संस्कृति क्या है? संस्कृति का अर्थ (sanskriti kise kahate hai)
Sanskriti ka arth paribhasha visheshtayen;समूह मे साथ-साथ जीवन व्यतीत करने के लिये आवश्यकता हैं कुछ नियम, विधान की जो व्यक्ति के पारस्परिक संबंधों, व्यवहारों व क्रियाओं को निर्देशित व नियमित कर सकें। सामूहिक जीवन के ये नियम, विधान, व्यवहार प्रणालियाँ, मूल्य, मानक एवं आचार-विचार व्यक्ति की सांस्कृतिक विरासत का अंग होते हैं।मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए विभिन्न विधियों, प्रविधियों, उपकरणों, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं को जन्म दिया है। ये सब पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है। इन सबके योग को संस्कृति कहते है।
दूसरे शब्दों मे," संस्कृति हमारे द्वारा सीखा गया वह व्यवहार है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता रहता है।
एडवर्ड टायलर का कथन है कि संस्कृति वह जटिल समग्रता हैं जिसमे ज्ञान, विश्वास, कला, आर्दश, कानून, प्रथा एवं अन्य किन्ही भी आदतों एवं क्षमताओं का समावेश होता है जिन्हे मानव ने समाज के सदस्य होने के नाते प्राप्त किया हैं।इस लेख मे हम संस्कृति की परिभाषा और संस्कृति की विशेषताएं जानेगें।
व्यक्ति का समाज तथा संस्कृति के साथ समान रूप से संबंध है। व्यक्ति के व्यवहार के ये दोनों ही महत्वपूर्ण आधार हैं। इस रूप मे व्यक्ति, समाज एवं संस्कृति तीनों ही अन्योन्याश्रित हैं। व्यक्ति का समग्र विकास समाज तथा संस्कृति दोनों के प्रभाव से होता हैं। इस समीकरण द्वारा स्पष्ट है कि समाज का सामूहिक जीवन भी व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करता हैं। तथा दूसरी तरफ संस्कृति के आर्दश नियम भी मानव-व्यवहार को दिशा प्रदान करते हैं।
संस्कृति की परिभाषा (sanskriti ki paribhasha)
विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई संस्कृति की परिभाषाएं निम्नलिखित हैं--
रेडफील्ड के अनुसार, " रेडफील्ड ने संस्कृति की संक्षिप्त परिभाषा इस प्रकार उपस्थित कि हैं, " संस्कृति कला और उपकरणों मे जाहिर परम्परागत ज्ञान का वह संगठित रूप है जो परम्परा के द्वारा संरक्षित हो कर मानव समूह की विशेषता बन जाता हैं।"श्री. कून के अनुसार," संस्कृति उन विधियों का समुच्चय है जिसमें मनुष्य एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक सीखने के कारण रहता है।"
हाबल का मत है," संस्कृति सीखे हुए व्यवहार व प्रतिमानों का कुल योग है।"
बोगार्डस के अनुसार," संस्कृति किसी समूह के कार्य करने तथा विचार करने की समस्त रीतियों को कहते है।"
हर्षकोविट के अनुसार," संस्कृति मानव व्यवहार का सीखा हुआ भाग है।'
जार्ज पीटर ने संस्कृति की परिभाषा इस प्रकार से दी है, " किसी समाज के सदस्यों की उन आदतों से संस्कृति बनती है जिनमे वे भागीदार हो चाहे वह एक आदिम जनजाति हो या एक सभ्य राष्ट्र। संस्कृति एकत्रिकृत आदतों की प्रणाली हैं।"ई. ऐडम्सन होबेल के शब्दों मे संस्कृति की परिभाषा " किसी समाज के सदस्य जो आचरण और लक्षण अभ्यास से सीख लेते हैं और अवसरों के अनुसार उनका प्रदर्शन करते है, संस्कृति उन सबका एकत्रिकृत जोड़ है।"
डाॅ. दिनकर के अनुसार " संस्कृति जीवन का एक तरीका है और यह तरीका सदियों से जमा होकर समाज मे छाया रहता है जिसमे हम जन्म लेते हैं।"
