वैयक्तिक अध्ययन पद्धति के गुण/लाभ अथवा महत्व
वैयक्तिक अध्ययन पद्धति के गुण इस प्रकार हैं--
1. उपकल्पनाओं के निर्माण मे सहायक
इसमे इकाइयों का सूक्ष्य एवं गहन अध्ययन किया जाता है। यह जानकारी उपकल्पना के निर्माण मे सहायक होती है।
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2. महत्वपूर्ण प्रपत्रों का साधन
वैयक्तिक अध्ययन, प्रश्नावली, अनुसूची, साक्षात्कार, निर्देशिका आदि बनाने मे सहायता प्रदान करती है।
3. गहन अध्ययन
इसमें इकाइयों का समस्त पहलुओं से अध्ययन किया जाता है। इसीलिये बर्गेस ने इसे 'सामाजिक सूक्ष्मदर्शक यंत्र' कहा है।
4. वक्तिगत अनुभवों का स्त्रोत
इस विधि मे जीवन के सूक्ष्म से सूक्ष्म पहलू का अध्ययन किया जाता है। इससे वैयक्तिक अनुभवों मे वृद्धि होती है।
5. व्यक्तिगत भावनाओं का अध्ययन
इसके अंतर्गत व्यक्तिगत भावनाओं एवं मनोवृत्तियों का गहन अध्ययन किया जाता है। इससे मनोवृत्तियों मे परिवर्तन का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
6. अनुसंधान के प्रारंभिक स्तर पर उपयोगी
किसी अनुसंधान के प्रारंभिक स्तर पर कुछ वैयक्तिक इकाइयों की जानकारी अत्यंत उपयोगी होती है। इससे अनेक तथ्यों की जानकारी प्राप्त होती है, जो इकाईयों की प्रकृति एवं समग्र के निर्धिरण मे हमारी सहायता करती है।
7. अध्ययन यंत्रों के निर्माण मे सहायक
वैयक्तिक अध्ययन पद्धति के द्वारा उपलब्ध जानकारी अनुसंधान के महत्वपूर्ण यंत्रों के निर्माण मे सहायता प्रदान करती है।
8. वर्गीकृत निदर्शन मे सहायक
कुछ अनुसंधान ऐसे होते है जिनमें केवल दैव-निदर्शन के द्वारा ही समस्त सूचनायें प्राप्त नही होती। अतः दो अथवा तीन स्तरों पर अलग-अलग निदर्शन लेना जरूरी होता है। ऐसी स्थिति मे अध्ययन का समग्र, विभिन्न विशेषताओं वाली इकाइयां तथा एक ही श्रेणी की इकाइयों मे किस प्रकार प्रतिनिधित्वपूर्ण निदर्शन प्राप्त हो सकता है यह वैयक्तिक अध्ययन के द्वारा सरलतापूर्वक जाना जा सकता है।
9. व्यक्तिगत मनोवृत्तियों की जानकारी
व्यक्ति की सामान्य प्रकृति तथा उसकी क्रियाओं को समझने के लिए उसके विचार, मनोवृत्तियों, मूल्य, धारणायें आदि जानना अत्यावश्यक है। इनको समझे बिना कोई भी अध्ययन वैज्ञानिक नही होता। वैयक्तिक अध्ययन-पद्धति गुणात्मक विशेषताओं के अध्ययन मे महत्वपूर्ण योगदान देती है।
10. ज्ञान का विस्तार
वैयक्तिक अध्ययन पद्धति के द्वारा अनुसंधानकर्ता को अन्य विधियों की तुलना मे कहीं अधिक अनुभव प्राप्त होते है एवं अध्ययन के प्रति उसकी रूचि और ज्ञान मे वृद्धि होती है।
11. मनोवैज्ञानिक अध्ययनों मे सहायक
वैयक्तिक अध्ययन पद्धति मनोवैज्ञानिक अध्ययनों मे अत्यधिक उपयोग सिद्ध हुई है। इसीलिये मनो-चिकित्सक मनोरोगियों को अध्ययन करने के लिये इसी पद्धति का प्रयोग करते है।
वैयक्तिक अध्ययन पद्धति की सीमाएं/दोष
वैयक्तिक अध्ययन प्रणाली यद्यपि किसी सामाजिक इकाई के बारे मे समग्र व गहन अन्तर्दृष्टि विकसित करने तथा उसकी व्यावहारिक समस्याओं के निदान आदि की दृष्टि से अत्याधिक उपयोगी सिद्ध हुई है तथापि इसकी कई कमियाँ व सीमायें भी है। वैयक्तिक अध्ययन पद्धति की मुख्य सीमाएं इस प्रकार हैं--1. यह एक खर्चीली व सरल साध्य विधि है।
2. इसमें प्रकरणों का अध्ययन किया जाता है जिसके आधार पर सामान्य रूझान का पता नही लगाया जा सकता।
3. व्यक्ति अध्ययन मे चुनी गई इकाइयों के समग्र का प्रतिनिधित्वपूर्ण अथवा प्रतिरूप होना संदेहास्पद होता है। इनके चयन का कोई तर्कसंगत वैज्ञानिक आधार नही होता है। यह बहुत कुछ अनुसंधानकर्ता की इच्छा पर निर्भर करता है। इकाइयों के प्रतिनिधित्वपूर्ण नही होने से उन पर आधारित अध्ययन के निष्कर्षों को सामान्यीकृत नही किया जा सकता।
4. वैयक्तिक अध्ययन के माध्यम से एकत्रित तथ्यों की वैषयिकता संदेहास्पद होती है। वैयक्तिक प्रलेख मे व्यक्ति द्वारा प्रदान की गई जानकारीयाँ अपने को सही बताने की दृष्टि से या अपने को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने की दृष्टि से हो सकती है। उसकी विश्वसनीयता को परखने या उसके सत्यापन का कोई व्यवस्थित आधार नही होने से उनका तथ्यात्मक होना संदेहास्पद होता है।
5. वैयक्तिक अध्ययन पद्धति संबंधी जानकारियाँ तुलनात्मक नही होती है।
6. इस पद्धति से प्राप्त जानकारी वैयक्तिक, विशिष्ट व मूल्याधारित होने से वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुपयुक्त होती है।
7. अध्ययन इकाईयों द्वारा अपने बारे मे गलत सूचना देने पर समस्त अध्ययन दोषपूर्ण हो जाता है।
8. आत्मकथाएँ या जीवन इतिहास या डायरियाँ जो इस अध्ययन पद्धति मे तथ्यों के स्त्रोत होते है स्वयं व्यक्तियों द्वारा लिखे जाते है जिसमें उनकी अभिमति का समावेश हो सकता है। व्यक्ति अपने बारे मे बढ़ा-चढ़ाकर लिख सकता है तथा ऐसी बातों का उल्लेख करना छोड़ सकता है जिससे उसका अपयश हो सकता है। ऐसी स्थिति मे दोषपूर्ण जीवन-इतिहास के कारण निष्कर्ष भी दोषपूर्ण होंगे।
9. चूंकि वैयक्तिक अध्ययन पद्धति मे किसी एक व्यक्ति, संस्था, समूह, जाति, नगर, ग्राम या राष्ट्र का एक सामाजिक इकाई के रूप में अध्ययन किया जाता है अतः निदर्श का अभाव रहता है।
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