11/17/2021

सामाजिक सर्वेक्षण की विशेषताएं, महत्व, सीमाएं

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सामाजिक सर्वेक्षण की विशेषताएं (samajik sarvekshan ki visheshta)

सामाजिक सर्वेक्षण की विशेषताएं इस प्रकार है-- 

1. सामाजिक अनुसंधान हेतु प्रयुक्त पद्धति 

सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक अनुसंधान के लिए उपयोग में लाई जाने वाली एक पद्धति है। सामाजिक अनुसंधान के माध्यम से किसी निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए उस समस्या या घटना के विषय में तथ्यों को संकलित करना पड़ता है। तथ्यों का संकलन जिस पद्धति से किया जाता है उसे ही सामाजिक सर्वेक्षण कहते हैं। अतः सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक अनुसंधान हेतु एक प्रयुक्त पद्धति है।

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2. समुदाय की जानकारी प्रदान करना 

सामाजिक सर्वेक्षण हमेशा सामाजिक अनुसंधान के लिए ही किया जाए ऐसा जरूरी नहीं है। जैसा कि हम जानते हैं कि हम जिस परिवेश आस-पड़ोस समूह या समुदाय में रहते हैं, उसके विषय में जानकारी प्राप्त करने की आकांक्षा रखते हैं। अन्य समूह के विषय में भी जानने की हमारी इच्छा देती है। अतः किसी स्थान पर रहने वाले समुदाय के सामाजिक जीवन की जानकारी प्राप्त करने हेतु किए जाने वाले प्रयासों को भी सामाजिक सर्वेक्षण कहां जाता है।

3. पद्धति एवं उपकरणों का नियोजित संगठन 

सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक अनुसंधान की कोई विशेष पद्धति नहीं है बल्कि सामाजिक अनुसंधान की विशिष्ट पद्धतियों तथा उपकरणों का एक नियोजित संगठन है।

4. अध्ययन पद्धति पूर्णतः वैज्ञानिक 

सामाजिक सर्वेक्षण की एक विशेषता यह भी है की सामाजिक सर्वेक्षण की अध्ययन पद्धति पूर्णतया वैज्ञानिक होती है। जिससे पर्यावरण के साथ सामाजिक समस्याओं एवं परिस्थितियों का संबंध जोड़ा जाता है।

5. तुलनात्मक अध्ययन 

सामाजिक सर्वेक्षण की एक विशेषता यह भी है की सामाजिक सर्वेक्षण एक प्रकार का तुलनात्मक अध्ययन है। जिसमें पर्यावरण के साथ सामाजिक समस्याओं एवं परिस्थितियों का संबंध जोड़ा जाता है।

6. समाजशास्त्र की विषयवस्तु का अध्ययन 

समाजशास्त्र समाज का शास्त्र है। इसलिए विषयक विभिन्न तथ्यों की जानकारी समाजशास्त्र को सर्वेक्षणों के माध्यम से प्राप्त होती है।

7. गणनायोग्य तथ्यों का संकलन 

सांख्यिकी गणनाएं सही निष्कर्ष निरूपित करने में सहायक होती हैं। यह गणनाएं पक्षपात और पूर्वाग्रह से मुक्त होती है, तथा वस्तुस्थिति को यथार्थ में प्रस्तुत करती हैं। गणना योग तथ्यों के संकलन का कार्य सर्वेक्षण के माध्यम से संपन्न किया जाता है।

8. सीमित एवं विस्तृत तथ्यों का संकलन 

यदि अध्ययन क्षेत्र सीमित हो तो सर्वेक्षण कार्य किसी एक व्यक्ति के द्वारा संपादित किया जा सकता है। यदि अध्ययन क्षेत्र व्यापक हो तो इसे अनेक सर्वेक्षणकर्ताओं के द्वारा पारस्परिक सहयोग और समन्वय से संपन्न किया जा सकता है।

9. सामाजिक प्रगति से संबंधित 

समाजशास्त्र सामाजिक व्यवस्था और प्रगति का अध्ययन है। इसका अर्थ यह हुआ कि समाजशास्त्र की रूचि ना केवल सामाजिक व्यवस्था का अध्ययन करने और समाज को विघटित करने वाली शक्तियों को नियंत्रित करने मे है, बल्कि उसकी रूचि समाज को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने मे भी है। इसीलिए समाजशास्त्र समाज के सदस्यों की अपेक्षाओं, आकांक्षाओं और समस्याओं को जानने का प्रयास करता है तथा उस आधार पर विकास और प्रगति की योजनाएं भी प्रस्तुत करता है। इस प्रकार सामाजिक सर्वेक्षण के माध्यम से न केवल सामाजिक समस्याओं के विषय मे तथ्य संकलित किये जाते है बल्कि सामाजिक प्रगति हेतु योजनाओं के आकलन मे भी सहायता मिलती है।

