9/24/2021

अधिगम/सीखने को प्रभावित करने वाले कारक/कारण

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अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक 

sikhne ko prabhavit karne wale karak sikhne ke karak;ऐसे कई कारण या दशायें हैं, जो सीखने की प्रक्रिया में सहायक अथवा बाधक सिद्ध होते हैं। सीखने को प्रभावित करने वाले कारक निम्न हैं-- 

1. सीखने का समय तथा थकान 

सीखने का समय, सीखने की क्रिया को प्रभावित करता है। उदाहरणार्थ , जब छात्र विद्यालय आते हैं, तब उनमें स्फूर्ति होती है। अतः उनको सीखने में सुगमता होती है। जैसे-जैसे शिक्षण के घंटे बीतते जाते हैं, वैसे-वैसे उनकी स्फूर्ति में शिथिलता आती जाती है तथा वे थकान का अनुभव करने लगते हैं। परिणामतः उनकी सीखने की क्रिया मंद हो जाती है।

2. परिपक्वता

शारीरिक तथा मानसिक परिपक्वता वाले छात्र नये पाठ को सीखने हेतु हमेशा तत्पर तथा उत्सुक रहते हैं। अतः वे सीखने में किसी तरह की कठिनाई का अनुभव नहीं करते हैं। अगर छात्रों में शारीरिक तथा मानसिक परिपक्वता नहीं है तो सीखने में उनके समय तथा शक्ति का ह्रास होता है।

3. बालकों का शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य

जो छात्र, शारीरिक तथा मानसिक दृष्टि से स्वस्थ होते हैं, वे सीखने में रुचि लेते हैं एवं शीघ्र सीखते हैं म। इसके विपरीत, शारीरिक अथवा मानसिक रोगों से पीडित छात्र सीखने में किसी प्रकार की रुचि नहीं लेते हैं । फलतः वे किसी बात को बहुत देर में एवं कम सीख पाते हैं। 

4. विषय-सामग्री का स्वरूप 

सीखने की क्रिया पर सीखी जाने वाली विषय-सामग्री का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है । कठिन तथा अर्थहीन सामग्री की बजाय सरल एवं अर्थपूर्ण सामग्री ज्यादा शीघ्रता तथा सरलता से सीख ली जाती है। इसी तरह, अनियोजित सामग्री की तुलना में ' सरल से कठिन की तरफ सिद्धांत पर नियोजित सामग्री सीखने की क्रिया को सरलता प्रदान करती है।

5. संपूर्ण परिस्थिति

बालक के सीखने को प्रभावित करने वाले तत्व उस पर पृथक रूप से बजाय सामूहिक रूप से प्रभाव डालते हैं। अतः सीखने की संपूर्ण परिस्थिति का विद्यालय में होना जरूरी है। विद्यालय की संपूर्ण परिस्थिति का बालक के बाह्य एवं सामाजिक जीवन से घनिष्ठ संबंध होना चाहिए। रायबर्न के अनुसार," उस संपूर्ण परिस्थिति का, जिसमें बालक अपने को विद्यालय में पाता है, जीवन में जितना ही ज्यादा संबंध होता है, उतना ही ज्यादा सफल तथा स्थायी उसका सीखना होता है।" 

6. अधिगम विधियाँ

सीखने की विधि का संबंध छात्र तथा विषय दोनों से है। यह विधि जितनी ही ज्यादा रुचिकर तथा उपयुक्त होती है, सीखना उतना ही ज्यादा सरल होता है। अतएव प्रारंभिक कक्षाओं में 'खेल' तथा 'करके सीखना' विधियों का तथा उच्च कक्षाओं में पूर्ण  सामूहिक तथा सहसंबंध विधियों का प्रयोग किया जाता हैं। 

