9/26/2021

शैक्षिक निर्देशन का अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, आवश्यकता/उपयोगिता

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शैक्षिक निर्देशन का अर्थ (shaikshik nirdeshan kya hai)

shaikshik nirdeshan arth paribhasha uddeshy aavashkata;शैक्षिक-निर्देशन का संबंध मुख्य रूप से छात्रों की शिक्षा से है, इसलिए बेवर ने शिक्षा और शैक्षिक-निर्देशन को एक ही माना है। इसका कार्य छात्रों की पाठ्य-विषयों का चयन करने, शिक्षा में सफलता प्राप्त करने और शिक्षा प्राप्त करते समय उसमें उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान करना है। 

शैक्षिक-निर्देशन की परिभाषाएँ (shaikshik nirdeshan ki paribhasha)

जोन्स के अनुसार," शैक्षिक निर्देशन वह व्यक्तिगत सहायता है, जो छात्रों को इसलिए दी जाती है कि वे अपने लिए उपयुक्त विद्यालय, पाठ्यक्रम, पाठ्य विषय तथा अन्य क्रियाओं का चयन कर सकें और उनमें समायोजित हो।"

रूथ स्टैंग के अनुसार, " व्यक्ति को शैक्षिक-निर्देशन प्रदान करने का मुख्य लक्ष्य उसे समुचित कार्यक्रम के चुनाव तथा उसमें प्रगति करने में सहायता देना है।" 

जोन्स के अनुसार," शैक्षिक निर्देशन वह व्यक्तिगत सहायता है, जो छात्रों को इसलिए दी जाती है कि वे अपने लिए उपयुक्त विद्यालय, पाठ्यक्रम, पाठ्य विषय तथा अन्य क्रियाओं का चयन कर सके और उनमें समायोजित हो।" 

शैक्षिक-निर्देशन के उद्देश्य (shaikshik nirdeshan ke uddeshy)

शैक्षिक-निर्देशन के लक्ष्यों का निर्धारण शिक्षा के लक्ष्यों की व्यापक रूपरेखा के अंतर्गत की जा सकती है। क्रो एण्ड क्रो ने शैक्षिक निर्देशन के निम्नलिखित उद्देश्यों का उल्लेख किया है-- 

1. पाठ्यक्रम का चयन इस प्रकार होना चाहिए, जो विद्यार्थी की योग्यताओं, अभिरूचियों तथा भविष्य की आवश्यकताओं के अनुसार उचित है। 

2. छात्रों में कार्य तथा अध्ययन की ऐसी आदतें विकसित की जानी चाहिए, जिससे कि वे अध्ययन में संतोषजनक सफलता प्राप्त कर सके। 

3. विद्यार्थी में ऐसी रूचि उत्पन्न की जानी चाहिए कि वह सीखने के अपने दायरे से बाहर भी किसी क्षेत्र में अनुभव प्राप्त करने का प्रयास करें। 

4. छात्र में अपनी आवश्यकताओं के संबंध में विद्यालय के प्रयोजनाकार्य को समझने की क्षमता पैदा की जानी चाहिए। 

5. विद्यार्थी को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि विद्यालय उसे क्या दे सकता है तथा उसके अध्ययन का एक कार्यक्रम बनाना चाहिए। 

6. जिस स्कूल या कॉलेज मे वह बाद में पढ़ना चाहता है, उसके कार्य-कलाप तथा उद्देश्यो की जानकारी छात्र को कराई जानी चाहिए। छात्र को ऐसे विषयों के चयन में सहायता दी जानी चाहिए, जिससे उसके अंदर अध्ययन के उन क्षेत्रों में सूझ उत्पन्न हो, जिसे उन्हें बाद में पढ़ना है। 

7. विद्यार्थी को कक्षा के बाहर की गतिविधियों में शामिल होने के लिए निर्देशन किया जाना चाहिए।  

8. विद्यार्थी में ऐसी अभिरूचि का विकास किया जाना चाहिए, जिससे कि उससे अपना अध्ययन स्कूल में जारी रखने की प्रेरणा मिले।

शैक्षिक-निर्देशन की आवश्यकता या उपयोगिता 

1. पाठ्य-विषयों का चुनाव 

आजकल विद्यालयों में विविध पाठ्य-विषयों के अध्ययन की व्यवस्था रहती है। छात्रों में व्यक्तिगत भिन्नताएँ पाई जाती है। उनकी क्षमताएँ, योग्यताएँ, रुचियाँ आदि एक समान नहीं होती। निर्देशनं की सहायता से छात्र अपनी आवश्यकतानुसार पाठ्य-विषयों का चुनाव कर सकता है और अपने भावी जीवन का निर्माण कर सकते है। 

2. स्कूल-व्यवस्था 

पाठ्यक्रम तथा शिक्षण-विधि में परिवर्तन से पहले शिक्षा बौद्धिक विकास की एक प्रक्रिया मात्र होती थी, परन्तु आज शिक्षा को व्यक्तिगत तथा सामाजिक, समस्याओं के समाधान का एक साधन-मात्र माना जाता है। मौरिस के अनुसार," आजकल निश्चयात्मक शिक्षा का रूप, जो कि विभिन्न सामाजिक स्तर के व्यक्तियों को विभिन्न अवसर देती है, परिवर्तित होकर प्रजातंत्रतात्मक होता जा रहा है, जो कि सभी व्यक्तियों को समान अवसर प्रदान करती है।" 

परिवर्तनशील विद्यालय व्यवस्था, पाठ्यक्रम तथा शिक्षण-विधि की आवश्यकताओं की ओर समुचित ध्यान दिया जाना चाहिए। शैक्षिक निर्देशन की सहायता से परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान सरलता से किया जा सकता है। 

3. आगे की शिक्षा का निर्धारण 

सेकेण्ड्री स्तर पर सफलता प्राप्त करने के बाद छात्रों के लिये यह निर्णय करना कठिन हो जाता है कि उनकी आगे की शिक्षा कैसी होनी चाहिए? आगे की शिक्षा का निर्णय लेने के लिए शैक्षिक-निर्देशन की अधिक आवश्यकता होती है। 

4. पाठ्येत्तर कक्षाओं की उचित योजना

वास्तविक शिक्षा के लिए छात्रों की निरीक्षण शक्ति का विकास करना आवश्यक है। यह कार्य पाठ्येतर कक्षाओं द्वारा ही संभव है। शैक्षिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए यह आवश्यक है कि छात्रों को पाठ्येत्तर कार्यों का उचित निर्देशन दिया जाए। 

5. जीविका के अवसर का ज्ञान

प्रायः छात्रों को यह ज्ञान नहीं होता है , कौन-सा विषय व्यवसाय से संबंधित है। विद्यार्थी अवसर की परवाह किए बिना विद्यालयों में प्रवेश लेते हैं। इसका यह परिणाम होता है कि प्रतिवर्ष शिक्षित बेकारों की संख्या बढ़ती जा रही है। निर्देशन द्वारा छात्रों को विभिन्न पाठ्य-विषयों में संबंधित अवसरों की जानकारी करायी जाती है। जीविका के अवसर के ज्ञान के लिए निर्देशन आवश्यक है।  

6. पिछड़े हुए बालकों की समस्या 

विद्यालय में कुछ बालक ऐसे होते हैं, जो कुछ परिस्थितियों के कारण उचित ढंग से शिक्षा के लेने पर भी उन्नति नहीं कर पाते। उनके लिए आवश्यक है कि इस प्रकार के साधनों का प्रयोग किया जाए, जिससे उनका काम पूरा हो सके। यह कार्य निर्देशन के द्वारा ही पूरा हो सकता है।

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