8/10/2021

पत्रकारिता का अर्थ, परिभाषा, महत्व, स्वरूप

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patrakarita arth paribhasha mahatva svarup;भारत मे पत्रकारिका का उदय बहुत सामान्य रूप मे हुआ। नारद मुनि को पत्रकारों का पूर्वज माना जाता है। महर्षि नारद अपने समय मे विश्व के सभी स्थानों का भ्रमण करके सामाचार संचय और प्रचार-प्रसार का कार्य करते थे, जिससे संबंधित व्यक्ति तद्नुसार अपना कार्य-सम्पादक कर सके। नारद के कार्य मे जनहित की भावना ही रहती थी। वास्तविक पत्रकारिता मे उस बात को अभिव्यक्त मिलनी चाहिए, जिसे जनता सोचती है। इसी कारण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जनता का मूल अधिकार माना गया है। प्रेस वास्तव मे ही जन-विचारधार का प्रतिनिधित्व करता है। इसी संदर्भ में राष्ट्रीपिता महात्मा गाँधी ने कहा था," समाचार-पत्र का एक उद्देश्य जनता की इच्छाओं-विचारों को समझना और उन्हें व्यक्त करना है, दूसरा उद्देश्य जनता में वांछनीय भावनाओं को जाग्रत करना और तीसरा उद्देश्य सार्वजनिक दोषों को निर्भयतापूर्वक प्रकट करना है।" 

वास्तव में समाचार-पत्र वर्तमान इतिहास का मुख्य प्रवक्ता होता है और इतिहास हर उस कार्य से बनता है जो जनता के हित मे है, जिसकी ओर जनता का ध्यान आकर्षित होता है एवं जिससे जनता की रूचि परिष्कृत होती है। नैपोलियन का यह कथन कि पत्रकारिता के क्षेत्र मे कार्य करने वाले लोग शिकायतखोर, टीकाकार, सलाहकार, बादशाहों के प्रतिनिधि और राष्ट्र के शिक्षक होते है। चार विरोधी अखबार हजार संगीनों से अधिक खतरनाक माने गये है। प्रसिद्ध शायर अकबर इलाहाबादी का यह शेर अखबार के महत्व को प्रतिपादित करता है-- "खींचो न कमानों को न तलवार निकालों, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालों।" 

पत्रकारिता का अर्थ (patrakarita kise kahate hai)

पत्रकारिता शब्द अंग्रेजी के 'जर्नलिज्य' का हिन्दी रूपांतर है। हिन्दी मे भी पत्रकारिता का अर्थ भी लगभग यही है। 'पत्र' से 'पत्रकार' और फिर 'पत्रकारिता' से इसे समझा जा सकता है। 'पत्रकार' का अर्थ समाचार-पत्र का संपादक या लेखक और 'पत्रकारिता' का अर्थ पत्रकार का काम या पेशा, समाचार के संपादन, समाचार इकट्ठे करने आदि का विवेचन करने वाली विद्या। लगभग सभी समाचार माध्यमों से संदेश या सूचना का प्रसार एक तरफा होता है। पत्रकारिता एक ऐसा कलात्मक सेवा कार्य है जिसमें सामयिक घटनाओं को शब्द एवं चित्र के माध्यम से जन-जन तक आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया हो और जो व्यक्ति से लेकर समूह तक और देश से लेकर विश्व तक के विचार, अर्थ, राजनीति और यहाँ तक कि संस्कृति को भी प्रभावित करने में सक्षम हो। इसलिए समाचार जल्दी मे लिखा गया इतिहास होता है। समय के साथ पत्रकारिता का मूल्य बदलता गया है। आज इंटरनेट और सूचना अधिकार ने पत्रकारिता को बहु आयामी और अनंत बना दिया है। 

पत्रकारिता की परिभाषा (patrakarita ki paribhasha)

