8/20/2023

नगरीकरण का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, प्रभाव/परिणाम

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प्रश्न; नगरीकरण से आप क्या समझते हैं? नगरीकरण की विशेषताएं बताइए। 

अथवा", नगरीकरण के सामाजिक और आर्थिक जीवन पर प्रभाव बताइए। 

अथवा", नगरीकरण के परिणाम लिखिए। 

अथवा", नगरीकरण को परिभाषित करते हुए, नगरीकरण के सामाजिक और आर्थिक प्रभावों का विवेचन कीजिए।

अथवा", नगरीकरण की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।

उत्तर--

नगरीकरण (शहरीकरण)

nagrikaran arth paribhasha visheshta prabhav;नगर सामाजिक रूप से विषम जातीय व्यक्तियों का एक अपेक्षाकत वृहद् सघन एवं स्थाई होता है। समाजशास्त्री नगरीय और ग्रामीण जीवन की तुलना सामाजिक संबंधो में कार्य दशाओं मे परिवर्तन के आधार पर करते हैं। नगरीय सामाजिक संबंधो मे घनिष्ठ संबंधो का अभाव पाया जाता है।  भारत में बढ़ती जनसंख्या, औद्योगीकरण एवं उन्नति से नगरों के निर्माण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। नगर बनने की यह प्रक्रिया अधिक पुरानी न होकर एक प्रकार से नवीनतम प्रक्रिया है।
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नगरीकरण का अर्थ (nagrikaran kya hai)

ग्राम से नगर बनने की प्रक्रिया को नगरीकरण (शहरीकरण) कहा जाता है। नगरीकरण का अर्थ इस प्रकार स्पष्ट होता है कि जनसंख्या के घनत्व में वृध्दि ही नगरीकरण की ध्घोतक नही है अपितु वहां के सामाजिक व आर्थिक सम्बन्धो में  परिवर्तन, अनौपचारिक सम्बन्धों का औपचारिक सम्बन्धों में परिवर्तन, प्रथमिक समूहों का द्वितीय समूहों में परिवर्तन भी नगरीकरण का ध्घोतक है। जो पहले से ही नगर है उन्हें नगरीकरण नही कहा जा सकता नगरीकरण का तात्पर्य उन स्थानों से है जहाँ नगर बनने की प्रक्रिएं चल रही हो।
नगरीकरण के अर्थ को और भी अच्छे से समझने के लिए हम नगरीकरण की विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषों को जानेंगे।

नगरीकरण की परिभाषा (nagrikaran ki paribhasha) 

