6/20/2020

द्वितीयक समूह किसे कहते है? अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं एवं महत्व

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द्वितीयक समूह किसे कहते है? द्वितीयक समूह का अर्थ 

प्रथामिक समूह के विपरीत विशेषताओं वाले समूह को द्वितीयक समूह कहा जाता हैं। द्वितीयक समूह ऐसे समूह है जिनमें घनिष्ठता का पूरा अभाव रहता है और आमतौर पर अधिकतर अन्य प्राथमिक विशेषताओं का भी अभाव होता हैं। किंग्सले डेविस की मान्यता है कि द्वितीयक समूह वे समूह है जो करीब-करीब सभी बातों मे प्राथमिक समूहों के विपरीत होते हैं। द्वितीयक समूह अत्यंत विस्तृत क्षेत्र मे फैसे हुए होते हैं, इसीलिए सदस्यों मे शारीरिक निकटता का प्रश्न ही नही उठता हैं। आकार मे बड़े होने कारण सभी सदस्य एक-दूसरे को नही जानते।

द्वैतीयक समूह उदाहरण (Secondary Group: Examples in hindi)

1. मनोरंजनात्मक समूह उदाहरण, क्लब 
2. व्यावसायिक समितियां उदाहरण, व्यापारी संघ 
3. सांस्कृतिक समूह उदाहरण, जाति, वर्ग, राष्ट्र 
4. राजनैतिक समूह उदाहरण, विधानसभा, संसद
15. जैविकीय समूह उदाहरण, लिंग, प्रजातियाँ
6. आकस्मिक समूह उदाहरण, भीड़, श्रोतागण।

द्वितीय समूह की परिभाषा (dwitiyak samuh ki paribhasha)

आगबर्न और निमकाॅफ " जो समूह घनिष्ठता के अभाव वाले अनुभवों के जनक होते हैं, उन्हें द्वैतीयक समूह कहा जाता हैं।
कूले "द्वैतीयक समूह ऐसे होते हैं, जिनमे घनिष्ठता का पूर्णतया अभाव होता है और सामान्यतया उन विशेषताओं का भी अभाव होता है, जो कि अधिकांशत: प्राथमिक तथा अर्ध-प्राथमिक समूहों मे पायी जाती है।
बीरस्टीड " साधारणतया वे सभी समूह द्वैतीयक है, जो प्रथामिक नही हैं।
फेयरचाइल्ड " वे समूह जिनकी विशेषताएं प्राथमिक या आमने-सामने के सम्बन्धों वाले समूहों मे भिन्न होती है, जिनका संगठन औपचारिक होता है तथा जिनमे घनिष्ठता का अभाव पाया जाता है, द्वितीयक समूह कहे जाते हैं।

द्वितीयक समूह की विशेषताएं (dwitiyak samuh ki visheshta)

1.संबंधों मे घनिष्ठता का अभाव रहता हैं।
2. संबंध अवैक्तिक होते हैं।
3. द्वैतीयक समूह योग्यता और कार्यकुशलता के आधार पर निर्देशित होते हैं।
4. संबंध सर्वागीण न होकर सीमित होते हैं।
5. द्वैतीयक समूहों का आकार बड़ा होता हैं अर्थात् इसके सदस्यों की संख्या अधिक रहती हैं।
6. द्वैतीयक समूह विशाल क्षेत्र मे फैले हुए होते हैं।
7. सदस्यों के सम्बन्ध वैयक्तिक न होकर सामूहिक होते हैं।
8. इनका निर्माण किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है। इसीलिए इनको विशेष हित समूह भी कहा जाता हैं।
9. सदस्यों मे व्यक्तिगत उत्तरदायित्व की भावना का अभाव पाया जाता हैं।
10. द्वैतीयक समूह का निर्माण जानबूकर चेतन अवस्था मे किया जाता हैं।
11. द्वैतीयक समूह मे सामाजिक नियन्त्रण के साधन औपचारिक होते है, जैसे पुलिस, न्यायालय आदि।
12. द्वैतीयक समूह तुलनात्मक दृष्टि से अस्थिर होते है। ये उद्देश्य की पूर्ति के साथ ही समाप्त हो जाते हैं।
13. द्वैतीयक समूह मे संबंध बहुत कुछ औपचारिक होते हैं।
14. द्वितीयक समूह विशेष हितों पर आधारित होते हैं।

द्वितीयक समूह का महत्व (dwitiyak samuh ka mahtva)

