10/06/2021

वाचिक अधिगम क्या हैं? विधियां/प्रयोगात्मक प्रक्रियाएं

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वाचिक अधिगम क्या हैं? (vachik adhigam kise kahte hai)

vachik adhigam arth vidhiyan;शाब्दिक अधिगम, मानवीय व्यवहार का एक महत्वपूर्ण आयाम हैं। हम सभी जानते है कि मानवीय व्यवहार का अधिकांश भाग शाब्दिक होता हैं। इसी आधार पर हम सामान्यतः मानवीय व्यवहार को पशु व्यवहार से अलग करते हैं। सामान्य धारणा के अनुसार वाचिक अधिगम केवल वह सीखना है जिसमें भाषा या शब्दों का प्रयोग हो। शाब्दिक सीखने के प्रयोगात्मक अध्ययनों में मुख्य रूप से दो शाब्दिक इकाइयों में व्यक्ति किस प्रकार साहचर्य स्थापित करता हैं, शाब्दिक इकाईयों की एक श्रृंखला को उसी क्रम में किस प्रकार सीखता हैं, उनमें भिन्नता को पहचानता हैं, या उनका बिना प्रकटन-क्रम के किस प्रकार पुनः स्मरण करता हैं, आदि प्रत्ययों तथा प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता हैं। इस तरह वाचिक अधिगम की चार मुख्य विधियाँ हैं, जिनका प्रयोगात्मक अध्ययनों में प्रयोग किया जाता हैं। जैसे-- युग्निमत सहचर सीखने की प्रक्रिया, क्रमिक सीखना, शाब्दिक विभेदीकरण और मुक्त पुनः स्मरण। यह वह विधियाँ हैं, जिनका प्रयोग वाचिक अधिगम में किया जाता हैं। 

वाचिक अधिगम का व्यवस्थित अध्ययन हरमन ऐबिंगहाॅस द्वारा प्रारंभ किया गया। जब उसने क्रमिक सीखने (Serial Learning) के अपने प्रयोग प्रारंभ किए। ऐबिंगहाॅस की मुख्य रूचि याद की हुई सामग्री को, विभिन्न समयान्तरालों के बीत जाने के बाद पुनः स्मरण में थीं। धारणा का अध्ययन करने में सबसे पहले यह अनिवार्य था कि यह ज्ञात कर लिया जाये कि याद क्या किया गया हैं, और याद करने के समय परिस्थितियाँ थीं। ऐबिंगहाॅस द्वारा प्रतिपादित एक प्रत्यय में हमारी प्रत्यक्ष रूचि हैं। 

ऐबिंगहाॅस ने अर्थहीन पदों की खोज की जिससे ऐसी इकाईयाँ प्राप्त हो सकें जो एक-दूसरे से संबंधित न हों व जो आकार व महत्व में समान हों। निरर्थक पद दो व्यंजनों और एक स्वर से मिलकर बनते हैं। इनसे स्वर दोनों व्यंजनों के बीच में होता हैं। इस प्रकार अर्थहीन इकाईयाँ प्राप्त हो जाती हैं। उदाहरणार्थ, हम "CAJ", "BEX", "MUB" आदि पदों का प्रयोग कर सकते हैं। इन्हें प्रायः त्रिपद (Trigram) कहते हैं। ये दोनों प्रकार के होते हैं; प्रथम, जिनमें दो व्यंजनों के बीच एक स्वर होता हैं, इन्हें CVCS त्रिपद कहते हैं और द्वितीय, जिनमें दोनों व्यंजन होते हैं, इन्हें CCC त्रिपद कहते हैं। 

ऐबिंगहाॅस ने अपने नियमित प्रयोग 1879-1880 में प्रारंभ किये। इसी समय में गाल्टन ने साहचर्य से संबंधित, भिन्न प्रकार के प्रयोगों का उल्लेख किया। गाल्टन ने यह निर्धारित किया कि एक समय में एक शब्द को देखने से उसके मस्तिष्क में क्या विचार उठते हैं। यह विधि, शब्द साहचर्य परीक्षण के रूप में आज भी प्रयोग की जाती हैं। 1950 तक शब्द-साहचर्य विधि का प्रयोग ऐबिंगहाॅस की विधि के साथ नहीं किया जाता था।

