रचना शिक्षण का अर्थ (rachna shikshan kya hai)
rachna shikshan ka arth uddeshy mahatva;जब भाषा एवं भाव को सुन्दर ढंग से क्रमबद्ध रूप से संवारा या सजाया जाता है तो वह रचना कहलाती है। इस तरह किसी विचार या बात को भली तरह से मनन करने एवं क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत करना ही रचना का एक अंग है। लेकिन रचना सिर्फ भाषा से संबंधित न होकर साहित्य एवं कला से संबंधित है।
योगेन्द्र जीत के अनुसार," रचना वह सार्थक एवं कलात्मक अभिव्यक्ति है जिसके द्वारा हम निश्चित उद्देश्य को सामने रखकर अपने विचारों को लिपिबद्ध करते है।"
रचना शिक्षण के उद्देश्य
रचना शिक्षण के निम्न उद्देश्य है--
1. साहित्य में रूचि रखने वाले तथा प्रभावशाली विद्यार्थियों को रचना कला में निपुण करना।
2. विद्यार्थियों की विचार शक्ति एवं निरीक्षण शक्ति का विकास करना।
3. विद्यार्थियों में विभिन्न लेखकों की शैलियों का ज्ञान कराना, जिससे वे भी स्वतंत्र शैली का निर्माण कर सकें।
4. विद्यार्थियों को इस योग्य बनाना कि वे स्थायी साहित्य के सृजन में स्वयं भी योगदान कर सकें।
5. विद्यार्थियों मे ऐसी क्षमता पैदा करना कि वे जो कुछ भी सोचें एवं मनन करें उसमें एक क्रम हो।
6. विद्यार्थियों मे ऐसी योग्यता का विकास करना कि वे बड़े से बड़े तथ्य को संक्षेप मे पेश कर सकें।
7. विद्यार्थियों मे ऐसी क्षमता पैदा करना कि वे अपने विचारों को क्रमबद्ध एवं श्रेणीबद्ध रूप मे प्रकाशित कर सकें।
8. विद्यार्थियों में रचनात्मक एवं सृजनात्मक शक्तियों का विकास करना।
9. विद्यार्थियों मे स्वयं के शब्द भण्डार का उचित प्रयोग कर सकने की योग्यता पैदि करना।
10. विद्यार्थियों मे भाव प्रकाशन एवं आत्म प्रकाशन की क्षमता पैदा करना।
रचना शिक्षण का महत्व
रचना शिक्षण का महत्व निम्न प्रकार है--
1. रचना द्वारा भाव अभिव्यक्ति, सृजनात्मक, रचनात्मक, भाषात्मक, शैलीगत तथा चिन्तन आदि प्रवृत्तियों का विकास होता है।
2. विवेचनात्मक शक्ति, विचार शक्ति एवं कल्पना शक्ति का विकास रचना द्वारा होता है।
3. रचना द्वारा भाषागत, भाषा विज्ञानगत एवं व्याकरणगत नियमों का पालन स्पष्ट होता है।
4. रचना द्वारा लेखन शक्ति का विकास होता है।
5. रचना द्वारा भाषा के विभिन्न रूपों का ज्ञान होता है।
रचना शिक्षण से संबंधित ध्यान देने योग्य बातें
1. रचना का विषय छोटी कक्षाओं में विद्यार्थियों की रूचि के अनुकूल होना चाहिए। इस स्तर पर वे विषय ज्यादा उपयुक्त रहते है जो विद्यार्थियों के हर अनुभव से संबंधित हो।
2. विद्यार्थियों को विभिन्न शैलियों की जानकारी दी जाये तथा शिक्षक को हर शैली की विशेषताओं पर प्रकाश डालना चाहिए एवं विद्यार्थियों की शैलियों को सुधारना चाहिए।
3. हर शब्द का उसकी आवश्यक स्थिति को दृष्टि में रखते हुए प्रयोग किया जाना चाहिए।
4. रचना कार्य प्रदान करते समय विद्यार्थियों के मानसिक स्तर का ध्यान रखना चाहिए। छोटी कक्षाओं में भाव-प्रधान विषय नही दिये जाने चाहिए एवं अस्पष्ट वाक्यों का प्रयोग न हो।
5. लिखित रचना का संशोधन विद्यार्थियों के सामने ही किया जाना चाहिए।
6. रचना में बातचीत के शब्दों का प्रयोग भी कराया जा सकता है।
7. विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति का पूर्ण अवसर प्रदान करना चाहिए।
8. विद्यार्थियों को अप्रासंगिक एवं व्यर्थ की बातों के लिए उत्साहित नही करना चाहिए।
9. रचना न अधिक बड़ी होनी चाहिए एवं न ही ज्यादा संक्षिप्त।
10. लिखित रचना से पहले मौखिक रचना अवश्य करा लेनी चाहिए।
11. रचना में किसी भी तरह का विरोधाभास नही होना चाहिए।
रचना शिक्षण संबंधी जरूरी बातें
1. रचना का विषय छोटी कक्षाओं में बालकों की रूचि के अनुकूल होना चाहिए। इस स्तर पर वे विषय ज्यादा ठीक रहते हैं जो बालकों के प्रत्येक अनुभव से संबंधित होते हैं।
2. प्रत्येक शब्द का, उसकी आवश्यकता एवं स्थिति को ध्यान में रखकर ही प्रयोग करना चाहिए।
3. रचना करते समय छात्रों के मानसिक स्तर का अवश्य ध्यान रहना चाहिए। प्राथमिक कक्षाओं में भाव-प्रधान विषय नहीं देने चाहिए।
4. छात्रों को विभिन्न शैलियों का ज्ञान कराना चाहिए तथा शिक्षक को प्रत्येक शैली की विशेषताओं पर प्रकाश डालना चाहिए, यथासंभव छात्रों की शैली को सुधारना चाहिए।
5. रचना में बोल-चाल के शब्दों का भी प्रयोग कराया जा सकता हैं।
6. बालकों को अभिव्यक्ति का पूर्ण अवसर प्रदान करना चाहिए।
7. लिखित रचना का संशोधन छात्रों के सामने ही करना चाहिए।
8. व्यर्थ की बातों तथा अप्रासंगिक बातों को रचना में निरूत्साहित करना चाहिए।
9. रचना में किसी भी तरह का विरोधाभास नहीं होना चाहिए।
10. रचना का आकार न ज्यादा बड़ा एवं न ज्यादा संक्षिप्त होना चाहिए।
11. अस्पष्ट वाक्यों का प्रयोग नहीं होना चाहिए।
12. लिखित रचना से पहले मौखिक रचना जरूर करा लेनी चाहिए।
यह भी पढ़े; रचना शिक्षण की प्रणालियां/विधियां
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जानकारी पूर्ण रचना पोस्ट करने के लिए धन्यवाद
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