प्रश्न; सामाजिक समूह को परिभाषित कीजिए। इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा" सामाजिक समूह की अवधारणा को समझाइए।
अथवा" सामाजिक समूह क्या हैं? सामाजिक समूह को परिभाषित कीजिए।
अथवा" सामाजिक समूह से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रकृति का वर्णन कीजिए।
उत्तर--
सामाजिक समूह किसे कहते है? (samajik samuh kya hai)
मनुष्य सामाजिक प्राणी तो हैं, वह भौतिक प्राणी भी हैं। उसकी अनन्त आवश्यकताएं हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति वह अपने प्रयासों मे नही कर सकता हैं, कारण उसके पास साधन और शक्ति सीमित हैं। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जब व्यक्ति साथ-साथ प्रयास करते हैं, तो वे समूह का निर्माण करते हैं। सामाजिक समूह मानव की स्वाभाविक प्रवृत्ति हैं। वह समूह के बिना रह भी नही सकता हैं। जिस प्रकार मछली पानी से अलग जिन्दा नही रह सकती, ठीक उसी प्रकार व्यक्ति समूह से अलग अपने अस्तित्व की रक्षा नही कर सकता हैं।
सामाजिक समूह का अर्थ (samajik samuh ka arth)
समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से जब दो या दो से अधिक व्यक्ति सामान्य उद्देश्य के लिए एक-दूसरे से संबंध स्थापित करते है और प्रभावित होते है तो व्यक्तियों के ऐसे संग्रह को सामाजिक समूह कहा जाता हैं।
शाब्दिक अर्थ में, सामाजिक समूह दो शब्दों से मिलकर बना हैं। सामाजिक+समूह। सामाजिक, समाज से सम्बंधित। समूह, दो या दो से अधिक। इस प्रकार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के संगठन को सामाजिक समूह कहते हैं।
समाजशास्त्र मे समूह से आशय दो या अधिक व्यक्तियों के मात्र संग्रह से ही नही होता। जैसा कि मैकाइवर व पेज का कहना है कि समूह से हमारा आशय व्यक्तियों के किसी भी ऐसे संग्रह से है जो एक दूसरे के साथ सामाजिक संबंधों मे लाये गये हो। इस प्रकार समाजशास्त्र मे समूह से आशय कम से कम दो या अधिक व्यक्ति और उनमे सामाजिक संबंध होने से हैं। सामाजिक संबंध से तात्पर्य हैं-- व्यक्तियों मे संपर्क (चाहे शारीरिक निकटता का हो अथवा मानसिक निकटता का) और उनमें पारस्परिक संदेश (अथवा प्रभाव) का पाया जाना। समूह मे व्यक्ति एक दूसरे के प्रति जागरूक होते हैं।
समाजशास्त्र मे समूह से आशय दो या अधिक व्यक्तियों के मात्र संग्रह से ही नही होता। जैसा कि मैकाइवर व पेज का कहना है कि समूह से हमारा आशय व्यक्तियों के किसी भी ऐसे संग्रह से है जो एक दूसरे के साथ सामाजिक संबंधों मे लाये गये हो। इस प्रकार समाजशास्त्र मे समूह से आशय कम से कम दो या अधिक व्यक्ति और उनमे सामाजिक संबंध होने से हैं। सामाजिक संबंध से तात्पर्य हैं-- व्यक्तियों मे संपर्क (चाहे शारीरिक निकटता का हो अथवा मानसिक निकटता का) और उनमें पारस्परिक संदेश (अथवा प्रभाव) का पाया जाना। समूह मे व्यक्ति एक दूसरे के प्रति जागरूक होते हैं।
सामाजिक समूह की परिभाषा ( samajik samuh ki paribhasha)
ऑगबर्न तथा निमकाॅफ, "जब दो या दो से अधिक व्यक्ति एक साथ मिलकर रहे और एक दूसरे पर प्रभाव डालने लगें तो हम कह सकते हैं कि उन्होंने समूह का निर्माण कर लिया हैं।" मैकाइवर और पेज, "समूह से हमारा तात्पर्य मनुष्य के किसी भी ऐसे संग्रह से है जो सामाजिक सम्बन्धों द्वारा एक दूसरे से बंधे हों।"
