प्रश्न; प्राथमिक समूह से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं और महत्त्व का विवेचन कीजिए।
अथवा" प्राथमिक समूह किसे कहते है? प्राथमिक की विशेषताएं लिखिए।
अथवा" प्राथमिक किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
अथवा" प्राथमिक समूह का महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर--
प्राथमिक समूह का अर्थ एवं परिभाषा (prathmik samuh kya hai)
जिसबर्ट ने प्राथमिक समूह को आमने-सामने का समूह भी कहा हैं। उनके अनुसार " प्रथामिक समूह यानि आमने-सामने का समूह प्रत्यक्ष व्यक्तित्व सम्बन्धों पर आधारित होते हैं, इसमे सदस्य परस्पर तुरन्त व्यवहार करते हैं।
कूले के अनुसार प्रथामिक समूह से तात्पर्य ऐसे समूह से हैं जिसकी विशेषता घनिष्ठ आमने-सामने समाने के संबंध और सहयोग हैं। कूले द्वारा वर्णित इन मौलिक विशेषताओं से ही प्राथमिक समूह की प्रकृति बहुत कुछ स्पष्ट हो जाती हैं। इसमे कोई संदेह नही है कि प्राथमिक समूह का आधार है आमने-सामने का संबंध, संबंधों मे घनिष्ठता और सहयोग।
किम्बाल यंग के अनुसार," प्रथामिक समूह; किम्बाल यंग ने भी प्रथामिक समूह मे घनिष्ठ सम्बन्धों को महत्वपूर्ण माना हैं। उनके अनुसार " इसमें परस्पर घनिष्ठ सम्पर्क होते हैं और सभी व्यक्ति समरूप कार्य करते है।
कूले के अनुसार प्रथामिक समूह से तात्पर्य ऐसे समूह से हैं जिसकी विशेषता घनिष्ठ आमने-सामने समाने के संबंध और सहयोग हैं। कूले द्वारा वर्णित इन मौलिक विशेषताओं से ही प्राथमिक समूह की प्रकृति बहुत कुछ स्पष्ट हो जाती हैं। इसमे कोई संदेह नही है कि प्राथमिक समूह का आधार है आमने-सामने का संबंध, संबंधों मे घनिष्ठता और सहयोग।
किम्बाल यंग के अनुसार," प्रथामिक समूह; किम्बाल यंग ने भी प्रथामिक समूह मे घनिष्ठ सम्बन्धों को महत्वपूर्ण माना हैं। उनके अनुसार " इसमें परस्पर घनिष्ठ सम्पर्क होते हैं और सभी व्यक्ति समरूप कार्य करते है।
प्राथमिक समूहों के उदाहरण
कूले ने सबसे महत्त्वपूर्ण तीन प्राथमिक समूहों का उल्लेख किया है--1. परिवार (Family)
2. बच्चों के खेल समूह (Play Groups of Children)
3. पड़ोस या वयस्कों के समूह (Neighbourhood or Community Group of the elders)
मैकाइवर तथा पेज ने प्राथमिक समूह के निम्न उदाहरण दिए हैं--
1. परिवार (Family)
2. क्रीड़ा समूह (The Play Groupd)
3. मित्र मण्डली (The Group of Friends)
4. वार्तालाप समूह (The Gossip)
6. स्थानीय भ्रातृत्व ( मThe local brotherhood)
8. वंशीय परिषद् (The Tribal Council)
5. सहभागिता (Partnership)
7. अध्ययन समूह (The Study of Group)
3. पड़ोस या वयस्कों के समूह (Neighbourhood or Community Group of the elders)
मैकाइवर तथा पेज ने प्राथमिक समूह के निम्न उदाहरण दिए हैं--
1. परिवार (Family)
2. क्रीड़ा समूह (The Play Groupd)
3. मित्र मण्डली (The Group of Friends)
4. वार्तालाप समूह (The Gossip)
6. स्थानीय भ्रातृत्व ( मThe local brotherhood)
8. वंशीय परिषद् (The Tribal Council)
5. सहभागिता (Partnership)
7. अध्ययन समूह (The Study of Group)
यद्यपि सभी छोटे समूह प्राथमिक नहीं होते इसके सदस्यों का आम तौर पर एक दूसरे से आमने-सामने संपर्क होता रहता है। फलतः उनका आपस में घनिष्ट एवं सहभागिता का संबंध होता है, साथ ही वे एक दूसरे के प्रति बहुत वफादार होते हैं। सदस्यों के बीच में संबंध अपने आप में लक्ष्य बन जाते हैं, अर्थात सदस्य एक दूसरे से मिलने पर सुख तथा आनंद महसूस करते हैं। उनकी दृष्टि में कोई अन्य ध्येय नहीं होता। जब एक या अधिक सदस्य चले जाते हैं तो प्राथमिक समूह समाप्त हो जाते हैं उनका स्थान कोई दूसरे लोग नहीं ले सकते। प्राथमिक समूह के उदाहरण परिवार या मित्रता या समकक्ष समूह है।
प्राथमिक समूह को प्राथमिक क्यों माना जाता है?
