लोकसदन/काॅमन सभा का अध्यक्ष
ब्रिटेन के लोकसदन के अध्यक्ष को 'स्पीकर' कहा जाता हैं। स्पीकर का शाब्दिक अर्थ हैं-- बोलने वाला। ब्रिटिश स्पीकर का पद एक ऐतिहासिक पद हैं उसका अस्तित्व सन् 1336 से चला आ रहा हैं, जब थाॅमस हंगर फोर्ड देश के पहले स्पीकर बने थे। उन्हें 'स्पीकर' इसलिए कहा गया था क्योंकि प्रारंभ में केवल उन्हें ही सदन की तरफ से सम्राट के पास जाने और बोलने का अधिकार था। प्रारंभ में काॅमन सभा सम्राट के पास केवल याचिका भेजने वाली संस्था थी। यह कानून बनाने वाली संस्था न थी, उस समय काॅमन सभा की तरफ से उसका अध्यक्ष सम्राट के संम्मुक केवल बोलने का काम ही किया करता था। उस समय काॅमन सभा के अध्यक्ष का पद खतरे से खाली नहीं था क्योंकि यदि सम्राट अप्रसन्न हो जाता था, तो स्पीकर को कोई भी दण्ड दे सकता था।
ब्रिटिश लोकसदन/काॅमन सभा के अध्यक्ष का चुनाव
लोकसदन के अध्यक्ष यानि की स्पीकर के चुनाव सदन के सदस्यों द्वारा ही किया जाता हैं। अध्यक्ष का निर्वाचन प्रायः सर्वसम्मति से होता हैं। ब्रिटेन में यह परम्परा प्रचलित है कि "एक बार स्पीकर सदैव के लिए स्पीकर।" जब कोई व्यक्ति एक बार स्पीकर चुन लिया जाता हैं, तो वह आजीवन जब तक उसमें कार्य करने की क्षमता होती हैं तथा उसकी इच्छा होती हैं, वह अपने पद पर बना रहता हैं। इस संबंध में यह भी परम्परा हैं कि सामान्य निर्वाचन में भी उसका निर्वाचन निर्विरोध होता हैं। किसी नये व्यक्ति को अध्यक्ष पद पर निर्वाचित करने की व्यवस्था यह है कि प्रधानमंत्री तथा लोक सदन में विरोधी दल का नेता मिलकर ऐसे व्यक्ति को स्पीकर के लिए खड़ा करते हैं, जिस पर दोनों की सहमति हो। इस प्रकार निश्चित कर लेने के बाद सदन बहुमत दल के एक साधारण सदस्य द्वारा अध्यक्ष का नाम प्रस्तावित किया जाता हैं तथा प्रतिपक्ष का एक साधारण सदस्य उसके नाम का अनुमोदन करता हैं।
मुनरों के शब्दों में," साधारण सदस्यों द्वारा प्रस्ताव व अनुमोदन केवल यह बताने के लिए किए जाते हैं कि चयन मंत्रियों द्वारा न होकर पूरे सदन द्वारा हुआ हैं।"
स्पीकर का गौरवमय पद
ब्रिटिश स्पीकर का पद गौरवपूर्ण तथा शान-शौकत का हैं। उसका आसन इतना पवित्र और गरिमामय माना जाता हैं कि राजा तक उसका सम्मान करता हैं। स्पीकर को सबका सम्मान प्राप्त होता हैं और उसके अधिकार को सभी मानते हैं।
इर्सकिन का मत हैं कि," लोकसदन का अध्यक्ष सदन की शक्ति, उसकी कार्यवाही व उसकी शान के संबंध में सदन का प्रतिनिधि माना जाता हैं। वह सदन का एक अत्यंत विशिष्ट व्यक्ति होता हैं।"
लोकसदन/काॅमन सभा के अध्यक्ष/स्पीकर की शक्तियाँ व कार्य
ब्रिटिश काॅमन सभा के स्पीकर की मुख्य शक्तियां व कार्य निम्नलिखित हैं--
1. लोकसदन की अध्यक्षता
स्पीकर लोकसदन की सभी बैठकों की अध्यक्षता करता हैं। जब तक सदन में वह अपना स्थान ग्रहण नहीं कर लेता तब तक सदन की कार्यवाही प्रारंभ नहीं हो सकती। स्पीकर के बिना सदन का अधिवेशन नहीं हो सकता। स्पीकर की अनुपस्थिति में डिप्टि स्पीकर सदन की बैठकों की अध्यक्षता करता हैं।
2. नियमों की व्याख्या
लोकसदन की कार्यवाही के संचालन से संबंधित नियमों के विषय में वाद-विवाद होने पर अध्यक्ष ही उन नियमों की व्याख्या करता है और उन्हें क्रियान्वित करता हैं। सदन के किसी भी नियम के विषय में अध्यक्ष द्वारा की गई व्याख्या ही अन्तिम होती हैं। वह ही "कार्य स्थगन प्रस्तावों" को नियमित अथवा अनियमित घोषित करता हैं और यदि लोकसदन का कोई सदस्य किसी भी विषय पर "व्यवस्था का प्रश्न" उपस्थित करता है तो उस पर ही अध्यक्ष ही अन्तिम निर्णय दे सकता हैं।
3. बोलने की आज्ञा
सदन में विधेयकों तथा अन्य विषयों पर बोलने वाले बहुत अधिक सदस्य होते हैं। सदन के पास इतना समय नही होता कि वह सभी सदस्यों को बोलने की आज्ञा प्रदान कर सके। इसलिए स्पीकर कुछ सदस्यों को बोलने के लिए बुलाता हैं। उसकी आज्ञा के बिना कोई भी सदस्य नहीं बोल सकता। वह किसी भी सदस्य को किसी अप्रासंगिक बात पर बोलने से रोक सकता है। वह किसी भी सदस्य को संसद में असंसदीय भाषा के बोलने की आज्ञा नहीं देता हैं।
