6/25/2020

सामाजिक मूल्य का अर्थ और परिभाषा

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सामाजिक मूल्य का अर्थ (samajik mulya ka arth)

मूल्य किसी संस्कृति के सारभूत तत्व है जो उसकी अभौतिक विशेषताओं को अभिव्यक्त करते है। मूल्य समाज मे लोगों को यह बताते है कि उनके लिये क्या उचित और महत्वपूर्ण है।
प्रत्येक समाज मे मावन व्यवहार के संचालन, नियंत्रण एवं निर्देशन के लिए कुछ आदर्श एवं लक्ष्य होते है, जिनके प्रित समाज के सभी सदस्य श्रध्दा रखते है और उसके अनुकूल अपना व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन व्यतीत करते है। ये आदर्श या लक्ष्य एक प्रकार के सामाजिक मानदंड होते है जो समाज के सदस्यों को उचित-अनुचित, योग्य-अयोग्य, भला-बूरा नैतिक-अनैतिक, पाप-पुण्य आदि की व्याख्या करने मे सहायक होते है। ये सामाजिक मानदंड सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों व क्रियाओं जैसे परिवार, विवाह, जाति वर्ग, धर्म, राजनीति आर्थिक जीवन आदि से सम्बंधित होते है। ये मापदंड मनुष्य के ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक तीनों पक्षों से संबंधित कार्यकलापों को वांछिच दिशा की ओर निर्देशित करते रहते है। इन्हीं सामाजिक मानदंडों को सामाजिक मूल्य कहते हैं।
मूल्य वास्तव मे अमूर्त सामान्य अवधारणायें, विचार अथवा मान्यताये है जिन्हे समाज अच्छा और वांछनीय समझता है। आदर्श-निमय व्यवहार व आचरण के दिशा-निर्देश या नियम है जो सामाजिक मूल्यों पर आधारित होते है। दूसरे शब्दों मे, समाज की इच्छाओं, लक्ष्यों (अर्थात् मूल्यों) जिन्हें समाज उचित, अच्छा और वांछनीय समझता है, के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों मे सामाजिक क्रियाकलापों को नियंत्रित करने हेतु आदर्श-नियमों का निर्माण होता  हैं।

सामाजिक मूल्यों की परिभाषा (samajik mulya ki paribhasha)

वुडस के अनुसार " मूल्य दैनिक जीवन मे व्यवहार को नियंत्रित करने के सामान्य सिध्दान्त है। मूल्य न केवल मानव व्यवहार को दिशा प्रदान करते है अपितु ये अपने आप मे आदर्श एवं उद्देश्य भी है। जहां मूल्य होते है वहां न केवल यह देखा जाता है कि क्या चीज होनी चाहिए बल्कि यह भी देखा जाता है कि वह सही है या गलत हैं।
जाॅनसन के अनुसार " समाजशास्त्र में हमारा संबंध उन मूल्यों से है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक संबंधों से संबध्द हो, विशेषरूप से ऐसे नैतिक व धार्मिक मूल्यों से जिन्होंने किसी अंश तक संस्थात्म स्वरूप धारण किया हो।
राबर्ट बीरस्टीड के अनुसार " जब किसी समाज के स्त्री पुरुष अपने ही तरह के लोगों के साथ मिलते है, काम करते है या बात करते है, तब मूल्य ही उनके क्रमबद्ध सामाजिक संसर्ग को संभव बनाते हैं।
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट हैं कि सामाजिक मूल्य समाज के ऐसे प्रतिमान या अवधारणाएं है जिनके आधार पर हम किसी व्यक्ति या वस्तु के गुणावगुण का मूल्यांकन करते है। सामाजिक मूल्यों को व्यक्ति समाजीकरण की प्रक्रिया के द्वारा सीखता है और उन्हीं के अनुरूप व्यवहार करने का प्रयत्न करता है।
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