श्री निवास के अनुसार, "नगरीकरण से तात्पर्य केवल सीमित क्षेत्र में जनसंख्या वृध्दि से नहीं है वरन् सामाजिक आर्थिक संबंधो में परिवर्तन से है।
किंग्सले डेविस के अनुसार, " नगरीकरण एक निश्चित प्रक्रिया है, परिवेश का वह चक्र है जिससे कोई समाज खेतिहर से औघोगिक समाज में परिवर्तित हो जाता है।"
मारविन ओलसन के अनुसार, " नगरीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत एक समाज के समुदाय के आकार और शक्ति में वृध्दि होती रहती है।
नगरीकरण का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं और प्रभाव
मैक्स बेबर के अनुसार," नगरीकरण संस्कृति का एक आश्रित कारक हैं।" 
जी. आर. मदन के अनुसार," नगरीकरण का तात्पर्य व्यक्ति के विचारों और व्यवहारों में परिवर्तन तथा उनके सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन से हैं।" 
आशीष बोस के अनुसार," नगरीकरण एक समयावधि में कुल जनसंख्या के अनुपात में शहरी जनसंख्या में वृद्धि हैं। 
पोकाॅक के अनुसार," नगरीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत ग्रामीण लोग शहर की ओर आते है और नगरों के प्रभाव से उनके ग्रामीण जीवन के आचार-विचार और व्यवहार में परिवर्तन होता हैं। 
संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार," जिसके द्वारा जनसंख्या एक निश्चित निर्धारित आकार से बड़े आकार समूहों में एकत्रित हो जाती हैं। उसे नगरीकरण कहते हैं। 
डेविस के अनुसार," नगरीकरण एक निश्चित प्रक्रिया है, नगरीकरण परिवर्तन का वह चक्र है, जिससे कोई समाज खेतिहर से औधोगिक में परिवर्तिक हो जाता हैं।" प्रस्तुत परिभाषा में इस बात को स्पष्ट किया गया है कि नगरीकरण के कारण औद्योगीकरण होता है और एक समाज सेतिहर से औद्योगीकृत कहलाने लगता है। दूसरी बात जो अधिक महत्त्वपूर्ण है वह यह कि नगरीकरण निश्चित ढंग से चक्रवत् होता रहता है।
इसी विचारक ने आगे लिखा है कि," नगरीकरण मानवीय सामाजिक उद्विकास का एक मूलभूत चरण है।" यह उद्विकासी प्रक्रिया है। यही कारण है कि नगरीकरण की प्रक्रिया सरल से जटिल होती जा रही है। यद्यपि नगरीकरण की प्रक्रिया आज से 5,500 वर्ष पहले शुरू हो गई थी फिर भी उसका स्वरूप जो आज है उसकी कल्पना लोगो ने पहले कभी नही की थी। आज के नगरीकृत समाज की विशेषता है कि कस्बों तथा नगरों में अधिकांश लोग भीड़ बढ़ाते जा रहे हैं। ऐतिहासिक आधार पर कहा जा सकता है कि नगरीकरण और शहरों का उद्भव साथ-साथ हुआ है। नगरीकरण की प्रक्रिया कार्यशील है अथवा नहीं, इसकी जानकारी सम्पूर्ण जनसंख्या के उस भाग से लगायी जाती है जो नगरों में रह रही है। यदि ऐसे लोगो की संख्या, जो नगरों में रहते हैं, बढ़ती है तो निःसन्देह कहा जा सकता है कि नगरीकरण की प्रक्रिया कार्यशील है। डेविस का मत है कि 1 लाख या इससे अधिक व्यक्ति जहाँ रहते हैं, यदि वहाँ जनसंख्या का घनत्व बढ़ता है तो उसे नगरीकरण का द्योतक माना जाना चाहिए।

नगरीकरण की विशेषताएं (nagrikaran ki visheshta)

नगरीकरण की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार है--

1. उद्योगों का केन्द्रयकरण बड़े नगरों मे दृष्टिगोचर होता है।
2. नगरीकरण नगर बनने की प्रक्रिया है।
3. नगरीकरण की प्रक्रिया मे नये नगर बनते हैं एवं महानगरों की उत्पत्ति होती है।
4. कम स्थान में अधिक व्यक्ति निवास करते है।
5. नगरीकरण की प्रक्रिया के दौरान नगरों मे निवासरत व्यक्ति नगरीय जीवन शैली को आत्मसात कर लेते हैं।
6. शिक्षितों की संख्या का अनुपात ग्रामीण क्षेत्रों से अधिक होता है।
7. अनौपचारिक संबन्ध औपचारिक सम्बन्धों मे परार्वतति होने लगते है।
9. भिन्न-भिन्न संस्कृतियों, भाषाओं एवं धर्म के लोग एक साथ रहने लगते है।
10. औद्योगिकरण की प्रक्रिया होने लगती है।

नगरीकरण के प्रभाव अथवा परिणाम (nagrikaran ke parinam)

nagrikaran ke prabhav;नागरीकरण ने समाज को अनेक प्रकार से प्रभावित किया है। ऐसा शायद ही कोई क्षेत्र हो जिस पर नगरीकरण का प्रभाव न पड़ा हो। नागरीकरण के प्रभाव को निम्न शीर्षकों के माध्यम से देखा जा सकता है--

नगरीयकरण के आर्थिक प्रभाव अथवा परिणाम (nagrikaran ke aarthik prabhav)