वाचिक अधिगम की विधियां या प्रयोगात्मक प्रक्रियाएं 

सीखने की प्रक्रियाएँ और सीखने की सामग्री, प्रतिनिधित्व और विश्लेषणात्मक उद्देश्यों के बीच समझौते का कार्य करती हैं। ऐबिंगहाॅस ने प्रायः क्रमिक सीखने की विधि का प्रयोग किया था। उसे न केवल 10 या 12 निरर्थक पद याद करने थे वरन् उन्हें उसी क्रम में पनः स्मरण करना था जिस क्रम में वे प्रस्तुत किए गए थे। लाॅक और मिल्ल (Locke and Mills) मुख्य रूप से इस बात में रूचिकर थे कि विचारों में साहचर्य किस प्रकार स्थापित होते हैं और ऐबिंगहाॅस के लिए निरर्थक पद, विचारों का प्रतिनिधित्व करते थे। 

वाचिक अधिगम की चार मुख्य प्रक्रियाएँ या विधियाँ हैं जिनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित हैं-- 

1.  मुक्त पुनः स्मरण 

मुक्त पुनः स्मरण विधि में पदों की एक सूची प्रयोज्य के सामने प्रस्तुत की जाती है। प्रयोज्य को इन पदों को किसी भी क्रम में पुनः स्मरण करना होता हैं। यह विधि क्रमिक सीखना (Serial Learning) विधि से इसी कारण भिन्न होती हैं। क्रमिक सीखने में प्रयोज्य को पदों का पुनः स्मरण उसी क्रम में करना होता हैं जिस क्रम में उन्हें प्रयोगकर्ता द्वारा प्रस्तुत किया गया हो। मुक्त पुनः स्मरण में प्रयोज्य को पदों के किसी भी क्रम में पुनः स्मरण करने की स्वतंत्रता रहती हैं। इस बहु प्रयास विधि को तलविंग ने मुक्त पुनः स्मरण सीखना (Free recall learning) कहा हैं। बहुत से अध्ययनकर्ता प्रत्येक प्रयास में पदों का क्रम बदल देते हैं, हालांकि एक ही क्रम द्वारा भी अध्ययन किया जा सकता हैं। पदों का क्रम प्रत्येक प्रयास में परिवर्तित किया जाये या नही, परन्‍तु प्रयोज्य को किसी भी क्रम में पुनः स्मरण करने की स्वतंत्रता रहती हैं। 

मुक्त पुनः स्मरण की विधि का प्रयोग 1950 से बहुत अधिक होने लगा है क्योंकि खोजकर्ताओं की रूचि यह ज्ञात करने मे रही है कि प्रयोज्य पदों को किस क्रम में पुनः स्मरण करते हैं।

पोस्टमेन, आदम्स और फिलिप्स ने 20 CVC'ş सूची का प्रयोग किया जिसका साहचर्य मूल्य शून्य से सौ (0 to 100) प्रतिशत था। तुरन्त पुनः स्मरण परीक्षण से यह स्पष्ट हुआ कि स्वतंत्र पुनः स्मरण, भिन्न साहचर्य मूल्यों के CVCS के भिन्न-भिन्न था। सबसे खराब पुनः स्मरण उन CVCS का था जिनका साहचर्य मूल्य 0% और 33% था, 66% मूल्य वाले CVCS के लिए मध्यम और 100% मूल्य के CVCS के लिए सर्वोत्तम था। पोस्टमेन और आदम्स (Postman and Adams, 1956) ने 30 CVCS (साहचर्य मूल्य 40% और 46. 67%) ग्लेज (Glaze) से और 30 विशेषणों (Adjectives) के पुनः स्मरण की तुलना की। 

