8/17/2023

सामाजिक प्रगति का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं

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प्रश्न; सामाजिक प्रगति से आप क्या समझते हैं? सामाजिक प्रगति को परिभाषित कीजिए। 

अथवा", प्रगति का अर्थ बताते हुए, सामाजिक प्रगति की विशेषताएं लिखिए।

अथवा", सामाजिक प्रगति किसे कहते हैं? सामाजिक प्रगति की विशेषताओं का विवेचन कीजिए।

उत्तर--

सामाजिक का अर्थ (samajik pragati kaise kahate hain)

अत्यंत ही सरल शब्दों में प्रगति का अर्थ," प्रगति एक तरह का परिवर्तन ही हैं, यानि प्रगति परिवर्तन का ही एक स्वरूप हैं, लेकिन प्रत्येक परिवर्तन प्रगति नही होता। यानि बुरा परिवर्तन प्रगति नही होता। सिर्फ अच्छे परिवर्तन को हम प्रगति कहेंगे जिससे मानव की सुख-सुविधाओं में वृद्धि हो। हम उसे ही प्रगति कहेगे। यानि की ऐसा परिवर्तन जिससे की मानव की सुख सुविधाओं में वृद्धि हो, यानि की अच्छे परिवर्तन को हम प्रगति कहेंगे। लेकिन प्रगति में लाभ और हानि दोनों ही संभव है। ऐसा जरूरी नही है कि प्रगति से लाभ ही हो, प्रगति से कभी-कभी हानि भी हो सकती हैं। फिर भी प्रगति मे लाभ हमेशा अधिक ही होता हैं।  
भारत को स्वतंत्रा संग्राम से कितनी हानि उठानी पड़ी, स्वतंत्रता संग्राम के ना जाने कितने ही सेनानियों ने कितना कष्ट सहा और अपनी जान गवाई, इसके बाद ही भारत स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का प्रत्येक कदम प्रगति का ही एक रूप था। इसी प्रकार भारत को आर्थिक प्रगति पहुंचने के लिए भी अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा हैं, किन्तु अंतिम लक्ष्य में लाभ ही अधिक होता है, हानि कम होती हैं।
प्रगति मे भी परिवर्तन निहित है, पर यह परिवर्तन नियोजित एवं सामाजिक मूल्यों के अनुरूप होता है। प्रगति को अंग्रेजी में "progres" कहा जाता हैं। अंग्रेजी का "progress" शब्द लैटिन भाषा के "progredior" से बना है, जिसका अर्थ है "to step forward" अर्थात् "आगे बढ़ना"। इस तरह वांछीत लक्ष्य की ओर परिवर्तन एवं आगे बढ़ना प्रगति कहलाता है। लक्ष्य, स्थान व समाजों के अनुसार प्रगति की धारणा मे परिवर्तन पाया जाता है। एक समय मे जिसे प्रगति कहा जाता है, दुसरे समय मे उसी स्थिति को अवनति कहा जा सकता है।

सामाजिक प्रगति की परिभाषा (samajik pragati ki paribhasha)

ऑगबर्न एवं निमकाॅक, " प्रगति का अर्थ होता है, अच्छाई हेतु परिवर्तन और इसलिए प्रगति मे मूल्य-निर्धारण होता है।
हाॅर्नेल हार्ट के अनुसार ," सामाजिक प्रगति सामाजिक ढांचे मे वे परिवर्तन है, जो कि मानवीय कार्यों को मुक्त करें, प्रेरणा व सुविधा प्रदान करे तथा उसे संगठित करें।"
लमले के अनुसार," प्रगति परिवर्तन है। लेकिन यह इच्छित एवं मान्य दिशा में परिवर्तन है न कि किसी भी दिशा मे परिवर्तन।" 
वार्ड के अनुसार," प्रगति वह है जो मानव सुख में वृद्धि करे।" वार्ड की परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि मानव सुख में वृद्धि ही प्रगति का आधार हैं। 
जिन्सबर्ग के अनुसार," प्रगति का तात्पर्य उस दिशा में होना वाला विकास है जो सामाजिक मूल्यों का विवेक युत निराकरण प्रस्तुत करता हैं।" 
मैकाइवर के अनुसार," प्रगति का तात्पर्य केवल दिशा मात्र से नही है, बल्कि एक ऐसी दिशा की ओर अग्रसर होना है, जो अंतिम लक्ष्य की ओर ले जाता हो और जिसका निर्धारण क्रियाशील वैषयिक विचार से न होकर आदर्श द्वारा हुआ हो।" 
बर्गेस के अनुसार," कोई भी परिवर्तन या प्रस्तुत पर्यावरण के साथ अनुकरण जो व्यक्ति तथा समूह को किसी संगठित रूप से रहने की सफलता प्रदान करता है, उसे हम प्रगति का प्रतीक कह सकते हैं।" 
गुरविच और मूर के अनुसार," स्वीकृत मूल्यों के संदर्भ में इच्छित उद्देश्यों की ओर बढ़ना ही प्रगति हैं।" इस परिभाषा में प्रगति के तीन तत्व स्पष्ट किये गये हैं-- 
1. प्रगति आगे बढ़ना है, पीछे लौटने को प्रगति नहीं कहा जा सकता। 
2. इच्छित उद्देश्यों के अनुसार आगे बढ़ने को ही प्रगति कहा जायेगा। बिना उद्देश्यों के आगे बढ़ना प्रगति नहीं है। 
3. ये इच्छित उद्देश्य स्वीकृत मूल्यों के संदर्भ में हो अर्थात् समाज के मान्य मूल्यों के अनुसार किया गया परिवर्तन ही प्रगति है। वह परिवर्तन जो मान्य मूल्यों के अनुसार न हो, प्रगति नहीं हैं।

