8/20/2023

भारतीय समाज और संस्कृति पर पश्चिमीकरण के प्रभाव

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प्रश्न; भारतीय समाज और संस्कृति पर पश्चिमीकरण के प्रभावों की विवेचना कीजिए। 

अथवा", पश्चिमीकरण के प्रभाव बताइए। 

उत्तर--

भारतीय समाज और संस्कृति पर पश्चिमीकरण का प्रभाव 

bhartiya samaj or sanskriti par paschimi karan ke prabhav;भारत में पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के आरंभ का श्रेय अंग्रेजी शासन काल को हैं, क्योंकि इस काल में भारतीय समाज तथा संस्कृति में कई मौलिक एवं स्थानीय सामाजिक परिवर्तन हुए जो कि पिछले सभी कालों से भिन्न थे। पश्चिमीकरण के कारण भारतीय समाज तथा संस्कृति पर निम्नलिखित प्रभाव दिखलाई देता हैं-- 

1. जाति व्यवस्था पर प्रभाव 

पश्चिमीकरण के कारण भारत की जाति व्यवस्था पर निम्न प्रभाव हुए-- 

(अ) जाति प्रथा के बंधन ढीले हो गये, 

(ब) जातीय भेदभाव खत्म होने लगा तथा जन्मजात गुणों की जगह पर अर्जित गुणों का महत्व बढ़ा। 

(स) जातीय पंचायतों का महत्व कम होने लगा। 

(द) अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन मिलने लगा। 

(ई) खान-पान और सामाजिक सहवास के महत्व में कमी आई।

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2. शिक्षा पर प्रभाव 

औपनिवेशिक युग के पहले भारतीय समाज में औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी। गुरू-शिष्य परंपरा और गुरूकुल आधारित पद्धति में शिक्षा में उच्च जाति विशेष के लोग लाभान्वित होते थे। पश्चिमीकरण के प्रभाव से समाज में औपचारिक शिक्षा में वृद्धि हुई और सभी वर्ग के लोग शिक्षा प्राप्ति की ओर अग्रसित हुये।

3. साहित्य के क्षेत्र पर प्रभाव 

पश्चिमीकरण के प्रभाव से भारतीय साहित्य भी अछूता नहीं रहा। भारतीय साहित्य, वेद एवं उपानिषदों का अंग्रेजी के विद्वानों द्वारा अंग्रेजी अनुवाद किया गया।

4. विवाह में परिवर्तन 

परम्परागत हिन्दू समाज में एक व्यक्ति को अपनी ही जाति में विवाह करना होता था। विधता पुनर्विवाह नहीं होते थे, बाल विवाह का अधिक प्रचलन था। विवाह को एक धार्मिक संस्कार माना जाता था विवाह-विच्छेद का प्रचलन नहीं था। किन्तु पश्चिम के विचारों, मूल्यों तथा आदर्शों ने विवाह के नियमों में परिवर्तन किये। बाल विवाह कम हुए। विधवाओं को पुनर्विवाह की छूट मिली, अन्तर्जातीय विवाह और 'प्रेम' विवाह होने लगे, तलाकों का प्रचलन बढ़ा, कुलीन विवाह तथा बहुविवाह समाप्त हुये और एक विवाह को प्रोत्साहन मिला। इस प्रकार भारत में विवाह संस्था पश्चिम के आदर्शों एवं मूल्यों के अनुरूप परिवर्तित हुई।

5. मानवतावाद का विकास 

प्रो. श्रीनिवास ने लिखा है कि," मानवतावाद का अर्थ बगैर किसी धर्म, जाति, यौन, आयु एवं आर्थिक स्थिति का ध्यान किये सभी लोगों का कल्याण है।" अंग्रेजों ने भारत में जिस तरह कानून बनाये वे सभी व्यक्तियों के समान अपराध हेतु समान दण्ड का निर्धारण करते है। अंग्रेजी शासन के पहले भारत की सामाजिक व्यवस्था में 'द्विजवाद' था मानवतावाद के विकास से सभी वर्गों, जातियों तथा धर्मों हेतु समाज नीति निर्धारित की गई। मानवतावाद के अंतर्गत दो प्रमुख सिद्धांत शामिल थे-- 

(अ) समानता का विकास तथा 

(ब) धर्म निरपेक्षता। 

6. धार्मिक जीवन में परिवर्तन 

पाश्चात्य संस्कृति के विस्तार से पहले भारत में धर्म का ज्यादा प्रभाव था। धर्म से संबंधित कई अन्धविश्वास तथा कुसंस्कार प्रचलित थे। पश्चिमी विचारों के कारण तर्कपूर्ण एवं आलोचनात्मक दृष्टिकोण विकसित हुआ जिससे धार्मिक अन्धविश्वाओं तथा रूढ़ियों का अंत होने लगा।

7. अर्थव्यवस्था में परिवर्तन 

भारतीय समाज में परंपरागत रूप से जजमानी व्यवस्था विद्यमान थी अर्थात् जाति के आधार पर परस्पर पूरक कार्य किए जाते थे, लघु एवं कुटीर उद्योग आजीविका का मुख्य साधन हुआ करते थे, लेकिन पश्चिमीकरण आने से उत्पादन के तरीकों में बदलाव आया। मशीनों से काम किया जाने लगा। इस तरह परंपरागत अर्थव्यवस्था कमजोर पड़ने लगी।

8. सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि 

पश्चिमीकरण के प्रभाव से समाज में सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हुई। विचारों, कार्य के तरीकों में बदलाव के साथ लोग अपनी प्रस्थिति में परिवर्तन के लिए प्रयत्न करने लगे। यही कारण है कि समाज में गतिशीलता में वृद्धि होने लगी।

9. सामाजिक संस्थाओं में परिवर्तन 

अंग्रेजी शासनकाल में औद्योगिकीकरण के साथ-साथ गांवों की आत्मनिर्भरता खत्म होने लगी। भारतीय सामाजिक संस्थाएं भी पश्चिमीकरण से प्रभावित हुई। यह प्रभाव मुख्य रूप से जाति प्रथा, संयुक्त परिवार प्रथा तथा हिन्दू विवाह पर देखा जा सकता हैं।

10. अधिकारों के प्रति चेतना का विकास 

अंग्रेजी शासन के पहले भारतवासी कानून तथा अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं थे। मूलभूत अधिकारों के प्रति जागरूकता पश्चिमीकरण की ही देन हैं।

11. स्त्रियों की स्थिति पर प्रभाव 

पश्चिम के प्रभाव के कारण स्त्रियों की परंपरागत सामाजिक स्थिति में परिवर्तन हुआ। स्त्रियों को भी शिक्षा दी जाने लगी, इससे उनका मानसिक विकास हुआ। स्त्रियों का कार्य-क्षेत्र अब केवल घर ही नही रहा वरन् वे पुरूषों के समान प्रत्येक क्षेत्र में कार्य करने लगी। सती-प्रथा का अंत हुआ एवं बाल-विवाह कम हुये तथा विधवा विवाह प्रारंभ हुआ। भारतीय नारी ने राष्ट्रीय प्रगति में अपना पूर्ण योगदान दिया।

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