व्यक्तित्व की विशेषताएं (vyaktitva ki visheshta)
व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं--
1. आत्मचेतना
व्यक्ति की पहली एवं प्रमुख विशेषता हैं-- आत्मचेतना। अपनी इसी विशेषता के कारण उसे सर्वोच्च प्राणी का स्थान प्राप्त हुआ तथा उसमें व्यक्तित्व की उपस्थित को स्वीकार किया गया। बालकों एवं पशुओं में आत्मचेतना का गुण नहीं पाया जाता है। इसलिए उनके गुणों के बारे में कुछ भी कहना सही नही होगा। जब व्यक्ति को यह ज्ञात हो जाता है कि समाज में उसकी क्या स्थिति है? तभी उसमें व्यक्तित्व का होना स्वीकार किया जाता हैं।
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2. निरन्तर निर्माण की क्रिया
व्यक्तित्व की एक विशेषता निरन्तर निर्माण की क्रिया हैं। व्यक्तित्व के विकास में कभी स्थिरता नही आती है। व्यक्तित्व के विकास मे निरन्तर पायी जाती है, इस प्रकार से व्यक्तित्व निरन्तर निर्माण की प्रक्रिया हैं। जैसे-जैसे व्यक्ति के विचारों, अनुभवों तथा कार्यों मे परिवर्तन होता हैं, वैसे-वैसे ही व्यक्तित्व के स्वरूप मे भी परिवर्तन होता जाता है। निर्माण की यह क्रिया शैशवावस्था से लेकर जीवन पर्यन्त चलती रहती हैं।
3. शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य
मानव का मनोशारीरिक प्राणी होने के कारण। उसके अच्छे व्यक्तित्व के लिए अच्छे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का होना आवश्यक है। शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य सही न होने पर उसके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नही हो सकता हैं।
4. दृढ़ इच्छाशक्ति
यह वह शक्ति है जो व्यक्ति को उसके मार्ग में आने वाली कठिनाइयों से संघर्ष करके उसके अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने की क्षमता प्रदान करती हैं। व्यक्ति की यदि यह शक्ति निर्बल हो जाए तो यह उसके व्यक्तित्व को विघटित भी कर देती हैं।
5. निर्देशित लक्ष्य प्राप्ति
मनुष्य हमेशा एक निश्चित उद्देश्य ले कर काम करता है। उसके प्रत्येक व्यवहार के पीछे कोई न कोई लक्ष्य छिपा होता है। उसके व्यवहार व लक्ष्यों को जानकर ही हम उसके व्यक्तित्व के विषय में सहज अनुमान लगा सकते हैं। भाटिया के अनुसार," व्यक्ति या व्यक्तित्व को समझने के लिए हमें इस बात पर विचार करना जरूरी हो जाता है कि उसके लक्ष्य क्या हैं व उसमें कितना ज्ञान हैं।"
6. सामाजिकता
मनुष्य को समाज से अलग कर उसके व्यक्तित्व की कल्पना भी नही की जा सकती हैं। मनुष्य समाज में रहते हुए जब अन्य व्यक्तियों के संपर्क में आकार क्रिया व अन्त:क्रिया करता है तो उसमें आत्मचेतना एवं व्यक्तित्व का विकास होता हैं। अतः व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए सामाजिकता का होना आवश्यक हैं।
7. सामंजस्य
व्यक्ति को केवल बाहरी वातावरण से ही नही, बल्कि अपने व्यक्तिगत (आंतरिक) जीवन से भी सामंजस्य स्थापित करना पड़ता हैं। जब व्यक्ति सामंजस्य स्थापित करता है तो उसके व्यवहार में परिवर्तन होता जाता हैं। यही कारण हैं कि चोर, डाॅक्टर, चपरासी, इन सबके व्यवहार में क्रमशः अंतर पाया जाता हैं। वस्तुतः मानव को अपने व्यक्तित्व को अपनी दशाओं एवं स्थितियों के अनुकूल बनाना पड़ता हैं।
8. एकीकरण
एकीकरण का तात्पर्य व्यक्तित्व के एकीकरण से हैं। जिस प्रकार व्यक्ति के शरीर का कोई अंग अकेले कार्य नही करता है। उसी प्रकार व्यक्तित्व का कोई तत्व अकेले कार्य नही कर सकता है। ये तत्व हैं नैतिक, सामाजिक, मानसिक, शारीरिक, संवेगात्मक आदि व्यक्तित्व के इन सभी तत्वों में एकीकरण का गुण पाया जाता है। भटिया के अनुसार," व्यक्तित्व मानव की सभी शक्तियों व गुणों का संगठन व एकीकरण हैं।"
Kosh kitne type k hote h
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