प्रश्न; सामाजिक उद्विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक उद्विकास को परिभाषित कीजिए।
अथवा", सामाजिक उद्विकास का अर्थ बताते हुए, सामाजिक उद्विकास की विशेषताएं बताइए।
अथवा", सामाजिक उद्विकास किसे कहते हैं?
उत्तर--
सामाजिक उद्विकास का अर्थ (samajik udvikas kya hai)
उद्विकास का अर्थ 'प्रकट होना या विकसित होना' हैं अर्थात् किसी वस्तु के बाहर की ओर फैलने को उद्विकास कहा जा सकता हैं। सामाजिक उद्विकास का अर्थ समाज के बाहर की ओर फैलाव से है। समाज सामाजिक संबंधों का जाल हैं। समाज अनेक सामाजिक संस्थाओं के योग का नाम हैं। इस प्रकार सामाजिक उद्विकास का तात्पर्य संबंधों के विकास से और सामाजिक संस्थाओं के विकास से हैं।
वैज्ञानिक दृष्टि से उद्विकास ऐसी प्रक्रिया हैं जिसमें एक सीधी-सादी सरल-वस्तु क्रमिक परिवर्तन द्वारा जटिल रूप धारण कर लेती हैं। जैसे बीज से वृक्ष। इस प्रकार जब किसी वस्तु के गुण 'ढांचे व कार्य में एक निश्चित दिशा की ओर निरंतर परिवर्तन हो तो उसे हम उद्विकास कहते हैं। अतः उद्विकास में किसी वस्तु में परिवर्तन समता से विषमता की ओर होता हैं, इससे वस्तु की जटिलता में वृद्धि होती हैं।
परिवर्तन के परिणामस्वरूप जो विभिन्न स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं उसमें उद्विकास भी एक है। डार्विन तथा स्पेंसर ने सामाजिक उद्विकास को उसी रूप मे देखा है जिस रूप मे मानव शरीर का उद्विकास होता है। समाज और संस्कृति में उद्विकास किन्हीं निश्चित नियमों के अन्तर्गत होता रहता है। जब परिवर्तन मे दिशा भी नियत हो तो उसे उद्विकास से सम्बोधित किया जाता है ।
परिवर्तन + दिशा = उद्विकास
(Change + Direction ) = (Evolution)
जिस प्रकार विभिन्न वस्तुओं में उद्विकास होता रहता है उसी प्रकार समाज भी विभिन्न उद्विकास स्तरों से गुजरता है। Evolution शब्द की उत्पत्ति लेटिन के evolvere शब्द से हुई है, जिसका अर्थ होता है 'प्रकट करना' अथवा क्रमिक उन्नति करना। उद्विकास का सम्बन्ध उस वृद्धि या परिवर्तन से है जो कि वस्तुओं के आन्तरिक गुणों के कारण होता है। मैकाइवर तथा पेज ने 'सोसायटी' मे लिखा है कि जब हम निरन्तरता को ही नहीं बल्कि परिवर्तन की दिशा को भी व्यक्त करते हैं तो उसे उद्विकास कहते हैं। वैज्ञानिक तो उन्हीं तत्त्वो का अध्ययन करता है जिसमें उद्विकास के गुण होते है। उद्विकास की प्रक्रिया के कारण एक वस्तु सरलता से जटिलता की तरफ अग्रसारित होती है। उद्विकास के कारण वस्तु के अन्तर्निहित गुण और अंग प्रस्फुटित होकर उसके आकार और रचना में परिवर्तन लाते हैं । उद्विकास के कारण वस्तुओं के कार्यों मे भी परिवर्तन आता है। किसी वस्तु के अंग और कार्य जो स्पष्ट नहीं थे उद्विकास के कारण स्पष्ट हो जाते है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि उद्विकास वह परिवर्तन है जिसके कारण एक स्थिति का रूपान्तरण इस प्रकार का होता है जिससे कि उसके सभी अंग प्रत्यंग, गुण तथा कार्य अपनी-अपनी दिशा मे प्रस्फुटित होकर साफ-साफ दिखाई