9/30/2021

अभिप्रेरणा की विधियां, लक्षण/कसौटियां

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अभिप्रेरणा की विधियां

बालक अभिप्रेरणा प्राप्त करके ही अपने सीखने के कार्य को सम्पन्न करने में पूर्ण सफल हो सकते हैं अतः उन्हें शिक्षकों द्वारा अभिप्रेरणा प्रदान की जाना नितान्त आवश्यक है। इस सम्बन्ध में कुछ प्रमुख विधियों का उल्लेख निम्नानुसार किया जा रहा है-- 

1. रुचि जाग्रत करना

अभिप्रेरणा प्रदान करने की प्रथम विधि बालकों में सीखने के प्रति रुचि उत्पन्न करना है  रुचि, बालकों का ध्यान आकर्षित करने का प्रथम महत्वपूर्ण उपाय है। अतः शिक्षक को सिखाये जाने वाले पाठ को बालक की रुचियों से सम्बद्ध करके सिखाना चाहिये। 

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2. सफलता प्राप्ति

अभिप्रेरणा प्रदान करने की दूसरी विधि है- बालकों को अपने कार्य में सफल बनाना। इस हेतु शिक्षक को सदैव यह प्रयास करना चाहिये कि बालकों को सीखने वाले कार्य में सफलता प्राप्त हो सके, क्योंकि फ्रैंडसन का मत है कि," सीखने के सफल अनुभव अधिक सीखने की अभिप्रेरणा प्रदान करते हैं।" 

3. प्रतिद्वन्द्विता की भावना का विकास 

बालकों में प्रतिद्वन्द्विता की भावना का विकास करके सीखने के कार्य को शिक्षक अभिप्रेरणा के माध्यम से सफल बना सकता है। शिक्षक को बालकों में स्वस्थ प्रतिद्वन्द्विता की भावना का विकास करना चाहिये। 

4. सामूहिक कार्य की प्रेरणा 

अभिप्रेरणा प्रदान करने की अन्य विधि है- बालकों को सामूहिक कार्यों में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करना। इस प्रकार के कार्यों में बालकों को आनन्द प्राप्त होता है और ये उसे रुचिपूर्वक करते हैं। अतः शिक्षकों को सामूहिक कार्यों के आयोजन की व्यवस्था करनी चाहिये। 

5. प्रशंसा विधि

शिक्षकों को बालकों द्वारा किये गये अच्छे कार्यों के लिये उनकी प्रशंसा करनी चाहिये। वास्तव में उचित समय और स्थान पर प्रशंसा विधि का प्रयोग किये जाने पर अभिप्रेरणा अत्यधिक प्रभावशाली सिद्ध होती है। 

6. आवश्यकता पूर्ति का ज्ञान 

बालकों को सिखाये जाने वाली कार्य की आवश्यकता, उसकी पूर्ति का ज्ञान भी शिक्षकों द्वारा कराया जाना चाहिये। बालक को जब यह ज्ञात हो जाता है कि वह कार्य किन आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा तो वह शीघ्र उसे सीख लेता है। इसी आधार पर हरलॉक यह स्वीकार करते हैं कि बालक की मुख्य आवश्यकतायें उसके सीखने में उद्दीपनों का कार्य करती हैं।" 

7. प्रतिफल का ज्ञान

अभिप्रेरणा प्रदान करने की एक अन्य प्रमुख विधि- बालकों को पाठ्यवस्तु के प्रतिफल से अवगत कराना। अतः यह आवश्यक है कि पढ़ाने के पूर्व शिक्षक द्वारा बालकों को यह बता देना चाहिये कि उसको पढ़ने से क्या-क्या लाभ प्राप्त होंगे। 

8. खेल विधि

बालकों की शिक्षा हेतु अभिप्रेरणा प्रदान करने की खेल विधि का भी शिक्षकों द्वारा प्रयोग किया जाना चाहिये। खेल-खेल में शिक्षक बालकों को बहुत कुछ सिखा सकते हैं। यह विधि छोटी-छोटी बातों के सीखने के लिये विशेष रूप से उपयोगी है।

9. कक्षा का अनुकूल वातावरण 

अभिप्रेरणा प्रदान करने की एक अन्य महत्वपूर्ण विधि है- कक्षा के वातावरण को शिक्षण के अनुकूल बनाना। अतः शिक्षक को अपने विषय के अनुकूल कक्षा का वातावरण निर्मित करना चाहिये। 

10. सामाजिक कार्यों में भाग लेने की विधि 

शिक्षकों द्वारा अभिप्रेरणा प्रदान करने की एक और विधि है- बालकों को सामाजिक कार्यों में भाग लेने के समुचित अवसर प्रदान करना, क्योंकि ये अक्सर उनको आत्म-सम्मान और सामाजिक प्रतिष्ठा  दिलाने में सहायक सिद्ध होते हैं। यही कारण है कि बालक अपने कार्य को अधिक उत्साह से करते हैं।  शिक्षक को इस विधि का उपयोग करते हुये बालकों को अधिकाधिक सामाजिक कार्यों में भाग लेने के अवसर प्रदान करने चाहिये।