सामाजिक सर्वेक्षण का महत्व (samajik sarvekshan ka mahatva)

सामाजिक सर्वेक्षण का महत्व इस प्रकार हैं--

1. सामाजिक अनुसंधान की प्रविधि 

सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक अनुसंधान के लिए जरूरी तत्वों को संतुलित करने की एक प्रक्रिया या विधि है। सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक अनुसंधान को सही दिशा प्रदान करता है। सामाजिक सर्वेक्षण से प्राप्त तथ्यों को ही अनुसंधानकर्ता अलग-अलग शैली श्रेणियों में विभाजित करता है तथा उन तथ्यों का वर्गीकरण विश्लेषण और विवेचन का निष्कर्ष निरूपित करता है। सामाजिक सर्वेक्षण वह मार्ग है जिस पर चलकर अनुसंधानकर्ता अपने मार्ग तक अर्थात अनुसंधान से संबंधित निष्कर्ष के निरूपण तक पहुंचता है। सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक अनुसंधान की प्रक्रिया का वह अनिवार्य भाग है। वस्तुतः यह सामाजिक अनुसंधान की प्रविधि  या तकनीक है।

2. सामाजिक समस्याओं का ज्ञान 

सामाजिक सर्वेक्षण के द्वारा संकलित किए जाने वाले तथ्य समाज से संबंधित विभिन्न समस्याओं के विषय में जानकारी प्रदान करते हैं। क्योंकि यह प्रत्यक्षतः प्राथमिक स्त्रोतों द्वितीयक के स्त्रोतों से संकलित किए जाते हैं। इसलिए यह काल्पनिक अथवा अनुमानपरक ना होकर यथार्थ अर्थात सत्य होते हैं। यही कारण है कि सर्वेक्षण के संकलित तथ्य विश्वसनीय होते हैं। इस कारण इन तथ्यों का उपयोग विभिन्न प्रकार की सामाजिक समस्याओं के विस्तार और प्रभाव को जानने के लिए किया जाता है। इस प्रकार सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक समस्याओं के विषय में जानकारी प्रदान करता है।

3. सामाजिक समूहों और वर्गों का ज्ञान 

समाज यद्यपि संबंधों की व्यवस्था है। परंतु संबंधों का विकास समूह में मनुष्यों की अंतक्रियाओं से होता है। समय स्थान और परिस्थितियों के अनुसार समूह, उप समूह और वर्गों की रचना और उनमें परिवर्तन की प्रक्रिया चलती रहती है। अतः किसी समय में किसी स्थान पर कार्यरत समूह में उप समूह और वर्गों के विषय में जानकारी सामाजिक सर्वेक्षण के माध्यम से प्राप्त होती है।

4. सामाजिक संस्थाओं की जानकारी 

किसी समाज में प्रचलित नियमों रीति-रिवाजों, कार्य-विधियों, प्रथाओं, परंपराओं को संस्था कहा जाता है। इसके माध्यम से समाज के सदस्यों की भौतिक और सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। इसके साथ ही यह नियत्माक (संस्थात्मक) व्यवस्था सामाजिक संगठन को दृढ़ता  प्रदान करने में सहायक होती है। नियम, रीति-रिवाज, कार्य-विधियां, प्रथाएं और परंपराएं सामाजिक नियंत्रण की अत्यंत प्रभावशाली एजेंसियां या माध्यम या उपकरण है। सामाजिक सर्वेक्षण के माध्यम से सामाजिक संस्थाओं के स्वरूप, उनके प्रभाव, उनेक महत्व, उनकी उपयोगिता, उनमें परिवर्तन या परिवर्द्धन की आवश्यकता आदि के विषय में जानकारी मिलती है।

5. प्रामाणिक तथा विश्वसनीय निष्कर्ष 

इसके निष्कर्ष अपेक्षाकृत अधिक प्रमाणिक तथा विश्वसनीय होते हैं। क्योंकि इसके अंतर्गत सर्वेक्षक सामाजिक तथ्यों का स्वयं अवलोकन करता है।

6. वस्तुनिष्ठता संभव 

सामाजिक सर्वेक्षण प्रणाली में किसी विषय के प्रति विशेष सुझाव की संभावना कम हो जाती है। अतः इसके द्वारा प्राप्त निष्कर्ष वस्तुनिष्ठ होते हैं।

7. सामाजिक दशाओं को सत्यापित करना

समाज में एक और तो सामाजिक व्यवस्था को यथावत बनाए रखने के लिए शक्तियां कार्य करती हैं। तो वहीं दूसरी और उन्हें परिवर्तित करने वाली शक्तियां भी रहती है। सामाजिक व्यवस्था में जड़ता और परिवर्तन के प्रयास लगातार जारी रहते हैं। इन पर दृष्टि रखना जरूरी होता है यह कार्य सामाजिक सर्वेक्षण के माध्यम से संपन्न किया जाता है।