7. सीखने का उचित वातावरण 

सीखने की क्रिया पर न सिर्फ कक्षा के भीतर के बल्कि बाहर के वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है। कक्षा के बाहर का वातावरण शांत होना चाहिए। निरंतर शोरगुल से छात्रों का ध्यान सीखने की क्रिया से हट जाता है। अगर कक्षा के अंदर छात्रों को बैठने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है तथा उसमें वायु एवं प्रकाश की कमी है, तो छात्र थोड़ी ही देर में थकान का अनुभव करने लगते हैं। परिणामतः उनकी सीखने में रुचि खत्म हो जाती है। कक्षा का "मनोवैज्ञानिक वातावरण" भी सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। अगर छात्रों में एक-दूसरे के प्रति सहयोग तथा सहानुभूति की भावना है, तो अधिगम प्रक्रिया को सहयोग मिलता है। 

8. अध्यापक तथा अधिगम प्रक्रिया

सीखने की प्रक्रिया में पथ-प्रदर्शक के रूप में शिक्षक का स्थान अति महत्वपूर्ण है। उसके कार्य तथा विचार, व्यवहार तथा व्यक्तित्व, ज्ञान तथा शिक्षण विधियों का छात्रों के सीखने पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इन बातों में शिक्षक का स्तर जितना ऊंचा होता है, अधिगम प्रक्रिया उतनी ही तीव्र तथा सरल होती है। 

9. प्रेरणा

सीखने की प्रक्रिया में प्रेरकों का स्थान सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रेरक, बालकों को नयी बातें सीखने हेतु प्रोत्साहित करते हैं। अतः अगर अध्यापक चाहता है कि उसके छात्र नये पाठ को सीखें, तो वह प्रशंसा, प्रोत्साहन, प्रतिद्वंद्विता आदि विधियों का प्रयोग करके उनको प्रेरित करे। स्टीफेन्स के अनुसार," शिक्षक के पास जितने भी साधन उपलब्ध हैं, उनमें प्रेरणा संभवतः सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।"

अधिगम या सीखने के कारक

मनुष्य में मानवीयता का प्रवेश सामाजिक सीखने की प्रक्रिया के आधार पर ही होता है। सीखने में निम्नलिखित कारक महत्वपूर्ण हैं, हल (C.L.Hull) ने निम्नलिखित चार प्रमुख कारकों का उल्लेख किया है--- 

1. चालक

सीखने में चालक महत्वपूर्ण कारक है। चालक एक प्रबल उत्तेजक है। शरीर में असन्तुलन होने के कारण यह उत्पन्न होता है और प्रतिक्रिया करने को प्रेरित करता है। यदि उत्तेजक प्रबल हुआ तो वह चालक बन जाता है और यह जितना ही अधिक प्रबल होगा उतना ही अधिक चालक कार्य होता है। इस प्रकार चालक प्रभावशाली सीखने की ओर ले जाते हैं। जब चालक सक्रिय होते हैं तो कार्य करने की प्रेरणा मिलती है और व्यक्ति उद्देश्य की प्राप्ति के लिये एक विशिष्ट ढंग से चलते हैं। चालक और सीखने में घनिष्ठ सम्बन्ध है जिन लोगों में चालक नहीं उत्पन्न होते हैं, वे कुछ नहीं सीखते।

2. संकेत 

सीखने की प्रक्रिया का दूसरा महत्वपूर्ण कारक संकेत यह निर्धारित करता है कि कैसे कोई विशेष प्रक्रिया होगी और कोई व्यक्ति कब कैसे प्रतिक्रिया करेगा। डालर्ड तथा मिलर ने इस सम्बन्ध में लिखा है," चालक प्रत्युत्तर के लिये प्रेरित करते हैं, कब वह प्रत्युत्तर देगा, कहाँ वह प्रत्युत्तर देगा और कौन-सा प्रत्युत्तर देगा, यह संकेत द्वारा ही निश्चित होगा। संकेत भी उत्तेजना पर आधारित है । विभिन्न प्रकार के संकेत अपने आपको संगठित कर लेते हैं और एक व्यक्ति को एक विशिष्ट प्रकार का व्यवहार करने को बाध्य करते हैं। 

