साक्षात्कार पद्धति का महत्व/लाभ अथवा गुण
sakshatkar ka mahatva;सामाजिक शोध (अनुसंधान) मे साक्षात्कार पद्धति का महत्वपूर्ण स्थान है। गुडे एवं हाट ने इसके महत्व के सम्बन्ध मे लिखा हैं " समकालीन अनुसंधान (शोध) मे साक्षात्कार का अधिक महत्व हो गया है, क्योंकि वह गुणात्मक साक्षात्कार का फिर से मूल्यांकन हैं। एक अर्थ मे साक्षात्कार वह आधारशिला है, जिस पर कि अन्य सब तत्व टिके है क्योंकि यह समग्री संकलन का पक्ष है। सामाजिक शोध मे साक्षात्कार का महत्व निम्नलिखित हैं--
1. घटनाओं का अवलोकन
साक्षात्कार के द्वारा साक्षात्कारकर्त्ता को अवलोकन का अवसर प्राप्त होता है। जिससे वह साक्षात्कार के साथ-साथ कई घटनाओं का अवलोकन भी कर सकता है। दोनों पद्धतियों से प्राप्त सामग्री ज्यादा विश्वसनीय होती है।
साक्षात्कार के द्वारा साक्षात्कारकर्त्ता को अवलोकन का अवसर प्राप्त होता है। जिससे वह साक्षात्कार के साथ-साथ कई घटनाओं का अवलोकन भी कर सकता है। दोनों पद्धतियों से प्राप्त सामग्री ज्यादा विश्वसनीय होती है।
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2. स्पष्टीकरण संभव
इसमे प्रत्येक प्रश्न और उत्तर की जांच होती रहती है। पारस्परिक विचारों के आदान-प्रदान के द्वारा समस्याओं और घटनाओं के स्पष्टीकरण मे मदद मिलती है।
3. ऐतिहासिक भावनात्मक पृष्ठभूमि का ज्ञान
इस पद्धति के द्वारा घटना का अध्ययन उसके ऐतिहासिक सन्दर्भ मे किया जाता है।
4. अमूर्त घटनाओं का अध्ययन
सामाजिक पद्धति के द्वारा हम सामाजिक घटनाओं तक पहुँचाने का प्रयास करते हैं। इस पद्धति के द्वारा सामाजिक घटनाओं का अध्ययन आसानी से किया जा सकता है।
5. सभी स्तर के लोगों को सूचना
साक्षात्कार पद्धति द्वारा सभी स्तर के लोगों से सूचनाएं प्राप्त की जा सकती है। यदि श्रमिकों का अध्ययन करना है तो श्रमिकों से साक्षात्कार किया जा सकता है, यदि वैश्यावृत्ति का अध्ययन करना है तो वैश्यावृत्ति से साक्षात्कार किया जा सकता है।
6. मर्मभेदक अध्ययन
अनेक घटनाएं ऐसी होती है जिनका अध्ययन अवलोकन प्रणाली के द्वारा नही किया जा सकता है। अनेक बातें गोपनीय और आन्तरिक जीवन से सम्बंधित होती है। साक्षात्कार के द्वारा हम इन बातों को आसानी से जान लेते है।
7. मनोवैज्ञानिक दृष्टि से उपयोगी
इस पद्धति का सबसे बड़ा महत्व इसकी मनोवैज्ञानिक उपयोगिता है। प्रत्येक व्यक्ति के अपने विचार, धारणा एवं उद्देश्य होते हैं। इन सबका अध्ययन आसानी से नही किया जा सकता है। परन्तु साक्षात्कार प्रणाली से इन सबके मनोवैज्ञानिक उतार-चढ़ाव का अध्ययन करता रहता है।
8. लचीली पद्धति
साक्षात्कार पद्धति एक लचीली पद्धति है, जिसमें आवश्यकतानुसार विषय-वस्तु एवं साक्षात्कार संचालन मे परिवर्तन किया जा सकता है।
9. बहुक्षेत्रीय सूचनाएं प्राप्त करना
इस प्रणाली को विभिन्न सूचनाओं से जानकारी प्राप्त करने के लिए किसी भी क्षेत्र मे अपनाया जा सकता है। एक ही साक्षात्कार से अनेक प्रकार की सूचनाएं प्राप्त की जा सकती है।
2. स्पष्टीकरण संभव
इसमे प्रत्येक प्रश्न और उत्तर की जांच होती रहती है। पारस्परिक विचारों के आदान-प्रदान के द्वारा समस्याओं और घटनाओं के स्पष्टीकरण मे मदद मिलती है।
3. ऐतिहासिक भावनात्मक पृष्ठभूमि का ज्ञान
इस पद्धति के द्वारा घटना का अध्ययन उसके ऐतिहासिक सन्दर्भ मे किया जाता है।
4. अमूर्त घटनाओं का अध्ययन
सामाजिक पद्धति के द्वारा हम सामाजिक घटनाओं तक पहुँचाने का प्रयास करते हैं। इस पद्धति के द्वारा सामाजिक घटनाओं का अध्ययन आसानी से किया जा सकता है।