8. सामाजिक दशाओं और संबंधो का तुलनात्मक अध्ययन 

सामाजिक सर्वेक्षण के द्वारा अलग-अलग समाजों की सामाजिक आर्थिक दशाओं संबंधों का स्वरूप सामाजिक विकास आदि का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है।

9. व्यावहारिक लाभ 

सामाजिक सर्वेक्षण से अनेक व्यवहारिक लाभ भी प्राप्त होते हैं। जैसे, व्यापारी तथा व्यवसायी ग्राहकों की अभिवृत्तियों का पता लगाने के लिए सामाजिक सर्वेक्षण का सहारा लेते है, तथा ग्राहकों की अभिवृत्तियों के अनुकूल ही वे वस्तुओं का उत्पादन करते है।

10. सामाजिक सर्वेक्षण एक सहयोगात्मक प्रक्रिया है

सामाजिक सर्वेक्षण के द्वारा जहां लघु या वैयक्तिक स्तर पर सीमित समूह या समुदाय का अध्ययन किया जाता है। वही विस्तृत और विशाल क्षेत्र तथा जनसंख्या का अध्ययन भी संभव होता है। इस हेतु अनेक व्यक्तियों की सहायता ली जाती है। इस प्रकार सर्वेक्षण के क्षेत्र का विभाजन अथवा अध्ययन किए जाने वाले पक्षों का अलग-अलग सर्वेक्षणकर्ताओं मे विभाजन कर अध्ययन किया है।

सामाजिक सर्वेक्षण की सीमाएं (samajik sarvekshan ki simaye)

सामाजिक सर्वेक्षण की सीमाएं इस प्रकार हैं--

1. केवल सीमित क्षेत्र मे अध्ययन 

सामाजिक सर्वेक्षण का अध्ययन केवल सामाजिक समस्याओं तथा घटनाओं तक ही सीमित है। इसके द्वारा सामाजिक घटनाओं की व्यापक समस्याओं का अध्ययन करना संभव नहीं है।

2. सामान्य बुद्धि वाले व्यक्तियों के लिए अनुपयुक्त 

सामाजिक सर्वेक्षण की प्रक्रिया अनेक चरणों से होकर गुजरती है। जैसा की अध्ययन प्रक्रिया का आयोजन एक बुद्धिमान, कुशल तथा अनुभवी व्यक्ति ही कर सकता है। सामान्य बुद्धि वाले व्यक्तियों के लिए यह यह प्रणाली अनुपयुक्त है।

3. बड़ी संख्या मे प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की आवश्यकता

चूँकि सामाजिक सर्वेक्षण वृहद स्तर पर आयोजित किया जाता है। अतः बड़ी संख्या में प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की आवश्यकता होती है। विभिन्न प्रकार के कार्यकर्ताओं को उपलब्ध कराना तथा उन्हें भली प्रकार से प्रशिक्षित करना एक व्यवहारिक कठिनाई है।

4. निष्कर्ष अविश्वसनीय 

यदि सामाजिक सर्वेक्षण और अकुशल और सर्वेक्षण यंत्रों के प्रयोग की जानकारी से शुन्य होते हैं। तो जो निष्कर्ष निकाला जाता है वह अविश्वसनीय होता है।

5. अधिक समय तथा धन

सामाजिक सर्वेक्षण में समय व धन अधिक लगता है। इसलिए विस्तृत क्षेत्र में सर्वेक्षण ना किया जाकर सीमित क्षेत्र में सर्वेक्षण किया जाता है।

6. सिद्धांतीकरण का अभाव

सामाजिक सर्वेक्षण की उपलब्धियों तथा निष्कर्षों के आधार पर सिद्धांतों का निर्माण प्रायः नहीं हो पाता है।

7. मात्र तात्कालिक सामाजिक समस्याओं का ही अध्ययन संभव 

सामाजिक सर्वेक्षण के अंतर्गत मात्र तात्कालिक समस्याओं का ही अध्ययन संभव होता है। इसके द्वारा प्रयाः दूरस्थ सामाजिक समस्याओं का अध्ययन नही किया जाता।

8. ऐतिहासिक घटनाओं का अध्ययन असंभव 

चूंकि सामाजिक सर्वेक्षण वर्तमान की घटनाओं से ही संबंधित होते हैं। अतः इनमें ऐतिहासिक घटनाओं का अध्ययन संभव नहीं है।

9. व्यावहारिक उपादेयता पर अधिक बल

सामाजिक सर्वेक्षण के अंतर्गत अपेक्षाकृत व्यावहारिक उपयोगिता पर विशेष बल दिया जाता है। 

10. सार्वभौमिकता का अभाव 

गतिशीलता के कारण सामाजिक सर्वेक्षण से जो निष्कर्ष निकाले जाते है, वे परिवर्तित हो जाते है। अतः उनमें सार्वभौमिकता का अभाव पाया जाता है।

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