11/13/2021

मूल्यांकन और मापन में अंतर

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मूल्यांकन तथा मापन में अंतर 

mapan aur mulyankan me antar;इन दोनों शैक्षिक प्रक्रियाओं के अंतर को समझने के लिए पहले मापन के स्वरूप को समझ लेना जरूरी हैं। किसी भौतिक पदार्थ के गुण अथवा शिक्षण के परिणाम को मात्रात्मक मूल्य देने की प्रक्रिया को मापन कहते हैं। यदि किसी कमरे की लम्बाई को नापकर यह कहा जाय कि इस कमरे की लम्बाई 4 मीटर हैं तो भौतिक पदार्थ (कमरा) के गुण, (लम्बाई) को मात्रात्मक मूल्य (अंक) दे दें तो इसे हिन्दी व्याकरण संबंधी मापन कहेंगे। इसी प्रकार छात्रों के अर्थ ग्रहण, रस ग्रहण अवबोधन आदि हिन्दी शिक्षण के परिणामों को मात्रात्मक मूल्य दिया जा सकता हैं। कुछ गुणों को मापने के शुद्ध विधियों का प्रयोग किया जाता हैं, किन्तु कुछ गुणों का मापन गहरे निरीक्षण द्वारा किया जाता हैं।

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एक गुण के विषय में जानकरी प्राप्त करना उस गुण का मापन हैं, किन्तु समस्त गुणों के मापने के बाद छात्र की बुध्दि और विकास का जो चित्र खींचा जाता हैं, वह मूल्यांकन हैं। अतः मापन तथा मूल्यांकन में कार्यगत कोई अंतर नहीं हैं, अंतर है तो केवल विशेषतागत। जब हम हिन्दी अथवा गणित विषय की परीक्षा लेते हैं, तब मापन उस क्रिया में छिपा रहता हैं। हिन्दी में अंक देकर हिन्दी के ज्ञान अथवा अर्थग्रहण शक्ति अथवा रचना कौशल को मात्रात्मक मूल्य देते हैं, किन्तु जब हम निर्धारित अध्ययन अध्यापन के उद्देश्यों की पूर्ति को ध्यान में रखकर यह देखते हैं कि छात्रों ने कितना, किस प्रकार का, किस सीमा तक और कब गुणात्मक एवं परिणामात्मक विकास किया? तब हम उनका मूल्यांकन करते हैं। मूल्यांकन मापन से एक कदम आगे चलता हैं। वह संपूर्ण शिक्षा के उद्देश्यों और व्यवहारगत परिवर्तनों की पूर्ण और व्यापक समीक्षा करता हैं। 

मापन और मूल्यांकन का अन्तर स्पष्ट करने के लिए जे. डब्ल्यू. राइटस्टोन ने लिखा हैं," मापन में विषय-वस्तु या विशेष कौशलों एवं योग्यताओं की उपलब्धि के एकाकी पक्ष पर अधिक बल दिया जाता हैं, जबकि मूल्यांकन में व्यक्तित्तव संबंधी परिवर्तनों और शैक्षिक कार्यक्रमों के व्यापक उद्देश्यों पर बल दिया जाता हैं।" 

मापन तथा मूल्यांकन में निम्नलिखित अंतर हैं-- 

1. मापन एक भौतिक पदार्थ के गुण अथवा विशेषताओं के परिणाम को अंकात्मक रूप देने की क्रिया हैं। जबकि मूल्यांकन संख्यात्मक मूल्य हैं। 

2. मापन साधन हैं साध्य नहीं। मूल्यांकन स्वयं में साध्य हैं। 

3. मापन के द्वारा सार्थक भविष्यवाणी संभव नहीं हैं। मूल्यांकन परिणामों के आधार पर विद्यार्थी के संबंध में पूर्ण सार्थकता के साथ भविष्यवाणी की जा सकती हैं। 

4. मापन का कार्य साक्ष्यों के विश्लेषण से निष्कर्ष प्राप्त करना हैं। मूल्यांकन के माध्यम से उद्देश्यों की पूर्ति किस सीमा तक हुई हैं? यह ज्ञात किया जाता हैं। 

5. मापन के द्वारा तुलनात्मक अध्ययन संभव नहीं हैं। यह केवल व्यक्तित्व के कुछ आयामों को ही प्रतीक करता हैं। जबकि मूल्यांकन अधिक समय लेता हैं क्योंकि इसमें विद्यार्थियों की रूचियों, क्षमताओं, कौशलों आदि का एक साथ मूल्यांकन किया जाता हैं अतः अधिक समय तक साधनों की जरूरत होती हैं। 

6. मापन का कार्य केवल अंक प्रदान करना हैं। जबकि मूल्यांकन मापन के बाद मूल्य प्रदान करने की प्रक्रिया हैं कि कोई विद्यार्थी अन्य विद्यार्थियों की तुलना में कैसा हैं? 

7. मापन एक प्राचीन धारणा हैं। जबकि मूल्यांकन एक नवीन धारणा हैं। 

8. मापन एक साधारण शब्द हैं। मूल्यांकन एक प्रविधिक शब्द हैं। 

9. मापन का क्षेत्र संकुचित व सीमित हैं, जबकि मूल्यांकन एक विस्तृत प्रक्रिया हैं। 

10. मापन में कम समय, शक्ति व धन की आवश्यक होती हैं, जबकि मूल्यांकन में इसके विपरीत अधिक समय, शक्ति व धन की आवश्यकता होती हैं। 

11. मापन में केवल परीक्षाओं द्वारा विद्यार्थियों की निष्पत्ति की संख्या, औसत या अंकों में अंक दिए जाते हैं। मूल्यांकन परीक्षाओं द्वारा विद्यार्थियों की निष्पत्ति के संबंध में न केवल साक्ष्यों का संकलन करते हैं अपितु व्याख्या भी करते हैं। 

12. मापन में परिमाणात्मक निर्णय लिए जाते हैं तथा यह केवल संख्यात्मक होता हैं। जबकि मूल्यांकन मे गुणात्मक और परिमाणात्मक दोनों प्रकार के निर्णय लिए जाते हैं तथा यह संख्यात्मक और वर्णनात्मक दोनों होता हैं। 

13. मापन मूल्यांकन का ही एक अंक हैं। मूल्यांकन संपूर्ण शिक्षण प्रणाली का एक अंग हैं। 

14. मापन मूल्यांकन के ठीक विपरीत होता हैं इसमें पृष्ठपोषण का कोई स्थान नहीं होता हैं। मूल्यांकन न केवल विद्यार्थियों की निष्पत्ति को आँकता हैं बल्कि उसके आधार पर शिक्षण-विधि, पाठ्य-वस्तु आदि को पृष्ठपोषण भी प्रदान करता हैं। उनकी उपयोगिता व उपादेयता के उद्देश्यों के संदर्भ में जाँच कर उसमें सुधार भी करता हैं।

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