शेरिफ एवं शेरिफ, " समूह एक सामाजिक इकाई है, जिसका निर्माण ऐसे व्यक्तियों से होता हैं, जिनके बीच कम या अधिक मात्रा मे निश्चित स्थिति एवं कार्य विषयक सम्बन्ध हो।"
बोगार्डस, " समूह किसी वस्तु की इकाइयों की संख्या है, जो एक-दूसरे के निकट स्थित हैं।
फेयरचाइल्ड, " दो या अधिक व्यक्तियों का संग्रह समूह है, जिनके बीच स्थापित मनोवैज्ञानिक अन्त: क्रिया प्रतिमान होता हैं, जो उसके सदस्यों द्वारा तथा सामान्यतया दूसरों के द्वारा भी, उसके विशिष्ट सामूहिक व्यवहार के कारण एवं संन्धि के रूप मे स्वीकृत किया जाता हैं।"
कैटेल, "समूह उन जमात को कहते हैं, जिसमे प्रत्येक व्यक्ति को कुछ आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सभी सदस्यों का सहयोग लिया जाये।
विलियम्स के शब्दों में," सामाजिक समूह ऐसे व्यक्तियों का एकत्रीकरण हैं, जो एक-दूसरे के साथ क्रिया करते है इस पारस्परिक क्रिया की एक इकाई के रूप में ही अन्य सदस्यों द्वारा पहचाने जाते हैं।"
ए. स्माल के अनुसार," समूह का अर्थ अधिक या कम ऐसे व्यक्तियों से हैं, जिनके बीच इस तरह के संबंध पाए जाते हैं कि उन्हें एक सम्बद्ध इकाई के रूप देखा जाने लगे।"
ओल्सेन ने समूह की प्रकृति को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि," सामाजिक समूह एक प्रकार का संगठन हैं, जिसके सदस्य एक-दूसरे के प्रति जागरूक होते हैं और वैयक्तिक रूप से एक-दूसरे से अपनी एकरूपता स्थापित करते हैं।"
शेरिफ एवं शेरिफ, " समूह एक सामाजिक इकाई है, जिसका निर्माण ऐसे व्यक्तियों से होता हैं, जिनके बीच कम या अधिक मात्रा मे निश्चित स्थिति एवं कार्य विषयक सम्बन्ध हो।"
बोगार्डस, " समूह किसी वस्तु की इकाइयों की संख्या है, जो एक-दूसरे के निकट स्थित हैं।
फेयरचाइल्ड, " दो या अधिक व्यक्तियों का संग्रह समूह है, जिनके बीच स्थापित मनोवैज्ञानिक अन्त: क्रिया प्रतिमान होता हैं, जो उसके सदस्यों द्वारा तथा सामान्यतया दूसरों के द्वारा भी, उसके विशिष्ट सामूहिक व्यवहार के कारण एवं संन्धि के रूप मे स्वीकृत किया जाता हैं।"
कैटेल, "समूह उन जमात को कहते हैं, जिसमे प्रत्येक व्यक्ति को कुछ आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सभी सदस्यों का सहयोग लिया जाये।
विलियम्स के शब्दों में," सामाजिक समूह ऐसे व्यक्तियों का एकत्रीकरण हैं, जो एक-दूसरे के साथ क्रिया करते है इस पारस्परिक क्रिया की एक इकाई के रूप में ही अन्य सदस्यों द्वारा पहचाने जाते हैं।"
ए. स्माल के अनुसार," समूह का अर्थ अधिक या कम ऐसे व्यक्तियों से हैं, जिनके बीच इस तरह के संबंध पाए जाते हैं कि उन्हें एक सम्बद्ध इकाई के रूप देखा जाने लगे।"
ओल्सेन ने समूह की प्रकृति को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि," सामाजिक समूह एक प्रकार का संगठन हैं, जिसके सदस्य एक-दूसरे के प्रति जागरूक होते हैं और वैयक्तिक रूप से एक-दूसरे से अपनी एकरूपता स्थापित करते हैं।"
ग्रीन के अनुसार समूह की परिभाषा, " समूह व्यक्तियों का संग्रह हैं, जो स्थायी हैं, जिसके एक या अधिक सामान्य हित या क्रियाएँ हैं, तथा जो संगठित हैं।
सामाजिक समूह के प्रत्येक सदस्य को अन्य सदस्यों तथा अपने समूह के प्रति जागरूक होना चाहिये। पारस्परिक जागरूकता से सामाजिक सम्बन्ध विकसित होते हैं।6. मनुष्यों का संग्रह
