10/01/2021

बुद्धि के सिद्धांत

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बुद्धि के सिद्धांत

बुद्धि क्या है? वह किन तत्वों से निर्मित है? वह किस तरह कार्य करती है? इन प्रश्नों का उत्तर खोजने का कई मनोवैज्ञानिकों ने प्रयास किया है। फलस्वरूप उन्होंने बुद्धि के कई सिद्धांत प्रतिपादित किये हैं, जो उसके स्वरूप पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं। इनमें से मुख्य सिद्धांत निम्न हैं--

1. एक-खंड का सिद्धांत

इस सिद्धांत के प्रतिपादक बिने, टर्मन तथा स्टर्न हैं। उन्होंने बुद्धि को एक अखंड तथा अविभाज्य इकाई माना है। उनका मत है कि व्यक्ति की विभिन्न  मानसिक योग्यताएं एक इकाई के रूप में कार्य करती हैं। योग्यताओं की विभिन्न परीक्षाओं द्वारा यह मत असत्य सिद्ध कर दिया गया है। 

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2. दो-खंड का सिद्धांत 

इस सिद्धांत का प्रतिपादक स्पीयरमैन है। उसके अनुसार हर व्यक्ति में दो तरह की बुद्धि होती है- सामान्य तथा विशिष्ट। दूसरे शब्दों में बुद्धि के दो खंड अथवा तत्व होते हैं--

(अ) सामान्य योग्यता अथवा सामान्य तत्व

स्पीयरमैन ने सामान्य योग्यता को विशिष्ट योग्यताओं से ज्यादा महत्वपूर्ण माना है। उसके अनुसार," सामान्य योग्यता सब व्यक्तियों में कम अथवा अधिक मात्रा में मिलती है । इसकी प्रमुख विशेषताएं इस तरह हैं--

(अ) यह योग्यता सब व्यक्ति में जन्मजात होती है। 

(ब) यह उसमें हमेशा एक सी रहती है। 

(स) यह उसके सभक मानसिक कार्यों में प्रयोग की जाती है। 

(द) यह हर व्यक्ति में भिन्न होती।

(य) यह जिस व्यक्ति में जितनी ज्यादा होती है, उतना ही ज्यादा वह सफल होता है। (यह भाषा, विज्ञान दर्शन आदि में सामान्य सफलता प्रदान करती है।

(ब) विशिष्ट योग्यताएं अथवा विशिष्ट तत्व

इन योग्यताओं का संबंध व्यक्ति के विशिष्ट कार्यों से होता है। इनकी प्रमुख विशेषताएं हैं--- 

(अ) ये योग्यताएं अर्जित की जा सकती हैं। 

(ब) योग्यताएं कई तथा एक-दूसरे से स्वतंत्र होती हैं। 

(स) विभिन्न योग्यताओं का संबंध विभिन्न कुशल कार्यों से होता है। 

(द) ये योग्यताएं विभिन्न व्यक्तियों में विभिन्न तथा अलग-अलग मात्रा में होती हैं। 

(य) जिस व्यक्ति में जो योग्यता ज्यादा होती है, उसी से संबंधित विशेष सफलता प्रदान करती हैं। कुशलता में वह विशेष सफलता प्राप्त करता है। (र) ये योग्यताएं भाषा, विज्ञान, दर्शन आदि मे सफलता प्रदान करती हैं। 

स्पीयरमैन के इस सिद्धांत को आधुनिक मनोवैज्ञानिक स्वीकार नहीं करते हैं। कारण बताते हुए मन ने लिखा है," मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि स्पीयरमैन जिसे सामान्य योग्यता कहता है, उसे कई योग्यताओं में विभाजित किया जा सकता है।" 

3. तीन-खंड का सिद्धांत

यह सिद्धांत भी स्पीयरमैन के नाम से संबंधित है। दो - खंड का सिद्धांत प्रतिपादित करने के पश्चात् उसने बुद्धि का एक खंड और बताया। उसने इसका नाम सामूहिक खंड अथवा तत्व रखा। उसने इस खंड में ऐसी योग्यताओं को स्थान दिया, जो  सामान्य योग्यता से श्रेष्ठ तथा विशिष्ट योग्यताओं से निम्न होने के कारण उनके बीच का स्थान ग्रहण करती हैं। स्पीयरमैन का यह सिद्धांत सर्वमान्य नहीं बन सका है। 

