मूल्यांकन के प्रकार
मुख्यतः मूल्यांकन दो प्रकार का हैं या यह कहिये कि मूल्यांकन दो तरह से किया जाता हैं--
1. आंतरिक मूल्यांकन
आंतरिक मूल्यांकन विद्यार्थी की दैनिक प्रगति, उसके द्वारा किये गये कक्षा व गृहकार्य, विभिन्न साहित्यिक, सांस्कृतिक खेलकूद एवं रचनात्मक कार्यक्रमों में लिये गये भाग क्षमताओं कौशल, अनुप्रयोग आदि तथा आवधिक मूल्यांकन परीक्षण के परिणामों पर आधारित होती हैं। इस प्रकार के मूल्यांकन को अत्युत्तम माना गया हैं।
2. बाहरी मूल्यांकन
बाह्रा मूल्यांकन विद्यालयों, शिक्षा-मण्डलों, विभागीय मण्डल, पतियोगी परीक्षा मण्डलों व प्रवेश तथा नियुक्ति के लिये ली जाने वाली परीक्षा के लिये इनके द्वारा आयोजित परीक्षाओं के रूप में किया जाता हैं। परीक्षा में लिखित उत्तर या किये गये प्रायोगिक कार्यों के आधार पर अंक दिये जाते हैं और न्यूनतम उत्तीर्णींक के आधार पर परीक्षार्थी को उत्तीण घोषित किया जाता हैं। प्राप्तांकों के आधार पर प्रथम, द्वितीय, तृतीय और उत्तीर्ण श्रेणियाँ भी दी जाती हैं या प्रवीणता मेरिट लिस्ट तैयार की जाती हैं। लिखित परीक्षाओं में विभिन्न प्रकार के ज्ञानलब्धि, अभिरूचियों आदि का मूल्यांकन करने हेतु विभिन्न प्रकार के निबन्धात्मक, लघुउत्तरीय, वस्तुनिष्ठ प्रश्न (विशेष रूप से बहुवैकल्पिक) पूछे जाते हैं। ये प्रश्न निर्धारित पाठ्य-सामग्री पर आधारित होते हैं।
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भाषा शिक्षण एवं मूल्यांकन
भाषा शिक्षण के माध्यम से बालकों में निम्नलिखित योग्यतायें और कौशल के विकास की अपक्षायें की जाती हैं--
1. ज्ञानर्जन
भाषा के तत्वों का ज्ञान, प्रस्तावित पाठ्य-वस्तु का ज्ञान, भाषा व साहित्य की विविध विधाओं का ज्ञान, रचना-कार्य के विविध रूपों का ज्ञान।
2. अर्थग्रहण क्षमता
पत्र श्रवण एवं पठन कौशल।
3. अभिव्यक्ति (मौखिक व लिखित) की क्षमता।
4. सुरूचियों एवं सद्प्रवृत्तियों का विकास।
उपरोक्त सभी उद्देश्यों और लक्ष्यों की पूर्ति के लिए मूल्यांकन के लिए परीक्षण की व्यापकता नितान्त रूप से आवश्यक हैं। अतः मूल्यांकन में परीक्षण शिक्षण के लिये हैं, शिक्षण परीक्षण के लिए नहीं हैं। यह बात मूल्यांकन का केन्द्रबिन्दु हैं। इसलिए शिक्षण का उद्देश्य हैं योग्यताओं को उत्पन्न करना और परीक्षण का उद्देश्य होना चाहिए विद्यार्थियों की समग्र सम्प्राप्ति पूर्ण की जानकरी करना।
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