प्राथमिक समूहों को समय एवं महत्त्व दोनों ही दृष्टिकोणों से प्राथमिकता प्राप्त है। समय के दृष्टिकोण से यह इसलिए प्राथमिक है कि बच्चा जन्म से ही इन समूहों में रहने के लिए विवश होता है। अनेक वर्षों तक तो परिवार ही उसके जीवन का आधार होता है। कुछ बड़ा होने पर वह बच्चों के समूहों और पड़ोस का सदस्य हो जाता है। महत्त्व के आधार पर ये इसलिए प्राथमिक हैं कि एक व्यक्ति अपनी बाल्यावस्था और प्रारम्भिक काल में केवल इन्हीं प्राथमिक समूहों का सदस्य रहता है। इसी कारण से अन्य समूहों की अपेक्षा ये समूह व्यक्ति के जीवन पर अत्यधिक प्रभाव डालते हैं। यदि हम कहें कि व्यक्ति जो कुछ होता है वह इन्हीं समूहों के कारण होता है, तो अनुचित न होगा।
कूले के स्वयं के शब्दों में, " वे अनेक दृष्टिकोणों से प्राथमिक हैं, परन्तु मुख्यतया इस कारण से कि वे व्यक्ति की सामाजिक प्रकृति तथा आदर्शों के निर्माण में आधारभूत हैं।"
प्रथामिक समूह की विशेषताएं या लक्षण (prathmik samuh ki visheshta)
प्राथमिक की विशेषताएं अथवा लक्षण निम्नलिखित हैं--
1. प्रथामिक समूह मे सभी सदस्यों के पारस्परिक घनिष्ठ एवं निकट सम्बन्ध होने आवश्यक हैं। एक व्यक्ति के घनिष्ठ सम्बन्ध केवल कुछ एक व्यक्तियों तक ही सीमित हो सकते है। अतः प्रथामिक समूह के सदस्यों की संख्या सीमित होनी चाहिए।
2. प्राथमिक समूहों मे सदस्यों के व्यवहारों पर नियंत्रण रखा जाता हैं। ये नियंन्त्रण स्वाभाविक और अनौपचारिक होते हैं, जैसे पुरस्कार, निन्दा, अपमान आदि।
3. प्राथमिक समूह के सभी सदस्यों के जीवन के उद्देश्य प्रायः समान हुआ करते हैं।
4. प्राथमिक समूह मे सदस्यों मे आमने-सामने का संबंध पाया जाता हैं।
5. प्राथमिक समूह मे संबंध प्रत्यक्ष, निकट एवं घनिष्ठ होते हैं।
6. प्राथमिक समूह मे संबंध लंबे अर्से तक चलने वाले होते हैं।
7. प्राथमिक समूह मे संबंध स्वाभाविक होते हैं।
8. प्रथामिक समूह के सदस्यों को क्षेत्र की दृष्टि से एक सीमित क्षेत्र का निवासी होना चाहिए। प्रथामिक समूह के सदस्यों मे आमने-सामने के सम्बन्ध होने आवश्यक है। ये सम्बन्ध क्षेत्रीय निकटता की दशा मे ही सम्भव हैं।
9. प्राथमिक समूह का आकार छोटा होते है। इसकी सदस्य संख्या साधारणतः दो से लेकर पचास-साठ तक हो सकती हैं।
10. प्राथमिक समूह मे संबंध अनौपचारिक होते हैं जैसे मित्र और मित्र के संबंध, पति और पत्नी के संबंध। इसमे व्यक्ति बहुत कुछ खुलकर एक दूसरे से बात करते है, एक दूसरे के दिल की सुनते और सुनाते हैं।
11. प्राथमिक समूह मे सहयोग पाया जाता है।
12. प्राथमिक समूह मे हम की भावना पाई जाती हैं।
13. व्यक्ति मे मानवीय गुणों जैसे त्याग, स्नेह, स्वामिभक्ति, श्रद्धा, प्रेम तथा सहयोग आदि का विकास खासतौर पर प्रथामिक समूहों मे ही होता हैं।
