm) कहा जाता है। इस स्मृति की अवधि प्रतिमात्मक स्मृति (Iconic memory) की अपेक्षा कम होती है। प्रतिध्वन्यात्मक स्मृति को एक उदाहरण द्वारा और भी सरलता से स्पष्ट किया जा सकता है, जैसे यदि कोई शब्द बोलने पर प्रयोज्य उसका अशुद्ध उच्चारण करता है, तो स्पष्ट है कि वह शुद्ध उच्चारण नहीं समझ पाया। अतः शुद्ध उच्चारण पुनः बोलकर सुधार कराया जा सकता हैं, जैसे- 'सब्द' या 'विस्व' अशुद्ध उच्चारण हैं। इन पर ध्यान देकर शुद्ध उच्चारण 'शब्द' एवं 'विश्व' किया जा सकता है। 

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