3. प्रत्युत्तर

कोई चालक या प्रणोदन (Drive) चाहे जन्मजात हो या अर्जित हो, मनुष्य को कुछ संकेत के फलस्वरूप प्रतिक्रिया करने के लिये बाध्य करते हैं। संकेत के आधार पर ही चालकों की प्रतिक्रियायें निर्देशित होती हैं। साधारणतः बड़े बच्चे छोटे बच्चों की अपेक्षा जल्दी सीखते हैं। सीखने में प्रतिक्रियाओं का होना आवश्यक है। प्रतिक्रिया करने के पश्चात् ही व्यक्ति सन्तुष्टि अथवा असन्तुष्टि अनुभव करता है। 

4. पुष्टिकरण

हल के मतानुसार जो घटना किसी प्रतिक्रिया के पुनरावर्तन को बढ़ाती है, पुष्टिकरण कहलाता है। सीखना तभी होता है जब हम कुछ प्रतिक्रियाओं को बार-बार दोहराते हैं। प्रतिक्रियाओं की पुनरावृत्ति तभी सम्भव होती है जब पुरस्कार के रूप में उनकी पुष्टि की जाती है। हल के मतानुसार केवल पुनरावृत्ति ही पर्याप्त नहीं है वरन् उसके साथ-साथ आनन्द, सुख अथवा सन्तुष्टि का अनुभव होना भी आवश्यक है। जो प्रतिक्रिया हमको सुख अथवा सन्तुष्टि प्रदान करती है, वह हमारे अन्दर स्थायी हो जाती है। ठीक प्रतिक्रिया न करने पर कष्ट तथा असन्तुष्टि के रूप में हमको दण्ड मिलता है। 

सीखने के अन्य कारक

1. अनुकरण

अनुकरण का अर्थ है किसी क्रिया को ज्यों का त्यों दोहरा देना। बालक परिवार में अपने बड़ों की नकल करता है। 

2. सुझाव

सुझाव मानव व्यवहार की एक मानसिक प्रक्रिया है। बच्चे अपने माता पिता तथा अध्यापकों से अनेक बातें प्रतिष्ठा-सुझाव द्वारा सीख जाते हैं।

3. पुरस्कार तथा दण्ड 

पुरस्कार तथा दण्ड दोनों ही मानव की आदतों अभिवृत्तियों तथा विचारों का निर्माण करते हैं। पुरस्कार से व्यक्ति को आनन्द प्राप्त होता है तो उसे करने के लिये वह प्रेरित होता है। दण्ड से कष्ट प्राप्त होता है तो उसे न करने के लिये प्रेरित होता है। 

4. प्रशंसा तथा दोष 

सीखने की प्रक्रिया पर प्रोत्साहन तथा हतोत्साहन का भी प्रभाव पड़ता है। प्रशंसा एवं दोषारोपण दोघनों का ही निरन्तर प्रयोग घर, खेल के मैदान, स्कूल, दफ्तर या कारखाने या प्रशिक्षण देने वाली परिस्थितियों में होता है। 

5. सामाजिक प्रोत्साहन 

सीखने की प्रक्रिया में अन्य व्यक्तियों की उपस्थिति कार्य करने की गति तथा कुशलता दोनों को ही प्रभावित करती है। 

6. प्रतियोगिता एवं सहयोग  

प्रतियोगिता तथा सहयोग सीखने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करते है। 

7. स्वीकृति एवं अस्वीकृति

जिन कार्यों के करने में अन्य लोग स्वीकृति प्रदान कर देते हैं, उन्हें हम बार-बार दोहराते हैं। इसके विपरीत वे कार्य जो अन्य व्यक्तियों द्वारा अस्वीकृत कर दिये जाते हैं, उन्हें हम नहीं करते हैं। 

8. सामान्यीकरण 

किसी एक स्थिति में सीखी हुई प्रतिक्रियाये इसी प्रकार की अन्य स्थितियों तक फैल जाती है। यदि किसी बच्चे को कुत्ता काट ले तो वह अन्य सभी कुत्तों से डरने लगता है।

9. विभेदीकरण 

किसी एक प्रतिक्रिया के फलस्वरूप सन्तुष्टि तथा दूसरी प्रतिक्रिया के फलस्वरूप असन्तुष्टि होने पर व्यक्ति उन दोनों प्रतिक्रियाओं तथा उत्तेजकों में भिन्नताओं को जान लेता हैं।

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