9/24/2021

अधिगम की प्रकृति

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अधिगम की प्रकृति 

1. अधिगम एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है

अधिगम न तो किसी विशिष्ट व्यक्ति तथा समाज तक सीमित है और न ही केवल व्यक्तियों तक, वरन् समस्त विश्व के समस्त प्राणी अधिगम के आधार पर विकास करते हैं। 

2. अधिगम विकास की अविरल प्रक्रिया है 

घटनाओं, आवश्यकताओं, विभिन्न समस्याओं आदि की विविधता तथा निरंतरतावश प्रत्येक प्राणी निरंतर कुछ न कुछ सीखता है। मात्र उसके अधिगम की क्षमता या अर्जन आदि में अंतर होता है। 

3. अधिगम वातावरण से अनुकूलन की प्रक्रिया है

विभिन्न अधिगमजन्य अनुभवों को प्राप्त करके बालक को यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि वह अपनी आवश्यकताओं, इच्छाओं, संवेगों आदि के अनुसार किस प्रकार समायोजन करे। 

4. अधिगम विकास की प्रक्रिया है  

अधिगम के परिणामस्वरूप बालक को कई अनुभव प्राप्त होते हैं। इन अनुभवों का प्रत्यक्ष प्रभाव व्यवहार परिवर्तनों के रूप में दृष्टिगोचर होता है। ये परिवर्तन बालक के विकास के ही सूचक हैं। 

5. अधिगम उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है  

उददेश्य के अभाव में अधिगम की प्रक्रिया सुचारु रूप से नहीं हो सकती है। अतः बालक किसी न किसी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष उद्देश्य के आधार पर ही सार्थक अधिगम की दिशा में प्रेरित होता है।

6. अधिगम का आधार मानव प्रकृति है 

प्रत्येक बालक में रुचि, बुद्धि, क्षमता की आवश्यकतानुसार ही वातावरण से क्रिया-प्रतिक्रिया होती है एवं उनके अनुरूप ही उसके अधिगम व प्राप्त अनुभवों की मात्रा व स्वरूप निर्धारित होता है। 

7. अधिगम एक मानसिक प्रक्रिया है

विभिन्न मानसिक शक्तियों की क्रिया-प्रतिक्रियात्मक क्षमता हो व्यक्ति को अधिगम के लिए सक्षम बनाती है। अभिकरण, धारणा, प्रत्यास्मरण, अवबोध आदि शक्तियों के माध्यम से क्रमानुसार अधिगम संभव होता है। 

8. अधिगम वातावरण की उपज है 

बालक एक सामाजिक प्राणी है तथा वह समाज में रहकर ही सीखता है। वातावरण की भिन्नता अथवा सामाजिक मूल्यों, मान्यताओं, व्यवहारों, प्रेरकों, विचारों के अनुरूप ही अधिगम का भी निर्धारण होता है। 9. अधिगम व्यावहारिक परिवर्तन है समाज या वातावरण में रहकर व्यक्ति अपनी क्रिया-प्रतिक्रिया करता हुआ जो कुछ भी सीखता है, वह उसमें अनुभव के रूप में प्रत्यक्ष हो जाता है। अधिगम इन अनुभवों को व्यवस्थित भी करता है। 

9. अधिगम व्यवहार परिवर्तन है  

बालक जो कुछ भी सीखता है, उसका प्रभाव जहाँ एक तरफ उसकी अमूर्त शक्तियों पर पड़ता हैं, वहीं तदन्तर उसका व्यवहार भी परिवर्तित होने लगता है। उसकी भावनाओं , रुचियों, जीवन-शैली आदि में ये परिवर्तन देखे जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त, अधिगम विवेक तथा सक्रियता पर आधारित खोज की ऐसी व्यक्तिगत व सामाजिक प्रक्रिया भी कही जाती है, जो परिणामजन्य तथा समस्या समाधान में मददगार होती है। अधिगम की यह प्रक्रिया सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों प्रकार की हो सकती है। 

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