अभिप्रेरणा के सिद्धांत (abhiprerna ke siddhant)
अभिप्रेरणा के मुख्य सिद्धांत इस प्रकार हैं--
(अ) मैस्लो का मानव आवश्यकता अभिक्रम सिद्धांत
यह प्रेरणा का जान-माना सिद्धांत हैं। अब्राहम मैस्लो ने प्रेरणा के पूर्ण सिद्धांत की रूपरेखा रखी। पिछले कुछ दशकों में इस सिद्धांत पर ध्यान दिया गया।
मैस्लो के सिद्धांत का मूल आधार यह है कि मानव आवश्यकताएं समान तीव्रता पर आधारित नही होती। उनके अनुसार लोगों को प्रेरित करने की आवश्यकताएं उसकी आवश्यकताओं की तीव्रता के क्रम के आधार पर तय की जा सकती हैं। व्यक्ति अपनी प्राथमिक आवश्यकताओं को सबसे पहले संतुष्ट करता है तथा इनकी पूर्ति होने पर द्वितीय आवश्यकताओं की तरफ बढ़ता हैं। संक्षेप में, जब कोई आवश्यकता पूर्ण हो जाए, तब उसके बारे में प्रेरणा की कोई जरूरत नही होती। मैस्लो ने आवश्यकता की तीव्रता के 5 स्तर बताए है जो इस प्रकार से हैं--
1. शारिरिक आवश्यकताएं
इनमें भूख, नींद तथा काम-वासना शामिल हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार ये मूल आवश्यकताएं एक बार पूर्ण होने के बाद दुबारा प्रेरित नहीं करती। जैसे प्यास लगने पर व्यक्ति अपने आसपास पानी खोजेगा। पर्याप्त पानी पीने के बाद वह पानी की तरफ की तरफ ध्यान नहीं देगा। अब वह माँगों के अगले उच्च स्तर की तरफ प्रेरित होगा।
2. सुरक्षा आवश्यकता
आवश्यकता का दूसरा स्तर सुरक्षा का है। मैस्लो के अनुसार इसमें शारीरिक एवं भावनात्मक दोनों तरह की सुरक्षा शामिल हैं। प्रत्येक व्यक्ति सुरक्षात्मक आवश्यकता को पूर्ण करना चाहता हैं। यह भी सत्य है कि इनकी भी एक बार पूर्ति होने पर दोबारा जरूरत महसूस नहीं होती।
3. संबंध तथा सामाजिक आवश्यकता
आवश्यकताओं का तीसरा स्तर स्नेह, प्यार, संबंध तथा मित्रता का हैं। मैस्लो द्वारा जोड़े गए प्यार शब्द के भिन्न अर्थ भी निकल सकते हैं। सामाजिक आवश्यकता तथा संबंध शब्द ठीक हैं।
4. सम्मान की आवश्यकता
चौथा स्तर उच्च आवश्यकताओं से संबंधित हैं। शक्ति, उपलब्धि तथा हैसियत की आवश्यकताओं को इसमे रखा जा सकता हैं। सम्मान स्तर में आत्म सम्मान तथा दूसरों से प्राप्त सम्मान दोनों शामिल हैं।
5. आत्मबोध की आवश्यकता
यह सभी स्तर की आवश्यकताओं से ऊंचे स्तर की जरूरत है। जिन्हें आत्मबोध हो जाता है वे पूर्णतः संतुष्ट हो जाते हैं एवं सभी शक्तियों से सम्पन्न हो जाते हैं। इसका तात्पर्य स्वयं को जानने से हैं।
मैस्लो ने इन 5 आवश्यकताओं को निम्न एवं उच्च क्रम की आवश्यकता में विभाजित किया। शारीरिक तथा सुरक्षा आवश्यकताओं को निम्न क्रम की एवं सामाजिक सम्मान और आत्मबोध आवश्यकताओं को उच्च क्रम की आवश्यकताएं कहा गया। अंतर यह है कि उच्च क्रम की आवश्यकताओं की पूर्ति आंतरिक रूप से होती है वही निम्न क्रम की आवश्यकताओं की पूर्ति बाहरी साधनों से होती हैं। आधुनिक समय में ज्यादातर कर्मचारी अपनी निम्न क्रम आवश्यकताओं की पूर्ति चाहते हैं।
(ब) अल्डरफर का ई आर जी माॅडल
