संघात्मक शासन का अर्थ (sanghatmak shasan arth)
संघात्मक शासन वह शासन है जहाँ राज्य की शक्तियों का विभाजन संवैधानिक स्तर पर केन्द्र और उसकी घटक इकाइयों के बीच होता है। संघात्मक शासन प्रणाली उस शासन-प्रणाली को कहते है जिसमे कई छोटे राज्य मिलकर एक संघ के रूप मे शासन चलाते है। संघवाद एक विचारधारा है। विद्वानों ने संघात्मक शासन की परिभाषा निम्म प्रकार की है--
डाससी के अनुसार " संघात्मक शासन वह राजनीतिक योजना है जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय एकता तथा राज्यों के अधिकारों मे सामंजस्य स्थापित करना है।
फ्रीमेन के अनुसार " संघात्मक शासन वह है जो दूसरे राष्ट्रों के साथ सम्बन्ध मे एक राज्य के समान हो, परन्तु आन्तरिक शासन की दृष्टि से अनेक राज्यों का योग हो। संघात्मक शासन वाले देश, संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, और स्विट्जरलैंड आदि है।
संघात्मक शासन प्रणाली की विशेषताएं या लक्षण (sanghatmak shasan pranali ki visheshta)
1. लिखित संविधान
संघात्मक शासन मे लिखित संविधान अनिवार्यता है क्योंकि संघ समझौते का परिणाम है अतः समझौते का लिखित होना आवश्यक है। संविधान मे केन्द्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन और केन्द्र-राज्यों की सरकार का संगठन, संविधान संशोधन की प्रक्रिया आदि का विवरण रहता है।
2. संविधान की सर्वोच्चता
संघात्मक शासन की एक विशेषता यह की इस शासन प्रणाली मे संविधान सर्वोच्च होता है। केन्द्र और राज्यों का अस्तित्व, उनके अधिकारों का वर्णन, प्रशासनिक शक्तियों का बंटवार, सभी कुछ संविधान मे होता है इसलिए भविष्य मे यदि संघ और राज्यों के बीच गलतफहमी हो जाये या किसी प्रश्न पर तनाव हो जाए तो दोनों ही संविधान मे लिखित व्यवस्थाओं मे अपनी स्थिति को देख सकते है।
3. शक्तियों का विभाजन
संघीय शासन प्रणाली मे केन्द्रीय और प्रांतीय सरकारों के मध्य शक्तियों का बँटवारा कर दिया जाता है। कुछ शक्तियाँ केन्द्र को व कुछ शक्तियाँ राज्यों को सौंप दी जाती है और अपने-अपने क्षेत्रों मे वे इन शक्तियों का उपयोग स्वतंत्रतापूर्वक कर सकते है।
4. दोहरा शासन
संघात्मक शासन की एक मुख्य विशेषता यह है कि इसमे दोहरी शासन व्यवस्था होती है। एक केन्द्रीय सरकार होती है जिसको संघीय सरकार कहा जाता है, दूसरी इकाइयों की सरकार होती है जो राज्य की सरकार के नाम से जानी जाती है। इन दोनों सरकारों के अलग-अलग कानून होते है। इसके अतिरिक्त दोहरी राजनैतिक व्यवस्था होती है जिसमें दोहरी नागरिकता, दोहरी चुनाव व्यवस्था और दोहरी प्रकार की सेवाएं होती है। पर कुछ संघों मे दोहरी नागरिकता व दोहरी राजनैतिक व्यवस्था नही होती जैसे की भारत मे दोहरी नागरिकता नही है। पर सत्ता का विकेन्द्रीकरण, न्यायपालिका की प्रधानता, लिखित संविधान सभी संघ की जरूरी विशेषताएं है।
5. स्वतंत्र न्यायालय
एक स्वतंत्र न्यायालय, जो संविधान की व्याख्या करता है, राष्ट्रीय व क्षेत्रीय सरकारों के बीच पैदा झगड़ों या दो राज्यों के बीच पैदा झगड़ों का निर्णय करता है।
संघात्मक शासन प्रणाली के गुण (sanghatmak shasan pranali ke gun)
1. संघात्मक शासन प्रणाली का एक गुण यह है कि इसमे स्थानीय समस्याओं का हल सरलता से किया जा सकता है।