पिडिंगटन के अनुसार," संस्कृति उन भौतिक व बौद्धिक साधनो या उपकरणो का योग है, जिनके द्वारा व्यक्ति अपनी प्राणिशास्त्राीय तथा सामाजिक आवश्यकताओ की संतुष्टि
एवं अपने पर्यावरण से अनुकूलन करता है।"
च्ण्भ्ण् स्ंदकपे के अनुसार," संस्कृति वह दुनिया है, जिसमे एक व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक निवास करता है। चलता है, फिरता है और अपने अस्तित्व को बनाए रखता है।"
ब्रूम व सेल्जनिक के अनुसार," समाज विज्ञानों में संस्कृति का अर्थ मनुष्य की सामाजिक विरासत से लिया जाता है। जिसमे ज्ञान विज्ञान, विश्वास व प्रथाएं आती है।"
पावेल के अनुसार," संस्कृति सीखा हुआ व्यवहार है, जो सीखा जा सके वही संस्कृति है।"
क्लूखान के अनुसार," एक समाज विशेष के सदस्यो द्वारा ग्रहण किये गये, एक जीवन का ढंग ही संस्कृति है।"
फेयर चाइल्ड के अनुसार," प्रतीको द्वारा सामाजिक रूप से प्राप्त एवं संचारित सभी व्यवहार प्रतिमानो के लिए सामूहिक नाम संस्कृति है।"
सी.एस. पफोर्ड के अनुसार," संस्कृति मे समस्याओं के सुलझाने के परंपरागत तरीको या
समस्याओं से सीखो हुये हलो का समावेश होता है।"
संस्कृति की परिभाषाएं जाननें के बाद अब हम संस्कृति की विशेषताओं को जानेंगे।
संस्कृति की उत्पत्ति, विकास एवं संचार का सम्बन्ध समाज से होता है, व्यक्ति से नही। समाज से अलग रहकर कोई भी व्यक्ति संस्कृति का न तो विकास कर सकता है और न ही प्रसार।
2. संस्कृति मे सामाजिक गुण पाया जाता है
संस्कृति सामाजिक आविष्कार है। खेती, बागवानी और भोजन पकाने की विधियों का अविष्कार किस एक व्यक्ति ने नही किया और न ही ऐसा किसी व्यक्ति द्वारा संभव हैं। प्रथाएं, परम्पराएं और नियम, विधान किसी एक व्यक्ति की देन नही है। कौटुम्बिक व्यभिचार के निषेध का नियम किसी व्यक्ति विशेष ने नही बनाया। संस्कृति के विभिन्न अवयव-ज्ञान, विश्वास, प्रथा, परम्परा, प्रविधि आदि किसी एक या कुछ व्यक्तियों का ही प्रतिनिधित्व नही करते वरन् संपूर्ण समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं।
3. संस्कृति सीखी जाती है
संस्कृति खीखा हुआ व्यवहार है। यह उत्तराधिकार मे नही बल्कि शिक्षा एवं अभ्यास के द्वारा प्राप्त होती है। व्यक्ति समूह के आचरण, व्यवहार व लक्षण को अभ्यास के द्वारा सीखता हैं।
4. संस्कृति सीखने से विकसित होती हैं
व्यक्ति संस्कृति सीखता हैं अर्थात् यह जन्मजात गुण नही है। समाज मे रहकर व्यक्ति संस्कृति के विभिन्न पक्षों को अपनाता हैं।
5. संस्कृति संचरित होती हैं
संस्कृति सीखने से सम्बंधित होती है अतः इसका संचार सम्भव है। सांस्कृतिक प्रतिमान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को संचरित होती रहती है। इस प्रकार एक पीढ़ी संस्कृति का जितना विकास कर लेती है वह समग्र रूप मे अगली पीढ़ी को विरासत के रूप मे मिल जाता है। इसी विशेषता के कारण संस्कृति का रूप पीढ़ी दर पीढ़ी परिष्कृत होता जाता है। संस्कृति के संचार का सबसे मुख्य साधन भाषा हैं।
6. संस्कृति मानव आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं
संस्कृति की एक विशेषता यह भी हैं कि संस्कृति मानव आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। भोजन, यौन संतुष्टि मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएं है। इनकी संतुष्टि स्वतंत्र रूप से की जा सकती है और मर्यादित रूप मे भी। पहली विधि घोर बर्बता की सूचक हैं और जो अन्ततः व्यक्ति के लिए अहिकारी ही है। मर्यादित रूप संस्कृति का सूचक है जो पीढ़ियों के सामाजिक अनुभव (जैसे एक विवाह) के फलस्वरूप विकसित हुआ हैं और जो व्यक्ति के समूह के हितों की बेहतर पूर्ति का श्रेष्ठ साधन है।