वर्तमान युग मे द्वितीयक समूहों का महत्व बढ़ता जा रहा हैं। आधुनिक युग मे लोगों की आवश्यकताएं इतनी बढ़ गई है कि उनकी पूर्ति व्यक्ति सीमित दायरे मे रहकर नही कर सकता। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उसे अन्य समूहों को संगठित करना पड़ता है तथा उसकी सदस्यता ग्रहण करनी पड़ती है। हर व्यक्ति अपने हितों की पूर्ति मे लगा रहता हैं तथा एक-दूसरे से आगे निकल जाने की कोशिश मे लगा रहता हैं। ऐसी स्थिति मे दिनों-दिन द्वितीयक समूहों की संख्या बढ़ती जा रही है और लोगों को उसकी आवश्यकता भी महसूस होने लगी है। द्वितीयक समूह के महत्व को इस व्यक्त किया जा सकता हैं---
1. व्यक्तित्व का विशेषीकरण
प्रथामिक समूह मानव के व्यक्तित्व को ढालते है, द्वैतीयक समूह व्यक्तित्व के विशेषीकरण की आधारशिला प्रस्तुत करते है। सभ्यता, संस्कृति और समाज के विकास के साथ-साथ श्रम-विभाजन मे वृद्धि होती जाती है। व्यक्ति के अलग-अलग कार्यों के लिए अलग-अलग समूहों का निर्माण होता है। इससे व्यक्ति को अपनी कुशलता मे वृद्धि करने का अवसर मिलता है। प्रोफेसर, डाॅक्टर, इन्जीनियर और वकील को बनाने मे द्वितीय समूह महत्वपूर्ण होते हैं।
2. विस्तृत क्षेत्र
द्वितीयक समूह व्यक्ति को सामाजिक आदान-प्रदान का विस्तृत क्षेत्र प्रदान करते हैं। वर्तमान समाज मे व्यक्ति की आवश्यकताओं को पूरा नही कर पाते है। द्वितीयक समूह व्यक्ति की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विस्तृत क्षेत्र प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए संस्थाएं, राज्य, कारखाना आदि।
3. प्रगति मे सहायक
प्रथामिक समूह का स्थायित्व यथास्थितिवादी शक्तियों को विशेष महत्व देता है और परिवर्तन के प्रति पूर्वाग्रही होता है। इसके विपरीत द्वितीयक समूह के संबंध व्यक्ति की संकुचित मान्यताओं को तोड़कर समग्र के प्रति जागरूक रहने और उत्तरदायित्व ग्रहण करने की प्रेरणा देते हैं।
4. आवश्यकताओं की पूर्ति 
वर्तमान समय मे मनुष्य की परंपरागत आवश्यकताएं बदलती जा रही है और उन परंपरागत आवश्यकताओं का स्थान आधुनिक आवश्यकताएं ग्रहण करती जा रही है। आज मानव को अपने मनोरंजन के लिए चलचित्र, रेडियो, टेलीविजन आदि अनेक साधनों की आवश्यकता होती है। इन समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति समाज द्वितीयक समूह द्वारा ही पूरी की जा सकती है।
5. सामाजिक विकास
द्वितीयक समूह विशाल पैमाने पर होते हैं। उनका उद्देश्य मानव आवश्यकताओं की पूर्ति करना होता हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए द्वितीयक समूह अनेक बार अनुसंधान और विधियों की खोज करते है। इससे समाज की वैज्ञानिक प्रगति होती हैं। यह वैज्ञानिक प्रगति सामाजिक परिवर्तन को प्रोत्साहित करती है। ग्रामीण समाज मे प्राथमिक समूह पाये जाते है, यहि कारण है कि यहां सामाजिक परिवर्तन की गति अत्यंत ही धीमी है। नगरों मे शीघ्र परिवर्तन के लिए द्वैतीयक समूहों की भूमिका महत्वपूर्ण होती हैं। नगर इसलिए अधिक परिवर्तन और प्रगतिशील होते है, क्योंकि वहा द्वितीयक समूह पाये जाते हैं।
6. व्यवहारों तथा कार्यों पर नियंत्रण
द्वितीय समूह का आकार बड़ा होने के कारण इसमे विभिन्न रूचि, वर्ग एवं जाति के लोग रहते है तथा स्वर्थों की अधिकतम पूर्ति हेतु एक-दूसरे के साथ प्रतियोगिता करते है। प्राथमिक समूहों का नियंत्रण अपने सदस्यों पर कम हुआ है परन्तु उनके कार्यों एवं व्यवहारों पर द्वितीयक समूहों का अत्यधिक नियंत्रण बढ़ता जा रहा हैं।
शायद यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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