येल यूनिवर्सिटी के क्लेटन अल्डरफर ने मैस्लो के आवश्यकता अभिक्रम सिद्धांत पर काम कर इसके दोषों को दूर करने का प्रयत्न किया। क्लेटन ने संशोधित अभिक्रम सुझाया।
अल्डरफर ने मुख्य आवश्यकताओं को 3 समूहों में बाँटा--
E- एक्जिस्टेन्स नीड (अस्तित्व आवश्यकता)
R- रिलेटेडनेस नीड (सम्बद्धता आवश्यकता)
G- ग्रोथ नीड (वृद्धि आवश्यकता)
● अस्तित्व आवश्यकता का संबंध जीवन से है। इसमें शारीरिक तथा सुरक्षा की आवश्यकता सम्मिलित हैं।
● सम्बद्धता आवश्यकता व्यक्तिगत विकास की इच्छा से संबंधित हैं। इसमें आत्मसम्मान तथा आत्मबोध दोनों शामिल हैं।
● वृद्धि आवश्यकता भी व्यक्तिगत विकास से संबंधित हैं। इसमें आत्म-सम्मान एवं आत्म बोध की इच्छा शामिल हैं।
अल्डरफर ने आवश्यकताओं की निरंतरता को अभिक्रम स्तर से ज्यादा महत्व दिया। इसका अर्थ यह नही है कि उच्च स्तर की आवश्यता पूरी करने हेतु प्रेरित करने के पहले निम्न स्तर की आवश्यकता पूरी करना अनिवार्य हैं। ई आर जी सिद्धांत में व्यक्ति की पृष्ठभूमि से यह पता चल जाता है कि सम्बद्धता आवश्यकता की पूर्ति अतृप्त अस्तित्व आवश्यकता से पहले जरूरी होगी।
ई आर जी सिद्धांत निराशा के बारे में कहता है कि जब उच्च स्तर की आवश्यकता के संबंध में निराशा मिलती है तो व्यक्ति निम्न आवश्यकता को बढ़ा लेता हैं। उदाहरण के लिए सामाजिक अन्तर्सम्बन्धों के मामले में असफल होने पर व्यक्ति पैसा अथवा बेहतर कार्य परिस्थिति की ज्यादा आशा करने लगता हैं।
(स) व्रूम का प्रत्याशा सिद्धांत
व्रूम के अनुसार प्रेरणा 3 कारकों का संयुक्त रूप हैं--
इच्छा-- व्यक्ति कितना पुरस्कार चाहता हैं
प्रत्याशा-- सफल प्रदर्शन की संभावना
आकलन-- व्यक्ति का यह आकलन कि प्रदर्शन से उसे पुरस्कार मिलेगा।
इस संबंध को इस तरह व्यक्त किया जा सकता हैं-- इच्छा × प्रत्याशा × आकलन = प्रेरणा।
तीन कारक
1. इच्छा
इसका संबंध पुरस्तकार या लाभ प्राप्त करने की इच्छा से है। उदाहरण के लिए अगर कोई व्यक्ति पदोन्नति के लिए काफी इच्छा रखता है तो यह उसके लिए उच्च तीव्रता की इच्छा होगी। इच्छा की तीव्रता हर कर्मचारी हेतु अलग होती हैं। अगर किसी की पुरानी जरूरतें पूरी होकर नई जरूरतें उभर आएं, तब उस अंतराल में इच्छा में परिवर्तन भी हो सकता हैं।
लोग किसी परिणाम के प्रति सकारात्मक भी होते है तथा नकारात्मक भी। अतः इच्छा भी सकारात्मक अथवा नकारात्मक हो सकती हैं। जब व्यक्ति किसी परिणाम को प्राप्त न होने की प्राप्त होने से ज्यादा अपेक्षा करता हैं, तब इच्छा नकारात्मक कही जाएगी। अगर व्यक्ति परिणाम के प्रति रूचिहीन हैं तब इच्छा शून्य होगी। इसकी पूरी सीमा- 1 से + 1 होती हैं।
2. प्रत्याशा
प्रत्याशा उस विश्वास को कहते हैं कि प्रयासों के कारण पूर्ण होकर रहेगा। उदाहरण के लिए अगर कोई व्यक्ति घर-घर जाकर घरेलू वस्तुएं बेचता है तो उसे पता है कि उसका विक्रय, विक्रय कालों की संख्या से सीधा संबंधित हैं। क्योंकि प्रत्याशा प्रयास तथा प्रदर्शन के बीच संभावना पर आधारित होती है। अतः इसकी सीमा प्रायः 0 से 1 तक पाई जाती है।
