8/12/2023

सामाजिक परिवर्तन का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, प्रतिमान

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प्रश्न; सामाजिक परिवर्तन की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
अथवा", सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
अथवा", सामाजिक परिवर्तन क्या हैं? सामाजिक परिवर्तन को परिभाषित कीजिए। 
अथवा", सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया समझाए।
अथवा", सामाजिक परिवर्तन के प्रतिमान बताइए।
अथवा", सामाजिक परिवर्तन का अर्थ स्पष्ट करते हुए, सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएं लिखिए। 
अथवा", सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं। सामाजिक परिवर्तन के प्रतिमान बताइए। 
उत्तर--

सामाजिक परिवर्तन का अर्थ (samajik parivartan kya hai)

Samajik parivartan arth paribhasha visheshta pratiman;सामाजिक परिवर्तन मे दो शब्द है-- प्रथम सामाजिक और दूसरा परिवर्तन। सामाजिक शब्द से आशय है, समाज से सम्बंधित। मैकाइवर ने समाज को सामाजिक सम्बंधों का जाल बताया है।
परिवर्तन शब्द का प्रयोग हम बहुधा करते है, किन्तु उसके अर्थ के प्रति बहुत सचेत नही होते। परिवर्तन का अर्थ है किसी वस्तु, चाहे वह भौतिक हो अथवा अभौतिक, मे समय के साथ भिन्नता उत्पन्न होना। भिन्नता वस्तु के बाहरी स्वरूप मे हो सकती है अथवा उसके आन्तरिक संगठन, बनावट या गुण मे भी हो सकती है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। यह सर्वकालीन एवं सर्वव्यापी है। यह भौतिक एवं जैविक जगत मे हो सकता है अथवा सामाजिक एवं सांस्कृतिक जगत में।
सामाजिक परिवर्तन समाज से सम्बंधित होता है। कुछ विद्वानों के विचार मे सामाजिक ढांचे मे होने वाला परिवर्तन, सामाजिक परिवर्तन कहलाता है। इसके विपरीत, अन्य विद्वान सामाजिक सम्बंधों के अंतर को सामाजिक परिवर्तन कहते हैं।
सामाजिक परिवर्तन के सम्बन्ध मे लैंडिस का कहना हैं कि", निश्चित अर्थों मे सामाजिक परिवर्तन से आशय उन परिवर्तनों से है जो समाज मे अर्थात् सामाजिक संबंधों के ढांचे और प्रकार्यों मे होते है। किंग्सले डेविस ने भी सामाजिक परिवर्तन को सामाजिक संगठन अर्थात् सामाजिक संरचना एवं प्रकार्यों मे परिवर्तन के रूप मे स्पष्ट किया है।

सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा (samajik parivartan ki paribhasha)