5. सभी स्तर के लोगों को सूचना
साक्षात्कार पद्धति द्वारा सभी स्तर के लोगों से सूचनाएं प्राप्त की जा सकती है। यदि श्रमिकों का अध्ययन करना है तो श्रमिकों से साक्षात्कार किया जा सकता है, यदि वैश्यावृत्ति का अध्ययन करना है तो वैश्यावृत्ति से साक्षात्कार किया जा सकता है।
6. मर्मभेदक अध्ययन
अनेक घटनाएं ऐसी होती है जिनका अध्ययन अवलोकन प्रणाली के द्वारा नही किया जा सकता है। अनेक बातें गोपनीय और आन्तरिक जीवन से सम्बंधित होती है। साक्षात्कार के द्वारा हम इन बातों को आसानी से जान लेते है।
7. मनोवैज्ञानिक दृष्टि से उपयोगी
इस पद्धति का सबसे बड़ा महत्व इसकी मनोवैज्ञानिक उपयोगिता है। प्रत्येक व्यक्ति के अपने विचार, धारणा एवं उद्देश्य होते हैं। इन सबका अध्ययन आसानी से नही किया जा सकता है। परन्तु साक्षात्कार प्रणाली से इन सबके मनोवैज्ञानिक उतार-चढ़ाव का अध्ययन करता रहता है।
8. लचीली पद्धति
साक्षात्कार पद्धति एक लचीली पद्धति है, जिसमें आवश्यकतानुसार विषय-वस्तु एवं साक्षात्कार संचालन मे परिवर्तन किया जा सकता है।
9. बहुक्षेत्रीय सूचनाएं प्राप्त करना
इस प्रणाली को विभिन्न सूचनाओं से जानकारी प्राप्त करने के लिए किसी भी क्षेत्र मे अपनाया जा सकता है। एक ही साक्षात्कार से अनेक प्रकार की सूचनाएं प्राप्त की जा सकती है।
साक्षात्कार पद्धति की सीमाएं अथवा दोष (sakshatkar ke dosh)
साक्षात्कार की सीमायें अथवा दोष या हानियां निम्नलिखित हैं--
1. दोषपूर्ण स्मरण
इस प्रणाली का प्रमुख दोष यह हैं कि साक्षात्कार के समय ही सूचनाओं को लेखबध्द नही किया जाता हैं। परन्तु इन सूचनाओं को लिखने का काम साक्षात्कार की समाप्ति के बाद ही किया जाता है। इसी बीच साक्षात्कारकर्त्ता अनेक बातो को भूल जाता है ऐसी स्थिति मे वह गलत सूचानाये लेबध्द कर सकता है। इससे निष्कर्षों मे त्रुटि पैदा हो सकती है।
2. गलत सूचनाओं की प्राप्ति की सम्भावना
अनेक बाते ऐसी होती है जिनको व्यक्ति दूसरे के समक्ष प्रकट करने मे संकोच करता है। साक्षात्कार प्रणाली मे साक्षात्कारकर्त्ता सूचनादाता के सम्मुख उपस्थित रहता है अतः संकोचवश अनेक बाते सूचनादाता छिपा लेता है।
3. हीनता की भावना
इस प्रणाली का एक दोष यह भी है कि साक्षात्कारकर्त्ता अपने को कुछ हीन समझता है। साक्षात्कार लेने के लिए साक्षात्कारकर्त्ता को अनेक व्यक्तियों के पास जाना पड़ता है और इस प्रक्रिया मे विभिन्न व्यक्ति उससे विभिन्न तरह का व्यवहार करते है। इस कारण उसमे हीन भावना का विकास हो जाता है।
4. पृथक सामाजिक पृष्ठभूमि
साक्षात्कारकर्त्ता भी समाज का अभिन्न अंग होता है। वह भी अपने समाज की मान्यताओं, धारणाओं एवं विश्वासों आदि से प्रभावित होता है। यदि सूचनादाता की सामाजिक पृष्ठभूमि साक्षात्कारकर्त्ता की सामाजिक पृष्ठभूमि से अलग है तो दोनों के व्यक्तित्व आर्दश असमान होते है। वे सामाजिक मूल्यांकन मे भी विभिन्न दृष्टिकोण रखते है। सामाजिक स्थितियों के बारे मे दोनों की अलग-अलग मान्यताएं होती है।
5. व्यक्तिगत पक्षपात
इस पद्धति मे व्यक्तिगत पक्षपात के समावेश होने की सम्भावना रहती है। इस पद्धति मे सारा वर्णन स्वतन्त्र होता है और साथ ही विस्तृत भी। अतः साक्षात्कारकर्त्ता जो सूचना प्राप्त करता है वह पक्षपात रहित नही हो सकती है। उसके व्यक्तिगत विचार भी उसमे सम्मिलित होते है। इसके अतिरिक्त साक्षात्कारकर्त्ता भी अपनी वैयक्तिक भावनाओं को सूचनादाता द्वारा प्रदत्त भावनाओं मे मिला देता है।