4. वित्त विधेयकों को प्रमाणित करना
1911 के संसदीय अधिनियम के अनुसार लोकसदन के अध्यक्ष को यह शक्ति प्राप्त है कि यदि किसी विधेयक पर वह वह विवाद खड़ा हो जाये कि वह बिल विधेयक है या नहीं, तो इस विषय पर अध्यक्ष का निर्णय सर्वमान्य होता हैं। वित्त विधेयक वह हैं जिसे अध्यक्ष 'वित्त विधेयक' प्रमाणीकृत कर दे।
5. निर्णायक मत देने का अधिकार
सामान्य तौर पर अध्यक्ष लोकसदन में किसी भी विषय पर होने वाले मतदान में भाग नहीं लेता हैं परन्तु यदि किसी विषय पर इसके पक्ष व विपक्ष में बराबर मत हो जाये तो उस विषय का निर्णय करने के लिए सदन के अध्यक्ष को निर्णायक मत देने का अधिकार होता हैं। अध्यक्ष द्वारा अपनी इस शक्ति का प्रयोग लोकसदन की परम्पराओं के अनुरूप ही किया जाता हैं।
6. सदन के विशेषाधिकारों की रक्षा
अध्यक्ष लोकसदन के विशेषाधिकारों का संरक्षक होता हैं। यदि कोई मंत्री सदन के सदस्यों के विशेषाधिकारों की उपेक्षा करता हैं या उनके प्रश्नों का उत्तर नहीं देता। या कोई आवश्यक जानकारी न दे या फिर एक सदस्य दूसरे सदस्य के अधिकारों में हस्तक्षेप करता हैं तो ऐसी परिस्थितियों में अध्यक्ष सदन के अधिकारों की रक्षा करता हैं।
7. समितियों के बारे में शक्तियाँ
अध्यक्ष यह निर्णय करता है कि कौन-सा विधेयक किस समिति को सौंपा जाए। इसके अतिरिक्त वह चयन समिति के द्वारा तैयार की हुई सूची में से स्थायी समितियों के अध्यक्षों की भी नियुक्तियाँ करता हैं।
8. लोकसदन व राजा की मध्यस्थता
लोक सदन का अध्यक्ष लोक सदन और राजा के बीच कड़ी के रूप में कार्य करता हैं। राजा की ओर से लोक सदन में यदि कोई संदेह भेजा जाता हैं तो स्पीकर ही उसे पढ़कर सुनाता हैं। वही सदन के संदेश राजा तक पहुंचाता हैं। वित्त विधेयकों को राजा के समक्ष स्वीकृत के लिए प्रस्तुत करना उसी का कार्य हैं।
9. लोकसदन व लाॅर्ड सभा की मध्यस्थता
लोक सदन तथा लाॅर्ड सभा के पारस्परिक व्यवहार में भी स्पीकर लोक सदन का प्रतिनिधित्व करता है। लोक सदन तथा लार्ड सभा के सदस्यों की जब सम्मिलित बैठक होती है तो स्पीकर लोक सदन का नेतृत्व करता हैं। कोई विधेयक वित्त विधेयक है अथवा नहीं, इसका निर्णय करने का अधिकार भी स्पीकर को हैं। लार्ड सभा विधेयकों पर जो प्रतिक्रिया व्यक्त करती है, उस संबंध में निर्णय करने का अधिकार स्वीकार को हैं कि इससे काॅमन सभा के अधिकारों को किसी प्रकार का आघात तो नहीं पहुँचाता।
10. सचिवालय
लोकसदन के अध्यक्ष के अधीन एक सचिवालय भी होता हैं जिसमें सचिव, सुपरिण्टेण्डेण्ट, लेखकगण, लाइब्रेरियन और प्राइवेट विधेयकों के निरीक्षक रहते हैं। वे स्पीकर की देख-रेख में ही कार्य करते हैं।
11. अध्यक्ष तथा बाह्रा जगत
बाहरी जगत में भी स्पीकर लोकसदन का नेतृत्व करता हैं। अन्य देशों में जाने वाले संसदीय प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व वही करता हैं। बाह्रा अधिकारियों को लोक सदन के निर्णयों की सूचना भी वही देता हैं।
लोकसदन के अध्यक्ष के इन विविध कार्यों व शक्तियों को देखते हुए जैनिंग्स ने कहा हैं," अध्यक्ष के सम्मान और आदर को उसकी शक्ति तथा कार्यों को गिनाकर प्रकट करना संभव नहीं हैं।"
अध्यक्ष एक आदर्श व्यक्ति है जिस पर सदन को पूर्ण विश्वास होता हैं। वह जो कहता है सबकों मान्य होता हैं क्योंकि जैसा कि ऑग व जिंक ने लिखा है कि," वह सभा के अंदर ही नही बल्कि बाहर भी दल बंदी की छाया से दूर रहता हैं।"
लोकसदन का अध्यक्ष निष्पक्ष व्यक्ति होता हैं। निर्वाचित होने के बाद वह अपने दल की सदस्यता से त्यागपत्र दे देता हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
Write commentआपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।