● अगर एक कर्मचारी अपेक्षित प्रदर्शन में स्वयं के प्रभाव से कोई परिवर्तन नहीं देखता तब प्रत्याशा 0 होगा।
● अगर व्यक्ति को बहुत विश्वास है कि कार्य पूर्ण होकर रहेगा तब प्रत्याशा की सीमा 1 होगी।
● प्रायः प्रत्याशा 0 से 1 के बीच बदलती रहती हैं।
3. आकलन
आकलन का अर्थ कर्मचारी का यह भरोसा है कि काम खत्म होने पर लाभ अथवा पुरस्कार जरूर मिलेगा। यहाँ कर्मचारी एक और विषयगत निर्णय करता है कि संगठन काम की कद्र करता है एवं उसके सन्दर्भ में पुरस्कार का फैसला आकस्मिक आधार पर करेगा। आकलन के प्रभाव की सीमा 0 से 1 होती हैं। अगर कोई कर्मचारी यह देखता है कि पदोन्नति प्रदर्शन के आंकड़ों पर आधारित है तब आकलन का मूल्य ज्यादा होगा। अगर इस बारे में निर्णय का आधार स्पष्ट नहीं है। तब आकलन भी कम ही होगा।
माॅडल कार्य कैसे करता हैं?
इच्छा, प्रत्याशा तथा आकलन का गुणनफल ही प्रेरणा हैं इन तीन कारकों के कई संबंध हो सकते हैं। जब इच्छा, प्रत्याशा एवं आकलन तीनों उच्च स्तर के हों तब प्रेरणा भी अधिकतम होगी। अगर इच्छा ज्यादा है, पर संभावना का आकलन कम है, तब प्रेरणा मध्यम स्तर की होगी। अगर प्रत्याशा एवं आकलन दोनों कम हैं तब प्रेरणा भी कमजोर होगी, भले ही पुरस्कार अच्छी इच्छा जगाने वाले हों।
एक विशेष मामले में इच्छा शून्य होती हैं। उदाहरण के लिए कोई कर्मचारी पदोन्नति इसलिए नहीं चाहता क्योंकि जिम्मेदारी बढ़ जाएगी तथा ओवर टाइम भुगतान का नुकसान हो जाएगा। इस तरह अगर पदोन्नति इच्छा से संबंधित हैं तो कर्मचारी उसे टालना पसंद करेगा।
(द) हैरीबर्ग का प्रेरणा स्वास्थ्य सिद्धांत
आवश्यकताओं की प्राथमिकता व्यवहार के रूप को निर्धारित करती हैं। कुछ आवश्यकताओं की संतुष्टि हो सकती हैं। प्रेरणा पर सकारात्मक प्रभाव न डालें परन्तु उनके पूरा न होने का नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। प्रश्न पैदा होता है कि किस प्रकार की आवश्यकताएं प्रेरित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। फैड्रिक हैरीवर्ग ने 200 इंजीनियरों तथा एकाउंटेंटो का जो पिट्सबर्ग के इर्द-गिर्द नियुक्त थे की आवश्यकताओं की संतुष्टि का अध्ययन किया।
उन व्यक्तियों से उनके पहले वाली नौकरियों के विषय में पूछा गया कि उन अनुभवों का बखान करें जिनमें उसने अपनी नौकरी के बारे में असाधारण रूप में बहुत अच्छा या बहुत बुरा अनुभव किया। इन अनुभवों का काम पर पड़े प्रभाव का भी अध्ययन किया गया।
हैरीबर्ग ने निष्कर्ष निकाला कि दो प्रकार की स्थितियाँ होती है। पहली प्रकार की स्थितियाँ जैसे स्वास्थ्य एवं सफाई संबंधी कारक हैं। अपनी उपलब्धता के कारण कर्मचारियों को प्रेरित नहीं करते परन्तु उनके न होने से वे असंतुष्ट हो जाते हैं। दूसरी परिस्थितियाँ जिन्हें प्रेरणात्मक कारक बलशाली प्रेरणात्मक स्त्रोत सिद्ध होते हैं तथा कर्मचारियों को काम में संतुष्टि प्रदान करते हैं परन्तु अनुपलब्धता बलशाली रूप में असंतुष्ट नहीं करती हैं।