डाॅ. बन्द्रीनाथ कपूर के शब्दों मे," पत्रकारिता पत्र-पत्रिकाओं के लिए समाचार, लेख आदि एकत्रित तथा संपादित करने, प्रकाशन-आदेश आदि देने का कार्य है।"

चम्बर्स डिक्शनरी के अनुसार," आकर्षक शीर्षक देना, पृष्ठों का आकर्षक बनाव, जल्दी से जल्दी समाचार देने की होड़, देश-विदेश के प्रमुख उद्योग-धंधों के विज्ञापन प्राप्त करने की चतुराई, सुन्दर छपाई तथा पाठक के हाथ में सबसे जल्दी पत्र पहुंचा देने की त्वरा, ये सब पत्रकार-कला के अंतर्गत आ गये है।" 

अमेरिकन इनसाइक्लोपीडिया ने पत्रकारिता के स्वरूप को समझाते हुये लिखा है कि," 'जर्नलिज्म' फ्रेंच शब्द 'जर्नी' से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ होता है-- एक-एक दिवस का कार्य अथवा उसकी विवरणिका प्रस्तुत करना। पत्रकारिता दैनिक जीवन की घटनाओं तथा उनके आधार पर प्रकाशित पत्रों की संवाहिका होती है। इसमें घटनाओं, तथ्यों, व्यवस्थापरकता के साथ-साथ राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा कलात्मक संदर्भों की प्रस्तुति होती है।"

पत्रकारिता का महत्व 

patrakarita ka mahatva;जैफर्सन ने तो समाचार-पत्र जगत् को इतना महत्वपूर्ण स्थान दिया है कि, अगर उनको एक समाचार-विहीन शासन-व्यवस्था तथा शासनविहीन समाचार-पत्र वाले समाज में से चुनने को कहा जाये तो वह निःसंदेह समाचार-पत्र वाली व्यवस्था को अंगीकार करेगा।" शारीरिक अथवा सामाजिक दंड की सीधी शक्ति न रखते हुये भी सिर्फ लोकमत के बल पर वर्तमान पत्र इतने सशक्त होते है कि उन्हें 'फोर्थ एस्टेट', 'पावर बिहाइंट दी थ्रोन' 'आल पावर फुल' आदि नामों से पुकारा जाता है। बर्क ने पत्रकारिता को 'चौथी सत्ता' कहा है, तो ऑस्कर वाइल्ड कहते है कि "आज तो प्रेस ही एकमात्र रियासत है।" 

'जनसत्ता' के संपादक श्री प्रभात जोशी ने कहा है," न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका तथा प्रेस में मैं 'चौथा खंभा' हूं तो पत्रकार होने के नाते मेरा अधिकार तथा कर्तव्य है कि इन तीनों खंभों को मैं 'जज करूं'।" स्पष्ट है श्री जोशी ने पत्रकारिता को अत्यंत महत्वपूर्ण माना है। 

इन्द्र विद्यावाचस्पति इसे 'वर्तमान युग का सबसे प्रभावशाली आविष्कार' मानते है। श्री विद्यालंकार इसे 'पांचवां वेद' स्वीकार करते है। प्रसिद्ध शायर अकबर इलाहाबादी ने तो यहां तक कह डाला कि 'जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।' 

समाचार-पत्र समाज के सामने एक समस्या के कई विकल्प प्रस्तुत करते है। इससे समाज को निर्णय करने और अपना रास्ता चुनने में आसानी होती है। इन सब कारणों से ही राजेन्द्र ने समाचार-पत्र को 'श्री जनसाधारण' की संज्ञा दी है। दैनिक समाचार-पत्रों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे समूचे विश्व का दर्पण मनुष्य के हाथों में सौंप देता है। संप्रेषण के माध्यमों के विकास ने पत्रकारिता को इतना व्यापक बना दिया है कि आज हम घटनाओं को देखते हुए देख व सुन सकते है। दूरदर्शन अर्थात् 'टेलीविजन'  हम हजारों सैकड़ो किलोमीटर की दूरी की चीजों को आमने-सामने देख सकते है। इसी के माध्यम से हम बच्चे, युवा, बूढ़े, पढ़े-अनपढ़, सभी को घर बैठे-बैठे ही तरह-तरह की शिक्षाप्रद जानकारी दे सकते है।