आधुनिक नगरों की नीव आर्थिक साधनों पर रखी गई है। आर्थिक विकास व प्रगति का प्रभाव व्यक्ति के संपूर्ण जीवन पर पड़ता है। औद्योगिक प्रगति ने व्यक्ति को प्रगतिशील, व्यक्तिवादी, महत्वकांक्षी और अवसरवादी बनाया है। नगरीकरण के आर्थिक प्रभाव या परिणाम इस प्रकार है--
1. व्यवसायों मे वृद्धि एवं प्रगति 
नगर व्यवसाय और उद्योगों का केंद्र स्थल है। यहां जीविकापार्जन के अनेक विकल्प व्यक्ति के सम्मुख होते हैं। वह कहीं भी नौकरी कर सकता है और व्यवसाय भी। अधिकांश व्यक्ति यहां व्यवसाय को ही प्राथमिकता देते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि जिस वस्तु का यहां उत्पादन होता है इसके उपभोक्ता भी वहां उपलब्ध रहते हैं।
2. धन ही जीवन है
नगर रुपए की धूरी पर घूमता है और व्यक्ति रुपए के चारों ओर परिक्रमा लगाता है। प्रातः से रात तक व्यक्ति यहां काम करना और अधिक से अधिक धन अर्जित करना चाहता है। यहां रुपया ही सब कुछ होता है। नगरीय संबंध धन पर बनते और टूटते हैं। इसलिए यहां व्यक्ति का महत्व ना होकर धन का महत्व है। यहां सच्चरित्र व्यक्ति की उपेक्षा की जाती है और तस्करों, काला बाजरियों और श्वेतवस्त्रधारी अपराधियों का सम्मान किया जाता है।
3. आर्थिक उलट फेर 
नगर सट्टेबाजों का केंद्र है यहां का व्यापारी क्षण भर में राजा से रंक और रंक से राजा होता है। इसके परिणाम स्वरूप नगरों में बेईमानी और कालाबाजारी को प्रोत्साहन मिला है इसके साथ ही बेरोजगारी और आर्थिक अपराध में भी वृद्धि हुई है। व्यवसाय में अधिक उतार-चढ़ाव होने के कारण यहां का व्यापारी अत्यधिक भ्रष्ट हो गया है।
4. उत्पादन और विस्तृत बाजार 
व्यापारियों का मुख्य उद्देश्य अधिक से अधिक उत्पादन और अधिकतम लाभ अर्जित करना है। इसके लिए वे यह भी प्रयत्न करते हैं कि बाजारों का भी विस्तार हो जिससे कि उसके माल की खपत अधिक से अधिक हो सके।
5. आर्थिक क्षेत्र मे असमानता 
नगर असमान गांव का केंद्र स्थल है। यहां लाखों व्यक्ति मलिन बस्तियों में रहते हैं जो नर्क से कम नहीं है, और कुछ ऐसे भी हैं जो वातानुकूल महलों में रहते हैं। लाखों व्यक्ति कठोर परिश्रम के बाद पेट भर पाते हैं और चंद लोग ऐसे भी हैं जो रोज हजारों की शराब पीते हैं। यहां एक व्यक्ति 20 कमरे वाले मकान में रहता है और ऐसे भी है कि 20 व्यक्ति एक कमरे में रहते हैं। लाखों व्यक्ति ऐसे हैं जिनके शरीर पर कपड़ा नहीं है और कुछ ऐसे हैं जो दिन में कई बार कीमती कपड़े पहनते हैं। यहां गरीबी, बेकारी, भुखमरी और चिकित्सा के अभाव में निर्धन मर जाता है और धनी व्यक्ति मुंह फेर कर चला जाता है। क्योंकि उसके जीवन में व्यक्ति का नहीं धन का महत्व है। शोषण करना उनका सबसे बड़ा धर्म है इसलिए नगर असमानताओं का कैंसर है।
6. ग्रामीण जीवन पर प्रभाव
नगरीकरण ने ग्रामीण जीवन को प्रभावित किया है। ग्रामीण लोग शहर की और उद्योगोन्मुखी व्यवसायों, शिक्षा आदि सुविधाओं के लिए नगर की ओर आकृष्ट हो रहे है।
7. व्यवसायों की विविधता एवं विशेषीकरण 
नगरों में प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक कार्य को नही कर सकता हैं। यहाँ प्रत्येक कार्य के लिए भिन्न प्रकार की मशीनों हैं। उन्हें वही व्यक्ति चला सकता है जिसने उन मशीनों को चलाने का प्रशिक्षण लिया हो। इस प्रकार व्यक्ति को कार्य करने के लिए एक ही प्रकार के कार्य में विशेष योग्यता प्राप्त करनी होनी हैं। मशीनों ने जहाँ दस व्यक्तियों के कार्य को अनेले करने की क्षमता पैदा की वहाँ भिन्न प्रकार की मशीनों को चलाने के लिए नये प्रकार की नौकरियाँ भी प्रदान की हैं।
8. पूँजीवाद की उत्कृष्ट भूमिका 
नगर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ संपत्ति की पूजा होती है। नगर का सबसे बड़ा देवता रूपया है। इसके अभाव में न तो बड़े-बड़े कारखाने खुल सकते है और नाही श्रमिकों को ही मील आदि में भर्ती किया जा सकता है। यहाँ पर व्यक्ति का आदर संपत्ति के तराजू में तौलकर होता है। जो जितना धनी है, वह उतना ही सम्मान का पात्र है और उसे समाज में उतना ही अधिक ऊँचा स्थान दिया जाता हैं।