14. प्राथमिक समूह मे सभी सदस्यों के आपसी सम्बन्ध सदैव अपने आप मे साध्य हुआ करते है। उनके सम्बन्ध स्वार्थमय नही होते। खेल के मैदान मे एक समूह के सदस्य आपस मे बिना व्यक्तिगत स्वार्थ के सहयोगपूर्ण बर्ताव करते हैं।
प्रथामिक समूह का व्यक्ति एवं समाज की दृष्टि से अत्यधिक महत्व हैं। व्यक्ति को समाज का सर्वप्रथम दर्शन और प्रारंभिक पाठ प्राथमिक समूह मे ही मिलता हैं। इस दृष्टि से प्रथामिक समूह व्यक्ति और समाज के बीच महत्वपूर्ण कड़ी हैं।
प्रथामिक समूहों मे व्यक्तियों के सम्बन्ध घनिष्ठ और वैयक्तिक होते हैं। इनमे रहकर व्यक्ति जिन सद्गुणों को सीखता है, वे स्थायी प्रकृति के होते है। यहि कारण है कि सद्गुण व्यक्ति के अभिन्न अंग बन जाते हैं और व्यक्ति आजीवन इनका पालन करता हैं।
2. सामाजिक नियन्त्रण
प्रथामिक समूहों मे व्यक्ति के कार्यों और सम्बन्ध घनिष्ठ और वैयक्तिक होते है। इनमे रहकर व्यक्ति जिन सद्गुणों को सीखता है, वे स्थायी प्रकृति के होते हैं। यहि कारण है कि ये सद्गुण व्यक्ति अभिन्न अंग बन जाते हैं और व्यक्ति आजीवन इनका पालन करता हैं।
3. सन्तोष प्रदान करना
प्रथामिक समूह व्यक्ति को आन्तरिक सन्तोष प्रदान करते है। इसका कारण यह हैं कि ये घनिष्ठ सम्बन्धों वाले समूह होते है। मेल-मिलाप, आमोद-प्रमोद, हंसी-मजाक, अपनत्व, स्नेह, प्रेम तथा आन्तरिक सन्तोष जो प्रथामिक समूहों से मिलता है, अन्यत्र मिलना अत्यन्त ही कठिन होता है।
2. प्राथमिक समूहों मे सदस्यों के व्यवहारों पर नियंत्रण रखा जाता हैं। ये नियंन्त्रण स्वाभाविक और अनौपचारिक होते हैं, जैसे पुरस्कार, निन्दा, अपमान आदि।
3. प्राथमिक समूह के सभी सदस्यों के जीवन के उद्देश्य प्रायः समान हुआ करते हैं।
4. प्राथमिक समूह मे सदस्यों मे आमने-सामने का संबंध पाया जाता हैं।
5. प्राथमिक समूह मे संबंध प्रत्यक्ष, निकट एवं घनिष्ठ होते हैं।
6. प्राथमिक समूह मे संबंध लंबे अर्से तक चलने वाले होते हैं।
7. प्राथमिक समूह मे संबंध स्वाभाविक होते हैं।
8. प्रथामिक समूह के सदस्यों को क्षेत्र की दृष्टि से एक सीमित क्षेत्र का निवासी होना चाहिए। प्रथामिक समूह के सदस्यों मे आमने-सामने के सम्बन्ध होने आवश्यक है। ये सम्बन्ध क्षेत्रीय निकटता की दशा मे ही सम्भव हैं।
9. प्राथमिक समूह का आकार छोटा होते है। इसकी सदस्य संख्या साधारणतः दो से लेकर पचास-साठ तक हो सकती हैं।
10. प्राथमिक समूह मे संबंध अनौपचारिक होते हैं जैसे मित्र और मित्र के संबंध, पति और पत्नी के संबंध। इसमे व्यक्ति बहुत कुछ खुलकर एक दूसरे से बात करते है, एक दूसरे के दिल की सुनते और सुनाते हैं।
11. प्राथमिक समूह मे सहयोग पाया जाता है।
12. प्राथमिक समूह मे हम की भावना पाई जाती हैं।