7. संस्कृति मानवीय होती हैं
संस्कृति की एक विशेषता संस्कृति का मानवीय होना भी हैं। संस्कृति मानव समाज की मौलिक विशिष्टा है। पशु समाजों मे किसी प्रकार की संस्कृति नही होती। यह सत्य है कि पशु भी अनेक प्रकार के व्यवहार सीखते है, परन्तु उनका सीखना पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत का रूप नही लेता। भाषा के अभाव मे पशुओं मे संस्कृति का प्रश्न ही नही उठता।
8. संस्कृति समूह के लिए आर्दश होती है
किसी समूह के सदस्य अपनी संस्कृति के नियमों, मूल्यों व मान्यताओं को अपने जीवन का आर्दश मानते है और उन्हें जीवन मे प्राप्त करने का प्रयत्न करते है। वास्तव मे संस्कृति सामूहिक अनुभव से उद्भूत होती है। यह उन्हीं मूल्यों, मानको और लक्ष्यों को स्थापित करती है जो पीढ़ियों के अनुभवों के फलस्वरूप विकसित व वांछित होते हैं। वेद पूज्य हैं, सांसरिक आकर्षण मिथ्या है, धन, वैभव, यौवन का लोभ, विनाश का कारण हैं। इनका उतना ही सेवन करना चाहिये जो धर्मानुकूल अर्थात् जीवन के लिए आवश्यक है। चोरी करना पाप हैं, स्त्री मातृत्व और शक्ति की प्रतीक हैं। उसका सम्मान करना चाहिए, गुरू का आदर करना चाहिए, आदि हमारे जीवन के कुछ आर्दश है जिन्हे सदियों से अपने जीवन मे उतारने के लिए हम प्रयत्नशील रहे हैं।
संस्कृति की विशेषताएं (sanskriti ki visheshta)
संस्कृति की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार से है--
1. संस्कृति समाज से सम्बंधित होती हैंसंस्कृति की उत्पत्ति, विकास एवं संचार का सम्बन्ध समाज से होता है, व्यक्ति से नही। समाज से अलग रहकर कोई भी व्यक्ति संस्कृति का न तो विकास कर सकता है और न ही प्रसार।
2. संस्कृति मे सामाजिक गुण पाया जाता है
संस्कृति सामाजिक आविष्कार है। खेती, बागवानी और भोजन पकाने की विधियों का अविष्कार किस एक व्यक्ति ने नही किया और न ही ऐसा किसी व्यक्ति द्वारा संभव हैं। प्रथाएं, परम्पराएं और नियम, विधान किसी एक व्यक्ति की देन नही है। कौटुम्बिक व्यभिचार के निषेध का नियम किसी व्यक्ति विशेष ने नही बनाया। संस्कृति के विभिन्न अवयव-ज्ञान, विश्वास, प्रथा, परम्परा, प्रविधि आदि किसी एक या कुछ व्यक्तियों का ही प्रतिनिधित्व नही करते वरन् संपूर्ण समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं।
3. संस्कृति सीखी जाती है
संस्कृति खीखा हुआ व्यवहार है। यह उत्तराधिकार मे नही बल्कि शिक्षा एवं अभ्यास के द्वारा प्राप्त होती है। व्यक्ति समूह के आचरण, व्यवहार व लक्षण को अभ्यास के द्वारा सीखता हैं।
4. संस्कृति सीखने से विकसित होती हैं
व्यक्ति संस्कृति सीखता हैं अर्थात् यह जन्मजात गुण नही है। समाज मे रहकर व्यक्ति संस्कृति के विभिन्न पक्षों को अपनाता हैं।
5. संस्कृति संचरित होती हैं
संस्कृति सीखने से सम्बंधित होती है अतः इसका संचार सम्भव है। सांस्कृतिक प्रतिमान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को संचरित होती रहती है। इस प्रकार एक पीढ़ी संस्कृति का जितना विकास कर लेती है वह समग्र रूप मे अगली पीढ़ी को विरासत के रूप मे मिल जाता है। इसी विशेषता के कारण संस्कृति का रूप पीढ़ी दर पीढ़ी परिष्कृत होता जाता है। संस्कृति के संचार का सबसे मुख्य साधन भाषा हैं।