2. क्रमिक सीखना 

क्रमिक सीखने की अनेक विधियाँ हैं परन्तु सबसे अधिक वाली विधि कदाचित क्रमिक पूर्वाभास विधि (Serial anticipation method) हैं। मान लीजिए कि आपको 10 CVCś पद इस विधि द्वारा याद करने हैं। प्रयोगकर्ता मेमोरी ड्रम (Memory Drum) द्वारा एक-एक पद प्रस्तुत करेगा। सबसे पहले वह कोई एक चिन्ह या अक्षर प्रस्तुत करेगा, जिसके बाद प्रथम CVC पद, इसके बाद द्वितीय CVC पद, और इसी प्रकार अन्तिम पद तक, सभी पद प्रयोज्य को प्रस्तुत किए जायेंगे। यही पद द्वितीय प्रयास में इसी क्रम में प्रस्तुत किए जायेंगे। द्वितीय प्रयास में प्रयोज्य को प्रथम अक्षर देखने के बाद प्रथम CVC पद का अनुमान लगाना होगा। प्रयोज्य द्वारा यह अनुमान सही लगाया गया हैं या गलत, इस बात पर ध्यान न देते हुए, प्रथम पद प्रस्तुत किया जाएगा और अब प्रयोज्य को उससे अगले पद का पूर्वानुमान लगाना होगा तथा इसी प्रकार प्रत्येक पद के प्रस्तुत होने पर प्रयोज्य को उसके आगे के पद का अनुमान लगाना होगा। इस तरह एक बार सभी पदों को प्रस्तुत कर लेने पर एक प्रयास पूरा हो जाएगा। इसमें उस समय तक बराबर प्रयासों की पुनरावृत्ति कराई जाती हैं जब तक कि प्रयोज्य द्वारा सभी पदों का उसी क्रम में सही-सही पूर्वानुमान न लगा लिया जाये। 

ऐबिंगहाॅस ने क्रमिक पुनः स्मरण (Serial recall) विधि का प्रयोग किया था। इस विधि में प्रयोगकर्ता एक-एक CVC पदों को प्रस्तुत करता हैं और प्रयोज्य उन्हें दोहराता चला जाता हैं। सभी पदों के प्रस्तुत हो जाने के बाद प्रयोज्य को सभी पदों को उसी क्रम में दोहराना पड़ता हैं। इस प्रकार अनेक प्रयास उस समय तक कराए जाते हैं जब तक प्रयोज्य पूरी सूची का सही क्रम में पुनः स्मरण न कर ले। प्रयोज्य द्वारा क्रमिक रूप से पुनः स्मरण किए गये पदों की संख्या प्रयोज्य के प्राप्तांक होते हैं। अधिकतम अंक, सूची में पदों की संख्या के समान होते हैं। 

3. युग्मित सहचर द्वारा सीखना 

युग्मित सहचर विधि का, 1940 या 1950 से, वाचिक अधिगम के अध्ययनों में सबसे अधिक प्रयोग किया गया हैं। अन्य विधियों को मिलाकर जितने अध्ययन किये गये हैं, उन सभी अध्ययनों में से अधिक अध्ययन इस विधि द्वारा हुए हैं। इस विधि में युग्मित पदों की सूची तैयार की जाती हैं। इस सूची में प्रायः 16 युग्म तक होते हैं। इन युग्मों के पहले पद को उद्दीपक पद (Stimulus Item) और दूसरे पद को अनुक्रिया पद (Response Item) कहते हैं। प्रयोज्य को पहले पूरी सूची प्रकट कर दी जाती हैं। 

इसके बाद उसे सूची का प्रथम उद्दीपक पद दिखाया जाता हैं। प्रथम उद्दीपक पद को देखने पर प्रयोज्य को उससे संबंधित अनुक्रिया पद का अनुमान लगाना होता हैं। उद्दीपक पद व अनुक्रिया पद के बीच 2 सेकण्ड से 5 सेकण्ड तक का अन्तराल रखा जाता हैं, जिसमें प्रयोज्य अनुक्रिया पद का अनुमान लगाता हैं। इसी तरह दूसरा उद्दीपक पद प्रस्तुत होने पर प्रयोज्य उससे संबंधित अनुक्रिया पद का अनुमान लगाता हैं। प्रयोज्य को पूर्वाभास करने के लिए दिए गए अन्तराल के बाद उद्दीपक पद तथा अनुक्रिया पद को साथ-साथ प्रस्तुत किया जाता हैं ताकि प्रयोज्य अपने पूर्वानुमान को सही होने पर पुष्ट व गलत होने पर सही कर ले। यही प्रक्रिया प्रत्येक युग्म या जोड़े के साथ दोहराई जाती हैं। युग्मित सहचर द्वारा सीखने की इस विधि को युग्मित सहचर द्वारा सीखने की पूर्वानुमान विधि (Anticipation Method in paired-associate learning) कहते हैं। यह विधि क्रमिक पूर्वाभास विधि से भिन्न होती हैं, क्योंकि इसमें प्रयोज्य उद्दीपक पद (stimulus term) का पूर्वानुमान कभी नही लगाता। इस विधि में पदों का क्रम भी प्रत्येक प्रयास में बदल जाता है और प्रयोज्य को यह बता दिया जाता है कि उसे पदों को क्रम में याद नहीं करना है। इस विधि में भी प्रयास उस समय तक कराये जाते हैं जब तक कि इच्छित मापदण्ड प्राप्त न हो जाये। 