पं. कमलापति त्रिपाठी लिखते है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

पत्रकारिता का स्वरूप 

पत्रकारिता का स्वरूप निम्न प्रकार है-- 

1. समाज का दर्पण 

पत्रकारिता समाज का दर्पण है। समाज में कब, कहां, क्यों, कैसे, क्या हो रहा है? इन प्रश्नों का उत्तर पत्रकारिता है। "पत्रकारिता वह माध्यम है, जिसके द्वारा हम अपने मस्तिष्क में उस दुनिया के बारे में समस्त सूचनाएं संकलित करते है, जिसे हम स्वतः कभी नही जान सकते। पत्रकारिता सामाजिक जीवन की सत्-असत्, दृश्य-अदृश्य तथा शुभ-अशुभ छवियों का दर्पण है। समाज में फैली कुरीतियों, अंधविश्वासों रूढ़ियों आदि के प्रति भी पत्रकारिता संघर्ष छेड़ती है तथा समाज से इन बुराइयों को मिटाने का प्रयत्न करती है। 

2. सूक्ष्म शक्ति 

पत्रकारिता के माध्यम से परिवेश का सर्वांगीण निरूपण होता है। आज हमारा जीवन पर्याप्त जटिल तथा संकुल हो गया है। प्रतिपल घटने वाली करूणाजनक, भयावह तथा कंपा देने वाली घटनाओं से मनुष्य आश्चर्यचकित हो जाता है। मानवीय संबंधों मे आज परिवर्तन हो रहा है। उन संबंधो का सूक्ष्म निरूपण तथा प्रस्तुतीकरण अनेक बार हमें समाचार-पत्रों से मिलती है। पत्रकार समाज के सजग प्रहरी के रूप में समाज में घटित घटनाओं को गहराई से समझता है। बदलते हुये परिवेश और मानव संबंधों की जटिलता के कारणों, प्रतिक्रियाओं तथा परिणामों का विश्लेषण करता है। पत्रकारिता परिवेश के शरीर अर्थात् स्थूल घटनाचक्र के साथ-साथ मन अर्थात् सूक्ष्म संबंधों तक को उजागर करती है। 

3. सर्जनात्मकता 

स्वस्थ पत्रकारिता का लक्षण नीर-क्षीरवत् विवेचन एवं निर्णय का काम होता है। जो पत्रकारिता गहराई तक अपनी पहुंच रखती है, उसे मात्र निषेधात्मक मानना औचित्यपूर्ण है, क्योंकि एक 'पत्रकार भविष्यदृष्टा होता है। वह समस्त राष्ट्र की जनता की चित्तवृत्तियों, अनुभूतियों और आत्मा का साक्षात्कार करता है। पत्रकार किसी को ब्रह्राज्ञानी नही बना सकता, परन्तु मनुष्य की भांति जीते रहने की प्रेरणा देता है। जहां उसे अन्याय, अज्ञान, उत्पीड़न, प्रवंचना, भ्रष्टाचार, कदाचार दिखाई देता है, वह उनका ताल ठोककर विरोध करता है तथा आशातीत आत्मविश्वास एवं दृढ़ता से प्राणी-प्राणी में शांति एवं सद् भाव की स्थापना करता है। सच्चा पत्रकार निर्माण क्रांति की लपटों से, समाज की बुराइयों को भस्म करने का आयोजन करता है।" 

