11/12/2021

मूल्यांकन का क्षेत्र, उद्देश्य

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मूल्यांकन का क्षेत्र (mulyankan ka kshetra)

मूल्यांकन का क्षेत्र बहुत व्यापक हैं। आर. एस. वर्मा के शब्दों में," मूल्यांकन से हमारा अभिप्राय उन क्षेत्रों से हैं जिनमें व्यवहारगत परिवर्तन हो सकते हैं। दूसरे शब्दों में, किसका मूल्यांकन किया जाय-प्रश्न का उत्तर ही मूल्यांकन का क्षेत्र निर्धारित करना हैं। मूल्यांकन द्वारा हम व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों का पता लगाते हैं। ये आयाम शारीरिक, बौद्धिक, संवेगात्मक, सामाजिक एवं नैतिक क्षेत्रों से संबंधित हो सकते हैं।" 

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संक्षेप में मूल्यांकन का संबंध सिर्फ छात्र की बौद्धिक उपलब्धि से न होकर उसके संपूर्ण व्यक्तित्व से हैं जैसा कि रेमर्स तथा गेज ने एक स्थान पर लिखा है," मूल्यांकन की प्रक्रिया की व्यापकता-छात्र के समस्त व्यक्तित्व पर अपने प्रसार का उल्लेख करती हैं, न की सिर्फ उसकी बौद्धिक उपलब्धि का।" 

मूल्यांकन के क्षेत्र के अंतर्गत छात्र के व्यक्तित्व के निम्न मुख्य पक्ष आते हैं-- 

1. ज्ञान 

मूल्यांकन में इस बात का अध्ययन किया जाता है कि छात्र ने विषय-वस्तु के संबंध में कितना ज्ञान अर्जित किया हैं। 

2. बोध या अवबोध 

बोध से अभिप्राय हैं कि छात्र सीखी हुई सामग्री की कितनी तरह से व्याख्या करने की क्षमता रखता हैं। 

3. सूचना 

छात्र के ज्ञान के संबंध में कितनी सूचना का संकलन किया हैं। 

4. कुशलताएँ 

कुशलताओं का संबंध पाठ्य-विषय से संबंधित कुशलताओं से हैं। 

5. प्रवृत्तियाँ, अभिवृत्तियाँ तथा मूल्य 

यह देखना कि छात्र की अपने विषय में, अपने मित्रों से, अपने विद्यालय में क्या प्रवृत्तियाँ, अभिवृत्तियाँ तथा मूल्य हैं। 

6. बुद्धि 

यह ज्ञात करना कि कुछ छात्र क्यों भूल करते हैं एवं त्रुटियों की क्यों पुनरावृत्ति करते हैं? 

7. योग्यताएँ 

छात्रों की योग्यताओं का ज्ञान करना। योग्यताएँ सामान्य तथा विशिष्ट दोनों तरह की होती हैं।  

8. रूचियाँ 

इनका संबंध किसी वस्तु, विषय अथवा क्रिया को पसंद करने अथवा न करने से हैं। अभिरूचि, परीक्षणों का आयोजन इसी उद्देश्‍य से किया जाता हैं। 

9. छात्रों की त्रुटियाँ 

मूल्यांकन के द्वारा छात्र की इस बात की जाँच हो जाती है कि वह त्रुटियाँ क्यों कर रहा हैं। त्रुटियों का ज्ञान हो जाने पर उसके निराकरण के प्रयत्न किये जाते हैं। 

10. शारीरिक स्वास्थ्य 

शारीरिक, स्वास्थ्य का मापन करना मूल्यांकन के क्षेत्र के अंतर्गत आता हैं। इसके लिए 'प्रश्नावली' 'स्वस्थ इतिहास' एवं निरीक्षण पद्धितियों का प्रयोग किया जाता हैं। वास्तव में शारीरिक स्वास्थ्य भी एक महत्वपूर्ण तत्व हैं, जिसका मापन किये बगैर कोई भी मूल्यांकन पद्धित अधूरी रह जायेगी।

वर्तमान मूल्यांकन प्रणाली के उद्देश्य (mulyankan ke uddeshy)

वर्तमान में मूल्यांकन का उद्देश्य शैक्षणिक कार्यक्रम के विषय में निम्न प्रश्नों का उत्तर देना हैं-- 

1. यह ज्ञात करना कि किसी विषय के शिक्षण के उद्देश्य किस सीमा तक प्राप्त किये जा सके हैं? 

2. किसी विषय के शिक्षण से छात्रों को जो अनुभव प्रदान किये गये हैं, वे कहाँ तक प्रभावशाली रहे? 

3. क्या शिक्षक की शिक्षण विधियाँ प्रभावपूर्ण हैं एवं उसका शिक्षण कार्य बालकों पर प्रभावकारी रहा हैं। 

4. शिक्षक वास्तविक परिस्थितियों का मूल्यांकन करता हैं। इस तरह उसे इस बात का ज्ञान हो जाता है कि उसका शिक्षण कहाँ तक सफल रहा हैं। 

5. विशिष्ट बालकों का ज्ञान होता हैं, जिससे उनकी असाधारण क्षमता को विकसित किया जा सकता हैं। 

6. नवीन शिक्षण विधियों की सफलता का ज्ञान प्राप्त हो जाता हैं। 

7. शिक्षक मूल्यांकन की सफलता से ही अपनी कक्षा के छात्रों का वर्गीकरण कर सकता हैं।

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