मूल्यांकन की विधियाँ
मूल्यांकन की मुख्य प्रविधियां निम्नलिखित हैं--
1. निरीक्षण प्रविधि
परीक्षण के द्वारा छात्रों के सामाजिक विकास, संवेगात्मक तथा बौद्धिक परिपक्वता के बारे में ज्ञात किया जाता हैं। निरीक्षण के द्वारा जब हमें ज्ञात हो जाता हैं कि बालकों में कौन-कौन सी आदतें विकसित हुई हैं। इसी कारण यह प्रविधि आदतों तथा कुशलताओं के विकास के परीक्षण हेतु उपयोगी हैं।
2. साक्षात्कार प्रविधि
साक्षात्कार के द्वारा छात्रों की रूचि में वृद्धि तथा मनोवृत्ति में परिवर्तन का ज्ञान होता हैं। साक्षात्कार छात्रों की विभिन्न व्यक्तिगत विशेषताओं के परीक्षण करने में विशेष मदद पहुंचाता हैं। साक्षात्कार मूल्यांकन का एक महत्वपूर्ण साधन हैं, जिसके आधार पर शारीरिक तथा व्यावहारिक पहलुओं का प्रत्यक्षीकरण होता हैं एवं प्रश्नोत्तर रूप में आमने-सामने एक-दूसरे की समस्याओं को समझने में सुमगता होती हैं। प्राप्त समंकों की पुष्टि की जा सकती हैं।
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3. प्रश्नावली प्रविधि
प्रश्नावली का प्रयोग छात्रों से कई तरह की सूचनाएँ प्राप्त करने के लिए किया जाता है। छात्र प्रश्नों की श्रृंखला के प्रति अपनी रूचि एवं योग्यता के अनुसार अनुक्रिया व्यक्त करते हैं। "प्रश्नों की वह क्रमिक श्रृंखला, जो किसी विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति हेतु निर्मित की जाती हैं, प्रश्नावली कहलाती हैं।"
4. जाँच-सूचियाँ प्रविधि
प्रयोगात्मक ज्ञान, अभिवृत्तियों, रूचियों आदि के संबंध में छात्र की निष्पत्तियों का पता लगाना जाँच सूची का उद्देश्य होता हैं। इसका उपयोग आत्म-मूल्यांकन हेतु भी किया जाता हैं। जाँच-सूची के विषय में राइस्टोन का कथन हैं," जाँच-सूची, जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट होता हैं, कुछ चुने हुए शब्दों, वाक्यांशों, वाक्यों या अनुच्छेदों की एक सूची होती हैं, जिसके समक्ष निरीक्षण () इ तरह का चिन्ह अंकित कर देता हैं, जो निरीक्षक की उपस्थित अथवा अनुपस्थिति का सूचक होता हैं।"
जाँच-सूची की रचना करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए--
1. उद्देश्य स्पष्ट तथा निश्चित हो।
2. कथन-सूची विश्लेषण द्वारा भली भाँति विकसित की गयी हो।
3. प्रत्येक कथन विशिष्ट तथा कार्य-पूरक के रूप में दिया गया हो।
4. कथन निश्चित क्रम में तर्क पर आधारित हो।
5. छात्रों द्वारा निर्मित वस्तुएँ
छात्रों द्वारा जो वस्तुएँ बनायी जाती हैं, वे वस्तुएँ भी व्यवहार संबंधी सूचनाएँ प्रदान करने के महत्वपूर्ण साधन हैं। उदाहरण के लिए- कागज, लकड़ी अथवा मिट्टी की बनायी हुई वस्तुएँ छात्रों की कुशलताओं तथा रूचियों के विषय में अच्छी जानकारी प्राप्त करती हैं।
6. क्रम निर्धारण मान या मापनी
इसे निर्धारण मापनी भी कहते हैं। राइटस्टोन ने निर्धारण मापनी के विषय में लिखा हैं," निर्धारण मापनी में कुछ शब्दों, वाक्यों, वाक्यांशों अथवा अनुच्छेदों की सूची होती हैं, जिसके सामने निरीक्षण करने वाला मूल्यों के किसी वस्तुनिष्ठ मापनी के आधार पर कोई मूल्य अथवा क्रम अंकित करता हैं।"
इस विधि का प्रयोग सीमित हैं। इसका प्रयोग उन विशेषताओं का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता हैं, जिसको विभिन्न मात्राओं में पेश किया जा सकता हैं, निर्धारण मापनी जाँच बिन्दुओं अथवा नौ बिन्दुओं की हो सकती हैं।
7. अभिलेख प्रविधि
इस प्रविधि में छात्रों द्वारा लिखी गयी डायरियाँ, अध्यापकों द्वारा तैयार किये गये घटना-वृत्त एवं संचित अभिलेख-पत्र आदि शामिल किये जाते हैं। ये भी मूल्यांकन की महत्वपूर्ण प्रविधियाँ हैं। इनका संक्षिप्त परिचय इस तरह हैं--