4. सामाजिक मूल्यों की विधायिका 

पत्रकारिता स्वस्थ्य सामाजिक मूल्यों की नियामिका है। देश व समाज मे व्याप्त असंतोष, भले ही वह देश, जाति, धर्म के रूप में क्यों न हो, पत्रकारिता उसका सही विश्लेषण करती है। उदाहरणार्थ, आपातकाल के दौरान देश मे परिवार नियोजन के प्रति लोगों में आक्रोश पैदा हुआ और उसकी जो भी प्रतिक्रिया हुई उसका विस्तार ब्यौरा प्रकाशित करके मनुष्य को उसके प्रति अच्छी तथा बुरी बातें बताकर उसने उसका मार्ग प्रशस्त किया। यह राष्ट्र में घटने वाली सभी महत्वपूर्ण घटनाओं के बारें में चिंतन की प्रक्रिया को जन्म देकर उसे सही दिशा में अग्रसर होने में सहायता करती है। वास्तविक पत्रकारिता तो एक मार्गदर्शिका, जीवन-निर्मात्री तथा सामाजिक मूल्यों की विधायिका है।

5. परिवेश से साक्षात्कार: पत्रकारिता परिवेश से रूबरू कराती है 

पत्रकारिता मनुष्य को उसके परिवेश से अंतरराष्ट्रीय घटनाचक्र से जोड़ देती है। पत्रकारिता मनुष्य को उसके चारों तरफ हो रहे घटनाचक्रों से परिचित कराती है। पत्रकारिता के माध्यम से न सिर्फ हम अपने परिवेश से परिचित होते है, बल्कि दूरवर्ती देशों से भी हमारा साक्षात्कार कुछ ही क्षणों मे हो जाता है। यही क्यों, कहीं कुछ घटित हुआ कि नही इसकी खबर हम न केवल पढ़ ही पाते है, अपितु टेलीविजन जैसे वैज्ञानिक उपकरण के द्वारा उस घटना का आंखो देखा चित्र भी देख लेते है।

6. विविधात्मकता 

पत्रकारिता का क्षेत्र न केवल विविधात्मक है वरन् व्यापक भी है। जीवन का कोई भी विषय या कोई भी पक्ष पत्रकारिता से अछूता नही। आज प्रत्येक विषय से संबंधित पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित होती है। प्रत्येक समूह का व्यक्ति अपने विषय के संबंध में नवीनतम जानकारी और ज्ञान के लिए पत्रकारिता को ही माध्यम बनाते है। पत्रकारिता का क्षेत्र अब व्यापक हो गया है। वह समाचारों या राजनीति की सीमा से परे है, बल्कि साहित्य, फिल्म, खेल-कूद, वाणिज्य, व्यवसाय, विज्ञान, धर्म, हास्य, व्यंग्य तथा ग्रामीण क्षेत्र में भी प्रवेश कर चुकी है। 

7. विकृति विनाशक 

पत्रकारिता समाज की विकृतियों का निर्ममता से पर्दाफाश करके उन्हें समूह नष्ट करने का प्रयास करती है। पत्रकार की नजर तीखी व तेज होती ही है, वरन् शिव जैसी तीसरी आंख भी होती है। यही कारण है कि पत्रकार परिवेश के शरीर में दौड़ते हुए रक्त या उसके रक्तचाप की परीक्षा करता है, उसकी धड़कनों का हिसाब रखता है। जब वह अधिक विकृत होने लगता है, तब पत्रकार कुशलतापूर्वक सामाजिक परिवेश की एक्स-रे-रिपोर्ट भी प्रस्तुत कर देता है।

8. संप्रेषण का सशक्त माध्यम 

पत्रकारिता संप्रेषण का एक सशक्त माध्यम है। रेडियों, टेलीविजन, फिल्म, समाचार-पत्र आदि ऐसे माध्यम है, जिनके द्वारा समाज मे किसी भी क्षेत्र में घटित घटनाएं हमें तुरंत ही मिल जाती है। पत्रकारिता जनता को सचेत करती है साथ ही उसे शिक्षित करती हुई उसे सुरुचिपूर्ण मनोरंजन भी प्रदान करती है। यही वह साधन है, जो हमें विश्व मे होने वाले, संपूर्ण नवीन आविष्कारों, घटनाओं और अनुसंधानों से परिचित कराकर प्रभावित करता है।

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