रख-रखाव या स्वास्थ्य कारक
उन्हें रख-रखाव या स्वास्थ्य कारक कहा गया हैं क्योंकि इन्हें चालू स्तर की अवस्था में रखना आवश्यक है। उनकी उपलब्धता न होने पर असंतुष्टता अधिक होती हैं परन्तु उनकी उपस्थिति प्रेरणादायक नहीं होती। एक बार संतुष्टता के स्तर पर पहुँचने के पश्चात इनमें और वृद्धि भी प्रेरणा देने वाली नही होती। हैरीबर्ग ने स्वास्थ्य कारकों में कंपनी की नीति तथा प्रशासन, तकनीकी निरीक्षण, निरीक्षक के साथ कर्मचारियों के संबंध, साथियों के आपसी संबंध, अधीन कर्मचारियों के साथ व्यक्तिगत संबंध, वेतन, नौकरी की सुरक्षा, व्यक्तिगत जीवन, काम की हालतें, पदवी का नाम लिया हैं। उन कारकों का संबंध उन परिस्थितियों से है जिनके अंतर्गत काम किया जाता हैं। वे कर्मचारियों का कोई विकास नहीं करते परन्तु उनके विकास को नहीं रोकते। कर्मचारियों में संतुष्टता का पर्याप्त स्तर बनाए रखने के लिए ये कारक आवश्यक हैं।
प्रेरणादायक कारक
इन कारकों की उपस्थिति काम तथा प्रेरणा के रूप में सन्तुष्टि प्रदान करती हैं। परन्तु यदि ये स्थितियाँ उपस्थित नहीं है तो इनसे कोई असंतुष्टता पैदा नहीं होती। यह छः कारक हैं, सफलता प्राप्ति, मान्यता प्राप्त होना, पदोन्नति, स्वयं काम, व्यक्तिगत विकास की संभावनाएं तथा दायित्व। इनमें से अधिकतर कारकों का संबंध काम से हैं। इन कारकों में विकास कर्मचारियों की प्रेरणा बढ़ाने के लिए आवश्यक हैं।
हैरीबर्ग ने ध्यान दिलाया कि प्रायः अधिकतर प्रबन्धक ध्यान केवल स्वास्थ्य कारकों की ओर ही देते हैं। वे वेतन आदि में वृद्धि करके कर्मचारियों का पूरा सहयोग प्राप्त नहीं कर सकते। उन्होंने प्रेरणादायक कारकों के महत्व को नही समझा। कर्मचारी काम के उपलब्ध कारणों से प्रेरित होते हैं। व्यक्ति जिसे अपने काम से संतुष्टता प्राप्त होगी, उससे उत्पादन बढ़ाने में सहायता प्राप्त होगी। प्रबंध को स्वास्थ्य कारकों के कारण पैदा होने वाली असंतुष्टता को काम करने का प्रयत्न करना चाहिए तथा प्रेरणादायक कारकों से प्राप्त होने वाली संतुष्टता को बढ़ाना चाहिए।
(ई) मेकग्रेगर का 'X' and 'Y' सिद्धांत
कोलगस मेकगेगर ने इन दो सिद्धांतों को प्रस्तावित किया, जो हैं, 'X' सिद्धांत और 'Y' सिद्धांत यह दो अलग मानव उद्देश्यों पर आधारित हैं। मेकग्रेगर ने मानव जाति से जुड़े विपरीत चरम सीमा पर पूर्वानुमान के दो प्रकार प्रस्तावित किए, जो लगता प्रबंधक द्वारा कार्य हेतु उपयोग किए जाएँगे।
सिद्धांत 'X' एक चरम सीमा में कार्य करता है, एक पूर्वानुमान के समूह पर आधारित एवं सिद्धांत 'Y' अन्य चरम सीमा में कार्य करता हैं, अन्य पूर्वानुमान के समूह पर आधारित। यह सिद्धांत किसी अन्य अन्वेषण पर आधारित नहीं हैं, परन्तु मेकग्रेगर के अनुसार, यह सब अंतर्ज्ञान से प्राप्त निष्कर्ष हैं।
सिद्धांत 'X'
यह सिद्धांत मानवीय आचरण की परम्परागत पद्धति पर आधारित हैं। पूर्वानुमान सामान्यतः जो इस सिद्धांत में प्रबंधक द्वारा प्रयोग किए जाते हैं--