6. संस्कृति मानव आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं
संस्कृति की एक विशेषता यह भी हैं कि संस्कृति मानव आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। भोजन, यौन संतुष्टि मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएं है। इनकी संतुष्टि स्वतंत्र रूप से की जा सकती है और मर्यादित रूप मे भी। पहली विधि घोर बर्बता की सूचक हैं और जो अन्ततः व्यक्ति के लिए अहिकारी ही है। मर्यादित रूप संस्कृति का सूचक है जो पीढ़ियों के सामाजिक अनुभव (जैसे एक विवाह) के फलस्वरूप विकसित हुआ हैं और जो व्यक्ति के समूह के हितों की बेहतर पूर्ति का श्रेष्ठ साधन है।
7. संस्कृति मानवीय होती हैं
संस्कृति की एक विशेषता संस्कृति का मानवीय होना भी हैं। संस्कृति मानव समाज की मौलिक विशिष्टा है। पशु समाजों मे किसी प्रकार की संस्कृति नही होती। यह सत्य है कि पशु भी अनेक प्रकार के व्यवहार सीखते है, परन्तु उनका सीखना पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत का रूप नही लेता। भाषा के अभाव मे पशुओं मे संस्कृति का प्रश्न ही नही उठता।
8. संस्कृति समूह के लिए आर्दश होती है
किसी समूह के सदस्य अपनी संस्कृति के नियमों, मूल्यों व मान्यताओं को अपने जीवन का आर्दश मानते है और उन्हें जीवन मे प्राप्त करने का प्रयत्न करते है। वास्तव मे संस्कृति सामूहिक अनुभव से उद्भूत होती है। यह उन्हीं मूल्यों, मानको और लक्ष्यों को स्थापित करती है जो पीढ़ियों के अनुभवों के फलस्वरूप विकसित व वांछित होते हैं। वेद पूज्य हैं, सांसरिक आकर्षण मिथ्या है, धन, वैभव, यौवन का लोभ, विनाश का कारण हैं। इनका उतना ही सेवन करना चाहिये जो धर्मानुकूल अर्थात् जीवन के लिए आवश्यक है। चोरी करना पाप हैं, स्त्री मातृत्व और शक्ति की प्रतीक हैं। उसका सम्मान करना चाहिए, गुरू का आदर करना चाहिए, आदि हमारे जीवन के कुछ आर्दश है जिन्हे सदियों से अपने जीवन मे उतारने के लिए हम प्रयत्नशील रहे हैं।
9. सामाजिक विरासत
संस्कृति सामाजिक विरासत का वह लक्षण है जो हमने अपने पूर्वजों से सीखा है। मनुष्य संस्कृति को बिना किसी प्रयास के अचेतन मन से ही सीख लेता है। बिना संस्कृति के आदर्श को सीखे मनुष्य समाज के साथ सामंजस्य नही बना सकता है। समाज ऐसे व्यक्ति को स्वयं मे सम्मिलित नही करता है। अतः मनुष्य को सामाजिक विरासत के आदर्शों का अनुसरण करना होता है।
10. संस्कृति मानव-समाज का सार है
समाज के नैतिक, चारित्रिक एवं व्यावहारिक आदर्शों की झाँकी संस्कृति मे मिलती है। समाज की संस्कृति के मापदंड द्वारा किसी विशेष काल मे समाज के विकास को मापा जा सकता है। संस्कृति संपूर्ण मानवीय इतिहास का सार है क्योंकि इसमें समाज के संपूर्ण गुणों के इतिहास का निचोड़ सम्मिलित होता है।
11. संस्कृति भौतिक व अभौतिक दोनों ही होती है
संस्कृति के दो प्रकार होते है-- भौतिक और अभौतिक। भौतिक संस्कृति के अंतर्गत प्रत्यक्ष रूप से अवलोकन करने वाली वस्तुयें आती है जैसे-- घर, मकान, अचल संपत्ति। अभौतिक सांस्कृति के अंतर्गत आचार, विचार, कला एवं विश्वास जैसी वस्तुयें आती है।
12. संस्कृति में एकीकृत होने का गुण होता है