इसका कारण बताते हुए क्रो तथा क्रो ने लिखा है," यह सिद्धांत व्यक्ति की योग्यताओं तथा पर्यावरण के प्रभावों को स्वीकार न करके बुद्धि को वंशानुक्रम से प्राप्त किये जाने पर बल देता है।" 

4. बहुखंड का सिद्धात

स्पीयरमैन के बुद्धि के सिद्धांत पर आगे कार्य करके मनोवैज्ञानिकों ने बहुखड का सिद्धांत प्रतिपादित किया। इन मनोवैज्ञानिकों में कैली तथा थर्स्टन के नाम उल्लेखनीय है-- (अ) कैली के अनुसार बुद्धि के खड- कैली ने अपनी पुस्तक "Crossroads in Mind of Man" में बुद्धि को निम्न 9 खंडों अथवा योग्यताओं का समूह बताया है-- 

(1) रुचि , 

(2) गामक योग्यता 

(3) सामाजिक योग्यता , 

(4) सोख्यिक योग्यता , 

(5) 

(6) स्थान संबंधी विचार योग्यता शाब्दिक योग्यता , 

(7) शारीरिक योग्यता , 

(8) संगीतात्मक योग्यता . 

(9) यांत्रिक योग्यता , 

( ब ) थर्स्टन के अनुसार 

बुद्धि के खंड-थर्स्टन ने अपनी पुस्तक “Primary Mental Abilities" में बुद्धि के 13 खंड अथवा तत्व बताये हैं। दूसरे शब्दों में, उसने बुद्धि को 13 मानसिक योग्यताओं का समूह बताया है, जिनमें से निम्नलिखित 9 को ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता हैं-- 

(1) स्मृति , 

(2) प्रत्यक्षीकरण की योग्यता , 

(3) सांख्यिकी योग्यता , 

(4) शाब्दिक योग्यता, 

(5) तार्किक योग्यता, 

(6) निगमनात्मक योग्यता , 

(7) आगमनात्मक योग्यता , 

(8) स्थान संबंधी योग्यता , 

(9) समस्या समाधान की योग्यता। बुद्धि के "बहुखंड सिद्धांत" का समर्थन नहीं किया जाता है। मनोवैज्ञानिकों का तर्क है कि बुद्धि का विभिन्न तरह की योग्यताओं में विभाजन सर्वथा अनुचित है। क्रो तथा क्रो ने लिखा है," इन तत्वों (योग्यताओं) को जटिल मानसिक क्रिया की पृथक इकाइयाँ नहीं समझा जाना चाहिए।" 

5. मात्रा सिद्धांत

इस सिद्धांत का प्रतिपादक थार्नडाइक है। वह 'रावण मानसिक योग्यता' के समान किसी तत्व को स्वीकार नहीं करता है। थॉर्नडाइक का मत है," मस्तिष्क का गुण स्नायु तंतुओं की मात्रा पर निर्भर करता है।" इसका तात्पर्य यह है कि बुद्धि उतनी ही ज्यादा अच्छी होती हैं, जितने ज्यादा मस्तिष्क तथा स्नायुमंडल के संबंध होते हैं, क्योंकि व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं के आधार यही संबंध हैं। 

थाॅर्नडाइक ने अपने सिद्धांत को 'उद्दीपक-प्रतिक्रिया' के आधार पर सिद्ध किया हैं। उसका मत हैं कि जिन अनुभवों का उद्दीपक प्रतिक्रियाओं से संबंध स्‍थापित हो जाता हैं, वे भविष्य में उसी तरह की समस्याओं का समाधान ज्यादा सरल बना देते हैं। 

थाॅर्नडाइक के सिद्धांत की दो कारणों से कटु आलोचना की गयी है। पहला कारण यह है कि यह सिद्धांत मस्तिष्क तथा स्नायु-मंडल के संबंध पर बहुत अधिक बल देता है। दूसरे कारण को क्रो तथा क्रो के इन शब्दों में व्यक्त किया जा सकता हैं," यह सिद्धांत मस्तिष्क की संपूर्ण रचना के लचीलेपन को कोई स्थान नहीं देता हैं।" 

6. वर्ग घटक सिद्धांत 

जी. थाॅमसन ने बुद्धि को कई विशिष्ट योग्यताओं एवं विशेषताओं का समूह माना हैं, एक ही वर्ग में कई तरह की विशेषताएं होती हैं, जैसै व्यावसायिक योग्यता में, प्रबंध, बिक्री, विक्रय, उत्पादन, भंडारण जनसंपर्क इत्यादि योग्यताएं निहित होती हैं।

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