विभिन्न विद्वानों ने सामाजिक परिवर्तन का प्रयोग भिन्न-भिन्न अर्थों में किया है। कुछ विद्वानों का ऐसा मानना है कि सामाजिक ढाँचे में होने वाला परिवर्तन ही सामाजिक परिवर्तन हैं, तो कुछ विद्वानों का ऐसा मानना है कि सामाजिक संबंधों और सामाजिक व्यवहार में होने वाले परिवर्तन को ही सामाजिक परिवर्तन कहा जाता हैं। लेकिन इनमें से जो भी हो "सामाजिक परिवर्तन तो समाज से ही संबंधित है। समाज सामाजिक संगठन, सामाजिक संबंध और सामाजिक ढाँचे का सम्मिलित रूप हैं। समाज के इन भागों में जब परिवर्तन होता हैं, तो इसे ही सामाजिक परिवर्तन माना जाता हैं।" विभिन्न समाजशास्त्रियों ने सामाजिक परिवर्तन की जो परिभाषाएं बताइए हैं, वह निम्नलिखित हैं--
जाॅनसन के अनुसार, " अपने मौलिक अर्थ मे, सामाजिक परिवर्तन का तात्पर्य होता है सामाजिक संरचना मे परिवर्तन।"
गिलन और गिलिन के अनुसार, " सामाजिक परिवर्तन जीवन की स्वीकृति विधियों मे परिवर्तन को कहते है। चाहे यह परिवर्तन भौगोलिक दशाओं मे परिवर्तन से हुआ हो अथवा सांस्कृतिक साधनों पर जनसंख्या की रचना अथवा सिध्दान्त मे परिवर्तन से हुआ हो अथवा ये प्रसार मे अथवा समूह के अन्दर आविष्कार से हुआ हों।"
डेविस के अनुसार," सामाजिक परिवर्तन से हम केवल उन्ही परिवर्तनों को समझते है, जो सामाजिक संगठन अर्थात समाज की संरचना और कार्यों से घटित होता है।" 
गिनसबर्ग के अनुसार," सामाजिक परिवर्तन से मैं सामाजिक संरचना मे परिवर्तन समझता हूं।" 
गर्थ तथा मिल्स के अनुसार," सामाजिक परिवर्तन के द्वारा हम उसे संकेत कहते है, जो समय के कार्यों, संस्थाओं अथवा उन व्यवस्थाओं मे होता है जो 'सामाजिक संरचना एवं उत्पत्ति' विकास एवं पतन से संबंधित होता है।" 
डासन और गेटिस के अनुसार," सांस्कृतिक परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन है, क्योंकि समस्त संस्कृति, अपनी उत्पत्ति, अर्थ और प्रयोग मे सामाजिक है।" 
मैकाइवर और पेज के अनुसार," समाजशास्त्री होने के नाते हमारी विशेष रूचि प्रत्येक रूप मे सामाजिक संबंध से है। केवल इन सामाजिक संबंधों मे होने वाले परिवर्तन को सामाजिक परिवर्तन कहते है।"
डाॅसन व गेटिस के अनुसार," सांस्कृतिक परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन है, क्योंकि समस्त संस्कृति अपनी उत्पत्ति, अर्थ और प्रयोगों मे सामाजिक है।" 
स्पेन्सर के अनुसार," सामाजिक परिवर्तन सामाजिक विकास है।" 
बी. कुप्पुस्वामी के अनुसार," सामाजिक परिवर्तन सामाजिक संरचना तथा सामाजिक व्यवहार मे परिवर्तन है।"
उपरोक्त सभी परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि सामाजिक परिवर्तन का क्षेत्र बहुत व्यापक है। समाज मे हमारे सभी व्यवहार किसी-न-किसी सामाजिक नियम से प्रभावित होते हैं हम अपने सामाजिक मूल्यों के अनुसार कुछ चीजों को अच्छा समझते हैं और कुछ को बुरा विभिन्न आयु, लिंग, नातेदारी और प्रतिष्ठा वाले व्यक्तियों से हमारे संबंध अलग-अलग तरह के होते हैं। इस प्रकार जब कभी भी इन सामाजिक नियमों, मूल्यों अथवा सामाजिक संबंधों मे परिवर्तन के तत्व स्पष्ट होने लगते हैं, तब सामाजिक व्यवस्था का रूप भी बदलने लगता हैं। परिवर्तन की इसी दशा को हम सामाजिक परिवर्तन कहते हैं।

सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएं (samajik parivartan ki visheshta)

