त्रिभाषा सूत्र क्या हैं? (tribhasha sutra kise kahate hain)
वर्तमान में जब भी भाषा सम्बन्धी समस्या के समाधान की बात आती है तो, त्रिभाषा - सूत्र की दुहाई दी जाती है। त्रिभाषा-सूत्र का शब्दार्थ है- तीन भाषाओं वाला सूत्र। त्रिभाषा सूत्र पर विचार करने से पूर्व, हम यह देखने का प्रयास करेंगे कि त्रिभाषा-सूत्र से तात्पर्य क्या है?
त्रिभाषा सूत्र की उत्पत्ति
ताराचन्द समिति और द्वि-भाषा सूत्र की सिफारिश
1947 ई . में भारतवर्ष स्वाधीन हुआ। लोगों ने इस बात की आवाज उठाई, कि माध्यमिक शिक्षा में सुधार होना चाहिए। फलस्वरूप 1948 ई. में डॉक्टर ताराचन्द की अध्यक्षता में एक समिति को यह काम सौंपा गया। उस समय तक भारतीय संविधान का निर्माण नहीं हुआ था। इस समिति ने माध्यमिक स्तर तक द्वि-भाषा सूत्र की सिफारिश इस प्रकार से की--
(क) सीनियर बेसिक स्तर तक शिक्षा का माध्यम 'मातृभाषा' हो।
(ख) कुछ समय तक आंग्ल भाषा अनिवार्य रूप से पढ़ाई जाए। जब आंग्ल भाषा हट जाए तब संघीय भाषा अनिवार्य रूप से पढ़ाई जाए ताराचन्द्र समिति ने कहीं स्पष्ट नहीं किया कि "कुछ समय" से उसका क्या तात्पर्य है।
माध्यमिक शिक्षा आयोग और दो भाषाओं की संस्तुति
1952 ई. में डॉ. मुदालियर की अध्यक्षता में एक आयोग की नियुक्ति की गई। इस आयोग का सम्बन्ध माध्यमिक शिक्षा के साथ था। इस आयोग ने अपना प्रतिवेदन 1953 ई. में प्रस्तुत किया।
माध्यमिक विद्यालयों में भाषाओं के अध्ययन के सम्बन्ध में मुदालियर आयोग ने ये सुझाव दिये हैं--
1. माध्यमिक पाठशालाओं में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा या प्रादेशिक भाषा होना चाहिए।
2. मिडिल स्कूलों में छात्रों को कम से कम दो भाषाओं की शिक्षा प्रदान की जाए, परन्तु दोनों भाषाएं एक ही वर्ष में प्रारंभ न की जाएं।
3. उच्चतर माध्यमिक स्तर पर कम से कम दो भाषाओं की शिक्षा दी जाए, जिसमें एक मातृभाषा और दूसरी प्रादेशिक भाषा हो।
इससे स्पष्ट हो जाता हैं कि माध्यमिक शिक्षा आयोग ने दो भाषाओं का ही समर्थन किया हैं।
माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम पर विचार करते हुए मुदालियर आयोग ने यह दो भाषाओं वाला स्वरूप ही अपने सामने रखा; यथा--
1. मातृभाषा या प्रादेशिक भाषा अथवा मातृभाषा और प्राच्य भाषा का संयुक्त पाठ्यक्रम।
2. निम्नलिखित भाषाओं में से कोई एक भाषा--
(अ) हिन्दी
जिनकी मातृभाषा हिन्दी नहीं हैं।
(ब) प्रारंभिक आंग्ल
जिन्होंने मिडिल स्कूल में इसका अध्ययन नहीं किया।
(स) उच्च आंग्ल
जो पहले इसे पढ़ चुके हैं।
(द) कोई आधुनिक
भारतीय भाषा
हिन्दी से भिन्न।
(ई) कोई विदेशी भाषा
आंग्ल से भिन्न।
(फ) कोई प्राच्य भाषा
त्रिभाषा-सूत्र की शुरुआत
मुदालियर आयोग की रिपोर्ट के बाद भी मानसिक दासता से ग्रस्त अंग्रेजीदां लोग शोर मचाते रहे। प्रशासन के लोग भी अंग्रेजी के मोह से ग्रस्त थे। परिणामस्वरूप " केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार मण्डल" को फिर से विचार करने को कहा गया। मण्डल ने यह सुझाव दिया "माध्यमिक विद्यालयों के प्रत्येक विद्यार्थी को अधोलिखित तीन भाषाएं अनिवार्य रूप से पढ़नी होगी--
1. मातृभाषा या प्रादेशिक भाषा
2. हिन्दी (अहिन्दी भाषा क्षेत्रों के लिए) अथवा एक आधुनिक भारतीय भाषा (हिन्दी भाषी क्षेत्रों के लिए)
3. आंग्ल
1957 ई. में केन्द्रीय प्रशासन ने इस सिफारिश को स्वीकार कर लिया और मुख्य मन्त्रियों (जो प्रशासकीय दल से सम्मिलित थे) से 1961 ई. में इस पर ठप्पा लगवा दिया गया।
यह भी पढ़े; त्रिभाषा-सूत्र की मूल अवधारणायें, दोष
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