अनुवाद का अर्थ एवं परिभाषा
anuvad arth paribhasha prakar;अनुवाद शब्द अंग्रेजी के शब्द ट्रांसलेशन (Translation) का पर्यायवाची है। इसका अर्थ है--'पारवहन'। पार अर्थात् 'अन्यत्र' दूसरी ओर' तथा वहन का अर्थ है 'ले जाना'। इस प्रकार किसी वस्तु को एक स्थान से अन्यत्र या दूसरी ओर ले जाना 'ट्रांसलेशन' कहलाता है। अंग्रजी शब्दकोष के अनुसार," एक भाषा के पाठ को दूसरी भाषा में व्यक्त करना 'ट्रांसलेशन' कहलाता है।"
अनुवाद वस्तुतः जटिल भाषिक प्रक्रिया का परिणाम या उसकी परिणति है। अनुवाद की प्रक्रिया बहुस्तरीय है। उसका एक स्तर विज्ञान की तरह विश्लेषणात्मक है जो क्रमबद्ध विवेचन की अपेक्षा रखता है। प्रयोजनमूलक हिन्ही के साथ-साथ वर्तमान में अत्यंत प्रभावशाली माध्यम के रूप में अनुवाद की महत्वपूर्ण भूमिका है। विश्वफलक पर तेजी से अविर्भूत होते ज्ञान-विज्ञान तथा प्रौद्योगिक की अनेकविध क्षेत्रों का फैलाव समस्त जगत् मे तीव्र गति से हो रहा है। ज्ञान-विज्ञान के उक्त सभी क्षेत्रों, देश-विदेशों की संस्कृति तथा देश के प्रशासन आदि को यथाशीघ्र समुचित ढंग से अभिव्यक्ति देने मे एक सहायक अनिवार्य तत्व के रूप मे अनुवाद का महत्व स्वयंसिद्ध है।
निष्कर्षतः अनुवाद के प्रमुखतः तीन उद्देश्य है--
1. दूसरी भाषा के साहित्य से अपनी भाषा के साहित्य को समृद्ध करना।
2. दूसरी भाषाओं की शैलियों, मुहावरों, दार्शनिक तथ्यों, वैज्ञानिक एवं तकनीकि ज्ञान की प्राप्ति।
3. विचार-विनिमय।
अनुवाद के प्रकार
अनुवाद मुख्यतः तीन प्रकार के होते है--
1. शब्दानुवाद
शब्दानुवाद में मूल भाषा का दूसरी भाषा में ज्यों का त्यों अनुवाद किया जाता है। मूल भाषा की शब्द-योजना और वाक्य विन्यास को यथावत् अनुवाद की भाषा में रखा जाता है। यह शब्दसः उनका अनुवाद होता है अर्थात् वाक्य में प्रयुक्त शब्दक्रम के अनुसार ही अनुवाद में क्रम रखा जाता है। इससे कई बार वाक्य का सही अर्थ ध्वनित नही होता और कई बार तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
2. भावानुवाद
शब्दानुवाद की तुलना में भावानुवाद पाठक को अधिक समझ में आता है। इसमें शब्दों के क्रमानुसार अनुवाद का ध्यान न रखते हुये उस वाक्य या वाक्यों के भावगत पर नजर रखी जाती है और अनुवाद का लक्ष्य मूलभाव को उजागर करना होता है, लेकिन अनुवादक इस कार्य में अपने विचारों का समिश्रण नही कर सकता। केवल वह भावानुवाद करता है।
3. पर्याय या रूपांतर अनुवाद
इसमें अनुवादक की पूरी मनमानी रहती है। वह यथेष्ट परिवर्तन करता है। अपनी बातों-विचारों का समावेश करता है, लेकिन मूलपाठ के उद्देश्य अथवा विचार से भटकता नही है बल्कि उसमें नई ऊर्जा और चेतना भर देता है।
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Hii
जवाब देंहटाएंI don whit mi
हटाएंअनुवाद का स्वरूप
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