श्रवण के सिद्धांत
shravan ke siddhant;मनोविज्ञान के क्षेत्र में अनेक मनोवैज्ञानिकों ने श्रवण प्रक्रिया के विषय में प्रयोगात्मक अध्ययन किये जिनके फलस्वरूप श्रवण के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन हुआ। श्रवण के कुछ मुख्य सिद्धांत निम्नलिखित हैं--
1. आवृत्ति सिद्धांत
इस सिद्धांत का प्रतिपादन कई विद्वानों ने किया। सर्वप्रथम इस सिद्धांत का प्रतिपादन रदरफोर्ड ने 1886 ई. में किया था। इसके बाद इस सिद्धांत को रिटसन ने परिमार्जित करके प्रस्तुत किया। इस सिद्धांत को टेलीफोन सिद्धांत भी कहा जाता हैं। इसका कारण यह हैं कि इस सिद्धांत में कान के कार्य को टेलीफोन के रिसीवर की भाँति माना गया हैं अर्थात् जिस प्रकार टेलीफोन का रिसीवर कार्य करता हैं, उसी प्रकार कान भी कार्य करता हैं। इस सिद्धांत की यह मुख्य मान्यता हैं कि जब ध्वनि तरंगें कान में पहुंचती हैं तब कान में स्थित बेसलर झिल्ली उन्हें आवेग में परिवर्तित कर देता है और जब यह आवेग श्रवण स्नायुओं द्वारा मस्तिष्क में पहुँचता हैं तभी हमें श्रवण की संवेदनशीलता होती हैं। इस सिद्धांत को आवृत्ति सिद्धांत इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस सिद्धांत के अनुसार श्रवण तरंग जितने अधिक वेग से आती हैं बेसलर झिल्लीं के तन्तु उतनी ही आवृत्ति को आवेग में बदल देते हैं।
यह सिद्धांत इसलिए उपयुक्त नहीं हैं क्योंकि रदरफोर्ड ने इसमें यह स्पष्ट नहीं किया हैं कि बेसलर झिल्ली के तन्तु सैकिण्ड में कितनी बार स्पन्दित होते हैं।
2. अनुनाद अथवा पियानों सिद्धांत
जर्मन देह शास्त्री (Anthroopologist) हेल्महोम ने उन्नीसवीं शताब्दी मे इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इस सिद्धांत के अनुसार कान की बेसलर झिल्ली में पियानों की तरह के तन्तु होते हैं। जब बेसलर झिल्ली के इन तन्तुओं को ध्वनि तरंगे उद्दीप्त करती हैं ओर उनके उद्दीप्त होने की सूचना मस्तिष्क में पहुँचती हैं हमें तभी श्रवण संवेदना होती हैं। इसके अतिरिक्त हेल्महोज की यह भी धारणा थी कि बेसलर झिल्ली के इन तन्तुओं की लम्बाई भिन्न-भिन्न होती हैं जिसके कारण उन्हें भिन्न-भिन्न तरंग दैर्ध्य (Wave length) की ध्वनि तरंगे उद्दीप्त करती हैं।
3. अनुनाद क्षेत्र सिद्धांत
हेल्महोज के श्रवण सिद्धांत को ही संशोधित करके इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया हैं इस सिद्धांत की भी यही मान्यता हैं कि जब ध्वनि तरंगे बेसलर झिल्ली से टकराती हैं, तो ये ध्वनि भिन्न-भिन्न आवृत्तियों वाली होती हैं जो कि झिल्ली के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों को उत्तेजित करती हैं। इस प्रकार इस सिद्धांत द्वारा अनुनाद सिद्धांत मे यह संशोधन किया गया है कि अनुनाद सिद्धांतानुसार बेसलर झिल्ली को अविभाजित माना हैं जबकि इस सिद्धांत में यह कहा गया हैं कि बेसलर झिल्ली कई भागों में बंटी हुई होती हैं।
हालांकि इस सिद्धांत में अनुनाद सिद्धांत की अपेक्षा स्पष्टता अधिक हैं किन्तु फिर भी इसमें यह स्पष्ट नहीं किया जा सका कि जब ध्वनि तरंगे बेसलर झिल्ली से टकराती है तो उनमें आवेग किस प्रकार बनता हैं।
4. संकालिक या वाॅली सिद्धांत
वेवर तथा ब्रे ने आवृत्ति सिद्धांत को संशोधित करके 1930 में इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इस सिद्धांत के अनुसार भी ध्वनि तरंगे बेसलर झिल्ली तन्तुओं के द्वारा आवेग में परिवर्तित होकर ही मस्तिष्क तक पहुँचती हैं। इस प्रकार आवेग के मस्तिष्क में पहुँचने पर वहाँ ध्वनि विश्लेषण होता हैं। इसके अतिरिक्त वेबर तथा ब्रे ने आवृत्ति सिद्धांत की इस कमी को दूर किया कि बेसलर झिल्ली तन्तु एक सैकिण्ड में कितनी बार स्पन्दन करते हैं। उन्होंने बताया कि बेसलर झिल्ली के तन्तु उपसमूहों में बंटे होते हैं तथा तन्तुओं का स्पन्दन 5000 कम्पन/सैकिण्ड से अधिक नहीं होता, इसी कारण 5000 कम्पन/सैकण्ड से अधिक आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगों से बेसलर झिल्ली उद्दीप्त नहीं होती हैं।
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