संस्कृति के अनेक पहलू होते हैं, वे पारस्परिक संबंद्ध व व्यवस्थित रहते है। वे अन्तःआश्रित व पारस्परिक सहयोगात्मक रूप से व्यवस्थित रहते है। संस्कृति मे जो भी नया तत्व सम्मिलित होता है, वह उनमें पूर्ण रूप से एकीभूत हो जाता है।
13. संस्कृति अधि-वैयक्तिक तथा सावयवी है
लिपर्ट के अनुसार अधि-वैयक्तिक होकर जैविकीय गुण सिखाती है जिसकी सहायता से व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी बन जाता है। इस प्रकार संस्कृति मानव की जीव रचना से अधिक महत्वपूर्ण है।
14. संस्कृति में सामंजस्यता करने की क्षमता होती है
परिवर्तनशीलता के साथ-साथ संस्कृति में अनुकूलन तथा सामंजस्यता का गुण भी विद्यमान होते है। व्यक्ति भौगोलिक पर्यावरण में सामंजस्यता स्थापित करता हुआ ही समाज में अपने व्यक्तित्व का विकास करता है। जैविकीय और सामाजिक पर्यावरण में सामंजस्यता स्थापित करने का कार्य संस्कृति का होता है।
15. संस्कृति संगठित होती हैं संस्कृति के अनेक पक्ष है परन्तु ये पक्ष परस्पर संगठित रहते है। संस्कृति के विभिन्न पक्ष परस्पर एक समग्र रूप बनाते है। इस प्रकार स्पष्ट है कि संस्कृति मे संगठन की प्रवृत्ति होती हैं।
मरडॉक ने संस्कृति की निम्नलिखित विशेषताएं बताई है--
1. संस्कृति सीखी जाती है।
2. संस्कृति हस्तान्तरित होती है, सामाजिक होती है।
3. संस्कृति एक आदर्श के रूप में होती है।
4. संस्कृति प्रसन्नतादायक होती है।
5. संस्कृति मे अनुकूलन की क्षमता होती है।
6. संस्कृति समन्वयकारी होती है।
7. संस्कृति अधिवयक्तिक, अधिसावयवी होती है।
8. संस्कृति आवश्यकतओं की पूर्ति का आधार होती है।
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संस्कृति के प्रमुख आयाम
संस्कृति के प्रमुख आयाम निम्नलिखित हैं--
1. संज्ञानात्मक
संज्ञानात्मक आयाम का सन्दर्भ हमारे द्वारा देखे या सुने गए को व्यवहार में लाकर उसे अर्थ प्रदान करने की प्रक्रिया से है। किसी नेता के कार्टून की पहचान करना अथवा अपने मोबाइल फोन की घण्टी को पहचानना इसके उदाहरण हैं। यह आयाम आदर्शात्मक एवं भौतिक आयाम की पहचान करने की तुलना में कठिन होता है। संज्ञान का अर्थ समझ से है। साक्षर समाजों में विचार किताबों तथा दस्तावेजों में दिए होते हैं जो पुस्तकालयों, संस्थाओं या संग्रहालयों में सुरक्षित रखे जाते हैं। निरक्षर समाजों में दन्तकथाएँ या जनश्रुतियाँ याद्दाश्त में रहती हैं तथा मौखिक रूप में हस्तान्तरित की जाती हैं। समकालीन विश्व हमें अत्यधिक रूप से लिखित, श्रव्य एवं दृश्य रिकॉर्ड पर विश्वास करने की छूट देता है।
2.आदर्शात्मक या मानकीय
आदर्शात्मक आयाम का सम्बन्ध आचरण के नियमों से है। इसमें लोकरीतियाँ, लोकाचार, प्रथाएँ, परिपाटियाँ तथा कानून आदि को सम्मिलित किया जाता है। ये वे मूल्य या नियम हैं जो विभिन्न सन्दर्भों में सामाजिक व्यवहार को दिशा-निर्देश देते हैं। समाजीकरण के परिणामस्वरूप हम प्राय: सामाजिक मानकों का अनुसरण करते हैं क्योंकि हम वैसा करने के आदी होते हैं। सभी सामाजिक मानकों के साथ स्वीकृतियाँ होती हैं जोकि अनुरूपता को बढ़ावा देती हैं। अन्य व्यक्तियों के पत्रों को न खोलना, निधन पर अनुष्ठानों का निष्पादन करना ऐसे ही आचरण के नियम हैं।
3. भौतिक