अभिप्रेरित व्यवहार के लक्षण या मापदण्ड या कसौटियाँ 

अभिप्रेरणायुक्त व्यवहारों के मुख्य लक्षण निम्न प्रकार हैं-- 

1. परिवर्तनशीलता 

अभिप्रेरणा युक्त व्यवहार किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है। अत: उसमें किसी एक क्रिया को यन्त्रवत नहीं दोहराया जाता बल्कि लक्ष्य प्राप्ति के दृष्टिकोण से उसमें बार-बार परिवर्तन किये जा सकते हैं। उदाहरणार्थ पिंजड़े में बंद भूखा बन्दर पिंजड़े से बाहर रोटी के टुकड़े को पाने के लिये बार-बार एक ही व्यवहार को नहीं दोहराता बल्कि नई-नई क्रियाओं से उसे पाने का प्रयत्न करता है। बन्दर की यह क्रियायें तब तक परिवर्तित होती रहती हैं जब तक कि वह पिंजड़े से बाहर आकर रोटी प्राप्त नहीं कर लेता। 

2. शक्ति संचालन 

अभिप्रेरणात्मक व्यवहार का आरम्भ किसी आवश्यकता या आन्तरिक अवस्था से होता है। प्राणी की शक्ति उत्तेजित हो जाती है और वह किसी क्रिया या व्यवहार को करने के लिये बाध्य होता है। अत : अभिप्रेरणायुक्त व्यवहारों के पीछे कोई संचालन शक्ति अवश्य होती है, जो हमें क्रियाशील बनाती है। जब कोई प्रेरक किसी व्यक्ति को कोई क्रिया करने के लिए प्रेरित करता है तब क्रिया को करने के लिये व्यक्ति को आन्तरिक शक्ति लगानी पड़ती है। उदाहरणार्थ जब विद्यार्थी पढ़ता है तब यदि कक्षा में प्रथम आने की अभिप्रेरणा उसे मिल जाये तो वह सामान्य विद्यार्थी की अपेक्षा अधिक मेहनत से पढ़ाई की क्रिया में लग जाता है। इसके अतिरिक्त अनेक बार अभिप्रेरणा के प्रबल प्रभाव के कारण व्यक्ति अति कठिन कार्यों को भी कर गुजरता है। जिसके विषय में वह स्वयं विश्वास नहीं कर पाता कि यह कार्य उसके द्वारा ही किया गया है। इस प्रकार शक्ति का संचालन अभिप्रेरणा का एक लक्षण है। 

3. तत्परता 

अभिप्रेरणा युक्त व्यक्ति उस समय तक कार्य करने के लिये तत्पर रहता है जब तक वह अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेता। वह जितनी अधिक मात्रा में प्रेरित होगा उतनी ही लगन के साथ एक के बाद दूसरा प्रयत्न कार्य सिद्धि के लिये उस समय तक करता रहेगा जब तक कि उसे सफलता न मिले । उदाहरणार्थ - भूखा प्राणी भोजन प्राप्ति के लिये उस समय तक निरन्तर प्रयास करता है जब तक कि उसे भोजन की प्राप्ति नहीं हो जाती। 

4. लक्ष्य प्राप्त करने की बेचैनी

अभिप्रेरणायुक्त व्यवहार से लक्ष्य प्राप्ति के लिये अत्यन्त व्याकुलता रहती है। यह व्याकुलता लक्ष्य प्राप्ति के उपरान्त ही समाप्त होती है। उदाहरणार्थ भूख का लक्ष्य भोजन प्राप्ति है। जब तक किसी भूखे व्यक्ति को भोजन की प्राप्ति नहीं हो जाती तब तक वह उत्तेजित या बेचैन अवस्था में रहता है। अत : अभिप्रेरणायुक्त व्यवहार में जहाँ लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेता। प्राप्ति के लिये तत्परता पाई जाती है वहीं जीव को तब तक बेचैनी बनी रहती है जब तक वह लक्ष्य को प्राप्त नही कर लेता।

लक्ष्य प्राप्ति के बाद सन्तुष्टि

अभिप्रेरणायुक्त व्यवहार का एक विशेष विश्लेषण यह है कि लक्ष्य की प्राप्ति के पश्चात् बेचैनी समाप्त हो जाती है। उदाहरणार्थ, भूख लगने पर व्यक्ति भोजन की तलाश में बेचैन रहता है, जब वह उसे पा लेता है तब उसकी भोजन प्राप्त करने की बेचैनी समाप्त हो जाती है । लक्ष्य दो प्रकार के होते हैं जिन्हें धनात्मक लक्ष्य (Positive Goal) तथा नकारात्मक लक्ष्य (Negative Goal) कहते हैं। धनात्मक लक्ष्य ऐसे लक्ष्य को कहते हैं जिसको प्राप्त करने के लिए व्यक्ति प्रयास करता है। जैसे भोजन प्राप्त करना एक धनात्मक लक्ष्य है। नकारात्मक लक्ष्य ऐसे लक्ष्य को कहते हैं जिनसे व्यक्ति बचने का प्रयास करते हैं। जैसे खतरनाक (Dangerfull) या दुखद स्थिति से हर कोई बचना चाहता है। अत: अभिप्रेरणायुक्त व्यवहार में लक्ष्य प्राप्ति के पश्चात् सन्तुष्टि का अनुभव होता है चाहे वह लक्ष्य धनात्मक या नकारात्मक किसी भी प्रकार का हो।

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