नगरीकरण के सामाजिक प्रभाव अथवा परिणाम (nagrikaran ke samajik prabhav)

नगरीकरण के सामाजिक प्रभाव निम्न है--
1. संयुक्त परिवार का विघटन 
ग्रामीण समाज में जिस अनुपात से जनसंख्या बढ़ रही है। उस अनुपात से यहां जीविका के साधनों में वृद्धि नहीं हो रही है। इसलिए अधिक व्यक्ति जीविका की खोज में गांव से नगर की ओर आ रहे हैं और वें यही बसते भी जा रहे है। इस तरह संयुक्त परिवार जो ग्रामीण समाज की विशेषता है, विघटित होती जा रही है।
2. महिलाओं कि स्थति में परिवर्तन
नगरीकरण के प्रभाव से महिलाओं की स्थिति मे परिवर्तन आने लगे है। अब वह घर के अंदर अपनी लैंगिक भूमिकाओं तक सीमित नही है। बल्कि आर्थिक रूप से भी वह आत्मनिर्भर रहने लगी है। अब शिक्षा एवं राजनीति जैसे क्षेत्रों मे महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है।
3. सामाजिक सांस्कृतिक सम्पर्कों का विस्तृत क्षेत्र 
नगर विभिन्न संस्कृतियों का गुच्छा है। यहां अनेक धर्म जाति संप्रदाय आदि के व्यक्ति साथ-साथ रहते हैं। जिसका प्रभाव एक दूसरे पर पड़ता है। यहां व्यक्ति पर भाषा, खान-पान, वेशभूषा, रहन-सहन आदि के प्रभाव देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए दिल्ली में किसी जातिवाद धर्म का व्यक्ति हो उस पर पंजाबी संस्कृति के प्रभाव को देखा जा सकता है। इसी तरह कलकत्ते में बंगाली संस्कृति का और गुजरात में महाराष्ट्र वहां की संस्कृति का प्रभाव व्यक्ति पर सरलता से देखा जा सकता है।
4. सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन
नगरीकरण के फलस्वरूप अब सामाजिक मूल्यों मे परिवर्तन होने लगा है। यह नगरीकरण का एक सामाजिक प्रभाव हैं। व्यक्तिवादी जीवन मूल्यों में सामूहिकता की भावना मे निरंतर कमी होती जा रही है। जीवन में नैतिकता और विश्वास का अभाव होने लगा है और स्वार्थ की भावना बढ़ती जा रही है।
5. रूढ़िवादी धर्म का ह्रास 
आधुनिक समाज में धर्म की मान्यता टूटती जा रही है। एक फैक्ट्री मील और कारखाने में विभिन्न जाति और धर्म के व्यक्ति साथ-साथ कार्य करते हैं। एक स्थान पर बैठ कर खाते हैं, एक मोहल्ले अथवा कॉलोनी में रहते हैं। इसलिए नगर में धार्मिक कट्टरता समाप्त होती जा रही है। यहां का व्यक्ति प्रगतिशील बनता जा रहा है। वह ना रूढ़ियों से जुड़ना चाहता है और ना अंधविश्वासी परंपराओं को आंख बंद करके स्वीकारता है।
6. पारिवारिक नियंत्रण का ह्रास 
संयुक्त परिवार में व्यक्ति अपनी इच्छा से कुछ नहीं कर सकता। वह वही करता है जो संयुक्त परिवार की इच्छा होती है। व्यक्ति पर परिवार का पूरा अंकुश रहता है। नगर में व्यक्ति पर ना तो संयुक्त परिवार का और ना समुदाय का नियंत्रण होता है। व्यक्ति जहां अपने कार्यों में स्वतंत्र है जो अच्छा लगता है वही करता है।
7. सामाजिक संबंधों मे परिवर्तन 
नगर में सामाजिक संबंध बहुत कुछ औपचारिक हैं। यहां किसी को किसी से लगाव नहीं। सभी अपने स्वार्थों और महत्वकांक्षी के घेरे में कैद हैं। यहां के संबंधों अनजान यात्रियों की तरह होते हैं, जो साथ-साथ यात्रा भी करते हैं साथ-साथ खाते भी हैं और यात्रा समाप्त होते ही वे पुनः एक दूसरे के लिए अनजान बन जाते हैं। यहां एक पड़ोसी दूसरे पड़ोसी को नहीं जानता और यदि जानता भी है तो वह बस hii hello तक ही सीमित है। नगर के सामाजिक संबंध में दिखावा और औपचारिकता अधिक है और लगाव और अपनापन नाम मात्र का ही है।