भौतिक आयाम में भौतिक साधनों के प्रयोग सम्बन्धी क्रियाकलाप सम्मिलित होते हैं। इसमें औजारों, तकनीकों, यन्त्रों, भवनों तथा यातायात के साधनों के साथ-साथ उत्पादन तथा सम्प्रेक्षण के उपकरण सम्मिलित होते हैं। नगरीय क्षेत्रों में चालित फोन, वादक यन्त्रों, कारों तथा बसों, ए.टी.एम. (स्वतः गणक मशीनों), रेफ्रिजरेटरों तथा संगणकों का दैनिक जीवन में व्यापक प्रयोग तकनीक पर निर्भरता को दर्शाता है। यहाँ तक कि ग्रामीण क्षेत्रों में ट्रांजिस्टर रेडियो का प्रयोग या उत्पादन बढ़ाने के लिए सिंचाई के लिए जमीन के नीचे से पानी ऊपर उठाने के लिए इलैक्ट्रिक मोटर पम्पों का प्रयोग तकनीकी उपकरणों को अपनाए जाने को दर्शाता है। इण्टरनेट पर चैटिंग करना भी इसका उदाहरण है। संस्कृति के उपर्युक्त तीनों आयामों के समग्र से ही संस्कृति का निर्माण होता है। व्यक्ति अपनी पहचान अपनी संस्कृति से ही करता है तथा संस्कृति के आधार पर ही अपने को अन्य संस्कृतियों के लोगों से अलग समझता है।
संस्कृति और समाज
समाज ऐसे व्यक्तियों के समूह से बना होता है जो प्रथाओं और प्रक्रियाओं के माध्यम से एक दूसरे से जुड़े होते हैं। मनुष्य के जीवन चक्र की सभी प्रक्रियाएँ समाज में ही निष्पन्न और विनियमित होती हैं। अतः व्यक्ति संस्कृति और समाज में प्रत्येक की अनिवार्य सत्ता है। ये तीनों तत्व एक दूसरे पर आपस में इस प्रकार से आश्रित हैं कि किसी भी एक को दूसरे तत्व के संदर्भ के बिना भली भांति समझा नहीं जा सकता। संस्कृति का अस्तित्व और उसका बने रहना ऐसे व्यक्तियों के समूह पर आश्रित होता है जिनसे मिलकर समाज बनता है।
मानव को सामान्यतः सामाजिक प्राणी कहा गया है। मानव की सामाजिक प्रवृत्ति विशेष रूप से अनन्य हो, ऐसी बात नहीं है। उदाहरणतः चीटियों और मधुमक्खियों का समाज वास्तविक में समाज ही तो है वन्य प्राणियों के चिम्पंजियों का समाज काफी हद तक मानव समाज के समान ही है। वे स्थायी रिश्ते बनाते हैं, समूह बनाकर घूमते हैं और शिकार करते हैं। उनके अधिकांश व्यवहार की प्रकृति सामाजिक ही है। संस्कृति केवल मानव समाज में ही पाई जाती है। दूसरे शब्दों में, संस्कृति के बगैर भी प्राणियों का समाज हो सकता है। फलस्वरूप गुण की दृष्टि से मनुष्य और पशु में अन्तर दशांने वाला तत्व उसकी सामाजिक प्रवृत्ति नहीं वरन् उसकी संस्कृति है । अनिवार्यतः मानव एक सांस्कृतिक प्राणी है।
वास्तविक जीवन में समाज और संस्कृति को अलग-अलग नहीं किया जा सकता। यद्यपि संस्कृति का संबंध अधिक व्यापक वर्ग से है तथापि समाज के बिना इसका अस्तित्व और कार्य निष्पादन संभव नहीं है। दूसरे शब्दों में, संस्कृति के लिए समाज का होना अनिवार्य है।
इसी प्रकार व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के रूप में मानवजाति पर आश्रित हुए बिना न तो समाज का अस्तित्व रह सकता है और न ही संस्कृति का में इसी प्रकार संस्कृति और सभ्यता के बीच परस्पर गहरा संबंध होता है। सभ्यता संस्कृति की ऐतिहासिक अवस्था का बोध कराती है। एक सभ्यता अपने विशिष्ट लक्षणों के द्वारा पहचानी जाती है जैसे नगरों और नागरीकरण द्वारा, व्यवसायिक कौशल द्वारा स्मारकीय संरचनाओं जैसे मंदिरों, भवनों और गुम्बदों द्वारा, वर्गों और वंशानुक्रम और लेखन के द्वारा मानव इतिहास में सभ्यता का सर्वप्रथम उदय ईसापूर्व चौथी शताब्दी में प्राचीन मेसोपोटेमिया में हुआ था।
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जवाब देंहटाएंBahut achhi jankari mili , very nice post
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