सामाजिक समूह की सबसे प्रथम विशेषता यह हैं कि इसमे मनुष्यों का संग्रह होना आवश्यक हैं। सामाजिक समूह के निर्माण के लिए कम से कम दो मनुष्यों का संग्रह होना आवश्यक हैं। केवल एक व्यक्ति की उपस्थिति को समूह नही कहा जा सकता।
7. सामाजिक संबंध
इसे पारस्परिक सम्बन्ध भी कहा जाता हैं। इसका तात्पर्य यह हैं कि समूह के सदस्यों मे पारस्परिक सम्बन्ध का होना अनिवार्य है। पारस्परिक सम्बन्ध से उनमे चेतना का विकास होता हैं। यह चेतना सामाजिक सम्बन्धों के निर्माण और विकास मे सहायक होती है।
8. एकता की भावना
सामाजिक समूह के सदस्यों मे एकता पायी जाती हैं। इस एकता का आधार चेतना होती हैं। यह चेतना दो प्रकार की होती हैं-- 1. चेतन एकता, 2. अचेतन एकता।
9. सदस्यों का पारस्परिक आदान-प्रदान
सामाजिक समूह के अन्तर्गत समूह के सभी सदस्यों के मध्य आदान-प्रदान होना भी आवश्यक हैं। एक ही समूह के सदस्यों मे विचारों एवं वस्तुओं का आदान-प्रदान हुआ करता हैं।
10. समूह की सदस्यता ऐच्छिक होती हैं
सामान्य रूप से स्वीकार किया जाता है कि मनुष्य स्वभाव से ही सामूहिक प्रवृत्ति का होता है तथा अनिर्वाय रूप से विभिन्न समूहों का सदस्य होता है। परन्तु इसके साथ यह भी सत्य है कि यह अनिवार्य नही कि कोई व्यक्ति किस-किस समूह का सदस्य होगा? वास्तव मे, विशिष्ट समूहों की सदस्यता व्यक्ति के लिये ऐच्छिक होती हैं।14. एक निश्चित आधार
यहाँ मौलिक प्रश्न यह पैदा होता है कि समूहों का निर्माण किस आधार पर होता है? प्रत्येक समूह मे निर्माण के मूल मे कुछ निश्चित आधार होते है। उदाहरण के लिए ये आधार हैं--- रक्त सम्बन्ध, शारीरिक तथा मानसिक समानताएं, आवश्यकताएं, संख्या आदि।
उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि जब व्यक्ति एक-दूसरे से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संबंधों के आधार पर स्वयं को एक पृथक इकाई के रूप में अनुभव करते हैं तथा एक-दूसरे को सहयोग देना अपने दायित्व के रूप में देखने लगते हैं, तब व्यक्तियों की इसी समग्रता को एक सामाजिक समूह कहा जाता हैं।
सामाजिक समूह के सभी सदस्यों के हित प्राय: समान होते हैं। सामान्य हित होने से समूह का स्थायित्व बढ़ता हैं।
सामाजिक समूह की विशेषताएं अथवा पकृति (samajik samuh ki visheshta)
सामाजिक समूह की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--
1. समान्य हितसामाजिक समूह के सभी सदस्यों के हित प्राय: समान होते हैं। सामान्य हित होने से समूह का स्थायित्व बढ़ता हैं।
2. दो या अधिक व्यक्ति
एक सामाजिक समूह व्यक्तियों का संग्रहण होता है अर्थात् एक व्यक्ति समूह का निर्माण नहीं कर सकता। इस प्रकार दो या दो से अधिक व्यक्ति समूह के निर्माण के लिए आवश्यक होते हैं।
3. सदस्यों की पारस्परिक जागरूकतासामाजिक समूह के प्रत्येक सदस्य को अन्य सदस्यों तथा अपने समूह के प्रति जागरूक होना चाहिये। पारस्परिक जागरूकता से सामाजिक सम्बन्ध विकसित होते हैं।
4. प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संपर्क
समूह के सभी सदस्यों में प्रत्यक्ष संपर्क होना आवश्यक नहीं हैं। छोटे समूहों में तो प्रत्यक्ष संपर्क संभव हैं। जैसे-- परिवार, खेल समूह आदि। जबकि बड़े समूहों में अप्रत्यक्ष संपर्क पाया जाता हैं। जैसे-- जाति समूह, वर्ग समूह आदि।
5. अनिश्चित आकार
