2/02/2022

अधिनायकतंत्र/तानाशाही के प्रकार

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अधिनायकतंत्र या तानाशाही के प्रकार 

प्रमुख रूप से अधिनायकतंत्र के दो प्रकार हैं-- 

1. प्राचीन अधिनायकतंत्र 

प्राचीन समय में ऐसी व्यवस्था या तो विशेष संकटों का सफलता से मुकाबला करने के लिए या लोक-कल्याण के लक्ष्यों को शीघ्रता से प्राप्त करने के लिए अपनाई जाती थी। रोमन साम्राज्य में संकट के समय व कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए कभी-कभी विशेष अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी। संकट का सामना करने के लिए इन अधिकारियों को विशिष्ट शक्तियाँ दी जाती थी और इन्हें "अधिनायक" कहा जाता हैं। इन्हें अधिनायक के नाम से इसलिए पुकारा जाता था क्योंकि उन्हें आदेश देने की असीम शक्तियाँ प्राप्त थीं। रोम में अधिनायक को संकट का सामना करने के लिए सर्वोच्च शक्तियाँ सौंपी जाती थीं। संकट टल जाने के बाद अधिनायक का पद समाप्त हो जाता था। वस्तुतः रोमन अधिनायकतंत्र एक अस्थायी प्रयोग हुआ करता था। अधिनायक का कानूनी विधि से चुनाव होता था तथा वह अत्याचारी न बन जाए इसलिए उस पर कानूनी मर्यादा रहती थीं। 

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संक्षेप में प्राचीन अधिनायकतंत्र में निम्नलिखित लक्षण होते थें-- 

(अ) अधिनायक पर कानूनी नियंत्रण रहता था। 

(ब) उसका लक्ष्य लोक-कल्याण था। 

(स) अधिनायक को वैधता प्राप्त रहती थी। 

(द) अधिनायक उत्तरदायी था। 

(ई) समस्त शक्तियाँ अधिनायक में निहित रहती थी। 

2. अर्वाचीन अधिनायकतंत्र 

आधुनिक समय में अधिनायकतंत्र से स्वेच्छाचारी व अत्याचारी शासन का बोध होता हैं। इसमें राजसत्ता एक व्यक्ति में निहित होती है और शासन सत्ताधारी व्यक्ति की इच्छानुसार ही चलता हैं। ऐसे अधिनायक पर किसी प्रकार का अंकुश नहीं होता हैं। आधुनिक अधिनायकों को राष्ट्रीय संकट के समय नहीं चुना जाता हैं वरन् वे तो प्रायः आकस्मित राज्य-क्रान्ति के फलस्वरूप शक्ति प्राप्त कर लेते हैं। उनकी राजनैतिक स्थिति का आधार शक्ति और बल-प्रयोग होता है और न वे किसी के प्रति उत्तरदायी होते हैं। अधिनायकतंत्र में राज्य की संपूर्ण शक्ति एक ही व्यक्ति में निहित होती है और वह स्वयं को राज्य का मूर्त रूप समझता हैं। 

ऐलेन बाल के अनुसार अधिनायकतंत्र के प्रकार 

ऐलेन बाल ने अपनी पुस्तक 'आधुनिक राजनीति और शासन' में आधुनिक अधिनायकतंत्र के दो प्रकार माने हैं-- 

1. सर्वाधिकारवादी अधिनायकतंत्र 

सर्वाधिकारवादी शासन मुख्य रूप से बीसवीं सदी में आधुनिक औद्योगिकी तथा संचार में प्रगति होने के कारण अस्तित्व में आये हैं। अधिकांश सर्वाधिकारी शासन आधुनिकीकरण तथा सुधार लाने के लिए कटिबद्ध क्रान्तिकारी शासन है। इसमें एक दल, जो वस्तुतः एक विचारधार के अनुप्राणित होता है, सत्ता का एकाधिकार रखता है तथा दल का सर्वोच्च नेता, दल के समर्थन के द्वारा एक तरह से अधिनायक की तरह शक्ति का प्रयोग करता हैं। ऐसी सर्वाधिकारवादी व्यवस्थाओं के उदाहरण हैं-- स्टालिन का रूस, हिटलर का जर्मनी और मुसोलिनी का इटली। पूर्वी यूरोप के साम्यवादी देश भी वस्तुतः सर्वाधिकारवादी राज्य थे। ऐलेन बाल के अनुसार सर्वाधिकारवादी व्यवस्थाओं के निम्नांकित लक्षण बताये जा सकते हैं-- 

1. सिद्धान्ततः व्यक्तिगत तथा सामाजिक गतिविधि के सभी पहलुओं से सरकार राजनीतिक रूप से सम्बद्ध होती हैं। 

2. एक ही दल राजनीतिक तथा विधिक रूप से प्रभावी होता हैं। 

4. न्यायपालिका व जन-सम्पर्क के साधनों पर सरकार का कठोर नियंत्रण होता हैं। 

5. जनता के भाग लेने व जनता की स्वीकृति से शासन का वैधीकरण होता हैं। 

2. स्वेच्छाचारी अधिनायकतंत्र 

तीसरी दुनिया के अधिकांश देशों में स्वेच्छाचारी अधिनायकतंत्र दिखायी देता हैं। स्वेच्छाचारी अधिनायकतंत्र अस्थायी शासन है जो औद्योगिक तथा आर्थिक विकास के अभाव में प्रस्फुटित हो जाता हैं। स्वेच्छाचारी शासन-तंत्रों के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं-- 

1. मुक्त राजनीतिक प्रतियोगिता यानी राजनीतिक दल और चुनाव पर महत्वपूर्ण पाबन्दियाँ। 

2. कम्युनिज्म या फासिज्म जैसी प्रभावी विचारधारा का अभाव। 

3. राजनीतिक अनुरूपता तथा आज्ञाकारिता प्राप्त करने के लिए राजनीतिक सत्ताधारी बहुधा जोर जबर्दस्ती तथा बल-प्रयोग पर अधिक जोर देते हैं। 

4. नागरिक स्वतंत्रताओं की अनुमति बहुत कम दी जाती है और जनसंपर्क के माध्यमों तथा न्यायपालिका पर सरकार का सीधा नियंत्रण होता हैं। 

5. अक्सर नेता ही आकस्मित राज-परिवर्तन या स्वतंत्रता के औपनिवेशिक युद्ध के फलस्वरूप सत्ता हथिया लेता हैं। 

6. राजनीति पर एक गुट का एकाधिकारी नियंत्रण रहता हैं।

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