6. अनावश्यक विस्तार
इस प्रणाली का एक दोष यह भी है कि इसमे सूचनादाता को प्रश्नों का उत्तर देने की पूर्ण स्वतंत्रता रहती है, अतः वह पूर्ण विस्तार के साथ उत्तर देता है, जिसका अधिकांश भाग अनुसंधान की दृष्टि से अनुपयोगी होता है।
7. सूचनादाता को राजी करने की समस्या
इस प्रणाली मे साक्षात्कारदाता पर ही हमे पूर्णतः निर्भर रहना पड़ता है। कई बार ऐसा देखा गया है कि बहुत से लोग साक्षात्कार के लिए राजी नही होते और यदि समय दे भी दिया तो अनेक प्रश्नों का उत्तर देने मे आनाकानी करते है। अतः ऐसी स्थिति मे अनुसंधानकर्ता के सम्मुख सर्वप्रथम समस्या इन लोगों को साक्षात्कार के लिए तैयार करने की होती है।
1. दोषपूर्ण स्मरण
इस प्रणाली का प्रमुख दोष यह हैं कि साक्षात्कार के समय ही सूचनाओं को लेखबध्द नही किया जाता हैं। परन्तु इन सूचनाओं को लिखने का काम साक्षात्कार की समाप्ति के बाद ही किया जाता है। इसी बीच साक्षात्कारकर्त्ता अनेक बातो को भूल जाता है ऐसी स्थिति मे वह गलत सूचानाये लेबध्द कर सकता है। इससे निष्कर्षों मे त्रुटि पैदा हो सकती है।
2. गलत सूचनाओं की प्राप्ति की सम्भावना
अनेक बाते ऐसी होती है जिनको व्यक्ति दूसरे के समक्ष प्रकट करने मे संकोच करता है। साक्षात्कार प्रणाली मे साक्षात्कारकर्त्ता सूचनादाता के सम्मुख उपस्थित रहता है अतः संकोचवश अनेक बाते सूचनादाता छिपा लेता है।
3. हीनता की भावना
इस प्रणाली का एक दोष यह भी है कि साक्षात्कारकर्त्ता अपने को कुछ हीन समझता है। साक्षात्कार लेने के लिए साक्षात्कारकर्त्ता को अनेक व्यक्तियों के पास जाना पड़ता है और इस प्रक्रिया मे विभिन्न व्यक्ति उससे विभिन्न तरह का व्यवहार करते है। इस कारण उसमे हीन भावना का विकास हो जाता है।
4. पृथक सामाजिक पृष्ठभूमि
साक्षात्कारकर्त्ता भी समाज का अभिन्न अंग होता है। वह भी अपने समाज की मान्यताओं, धारणाओं एवं विश्वासों आदि से प्रभावित होता है। यदि सूचनादाता की सामाजिक पृष्ठभूमि साक्षात्कारकर्त्ता की सामाजिक पृष्ठभूमि से अलग है तो दोनों के व्यक्तित्व आर्दश असमान होते है। वे सामाजिक मूल्यांकन मे भी विभिन्न दृष्टिकोण रखते है। सामाजिक स्थितियों के बारे मे दोनों की अलग-अलग मान्यताएं होती है।
5. व्यक्तिगत पक्षपात
इस पद्धति मे व्यक्तिगत पक्षपात के समावेश होने की सम्भावना रहती है। इस पद्धति मे सारा वर्णन स्वतन्त्र होता है और साथ ही विस्तृत भी। अतः साक्षात्कारकर्त्ता जो सूचना प्राप्त करता है वह पक्षपात रहित नही हो सकती है। उसके व्यक्तिगत विचार भी उसमे सम्मिलित होते है। इसके अतिरिक्त साक्षात्कारकर्त्ता भी अपनी वैयक्तिक भावनाओं को सूचनादाता द्वारा प्रदत्त भावनाओं मे मिला देता है।
6. अनावश्यक विस्तार
इस प्रणाली का एक दोष यह भी है कि इसमे सूचनादाता को प्रश्नों का उत्तर देने की पूर्ण स्वतंत्रता रहती है, अतः वह पूर्ण विस्तार के साथ उत्तर देता है, जिसका अधिकांश भाग अनुसंधान की दृष्टि से अनुपयोगी होता है।
7. सूचनादाता को राजी करने की समस्या
इस प्रणाली मे साक्षात्कारदाता पर ही हमे पूर्णतः निर्भर रहना पड़ता है। कई बार ऐसा देखा गया है कि बहुत से लोग साक्षात्कार के लिए राजी नही होते और यदि समय दे भी दिया तो अनेक प्रश्नों का उत्तर देने मे आनाकानी करते है। अतः ऐसी स्थिति मे अनुसंधानकर्ता के सम्मुख सर्वप्रथम समस्या इन लोगों को साक्षात्कार के लिए तैयार करने की होती है।
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