(अ) छात्रों की डायरियाँ
छात्रों की डायरियों से उनकी रूचियों, अभिरूचियों, व्यक्तिगत तथा सामाजिक समस्याओं की पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती हैं।
(ब) घटना वृत्त
घटना वृत्तों के द्वारा छात्र के व्यवहार से संबंधित विशिष्ट जानकारी प्राप्त होती हैं। इसके द्वारा बालकों के दूसरों के प्रति दृष्टिकोण तथा व्यक्तित्व के विशेष पक्षों के विषय में भी ज्ञान प्राप्त किया जा सकता हैं।
3. संचित अभिलेख-पत्र
इसमें छात्रों की योग्यताओं शैक्षिक प्रगतियों तथा अन्य सूचनाओं का क्रमशः वर्णन किया जाता हैं। छात्रों के सभी तरह के परिक्षणों का विवरण भी इस अभिलेख में अंकित किया जाता हैं। यह वर्णन प्रायः तीन वर्ष का होता हैं। बालक का शारीरिक, पारिवारिक, सामाजिक, बौद्धिक एवं मनोवैज्ञानिक सभी बातें इस अभिलेख में अंकित की जाती हैं।
8. परीक्षा प्रविध
परीक्षा प्रविधि में प्रायः कई तरह की परीक्षाएँ शामिल की जाती हैं। ये परीक्षाएँ निम्न हैं--
(अ) लिखित परीक्षा
हमारे विद्यालयों में प्रायः लिखित परीक्षाओं का प्रयोग किया जाता हैं। ये परीक्षाएँ निबन्धात्मक तथा वस्तुनिष्ठ दोनों ही तरह की होती हैं। इन परीक्षाओं के अंतर्गत कार्य सौंपना, प्रतिवेदन अंकित करना तथा कागज, पेन्सिल की परीक्षाएँ आती हैं। ये परीक्षाएँ ज्ञान उपलब्धि के मूल्यांकन हेतु विशेष उपयोगी होती हैं। इनसे बालकों में प्रत्यास्मरण, विषय-सामग्री के संगठन, विश्लेषण तथा संश्लेषण की योग्यता का पता चलता हैं। ये परीक्षाएँ प्रमाणीकृत भी हो सकती हैं तथा अध्यापकों द्वारा निर्मित भी। जो परीक्षण अध्यापक द्वारा बनाये जाते हैं, उनका सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि शिक्षक कक्षागत परिस्थितियों का ध्यान रखते जाते हैं, उनका सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि शिक्षक कक्षागत परिस्थितियों का ध्यान रखते हुए वांछित व्यवहारों का मापन कर सकता हैं। इन परीक्षाओं के दो रूप ज्यादा प्रचलित हैं-- प्रथम निबन्धात्मक एवं द्वितीय, वस्तुनिष्ठ अथवा नवीन तरह की परीक्षा।
(ब) मौखिक परीक्षा
इस तरह की परीक्षा में मौखिक प्रश्न, वाद-विवाद अथवा विचार-विमर्श के द्वारा हम छात्रों के सूचनात्मक ज्ञान तथा अध्ययन की योग्यता की जाँच करते हैं। इन परीक्षाओं का प्रयोग लिखित परीक्षाओं के पूरक के रूप में किया जाता हैं। छात्रों के वैयक्तिक गुणों की जानकारी हेतु मौखिक परीक्षा विशेष उपयोगी होती हैं।
(स) प्रायोगिक परीक्षा
प्रायोगिक परीक्षा का प्रयोग, प्रयोगिक विषयों; जैसे-- विज्ञान, भूगोल एवं कृषि आदि में किया जाता हैं। ऐसी परीक्षाओं से बालकों की प्रायोगिक शक्ति तथा कौशल का अनुमान लगाया जा सकता हैं।
9. व्यक्ति इतिहास प्रविधि
इसके भीतर व्यक्ति स्वयं ही अपने विषय में लिखता हैं, जिससे उसके विषय में जानने से मूल्यांकन में काफी मदद मिलती हैं।
10. व्यक्ति अध्ययन प्रविधि
इस प्रविधि में व्यक्ति से संबंधित सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं। उन्हें व्यवस्थित करके उसकी समस्याओं को सुलझाने में मदद प्राप्त की जाती है तथा उनके अनुसार ही सुधारने की योजना तैयार की जाती हैं।
11. समाजमिति प्रविधि
इसके आधार पर मनुष्य के सामाजिक संबंधों का पता चलता हैं। उनको रेखांकित द्वारा प्रदर्शित किया जाता हैं। जे. डब्ल्यू, बेस्ट के अनुसार," समाजमिति एक तरह की प्रविधि हैं, जो कि किसी समूह के व्यक्तियों के आपसी सामाजिक संबंधों के विषय में वर्णन करती हैं।" इसके द्वारा तटस्थ, नायक, गुटबन्दी, तिरस्कृत आदि तथ्यों का पता लगता हैं, जो व्यक्ति के मूल्यांकन में बहुत सहायक हैं।
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