इस विधि में उद्दीपक, अनुक्रिया, साहचर्य और पुनर्बलन को स्पष्ट रूप से इंगित किया जा सकता हैं। इसके कारण वाचिक अधिगम की व्याख्या S.O.R. के पदों में सरलता से की जा सकती हैं। इस विधि की एक उपविधि और है जिसे पुनः स्मरण (recall) विधि कहते हैं। इस उपविधि में प्रत्येक प्रयास के दो भाग होते हैं। प्रथम भाग में युग्मों को प्रस्तुत किया जाता हैं और प्रयोज्य उन्हें बोलकर अनुक्रिया करता हैं। द्वितीय भाग में केवल उद्दीपक पद एक-एक करके प्रस्तुत किए जाते हैं तथा प्रयोज्य को प्रत्येक उद्दीपक पद से संबंधित, अनुक्रिया पद का पुनः स्मरण करना होता हैं। 

4. शाब्दिक विभेदन सीखना 

इस प्रकार के सीखने में (McCllelland, 1942) शाब्दिक पदों के युग्मों की एक सूची प्रस्तुत की जाती हैं (यह प्रायः श्रव्य न होकर दृश्य होते हैं।) प्रयोज्य को प्रत्येक युग्म में से यह बताना होता है कि कौन-सा पद सही है। पद का सही और गलत होना प्रयोगकर्ता की इच्छा पर निर्भर करता हैं। प्रयोज्य की अनुक्रिया के बाद प्रयोगकर्ता, प्रयोज्य को यह बता देता हैं कि कौन-सा पद सही है। इसी प्रकार अनेक प्रयास कराये जाते हैं, जब तक कि प्रयोज्य सही-सही पदों को न पहचान ले। सामान्य रूप से एक युग्म के दोनों पदों को साथ-साथ प्रस्तुत किया जाता है और यह एक दूसरे के ऊपर नीचे लिखे होते हैं। सही पदों का स्थान प्रत्येक प्रयास में ही अलग-अलग होता हैं। इसी प्रकार पूरी सूची में पदों का स्थान भी प्रत्येक प्रयास में बदल दिया जाता हैं। 

इस विधि के एक परिवर्तित रूप मे पदों को सतत् रूप से प्रस्तुत किया जाता है। इसे सतत् पर प्रस्तुतीकरण (Continuous item presentation) कहते हैं। इसमें कुछ पुराने पद तथा कुछ नवीन पद मिलाकर प्रस्तुत किए जाते हैं। पूरी सूची में कई सौ पद होते हैं। प्रयोज्य को पूराने व नवीन पदों में विभेद करना होता हैं। 

सार्थकता और साहचर्य मूल्य तथा वाचिक अधिगम के संबंधों से संबंधित बहुत कम अध्ययन किए गए हैं। जो कुछ अध्ययन हुए भी हैं, उनके द्वारा इनमें कोई महत्वपूर्ण संबंध ज्ञात नही हुआ हैं। (Keppel, 1966)। पोस्टमेन (postman, 1962) ने इनमें महत्वपूर्ण संबंध देखा। पोस्टमेन द्वारा प्राप्त अप्रत्याशित परिणाम कदाचित् विभिन्न युग्मों के शब्दों में साहचर्य के कारण हैं।

यह भी पढ़े; वाचिक अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक, निर्धारक

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