उद्विकास और प्रगति में अंतर
प्रारंभ में विद्वान उद्विकास और प्रगति में कोई अंतर नहीं मानते है और इन दोनों को एक ही समझा था, किन्तु उद्विकास और प्रगति में अंतर हैं। दोनों एक-दूसरे से भिन्न परिवर्तन के रूप हैं। उद्विकास और प्रगति में निम्नलिखित अंतर हैं--
1. उद्विकास वैज्ञानिक धारण हैं, जबकि मैकाइवर और पेज ने प्रगति को नैतिक धारणा माना हैं अर्थात् इसके द्वारा यह निश्चित किया जाता है कि क्या प्रगति है और क्या प्रगति नही है? इसका संबंध सामाजिक मूल्यों से हैं। अतः प्रगति सामाजिक धारणा हैं।
2. उद्विकास एक निश्चित दिशा में होने वाला परिवर्तन है। जबकि प्रगति अच्छे उद्देश्य के लिए होने वाला परिवर्तन हैं।
3. उद्विकास अपने-आप ही हो जाता हैं इसके लिए प्रयत्न नही करने होते। जबकि प्रगति अपने-आप नही होती। इसके लिए प्रयत्न करना पड़ता हैं।
4. उद्विकास का क्षेत्र व्यापक होता है। जबकि प्रगति का क्षेत्र सीमित होता है क्योंकि प्रत्येक परिवर्तन प्रगति नही कहलता हैं।
5. उद्विकास का रूप हमेशा एक-सा रहता हैं। जबकि प्रगति की धारणा देशकाल के अनुसार बदलती रहती हैं।
6. उद्विकास का आधार प्राणिशास्त्रीय नियम है। प्रगति का आधार सामाजिक मूल्य एवं आदर्श हैं।
7. उद्विकास का संबंध चेतन वस्तुओं से है, जैसे-- मनुष्य, पशु और इसके शरीर में होने वाला परिवर्तन। जबकि प्रगति का संबंध अचेतन वस्तुओं से हैं, जैसे घड़ी, रेडियों, मोटर आदि।
8. उद्विकास 'वृद्धि' की तरफ संकेत करता हैं। जबकि प्रगति से तात्पर्य सामाजिक जीवन के गुणों की वृद्धि से होता हैं।
9. उद्विकास की प्रक्रिया सरल से जटिल की तरफ चलती हैं। जबकि प्रगति में ऐसा नहीं होता हैं।
10. उद्विकास की धारणा प्रत्येक काल और समाज में करीब-करीब एक-जैसी होती हैं, किन्तु प्रगति की धारणा विभिन्न कालों और समाजों में अलग-अलग है, जिसे भारतीय प्रगति कहते है, उसे यूरोपवासी अवनति कह सकते हैं।
11. उद्विकास की प्रक्रिया समाज के सदस्यों के दुःख की चिंता किये बगैर चलती रहती है। जबकि वार्ड के अनुसार प्रगति का कार्य मानवीय सुखों में वृद्धि करना हैं।
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