श्रवण कौशल का अर्थ (shravan kaushal kya hai)
श्रवण कौशल से आशय सही ढंग से सुनने की क्षमता हैं। 'श्रवण' शब्द 'श्रु' धातु से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है सुनने की क्रिया, ध्यानपूर्वक सुनना, अध्ययन करना, अधिगम/सीखना करना आदि। कौशल का अर्थ हैं ठीक तरह के काम करने की योग्यता, दक्षता या समर्थता।
बालक ध्वनियों को सुनते हैं और सुनकर अनुकरण करते हैं। श्रवण कौशल का विकास धीर-धीर होता हैं। श्रवण कौशल के विकास के लिये बच्चों में प्रारंभ से ही सभी ध्वनियों को सुनकर उनमें विभेद करने का सामर्थ्य विकसित करना चाहिए। छात्रों में ध्यानपूर्वक सुनने की योग्यता का विकास किया जाना चाहिए। उनके समक्ष शिक्षक को आदर्श ध्वनियों का उच्चारण करना चाहिए। छात्रों में श्रोता के शिष्टाचार का पालन करने की आदत डालनी चाहिए। साथ ही छात्रों द्वारा निर्देशों को सुनकर उनका पालन कर सकते की योग्यता विकसित करना आवश्यक हैं। कहानियों, कविताओं, चुटकुले, वर्णन-वार्ताओं आदि सुनकर ज्ञानवृद्धि करने तथा मनोरंजन कर सकने की क्षमता का विकास श्रवण से ही संभव होगा। छात्रों में वक्ता के स्वर के कथन, प्रश्न, आश्चर्य, झिड़की आदि भावों को पहचान सकने की क्षमता भी विकसित होनी चाहिए तभी उसका श्रवण कौशल समुचित रूप से विकसित हो सकेगा। श्रवण कौशल के विकास एवं परिपक्वता की दृष्टि से व्यतिरेकी ध्वनियों को छात्रों द्वारा पहचानना नितान्त आवश्यक हैं।
श्रवण कौशल के उद्देश्य (shravan kaushal ke uddeshy)
श्रवण कौशल के निम्नलिखित उद्देश्य हैं--
1. छात्रों में श्रवण के प्रति रूचि उत्पन्न करना जिससे वे दूसरों की बातों को ध्यानपूर्वक सुन सकें।
2. छात्रों में सुनकर अर्थ ग्रहण करने की योग्यता विकसित करना।
3. दूसरों के द्वारा उच्चारित शब्दों को सुनकर शुद्ध उच्चारण करने की योग्य बनाना।
4. श्रुत सामग्री के महत्वपूर्ण अंशों को पहचानने की योग्यता विकसित करना।
5. श्रुत सामग्री के महत्वपूर्ण, आकर्षक, मर्मस्पर्शी विचारों तथा भावों का चयन करने की योग्यता विकसित करना।
6. वक्ता के मनोभावों को समझने योग्य बनाना।
7. श्रुत सामग्री का सारांश ग्रहण करने की योग्यता विकसित करना।
8. भाषा एवं साहित्य के प्रति रूचि उत्पन्न करना।
श्रवण कौशल का महत्व (shravan kaushal ka mahatva)
श्रवण कौशल के महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता हैं--
1. बालक के व्यक्तित्व के विकास में श्रवण कौशल का अधिक महत्व होता हैं। बालक जिन ध्वनियों को बड़ों से सुनता हैं वह उसके मन-मस्तिष्क में अंकित हो जाती हैं। ये अंकित ध्वनियाँ ही बच्चे के भाषा ज्ञान का आधार बनती हैं। श्रवण कौशल अन्य भाषायी कौशलों को विकसित करने की प्रमुख आधारशिला हैं।
2. बालक श्रवण के प्रति जागरूक बनता है तथा श्रवण कौशल द्वारा बालक की श्रवणेन्द्रियों का उपयोग होता हैं।
3. भाषा अनुकरण द्वारा सीखी जाती हैं। नए-नए शब्दों को सुनकर बालक अपने शब्द भण्डार में वृद्धि करता हैं। बालक परिवार के सदस्यों और अध्यापकों की बात सुन7कर स्वयं अपने उच्चारणर, हाव-भाव, उतार-चढ़ाव एवं उचित स्वरगति के अनुसार बोलने का प्रयास करता हैं। इस प्रकार उसकी मौखिक अभिव्यक्ति का विकास होता हैं।
4. शांत रहकर, दूसरों की बात सुनकर व समझकर ही व्यक्ति विचारों के प्रतिपादन हेतु ठोस तर्क प्रस्तुत कर सकता हैं।
5. साहित्य की विभिन्न विधाओं का अध्ययन तथा उनकी व्याख्या को सुनकर ही उसकी विषय वस्तु को ग्रहण किया जा सकता हैं। बालक कविता का रसास्वादन और कहानी का आनंद सुनकर ही कर सकता हैं।
श्रवण कौशल में ध्यान देने योग्य बातें
श्रवण कौशल को विकसित करने के लिए निम्नलिखित बातों की तरफ ध्यान देना जरूरी हैं--
1. बालक श्रवण में रूचि रखें।
2. बालक में धैर्यपूर्वक सुनने की क्षमता होनी चाहिए।
3. बालक में भाव ग्रहण करने की क्षमता होनी चाहिए।
4. बालक को हिन्दी ध्वनि, ध्वनि के प्रकार एवं उनके वर्गीकरण का पूरा ज्ञान होना चाहिए।
5. बालक की श्रवणेन्द्रियाँ ठीक होनी चाहिए।
6. शिक्षक का उच्चारण शुद्ध होना चाहिए।
7. आदर्श वाचन करने के बाद शिक्षक को बालकों से प्रश्न पूछने चाहिए।
यह भी पढ़े; श्रवण कौशल शिक्षण की विधियाँ/क्रियाएं
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