13. व्यक्ति मे मानवीय गुणों जैसे त्याग, स्नेह, स्वामिभक्ति, श्रद्धा, प्रेम तथा सहयोग आदि का विकास खासतौर पर प्रथामिक समूहों मे ही होता हैं।
14. प्राथमिक समूह मे सभी सदस्यों के आपसी सम्बन्ध सदैव अपने आप मे साध्य हुआ करते है। उनके सम्बन्ध स्वार्थमय नही होते। खेल के मैदान मे एक समूह के सदस्य आपस मे बिना व्यक्तिगत स्वार्थ के सहयोगपूर्ण बर्ताव करते हैं।
प्रथामिक समूह का व्यक्ति एवं समाज की दृष्टि से अत्यधिक महत्व हैं। व्यक्ति को समाज का सर्वप्रथम दर्शन और प्रारंभिक पाठ प्राथमिक समूह मे ही मिलता हैं। इस दृष्टि से प्रथामिक समूह व्यक्ति और समाज के बीच महत्वपूर्ण कड़ी हैं।
प्रथामिक समूह का महत्व (prathmik samuh ka mahtva)
1. सद्गुणों का विकासप्रथामिक समूहों मे व्यक्तियों के सम्बन्ध घनिष्ठ और वैयक्तिक होते हैं। इनमे रहकर व्यक्ति जिन सद्गुणों को सीखता है, वे स्थायी प्रकृति के होते है। यहि कारण है कि सद्गुण व्यक्ति के अभिन्न अंग बन जाते हैं और व्यक्ति आजीवन इनका पालन करता हैं।
2. सामाजिक नियन्त्रण
प्रथामिक समूहों मे व्यक्ति के कार्यों और सम्बन्ध घनिष्ठ और वैयक्तिक होते है। इनमे रहकर व्यक्ति जिन सद्गुणों को सीखता है, वे स्थायी प्रकृति के होते हैं। यहि कारण है कि ये सद्गुण व्यक्ति अभिन्न अंग बन जाते हैं और व्यक्ति आजीवन इनका पालन करता हैं।
3. सन्तोष प्रदान करना
प्रथामिक समूह व्यक्ति को आन्तरिक सन्तोष प्रदान करते है। इसका कारण यह हैं कि ये घनिष्ठ सम्बन्धों वाले समूह होते है। मेल-मिलाप, आमोद-प्रमोद, हंसी-मजाक, अपनत्व, स्नेह, प्रेम तथा आन्तरिक सन्तोष जो प्रथामिक समूहों से मिलता है, अन्यत्र मिलना अत्यन्त ही कठिन होता है।
4. भावात्मक सुरक्षा
प्राथमिक समूह व्यक्ति को भावात्मक रूप से सुरक्षा प्रदान करते हैं क्योंकि प्राथमिक समूह ही ऐसा वातावरण निर्मित करते है, जिसमे व्यक्ति अपने आपको मानसिक रूप से सुरक्षित महसूस करता हैं। व्यक्ति चाहे बच्चा हो या वृद्ध, शक्तिशाली हो या रोगी, सम्पन्न हो या निर्धन, प्राथमिक समूह उसे उसी तरह की सुविधाएं प्रदान करके मानसिक रूप से सुरक्षित बनाते हैं।
5. संस्कृति का हस्तान्तरण
प्राथमिक समूह संस्कृति के हस्तान्तरण में महत्त्वपूर्ण योगदान है। प्राथमिक समूह, समूह के साहित्य, रीति-रिवाजों, नियम, परम्पराओं, जनरीतियों आदि को सुरक्षित रखता है तथा अपने सदस्यों को उनकी जानकारी प्रदान करता है। साथ ही समूह के नैतिक पक्ष और उसके व्यावहारिक पक्ष की शिक्षा देकर समाज के संगठन को दृढ़ता प्रदान करता है।
6. सामाजिक व्यवहार का निर्धारण
प्रथामिक समूहों मे ही व्यक्तियों के सामाजिक व्यवहार का निर्धारण किया जाता है। परिवार मे बच्चे को सिखाया जाता है कि वह माता-पिता तथा भाई-बहन आदि अन्य सदस्यों के साथ किस प्रकार का व्यव्हार करे। परिवार के बाहर खेल के साथियों के साथ रह कर अन्य अनेक व्यवहार सीखे जाते हैं।