8. सहिष्णुता 
नगर सुविधाओं और समस्याओं का केंद्र है यहां व्यक्ति भीड़ में अकेला रहता है बड़ी से बड़ी समस्याओं का सामना भी अकेले करता है। यहां सुख और दुख धूप छांव की तरह साथ-साथ रहते हैं यह एक व्यक्ति को सहनशील बनाते हैं।
9. मनोरंजन का व्यापारीकरण 
नगरों में मनोरंजनओं का क्रय और विक्रय होता है। व्यक्ति यहां जितना व्यय करता है उसी के अनुपात में उसे मनोरंजन प्राप्त होता है। होटल, क्लब, सिनेमाघर, थिएटर, नाचघर,  सर्कस आदि इसके उदाहरण है। मनोरंजन के नाम पर यहां नग्नता और अश्लीलता अधिक है इसलिए मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता बिकती है। नग्न युवती के नृत्य पर लोग यहां पागल होते देखे जाते हैं, और कत्थक और भारतनाट्यम से व्यक्ति जी चुराते हैं यह नग्नता हमें मिली है इन व्यापारिक मनोरंजन के केंद्रों से। इनका प्रभाव युवक और युवतियों पर सरलता से देखा जा सकता है।
10. जीवन में कृत्रिमता
नगरीकरण के कारण आज जीवन में वास्तविकता नही रही है। नगरीकरण से पूर्व मानव 'सादा जीवन उच्च विचारों में विश्वास रखता था लेकिन उसका झुकाव कृत्रिमता की ओर होता जा रहा है। मानव जीवन मे अब कृत्रिमता आ गई है अब वह दिखावे एवं शान-शौकत में अधिक विश्वास रखने लगा है।
11. हम की भावना का अभाव
नगरीकरण के कारण अब हम की भावना मे कमी आने लगी है। नगरीकयण ने व्यक्तिवादीता को जन्म दिया है। प्रत्येक व्यक्ति यहां केवल अपने ही हित के बारें मे सोचता है।
नगरीकरण के राजनैतिक प्रभाव अथवा परिणाम 
नगरीकरण का राजनैतिक क्षेत्र मे भी प्रभाव पड़ा है जिसे निम्नलिखित तथ्यों से जाना जा सकता है--
1. राजनैतिक जागरूकता 
ग्रामीण व्यक्ति देश और संसार की राजनीतिक गतिविधियों से लगभग अनजान रहता है। उसमें राजनीतिक जागरूकता जितनी उत्पन्न होनी चाहिए उतनी आज भी उत्पन्न नहीं हुई है। यह मूलतः उसके वातावरण के कारण है इसके विपरीत नगर के व्यक्ति अपने अधिकार और कर्तव्य से परिचित हैं। वे राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते हैं। नगर में राजनीतिक जागरूकता इतनी अधिक है कि छोटी-छोटी बातों को लेकर जुलूस, हड़ताल और बंद हो जाते हैं। अन्याय के विरुद्ध यह संघर्ष करना जानते हैं। यह सब राजनीतिक जागरूकता का परिणाम है
2. राजनैतिक क्षेत्र मे सक्रियता 
नगर के व्यक्ति राजनीतिक गतिविधियों में खुले रुप में भाग लेते हैं। देश के निर्माण में नगरवासी अधिक सक्रिय हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समस्याओं पर यह अपने विचार मुक्त होकर व्यक्त करते हैं। यहां पुरुष और स्त्री दोनों ही राजनीति में भाग लेते हैं। राजनीतिक क्षेत्र में अनेक स्त्रियां विधायक, सांसद और मंत्री हैं। यह सब राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय भाग लेने के कारण ही है।
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