अनुकरण का अर्थ (anukaran kise kahte hai)
सामान्यतया 'अनुकरण' का अर्थ हैं, किसी कार्य या वस्तु की नकल करना। हमारे दैनिक जीवन में अनुकरण एक साधारण सी बात हैं, जैसें-- लाइन में लगना, बस-स्टॉप में बस को आते देखकर दौड़ना आदि। इस प्रकार वे सभी कार्य जो व्यक्ति चेतन या अचेतन अवस्था में दूसरों के कार्यों के अनुसार करते हैं, अनुकरण कहलाते हैं।
अनुकरण की परिभाषा (anukaran ki paribhasha)
रायबर्न के अनुसार," अनुकरण दूसरे व्यक्ति के बाहरी व्यवहार की नकल हैं।"
मीड के अनुसार," दूसरे व्यक्ति के कार्यों या व्यवहारों को जान-बूझकर अपनाना अनुकरण हैं।"
उपर्युक्त आधार पर स्पष्ट है कि एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति के कार्यों या बाह्रा व्यवहारों को जान-बूझकर अपनाना और वैसा ही व्यवहार करना अनुकरण कहलाता हैं।
अनुकरण के प्रकार (anukaran ke prakar)
अनुकरण साधारण रूप में 5 प्रकार का होता हैं--
1. सहानुभूतिपूर्वक अनुकरण
यह अनुकरण दूसरे व्यक्ति के भाव के कारण किया जाता हैं तथा इसमें सहानुभूति निहित होती हैं, जैसे-- किसी व्यक्ति के दुःख को देखकर खुद भी दुःखी हो जाना।
2. भावचालक अनुकरण
यह अनुकरण स्वयं अपने में उत्पन्न भावों के कारण किया जाता हैं, जैसे-- बालकों द्वारा शिक्षक के कार्य-व्यवहार की नकल उतारना।
3. विचारपूर्ण अनुकरण
यह अनुकरण विचारपूर्वक किया जाता हैं। इसके आधीन व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को अपना आदर्श मानकर, उसकी क्रियाओं और विचारों का अनुकरण करता हैं।
4. बच्चों द्वारा अनुकरण
बहुत छोटे-छोटे बच्चे अपने बड़ों के कार्यों का अनुकरण करते हैं, जैसे-- किसी बड़े द्वारा जीभ निकालकर चिढ़ाने पर वे भी जीभ निकालकर चिढ़ाते हैं। यह बिल्कुल शुद्ध प्रकार का अनुकरण होता हैं।
5. प्रतिरूप अनुकरण
इसमें प्रभाव केन्द्रित अनुकरण की प्रक्रिया चलती हैं, जैसे-- बालक किसी व्यक्ति को कागज का टुकड़ा जलाते हुये देखकर, स्वयं कागज का टुकड़ा जलाकर उसके प्रभाव को देखता हैं।
अनुकरण का शिक्षा में महत्व या उपयोगिता
बालक की शिक्षा तथा विकास में अनुकरण का बहुत महत्व हैं। अनुकरण से ही बालक बहुत कुछ सीखता हैं। शिक्षा में अनुकरण के महत्व पर निम्नानुसार विचार किया जा सकता हैं--
1. कौशल की शिक्षा
डम्बिल के अनुसार," अनुकरण ही वह विधि हैं, जिसके द्वारा बालक अनेक क्रियाओं में कुशलता प्राप्त करने में समर्थ होते हैं। बोलना, खेलना, चित्र बनाना, लिखना आदि क्रियायें बालक अनुकरण से ही सीखते हैं। बालक इन क्रियाओं में दूसरे बालकों और शिक्षकों का अनुकरण करके सीखते तथा कुशलता प्राप्त करते हैं।
2. नैतिकता की शिक्षा
बालक प्रारंभ से ही अपने माता-पिता, शिक्षक आदि की नैतिक बातों को अनुकरण द्वारा सीखता है। अतः घर और विद्यालय का वातावरण इस प्रकार का होना चाहिए कि बालक अच्छे नैतिक गुणों का अनुकरण कर सके।
3. अच्छे आदर्शों की शिक्षा
बालक, शिक्षकों के कार्यों, शारीरिक गतियों, वेश-भूषा, व्यवहार आदि का ही अनुकरण करके अनेक अच्छी या खराब बातें सीखते हैं। अतः शिक्षक का दायित्व है कि वह बालकों के सामने अच्छे उपस्थित कर उन्हें उनका अनुकरण करने का अवसर प्रदान करें।
4. सामाजिक व्यवहार शिक्षा
बालक सामाजिक व्यवहार को अनुकरण द्वारा बड़ी सरलता से सीख सकता हैं। अतः शिक्षक को विभिन्न प्रकार की इससे संबंधित क्रियाओं का आयोजन करने की व्यवस्था करनी चाहिए तथा बालकों को उनमें भाग लेने हेतु प्रोत्साहित भी करना चाहिए ताकि उन्हें वे अवसर मिलें जिनसे वे अनुकरण द्वारा सामाजिक व्यवहार की शिक्षा प्राप्त कर सकें।
5. मानसिक विकास में सहायक
बालक अपने जीवन मे अनुकरण द्वारा ही अपने माता-पिता, शिक्षक, साथियों तथा समाज से अनेक बातें सीखकर अपना मानसिक विकास करता हैं। अतः शिक्षक को ऐसी सभी परिस्थितियाँ निर्मित करनी चाहिए जिससे बालक अनुकरण द्वारा सीखकर अपना मानसिक विकास करने में समर्थ बनें।
6. व्यक्तित्व निर्माण का साधन
अनुकरण व्यक्तित्व निर्माण का एक प्रभावशाली एवं महत्वपूर्ण साधन है। वास्तव में अनुकरण का क्षेत्र जितना व्यापक होगा उतना ही अधिक व्यक्तित्व का विकास संभव होगा। शिक्षक विभिन्न प्रकार के शैक्षिक एवं सहगामी क्रियाओं का आयोजन करके बालक को अनुकरण के पर्याप्त अवसर सुलभ करायेगा ताकि उसके व्यक्तित्व का निर्माण संभव हो।
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