प्रथामिक समूहों मे ही व्यक्तियों के सामाजिक व्यवहार का निर्धारण किया जाता है। परिवार मे बच्चे को सिखाया जाता है कि वह माता-पिता तथा भाई-बहन आदि अन्य सदस्यों के साथ किस प्रकार का व्यव्हार करे। परिवार के बाहर खेल के साथियों के साथ रह कर अन्य अनेक व्यवहार सीखे जाते हैं।
7. मनोरंजन की सुविधाएं
व्यक्ति के लिए स्वस्थ मनोरंजन देने में भी प्राथमिक समूहों ने महत्वपूर्ण कार्य किया हैं। प्राथमिक समूहों के कार्य अपने आप में ही सुखद होते हैं। इन कार्यों में सभी सदस्य हिस्सा बंटाना चाहते हैं तथा साथ ही ये कार्य शिक्षाप्रद भी होते हैं। प्राथमिक समूह द्वारा दिया जाने वाला यह मनोरंजन अक्सर प्रेरणा, उत्साह, हास्य, व्यंग्य, लोकगाथाओं और परिहास के रूप में देखने को मिलता हैं।
8. सामाजिक नियन्त्रण के साधन
प्राथमिक समूह व्यक्तियों पर समाज के नियन्त्रण स्थापित करते हैं जिससे समाज के संगठन को दृढ़ता मिलती है और समाज का कार्य सुचारू रूप से चलता है।
9. व्यक्ति के कार्य शक्ति में वृद्धि करते हैं
प्राथमिक समूह व्यक्ति के कार्य शक्ति में वृद्धि करते हैं प्राथमिक समूह के सदस्य आपस में एक-दूसरे की समस्या को समझते हैं और उसका समाधान करते हैं। यह उनके कार्य करने में पारस्परिक एकता, उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि करती है।
10. समाजीकरण में सहायक
प्राथमिक समूह व्यक्ति को समाज में रहने की कला सिखाता है। इन समूहों में रहकर व्यक्ति समाज में प्रचलित रीति-रिवाजों का पालन करता है और उन सबका ज्ञान भी प्राप्त कर लेता है। इसलिए कहा जाता है कि प्राथमिक समूह व्यक्ति का समाजीकरण करता है।
11. व्यक्तित्व निर्माण मे सहायक
जन्म लेते ही अपने आप प्रत्येक बच्चा परिवार नामक प्राथमिक समूह का सदस्य बन जाता है। परिवार मे रह कर यह बच्चा प्राणी से मनुष्य बनता है। परिवार के अन्य सदस्यों के प्रभाव एवं सहयोग तथा शिक्षा द्वारा उसके व्यक्तित्व का क्रमशः विकास होता हैं।
जन्म लेते ही अपने आप प्रत्येक बच्चा परिवार नामक प्राथमिक समूह का सदस्य बन जाता है। परिवार मे रह कर यह बच्चा प्राणी से मनुष्य बनता है। परिवार के अन्य सदस्यों के प्रभाव एवं सहयोग तथा शिक्षा द्वारा उसके व्यक्तित्व का क्रमशः विकास होता हैं।
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Bhai AAP. NE SEO KHa se sikhe
जवाब देंहटाएंPrathmik samuh ko kisne prastut kiya
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जवाब देंहटाएंParthamik samuh par sanchit not likhe
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