2. यह शासन प्रणाली विकेन्द्रीकरण के सिद्धांत पर आधारित होने के कारण अधिक लोकतांत्रिक होती है।
3. संघात्मक शासन मे राष्ट्रीय एकता व स्थानीय स्वशासन दोनों के गुण पाये जाते है।
4. संघात्मक शासन प्रणाली का एक गुण यह है कि इसमे केन्द्रीय शासन का कार्य-भार हल्का हो जाता है।
5. बड़े राज्यों के लिये तो यह बहुत ही उपयुक्त प्रणाली है।
6. संघात्मक शासन मे केन्द्र सरकार के स्वेच्छाचारी होने की संभावना नही रहती।
7. यह राज्यों के लिए लाभदायी है।
संघात्मक शासन प्रणाली के दोष (sanghatmak shasan pranali ke dosh)
1. संघात्मक शासन खर्चीला होता है, संघात्मक शासन व्यवस्था मे दोहरा खर्च होता है।
2. इस शासन प्रणाली मे राष्ट्रीय एकता गम्भीर समस्या होती है।
3. संघात्मक व्यवस्था का एक दोष यह भी है कि इसमे सत्ता का विकेन्द्रीकरण होने से महत्वपूर्ण निर्णय लेने मे विलम्ब होता है।
4. सैद्धांतिक दृष्टि से सम्प्रभुता विभाजित नही होती है, परन्तु संघात्मक प्रभाव से यह केन्द्र और राज्य सरकारों मे बँट जाती है।
5. संघात्मक शासन मे उत्तरदायित्व सुनिश्चित नही किया जा सकता। किसी नीति की विफलता का दायित्व केन्द्र और राज्य सरकार एक-दूसरे पर डालते है।
6. संघात्मक शासन मे संगठन जटिल होता है, अतः प्रशासन चलाना बड़ा कठिन होता है।
7. एकात्मक शासन की तुलना मे संघात्मक शासन कमजोर माना जाता है। डायसी का कहना है कि " एकात्मक सरकार की तुलना मे संघात्मक सरकार एक कमजोर सरकार है।"
संघात्मक शासन की सफलता की शर्तें
संघात्मक शासन की सफलता के लिए निम्नलिखित आवश्यक शर्तें हैं--
1. संघात्मक शासन की सफलता के लिए सबसे पहले भौगोलिक समीपता जरूरी है। राज्य का क्षेत्र बड़ा हो या छोटा उनमें सम्पर्कबद्धता होनी चाहिए। यदि भौगोलिक क्षेत्र विस्तृत एवं विभाजित हो और उनमें सम्पर्क करना हो तो प्रशासनिक, आर्थिक एवं प्रतिरक्षा की दृष्टि से उचित होता है। संयुक्त राज्य अमरीका की सफलता का बहुत कुछ श्रेय उसकी इकाईयों की भौगोलिक समीपता को दिया जाता है। भारत, कनाडा, आस्ट्रेलिया और स्विट्ज़रलैण्ड के संघों में भौगोलिक समीपता पायी जाती है जबकि पाकिस्तान में पूर्वी व पश्चिमी भाग में दूरी नवीन राज्य बांग्लादेश के उदय का कारण बना।
2. संघात्मक शासन के निर्माण के लिए संस्कृति, भाषा, धर्म और हितों की एकता एक आवश्यक शर्त है विविधता में एकता का लक्ष्य संघ व्यवस्था के लिए आवश्यक है। यद्यपि क्योंकि बहुभाषी कुछ विद्वान इसे अनिवार्य शर्त नहीं मानते स्विट्जरलैण्ड में संघ स्थापित है। भारत में विविधता होते हुए भी सांस्कृतिक एकता के कारण संघ सफल है। मुस्लिम देशों में समान धर्म व संस्कृति है परन्तु वे संघ बनाने में सफल नहीं हो सके। अतः संघ निर्माण के लिए भाषा, संस्कृति, धर्म व हितों की एकता आवश्यक हो सकती है, अनिवार्य नहीं।
3. संघात्मक शासन की सफलता के लिए इकाइयों की स्थिति में समानता होनी चाहिए। यद्यपि जनसंख्या एवं आकार में सभी इकाईयाँ समान नहीं हो सकती परन्तु शक्ति एवं स्थिति में सभी का समान होना अनिवार्य है अन्यथा शक्तिशाली इकाईयाँ दुर्बल इकाईयों पर हावी होने का प्रयास करेंगी और दुर्बल इकाईयाँ शक्तिशाली इकाईयों को घृणा व शंका की दृष्टि से देखेंगी। संघ की इकाईयों में असमानता की भावना विकसित नहीं होनी चाहिए। भारत संयुक्त राज्य अमेरिका में जनसंख्या व आकार के आधार में असमानता है परन्तु इकाईयों को द्वितीय सदन में समान प्रतिनिधित्व तथा संविधान संशोधन प्रक्रिया में सहभागिता का अधिकार इकाईयों में विद्वेष की भावना उत्पन्न नहीं होने देती।