सामाजिक समूह का कोई निश्चित आकार नहीं होता। इसका निर्माण दो-तीन व्यक्तियों को लेकर हजारों-लाखों व्यक्तियों तक से हो सकता हैं। वर्तमान युग में जैसे-जैसे व्यक्तियों के संबंधों का दायरा बढ़ता जा रहा हैं, सामाजिक समूहों के आकार में भी वृद्धि होने लगी हैं।
सामाजिक समूह की सबसे प्रथम विशेषता यह हैं कि इसमे मनुष्यों का संग्रह होना आवश्यक हैं। सामाजिक समूह के निर्माण के लिए कम से कम दो मनुष्यों का संग्रह होना आवश्यक हैं। केवल एक व्यक्ति की उपस्थिति को समूह नही कहा जा सकता।
7. सामाजिक संबंध
इसे पारस्परिक सम्बन्ध भी कहा जाता हैं। इसका तात्पर्य यह हैं कि समूह के सदस्यों मे पारस्परिक सम्बन्ध का होना अनिवार्य है। पारस्परिक सम्बन्ध से उनमे चेतना का विकास होता हैं। यह चेतना सामाजिक सम्बन्धों के निर्माण और विकास मे सहायक होती है।
8. एकता की भावना
सामाजिक समूह के सदस्यों मे एकता पायी जाती हैं। इस एकता का आधार चेतना होती हैं। यह चेतना दो प्रकार की होती हैं-- 1. चेतन एकता, 2. अचेतन एकता।
9. सदस्यों का पारस्परिक आदान-प्रदान
सामाजिक समूह के अन्तर्गत समूह के सभी सदस्यों के मध्य आदान-प्रदान होना भी आवश्यक हैं। एक ही समूह के सदस्यों मे विचारों एवं वस्तुओं का आदान-प्रदान हुआ करता हैं।
10. समूह की सदस्यता ऐच्छिक होती हैं
सामान्य रूप से स्वीकार किया जाता है कि मनुष्य स्वभाव से ही सामूहिक प्रवृत्ति का होता है तथा अनिर्वाय रूप से विभिन्न समूहों का सदस्य होता है। परन्तु इसके साथ यह भी सत्य है कि यह अनिवार्य नही कि कोई व्यक्ति किस-किस समूह का सदस्य होगा? वास्तव मे, विशिष्ट समूहों की सदस्यता व्यक्ति के लिये ऐच्छिक होती हैं।
11. ऐच्छिक सदस्यता
अधिकांश सामाजिक समूहों की सदस्यता ऐच्छिक ही होती हैं। व्यक्ति अपनी रूचि, इच्छा और योग्यता के आधार पर किसी समूह की सदस्यता को ग्रहण कर सकता है अथवा उसकी सदस्यता छोड़ सकता हैं। वह एक से अधिक समूहों की सदस्यता एक समय में ग्रहण कर सकता हैं परन्तु कुछ समूह जैसे-- परिवार, जाति, प्रजाति आदि की सदस्यता अनिवार्य होती हैं।
12. नियंत्रण की व्यवस्था
प्रत्येक समूह सदस्यों के व्यवहारों को नियंत्रित करने के लिये औपचारिक या अनौपचारिक नियंत्रण के साधनों को अपनाता हैं। यह नियंत्रण प्रथा, परम्परा, रूढ़ि आदि अनौपचारिक साधनों के द्वारा अथवा नियम, कानून आदि औपचारिक साधनों के द्वारा लागू किया जाता हैं।
13. कार्य विभाजन
समूह के निर्माण में कोई न कोई उद्देश्य अवश्य होता है। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु समूह के सदस्यों के बीच कार्य-विभाजन किया जाता हैं।
यहाँ मौलिक प्रश्न यह पैदा होता है कि समूहों का निर्माण किस आधार पर होता है? प्रत्येक समूह मे निर्माण के मूल मे कुछ निश्चित आधार होते है। उदाहरण के लिए ये आधार हैं--- रक्त सम्बन्ध, शारीरिक तथा मानसिक समानताएं, आवश्यकताएं, संख्या आदि।
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Sir reference group pr hidi mebi notes bna ii ee na sir
जवाब देंहटाएंसमूह
जवाब देंहटाएंGood
जवाब देंहटाएंVery helpful for me Thankyou sir
जवाब देंहटाएंI know very easy thnq
हटाएंसामाजिक समूह की परिभाषाएं एवं विशेषताएं
जवाब देंहटाएंsamajik samuh ke prakar bhi likhiye ,aapke articles bhoit helpful hote hai
जवाब देंहटाएंSmajik smuh
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