सूक्ष्म शिक्षण के गुण/लाभ (sukshm shikshan ke gun)
सूक्ष्म-शिक्षण के प्रशिक्षण विधि के रूप में कई लाभ हैं, जो निम्न प्रकार हैं--
1. यह कक्षा-शिक्षण की जटिलताओं को कम करता हैं।
2. यह शिक्षण विधि छात्राध्यापक को कम समय में ज्यादा सिखाती हैं।
3. इस विधि के माध्यम से छात्राध्यापक को विद्यालय में सीधा पढ़ाने जाने की बजाय छोटी कक्षा, कम छात्र एवं छोटी पाठ-योजना से अध्यापन कार्य सिखाया जाता हैं, जो छात्राध्यापक हेतु अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता हैं।
4. यह शिक्षण विधि छात्राध्यापकों में आत्म-विश्वास जाग्रत करती हैं।
5. छात्राध्यापक क्रमशः अपनी योग्यतानुसार शिक्षण-कौशलों पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए उन्हें विकसित करता है तथा सीखने का प्रयास करता हैं।
6. प्रतिपुष्टि संपूर्ण एवं सभी दृष्टिकोण को अंगीकार करती हैं।
7. छात्राध्यापक का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन किया जाता हैं।
8. मूल्यांकन में छात्राध्यापक को अपना पक्ष रखने का पूर्ण अधिकार होता है तथा मूल्यांकन चरण में उसे सक्रिय रखा जाता हैं।
9. नरीक्षक, छात्राध्यापक के परामर्शदाता के रूप में कार्य करता हैं।
10. सूक्ष्म-शिक्षण से व्यावसायिक परिपक्वता विकसित होती हैं।
11. सूक्ष्म-शिक्षण से शिक्षण प्रक्रिया सरल होती हैं।
12. सूक्ष्म-शिक्षण से छात्राध्यापकों को शिक्षण प्रक्रिया पूर्ण रूप से स्पष्ट हो जाती है तथा वे अपने शिक्षण कार्य को भली-भाँति समझ लेते हैं।
13. सूक्ष्म-शिक्षण के द्वारा छात्राध्यापक शिक्षण-कौशलों पर पूर्ण अधिकार (निपुणता) प्राप्त कर लेते हैं। फलस्वरूप वे कम समय में वांछित कौशल का कुशल उपयोग करने में सक्षम हो जाते हैं।
14. सूक्ष्म-शिक्षण में शिक्षण कौशलों का अभ्यास वास्तविक जटिल परिस्थतियों की अपेक्षा ज्यादा सरल परिस्थितियों में कराया जाता हैं।
15. सूक्ष्म-शिक्षण में छात्राध्यापकों की व्यक्तिगत विभिन्नता पर ध्यान प्रदान किया जाता हैं।
16. सूक्ष्म-शिक्षण छात्राध्यापकों के व्यवहार परिवर्तन में ज्यादा प्रभावी होता हैं।
17. सूक्ष्म-शिक्षण अगर यथार्थवत परिस्थतियों में कराया जाता है तब वास्तविक विद्यालय न मिलने पर भी समुचित प्रशिक्षण संभव होता हैं।
18. सेवारत अध्यापकों के व्यवहार में आयी हुई कड़ाई को कम करने तथा शिक्षक की बुरी आदतों में सुधार लाने हेतु यह विधि उपयोगी हैं।
19. यह विधि निरीक्षण प्रणाली को एक नया स्वरूप प्रदान करती हैं।
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सूक्ष्म शिक्षण के दोष (sukshm shikshan ke dosh)
सूक्ष्म-शिक्षण के निम्नलिखित दोष हैं--
1. साधनों का प्रायः अभाव होने से सूक्ष्म-शिक्षण में विडियों फिल्म, जो कि सर्वाधिक प्रभावी हैं, का प्रयोग किया जाना संभव नहीं हैं।
2. सूक्ष्म-शिक्षण का उपयोग करने हेतु विशेष रूप से प्रशिक्षित अध्यापकों की जरूरत हैं। ऐसे अध्यापकों की कमी हैं।
3. सूक्ष्म-शिक्षण हेतु कई कक्षा-कक्षों की जरूरत हैं।
4. सूक्ष्म-शिक्षण में छात्राध्यापकों को अलग-अलग शिक्षण कौशलों का अभ्यास कराया जाता हैं। इससे छात्राध्यापक शिक्षण कौशलों का अलग-अलग प्रयोग करने में तो दक्षता प्राप्त कर होते हैं, लेकिन वास्तविक शिक्षण के समय सभी शिक्षण कौशलों का एकीकृत रूप में प्रयोग करने मे समर्थ नहीं हो पाते।
5. सूक्ष्म-शिक्षण हेतु विषय-वस्तु को विश्लेषित कर एक ही सम्प्रत्यय का एक बार में प्रयोग किया जाता हैं। वैसे भी निरीक्षक का ध्यान शिक्षण कौशल के प्रेक्षण पर ज्यादा रहता हैं, विषय वस्तु के औचित्य पर नहीं। अतः अगर वास्तविक विद्यार्थी शिक्षण अभ्यास के लिए जाते हैं तो उसके समय तथा शक्ति का अपव्यय होता हैं।
6. सूक्ष्म-शिक्षण में शिक्षण कौशलों का अभ्यास कृत्रिम परिस्थितियों में कराया जाता हैं। अतः छात्राध्यापक वास्तविक कक्षा की स्थितियों का सामना पूरी दक्षता से नहीं कर पाते हैं।
7. सूक्ष्म-शिक्षण से पढ़ाना धन की समस्या उत्पन्न करता हैं।
8. इसमें कौशलों के घटकों पर बल दिया जाता है तथा विषय-वस्तु गौण होती हैं।
9. वर्तमान शिक्षक-प्रशिक्षण महाविद्यालयों में सूक्ष्म-शिक्षण का प्रवेश धन की समस्या को जन्म दे रहा हैं।
10. वास्तविक कक्षा में 30 विद्यार्थियों एवं सूक्ष्म-शिक्षण की कक्षा में 5-10 विद्यार्थियों को पढ़ाने में बड़ा अंतर होता हैं। इसमें प्रशिक्षणार्थी को कक्षा अनुशासनहीनता की वास्तविक समस्या का सामान नही करना पड़ता हैं।
सूक्ष्म-शिक्षण की कुछ सीमाएं या दोष होते हुए भी यह महत्वपूर्ण शिक्षण पद्धित हैं। सूक्ष्म-शिक्षण अनेक शिक्षण-सबंधी खोजों मे से एक महत्वपूर्ण खोज है। यह छात्राध्यापक को स्व-अभ्यास के लिए प्रेरित करके उसका उचित मार्गदर्शन करती है। वर्तमान समय में प्राचीन पद्धित की चारों ओर आलोचना हो रही है जबकि सूक्ष्म-शिक्षण की प्रविधि एक नया समाधान प्रस्तुत करती हैं।
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