विभिन्न विद्वानों ने सामाजिक परिवर्तन की अनेक विशेषताएं बताइए हैं, जो इसकी अवधारणा को और अधिक स्पष्ट करती हैं। सामाजिक परिवर्तन की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--
1. परिवर्तन-सामज का एक मौलिक तत्व है
परिवर्तन समाज का मौलिक तत्व है। सभी समाजो मे परिवर्तन निश्चय ही होता है। यह तो सम्भव है कि प्रत्येक समाज मे परिवर्तन की मात्रा भिन्न हो, परन्तु सामाजिक परिवर्तन के न होने कि कोई सम्भावना नही होती है। समाज निरन्तर परिवर्तनशील रहा है।
2. परिवर्तन की गति मे भिन्नता होती है 
परिवर्तन की गति मे भिन्नता पाई जाती हैं। समाज मे होने वाले परिवर्तन की गति, उस समाज के मूल्यों तथा मान्यताओं पर निर्भर करती है। परम्परात्मक समाज की तुलना मे आधुनिक समाज मे परिवर्तन अधिक होता है जिन्हे हम अधिक स्पष्ट रूप से देख भी सकते है।
3. सामाजिक परिवर्तन को मापना सम्भव नही है
सामाजिक परिवर्तन को मापना असम्भव है। भौतिक वस्तुओं मे होने वाले परिवर्तन का एक बार मापन हो सकता है। परन्तु अभौतिक वस्तुओं मे होने वाले परिवर्तन का मापन सम्भव नही है। अभौतिक वस्तुओं की प्रकृति गुणात्मक होती है। ये परिवर्तन अमूर्त होते है। अमूर्त तथ्यों का मापन सम्भव नही है। मनुष्य के विचार, मनोवृत्तियो तथा रीतियों का मापन सम्भव नही है।
4. सामाजिक परिवर्तन की निश्चित भविष्यवाणी नही की जा सकती
सामाजिक परिवर्तन के बारे मे निश्चित रूप से भविष्यवाणी नही की जा सकती। अधिक से अधिक हम इसके बारे मे अनुमान लगा सकते हैं।
5. सामाजिक परिवर्तन का चक्रवात तथा रेखीय रूप
सामाजिक परिवर्तन चक्रवात तथा रेखीय दो रूपो मे होता है। चक्रवात परिवर्तन मे पुन: वही स्थिति आ जाती है जो परिवर्तन से पूर्व आरंभ मे थी। उदाहरण के लिए, पैण्ड की मोहरी पहले चौड़ी बनायी जाती थी। कुछ समय पश्चात संकरी मोहरी की पैण्ड पहनी जाने लगी। अब पुनः चौड़ी मोहरी की पैण्ड पहनने का फैशन आया है। रेखीय परिवर्तन एक ही दिशा मे होता है। इसकी पुनरावृत्ति नही होती है।
6. सामाजिक परिवर्तन सार्वभौमिक है
सामाजिक परिवर्तन की एक विशेषता यह है कि सामाजिक परिवर्तन सार्वभौमिक होता हैं अर्थात् परिवर्तन सभी समाजो मे होता हैं। किसी समाज मे परिवर्तन धमी गति से होता है तो किसी समाज मे तीव्र गति से परिवर्तन होता हैं। विश्व की सभी समाजों मे परिवर्तन होता है।
7. परिवर्तन अनिश्चित होता है
सामाजिक परिवर्तन निश्चित नही होता यह अनिश्चित होता है। जैसे की पूर्व मे कहा गया हैं कि सामाजिक परिवर्तन की स्पष्ट भविष्यवाणी नही की जा सकती। परिवर्तन का समय, परिवर्तन की दिशा और परिवर्तन के परिक्रम सब कुछ अनिश्चित होता है।
8. सामाजिक परिवर्तन एक सामुदायिक घटना है 
सामाजिक परिवर्तन का संबंध किसी व्यक्ति विशेष अथवा समूह विशेष के जीवन मे होने वाले परिवर्तनों से नही है। सामाजिक परिवर्तन का संबंध पूरे समुदाय से होता है। इस प्रकार सामाजिक परिवर्तन की अवधारण सामाजिक है व्यक्तिगत नही। 
9. सामाजिक परिवर्तन एक जटिल तथ्य है 
सामाजिक परिवर्तन की प्रकृति गुणात्मक होती है। इसकी माप संभव नही है। अतः यह एक जटिल तथ्य है। किसी भी संस्कृति मे होने वाले परिवर्तनों को नाप-तौल नही सकते। अतः ऐसे परिवर्तनों को सरलतापूर्वक समझ नही सकते।

सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रियाएं

सामाजिक परिवर्तन की कुछ प्रक्रियाएं निम्नलिखित होती हैं-- 
1. क्रांति के रूप में 
क्रांति सामाजिक परिवर्तन का चरम स्वरूप होता है जो आकस्मिक, तीव्र तथा व्यापक होता हैं, यह राजनीतिक संगठन से शुरू होकर संपूर्ण सामाजिक संरचना एवं संगठन को प्रभावित करता है जिससे समाज में तीव्र सामाजिक परिवर्तन होता हैं। 
2. चक्रीय प्रक्रिया
इस प्रक्रिया में जहाँ से परिवर्तन शुरू होता है वहीं पर पुनः आना होता है। जैसे-- ॠतुओं एवं मौसमों में परिवर्तन। इसी तरह सामाजिक परिवर्तन भी एक चक्र के रूप में होता हैं। 
3. विकासवादी प्रक्रिया
सामाजिक परिवर्तन की यह उद्विकासवादी या विकासवादी प्रक्रिया निरंतर क्रियाशील रहती हैं, जिससे समाज में निरंतर क्रमिक सामाजिक परिवर्तन होता हैं। इस प्रक्रिया में आंतरिक तथा अस्पष्ट तत्व धीरे-धीरे अपने आप में स्वतः स्पष्ट होते जाते हैं तथा परिवर्तन लाते जाते हैं। 
4. अनुकूलन के रूप में 
अनुकूलन की प्रक्रिया के रूप में होने वाले सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया को समाज में समायोजन, अभियोजन, एकरूपता तथा सात्मीकरण के रूप में देखा जा सकता हैं। 
5. प्रगति के रूप में 
प्रगतिरूपी परिवर्तन वह परिवर्तन है जो समाज के सामाजिक मूल्यों, उद्देश्यों, लक्ष्यों इच्छाओं के अनुसार होते हैं, तथा जिनमें समाज का कल्याण या भलाई होती हैं। वर्तमान समय में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की उन्नति से समाज में प्रगति रूपी सामाजिक परिवर्तन अत्यधिक होता हैं।

सामाजिक परिवर्तन के प्रतिमान (samajik parivartan ke pratiman)

सामाजिक परिवर्तन के प्रतिमानों का अभिप्राय उन नियमों या रूप रेखाओं से है जिसके अंतर्गत परिवर्तन होते हैं। यह सामाजिक परिवर्तन का प्रारूप प्रस्तुत करते हैं अर्थात सामाजिक परिवर्तन किन-किन प्रारूपों में हो सकता है। साथ ही यह विभिन्न क्षेत्रों में परिवर्तन की शैली को भी बताते हैं।
मैकाइवर और पेज ने सामाजिक परिवर्तन के तीन प्रतिमानों का उल्लेख किया है जो इस प्रकार है- -
1. प्रथम (रेखीय प्रतिमान) (Linear Pattern)
यह प्रतिमान एक सीधी रेखा में होता है। रेखीय परिवर्तन या विकास उत्तरोत्तर क्रम में आगे की ओर बढ़ता है। जिसमें एक अवस्था से गुजर जाने के पश्चात पुनः उस अवस्था में वापस में नहीं आता है या उसमें अवनति (पतन) भी प्रायः नहीं होता है इसलिए इसे रेखीय प्रतिमान कहा जाता है। रेखीय परिवर्तनों का संबंध विज्ञान, प्रौद्योगिकी के आविष्कारों एवं उन्नति से होता है। इन क्षेत्रों में जैसे-जैसे नवीन आविष्कार होते हैं वैसे-वैसे परिवर्तन का सिलसिला आगे बढ़ता जाता है।
उदाहरणार्थ, हमने संचार साधनों में पहले हस्तलिखित पत्र, फिर तार टेलीग्राम तत्पश्चात टेलीफोन, मोबाइल तक परिवर्तन यात्रा देखी। यह रेखीय प्रतिमान के रूप है क्योंकि हम पुनः हस्तलिखित पत्र युग में नही जाएंगे।
अगर हम यातायात के साधन के रूप में रेलगाड़ी का उदाहरण ले तो सबसे पहले भाप के इंजन से चलने वाली रेलगाड़ियों का आविष्कार हुआ, फिर ईंधन इंजन से चलने वाली इसके बाद बिजली से चलने वाले इंजन वाली रेलगाड़ियां का। इससे भाप से चलने वाली रेल गाड़ियों को अप्रासंगिक बना दिया और पुनः उसका चलन में आना लगभग असंभव है।
2. द्वितीय (उतार-चढ़ाव प्रतिमान) (Fluctuating Pattern)
इस प्रतिमान के अनुसार परिवर्तन की प्रकृति लगातार एक ही दिशा में आगे बढ़ने की ही नहीं होती है बल्कि उतार चढ़ाव या ऊपर नीचे की ओर जाने की होती है। इसमें कुछ समय तो परिवर्तन प्रगति की ओर अर्थात ऊपर की ओर होता है और कुछ समय पश्चात उसमें हास्य होने लगता है और नीचे की ओर गमन करता है। इसीलिए इसे उतार-चढ़ाव वाला परिवर्तन भी कहा जाता है। इस प्रकार के परिवर्तन अर्थव्यवस्था की क्रियाओं, व्यापार, जनसंख्या के क्षेत्रों में प्रकट (दिखलायी) देते हैं। जनांकिकीय संक्रमण के सिद्धांत इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं। जिसमें जनसंख्या वृद्धि तेजी से होती है फिर उसमें स्थिरता आती है और एक निश्चित समय के बाद जनसंख्या में गिरावट होने लगती है।
3 तृतीय (चक्रीय प्रतिमान) (Cyclic Pattern)
इसके नाम से ही स्पष्ट होता है कि इसमें परिवर्तन का एक चक्र चलता है। इस प्रकार के परिवर्तन सामान्यतः फैशन, संस्कृति, सामाजिक मूल्यों और स्वतंत्रता के क्षेत्र में देखने को मिलते हैं। चक्रीय सिद्धांतकारों के अनुसार समाज में परिवर्तन का एक चक्र चलता है जिसमें परिवर्तन अपनी उत्पत्ति की अवस्था से प्रारंभ होते हुए पुनः घूम कर फिर कर वहीं आ जाता है। सोरोकिन का सांस्कृतिक सिध्दांत इसी प्रतिमान पर आधारित है।