1. औसत मानव जाति स्वभावतः कार्य में अरूचि रखते हैं एवं उसे त्यागने का प्रयत्न करते हैं जब भी संभव हों।
2. क्योंकि कर्मचारी आलसी होते हैं उन्हें नियंत्रित करना चाहिए तथा बलपूर्वक लक्ष्य प्राप्ति के दंड से डराना चाहिए जिसके लिए वह तटस्थ हैं।
3. औसतन कर्मचारी उत्तरदायित्व को अनदेखा करने का प्रयत्न करेंगे एवं जब भी संभव हो औपचारिक आज्ञा का पालन करेंगे क्योंकि वह तुलनात्मक रूप से कम महत्वाकाँक्षी हैं।
4. अधिकार कर्मचारी अन्य तथ्य जो कि कार्यसम्बन्धित है की अपेक्षा सबसे उच्च स्थान देते हैं। यह पूर्वानुमान मानवीय प्रकृति के लिए नकारात्मक है तथा उनकी पहुँच में हैं। प्रबंधक जो इस धारणा की वकालत करते हैं वह परम सीमा के नियंत्रण को गैरजिम्मेदारी एवं अपरिपक्व कर्मचारियों से निपटने के लिए अति उचित समझते हैं। यह एक निरंकुश शैली हैं नेतृत्व की जो कि कर्मचारी किस समान है एवं प्रबंधन को उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए क्या करना होगा पर आधारित परम्परागत सिद्धांत हैं। कर्मचारियों को विश्वस्त करना होगा एवं प्रदर्शन के लिए प्रेरित करना होगा।
सिद्धांत 'Y'
इस सिद्धांत के अनुसार प्रबंधन पथप्रदर्शन एवं नियंत्रण के द्वारा एक अनिश्चित प्रणाली है ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए जिनकी शारीरिक एवं सामाजिक आवश्यकताएँ संतुष्ट हो गई हैं एवं जिनकी सामाजिक सम्मान एवं आत्म यथार्थीकरण आवश्यकताएँ अति महत्वपूर्ण होती जा रही हैं। ऐसे लोगों के लिए सिद्धांत 'Y' उपयुक्त लगता हैं, जो कि सिद्धांत 'X' के विपरीत हैं। यह सिद्धांत लोगों के लिए निम्नलिखित पूर्वानुमान लगाता हैं--
1. औसतन मानव जाति स्वभावतः कार्य में अरूचि नही रखती। वह कार्य को सहज या आनन्दित दृष्टि से देखते हैं जैसे कि विश्राम या खेल।
2. कर्मचारी आत्म पथप्रदर्शन एवं आत्म नियंत्रण का अभ्यास करते हैं उद्देश्य की प्राप्ति के लिए जिसके लिए वह समर्पित हैं।
3. उचित कार्य परिस्थितियों में औसतन लोग उत्तरदायित्व को स्वीकार करना एवं खोजना सीख लेते है।
4. उद्देश्यों के प्रति वचनबद्धता उपलब्धि के साथ संयुक्त प्रतिफल की गतिविधि हैं।
5. समस्त लोग नये एवं कलात्मक निर्णय लेने में योग्य हैं एवं प्रबंधन के स्थान पर लोगों में निर्णय लेना ही केवल कार्य क्षेत्र नहीं हैं।
इस सिद्धांत ने प्रबंधन की नई प्रणाली सुझायी हैं। यह प्रबंधन एवं कर्मचारी के मध्य सहकारिता पर बल देता हैं। इस प्रणाली में साधारण एवं संगठनात्मक उद्देश्य संघर्ष नहीं करते। यह सिद्धांत कर्मचारियों की उच्च स्तर आवश्यकताओं की पूर्ति पर अधिकतर बल देता हैं। मेकग्रेगर भी मानता है कि सिद्धांत 'Y' के पूर्वानुमान सिद्धांत 'X' से अधिक वैद्य हैं अतः प्राधिकार की सुपुर्दगी, कार्य विस्तार, उद्देश्य द्वारा प्रबंधन एवं सम्मिलित प्रबन्धन तकनीकी कर्मचारियों के लिए उच्च प्रोत्साहनकर्ता हैं।
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