9/24/2021

अधिगम/सीखने की विधियां

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अधिगम या सीखने की प्रभावशाली विधियां 

Adhigam ki vidhiya;किसी नयी क्रिया अथवा नये पाठ को सीखने हेतु विभिन्न विधियों का प्रयोग किया जा सकता है। हम इनमें से सिर्फ उन विधियों का वर्णन कर रहे हैं, जिनको मनोवैज्ञानिक प्रयोगों के आधार पर ज्यादा उपयोगी तथा प्रभावशाली पाया गया है। सीखने ने प्रभावशाली विधियाँ निम्नलिखित हैं--

1. करके सीखना 

डॉ. मेस का कथन है," स्मृति का स्थान मस्तिष्क में नहीं, बल्कि शरीर के अवयवों में है। यही कारण है कि हम करके सीखते हैं।" बालक जिस कार्य को स्वयं करते हैं, उसे वे जल्दी सीखते हैं। कारण यह है कि उसके करने में वे उसके उद्देश्य का निर्माण करते हैं, उसको करने की योजना बनाते हैं तथा योजना को पूर्ण करते हैं। फिर, वे यह देखते हैं कि उनके प्रयास सफल हुए हैं अथवा नहीं। अगर नहीं, तो वे अपनी गलतियों को मालूम करके उनमें सुधार करने का प्रयास करते हैं। 

2. निरीक्षण करके सीखना

योकम तथा सिम्पसन के अनुसार," निरीक्षण-सूचना प्राप्त करने, आधार सामग्री एकत्र करने तथा वस्तुओं एवं घटनाओं के बारे में यही विचार प्राप्त करने का साधन है।" बालक जिस वस्तु का निरीक्षण करते हैं, उसके बारे में वे जल्दी तथा स्थायी रूप से सीखते हैं। इसका कारण यह है कि निरीक्षण करते समय वे उस वस्तु को छूते हैं अथवा प्रयोग करते हैं या उसके बारे में बातचीत करते हैं। इस तरह वे अपनी एक से ज्यादा इंद्रियों का प्रयोग करते हैं। फलस्वरूप, उनके स्मृति-पटल पर उस वस्तु का स्पष्ट चित्र अंकित हो जाता है। 

3. परीक्षण करके सीखना

नयी बातों की खोज करना एक तरह का सीखना है। बालक इस खोज को परीक्षण द्वारा कर सकता है। परीक्षण के पश्चात् वह किसी निष्कर्ष पर पहुँचता है। इस तरह वह जिन बातों को सीखता है, वे उसके ज्ञान का अभिन्न अंग हो जाती हैं। उदाहरणार्थ, वह इस बात का परीक्षण कर सकता है कि गर्मी का ठोस तथा तरल पदार्थों पर क्या प्रभाव पड़ता है। वह इस बात को पुस्तक में पढ़कर भी सीख सकता है। लेकिन यह सीखना उतना महत्वपूर्ण नहीं होता है जितना कि स्वयं परीक्षण करके सीखना। 

4. सामूहिक विधियों द्वारा सीखना 

सीखने का कार्य व्यक्तिगत तथा सामूहिक विधियों द्वारा होता है। इन दोनों में सामूहिक विधियों को ज्यादा उपयोगी तथा प्रभावशाली माना जाता है। इनके संबंध में कोलसनिक की धारणा इस तरह है," बालक को प्रेरणा प्रदान करने, उसे शैक्षिक लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद देने, उसके मानसिक स्वास्थ्य को उत्तम बनाने, उसके सामाजिक समायोजन को अनुप्राणित करने, उसके व्यवहार में सुधार करने तथा उसमें आत्मनिर्भरता एवं सहयोग की भावनाओं का विकास करने हेतु व्यक्तिगत विधियों की तुलना में सामूहिक विधियाँ कहीं ज्यादा प्रभावशाली हैं।" 

मुख्य सामूहिक विधियाँ निम्न हैं-- 

(अ) वाद-विवाद विधि

इस विधि में हर छात्र को अपने विचार व्यक्त करने तथा प्रश्न पूछने का अवसर दिया जाता है। 

(ब) वर्कशॉप विधि

इस विधि में विभिन्न विषयों पर छात्र सभाओं का आयोजन किया जाता है तथा इन विषयों के हर पहलू का छात्रों द्वारा अध्ययन किया जाता है। 

(स) सम्मेलन तथा विचार गोष्ठी विधि

 इन विधियों में से किसी विशेष विषय पर छात्रों द्वारा विचार-विनिमय किया जाता है। 

(द) प्रोटेक्ट डाल्टन तथा बेसिक विधियाँ

इन आधुनिक विधियों में व्यक्तिगत तथा सामूहिक दोनों तरह के प्रेरकों का स्थान होता है। हर छात्र अपनी व्यक्तिगत रुचि, ज्ञान तथा क्षमता के अनुसार स्वतंत्र रूप से कार्य करता है, जिससे उसका सीखने का कार्य सरल हो जाता है। इसके अलावा सामूहिक रूप से कार्य करने से उसमें स्पर्द्धा, सहयोग तथा सहानुभूति का विकास होता है।

5. मिश्रित विधि द्वारा सीखना 

सीखने की दो महत्वपूर्ण विधियाँ हैं-- पूर्ण विधि तथा आशिक विधि। पहली विधि में छात्रों को सर्वप्रथम पाठ्य-विषय का पूर्ण ज्ञान कराया जाता है तथा फिर उसके विभिन्न अंगों में संबंध स्थापित किया जाता है। दूसरी विधि में पाठ्य-विषय को खंडों में बाँट दिया जाता है। आधुनिक विचारधारा के अनुसार इन दोनों विधियों को मिलाकर सीखने हेतु मिश्रित विधि का प्रयोग किया जाता है। 

6. सीखने की स्थिति का संगठन 

सीखने के कार्य को सरल तथा सफल बनाने हेतु सबसे ज्यादा जरूरत होती है-- सीखने की स्थिति का संगठन। यह तभी संभव हो सकता है, जब विद्यालय का निर्माण इस तरह किया जाये कि उसमें सीखने की सभी क्रियाएं उपलब्ध हों तथा सीखने की सभी विधियों का प्रयोग किया जाये। सीखने की ये सभी विधियाँ व्यक्ति के मनोविज्ञान पर आधारित हैं। इन विधियों के प्रयोग से अधिगम एवं शिक्षण दोनों ही प्रभावशाली हो जाते हैं।

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