देने लगते हैं। उद्विकास में जो परिवर्तन होता है उसका सम्बन्ध सामाजिक मूल्यों से नहीं होता। दूसरे शब्दो मे कहा जा सकता है कि आदर्शात्मक सामाजिक मूल्य उद्विकास के परिवर्तन को नियन्त्रित नही करते बल्कि किसी भी वस्तु मे परिवर्तन स्वतः हो जाता है और वह मनचाही दिशा अपनाता है। यदि उस वस्तु मे अन्तनिहित गुण अधिक होते हैं जिनके कारण वह उद्विकास हुआ तो परिवर्तन की गति तीव्र हो जाती है। यदि उद्विकास की शक्ति कम है तो उस वस्तु के अंगो मे परिवर्तन भी धीरे-धीरे होगा। उद्विकास धीरे-धीरे तथा स्वतः होता है। उद्विकास के परिणामस्वरूप वस्तु की विकसित दिशा का स्वरूप प्रगतिशील अथवा ह्रसमय होगा, इसका निर्धारण उस समाज के सामाजिक मूल्य करते हैं। उद्विकास के परिणामस्वरूप वस्तुओं का जो नया रूप सामने आता हैं वह सदैव ही जटिल होगा , इस विचार को बहुत से समाजशास्त्री नही मानते।
उद्विकास की परिभाषा (samajik udvikas ki paribhasha)
विभिन्न विद्वनों ने सामाजिक उद्विकास को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया हैं--
स्पेंसर के अनुसार," उद्विकास कुछ तत्वों का एकीकरण तथा उससे संबंधित वह गति हैं जिसके दौरान कोई तत्व एक अनिश्चित असंबद्ध समानता से निश्चित संबद्व भिन्नता में बदल जाता है अर्थात उद्विकास परिवर्तन का ऐसा स्वरूप है जिसकी मान्यता है कि समाज में परिवर्तन एक निश्चित क्रम एवं अवस्था में होता हैं।
मैकाइवर और पेज के अनुसार," जब परिवर्तन में सिर्फ निरन्तरता ही नहीं होती, बल्कि दिशा भी होती है, तब हमारा अभिप्राय उद्विकास होता है।"
ऑगबर्न और निमकाॅफ के अनुसार," उद्विकास केवल निश्चित दिशा में परिवर्तन हैं।"
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि उद्विकास किसी वस्तु की आन्तरिक शक्यियों के कारण एक विशेष दिशा में होने वाला परिवर्तन हैं। इससे वस्तु में भिन्नता के साथ-साथ जटिलता में भी वृद्धि होती हैं।
सामाजिक उद्विकास की विशेषताएं (samajik udvikas ki visheshta)
सामाजिक उद्विकास की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--
1. सामाजिक उद्विकास परिवर्तन का एक स्वरूप हैं। सामाजिक उद्विकास में निरंतर परिवर्तन शामिल हैं।
2. सामाजिक उद्विकास का अर्थ संपूर्ण ब्रह्माण्ड में होने वाले विकास और परिवर्तन से हैं।
3. उद्विकास एक तटस्थ प्रक्रिया हैं। इसका संबंध अच्छाई बुराई से नही हैं।
4. उद्विकास एक निरंतर प्रक्रिया हैं अर्थात् यह कभी रूकता नहीं हैं।
5. सामाजिक उद्विकास की दिशा का अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
6. सामाजिक उद्विकास की प्रक्रिया समाज में कुछ निश्चित स्तरों से होकर गुजरती हैं।
7. सामाजिक उद्विकास की प्रकृति प्रगतिशील होती हैं।
8. सामाजिक उद्विकास सरलता से जटिलता की ओर होता हैं।
9. सामाजिक उद्विकास में परिवर्तन समाज के आंतरिक गुणों के कारण होता हैं।
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कुछ भी स्पष्ट नही हुआ
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