सामाजिक परिवर्तन की दर

समाज में परिवर्तन हमेशा जारी रहता है, परन्तु उसकी दर हमेशा एक सी नहीं होती। अतीत काल में बदलाव की गति बहुत धीमी थी, परन्तु इस समय गति बहुत तेज है। बदलाव में तेजी आने की अनेक वजह हैं, जैसे विभिन्न प्रौद्योगिकियों के आविष्कार, सांस्कृतिक विसरण एवं सम्मिश्रण, सामाजिक क्रांतियां इत्यादी। सांस्कृतिक विचार चाहे भौतिक हो या अभौतिक दोनों ही प्रकार के सांस्कृतिक प्रभावों का तेजी सी प्रसार हुआ है। इसका कारण है बेहतर तकनीकों तथा बेहतर संपर्क के साधनों का आविष्कार। आधुनिक युग में बड़े पैमाने पर शिक्षा, मीडिया, बाजार तथा संपर्क संसाधनों के सरलीकरण एवं प्रसार से सामाजिक जीवन में तेजी से बदलाव आता जा रहा है। सामाजिक तथा सांस्कृतिक क्रांतियां सामाजिक परिवर्तन की गति तेज कर देती है। क्रन्तिकारी सामाजिक परिवर्तन समाज और राज्यों में ऐसे परिवर्तन लाते हैं जिनका प्रभाव व्यापक रूप से दिखने लगते हैं। समाजवाद, लोकतंत्र, स्वयं फैसला लेने की प्रवृतियों में तेजी आने से सामाजिक परिवर्तन की गति बढ़ जाती है।
इसके बावजूद सभी समाजों में परिवर्तन की गति और शैली एक जैसी नहीं होती। एक ही समाज में कही परिवर्तन की गति तेज होती है तो कही मंदी।
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7 टिप्‍पणियां:
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  1. Ashram vyavastha kya hai aashram vyavastha ki samajshastra mahatva ka varnan kijiye

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    1. बेनामी11/10/22, 6:50 pm

      Ye hum ko bhoot psand aaya or jo aap ne is ke bare me likha hai is se hum ko bhoot help hui dhanyawad

      हटाएं
  2. बेनामी8/6/22, 1:39 pm

    समाजिक रूपांतरण के बारे में बताइए

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  3. बेनामी29/8/22, 7:31 pm

    Samajik parivartun me samajik sanghadhan ki bhumika ko describe kare

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  4. बेनामी3/12/22, 4:15 pm

    Ek dam rayte
    answer

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  5. बेनामी24/11/23, 12:20 pm

    This answer is too much helpful and I like this vebsite.

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