सामाजिक प्रगति की विशेषताएं (samajik pragati ki visheshta)

सामाजिक प्रगति की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--
1. परिवर्तन आवश्यक 
प्रगति की प्रथम विशेषता परिवर्तन हैं। प्रगति एक प्रकार परिवर्तन ही हैं। प्रगति में परिवर्तन जरूर होता हैं परिवर्तन के अभाव में प्रगति की कल्पना भी नही की जा सकती। लेकिन यह परिवर्तन किसी भी दिशा में नही हो सकता है। प्रगति में परिवर्तन एक निश्चित दिशा में होता हैं। 
2. इच्छित परिवर्तन 
जैसे की हमने आपको प्रगति के अर्थ में बताया है कि प्रगति एक प्रकार का परिवर्तन ही है। लेकिन यह परिवर्तन इच्छित होता है अर्थात् यह परिवर्तन इच्छानुसार होता हैं। 
3. निश्चित उद्देश्य 
प्रगति की माप निश्चित उद्देश्य से भी की जाती है। केवल वे ही परिवर्तन प्रगति के अंतर्गत आते हैं जो निश्चित उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किये जाते है। वह परिवर्तन जो उद्देश्यहीन होते है, प्रगति के अंतर्गत नहीं आते। 
4. प्रगति मूल्यों पर आधारित है 
सामाजिक प्रगति का घनिष्ठ सम्बन्ध सामाजिक मूल्यों से है। सामाजिक मूल्य ही किसी दशा को अच्छा या बुरा बताते हैं। अतः जिन लक्ष्यों को सामाजिक मूल्यों द्वारा उचित ठहराया जाता है उसे सामाजिक प्रगति कहा जाता है।
5. अस्थिरता 
प्रगति की एक मुख्य विशेषता उसकी अस्थिरता है। इसमें पर्यावरण के साथ-साथ परिवर्तन आता है। यही कारण है कि इसका सार्वभौमिक अर्थ निश्चित नहीं किया जा सकता हैं। 
6. प्रगति का संबंध केवल मनुष्य से हैं 
मनुष्यों के अतिरिक्त अन्य प्राणियों की भी प्रगति होती है, किन्तु इन प्राणियों का आगे कोई उद्देश्य या लक्ष्य नहीं होता है। अतः इसे प्रगति नहीं कहा जा सकता है। मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है, प्रगति का अर्थ केवल मानव समाज से ही लगाया जाता हैं। 
7. सामूहिक उन्नति 
सामाजिक प्रगति सभी मनुष्यों के सुख की वृद्धि करती हैं। इसमे सभी व्यक्तियों को लाभ होता है। इस तरह सामाजिक प्रगति सामूहिक उन्नति करती हैं। 
8. सचेत प्रयास 
सामाजिक प्रगति स्वचालित नहीं होती है। इसके लिए मनुष्यों को लगातार प्रयास करना पड़ता हैं। यह सामूहिक प्रयासों पर आधारित होती हैं। 
9. प्रगति तुलनात्मक है 
प्रगति की अवधारणा तुलनात्मक है अर्थात् समय और स्थान के अनुसार यह बदलती रहती है। एक समाज में जनसंख्या की वृद्धि प्रगति मानी जा सकती है तो दूसरे समाज में नहीं।
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