4. संघात्मक शासन की सफलता सामान्य जनता की राजनैतिक प्रबुद्धता एवं योग्यता पर भी निर्भर करती है। संघात्मक शासन का संगठन अपने दोहरे स्वरुप के कारण जटिल होता है दोहरी नागरिकता के कारण नागरिकों की निष्ठा भी दोहरी होती है जिसे निभाने के लिए नागरिकों में राजनैतिक जागरुकता एवं प्रबुद्धता का होना भी आवश्यक है अन्यथा संकीर्ण स्वार्थो एवं हितों के टकराव संघ को कमजोर कर देंगे। संघात्मक शासन की सफलता के लिए सामाजिक एवं राजनैतिक संस्थाओं में समानता होना जरूरी है। इसकी सफलता के लिए केन्द्र व इकाई स्तर पर ढाँचा समान होना चाहिए। दोनों स्तरों पर शासन में समरुपता किसी प्रकार का भ्रम उत्पन्न नहीं करती और प्रशासन सुचारु रुप से संचालित होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में दोनों ही स्तरों पर गणतंत्रीय एवं अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था है जबकि शासन के किसी अन्य रुप पर प्रतिबन्ध का प्रावधान स्वयं संविधान में निहित है। इसी प्रकार भारत, कनाडा और आस्ट्रेलिया में केन्द्रीय व स्थानीय स्तरों पर संसदात्मक शासन व्यवस्था है।
6. संघात्मक शासन की सफलता के लिए सामाजिक-आर्थिक विकास होना आवश्यक है। सामाजिक विकास में शिक्षा का विशेष योगदान है और शिक्षित व्यक्ति में संकीर्णता एवं रुढ़िवादिता का अभाव होता है जो राष्ट्र की एकता के लिए आवश्यक है सामाजिक विकास के कारण जनता विघटनकारी शक्तियों के दुष्प्रभाव में नहीं आ पाती। वहीं आर्थिक विकास के द्वारा शासन के दोहरे स्वरूप को संभालना सरल हो जाता है। इस प्रकार सामाजिक एवं आर्थिक विकास संघात्मक शासन में असंतुलन को समाप्त करने में सहयोग करते हैं और राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करते हैं।
7. संघात्मक शासन में राजनैतिक एवं राष्ट्रीय एकता आवश्यक है। संघात्मक शासन में स्थानीय हितों एवं आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए सम्पूर्ण राष्ट्र का ऐसा राजनैतिक एकीकरण किया जाये कि वह एक सजातीय इकाई मालूम पड़े अर्थात् राष्ट्रीय एकता एवं स्थानीय स्वायत्ता में सामंजस्य होना चाहिए। विघटनकारी शक्तियों को नियंत्रित एवं राष्ट्रीय एकता को विकसित करने का कार्य संघात्मक शासन के लिए अनिवार्य है।
8. संघात्मक शासन की सफलता का मूलमंत्र केन्द्रीय एवं इकाई की सरकारों के बीच प्रभावी समन्वय है। यद्यपि दोनों स्तरों की सरकारों के बीच कार्य विभाजन एवं शक्ति विभाजन संविधान द्वारा किया जाता है परन्तु फिर भी उनमें अन्तर्सम्बन्ध स्थापित करने की व्यवस्था करना आवश्यक है जिससे दोनों शासन आपस में संबद्ध रहें। संघात्मक शासन में प्रतियोगी के स्थान पर सहयोग , दमनीय के स्थान पर अनुनीय, कठोर के स्थान पर लचीला तथा विश्वसनीय एवं सकारात्मक गुणों का समावेश होना चाहिए।
9. बदलती परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुरूप शक्ति के केन्द्रीयकरण की प्रवृति बढ़ गई है। संघात्मक शासन में उचित मात्रा में केन्द्रीयकरण की आवश्यकता महसूस की जा रही है। अतः केन्द्रीयकरण आवश्यक है परन्तु ऐसा नहीं कि वह अनावश्यक रूप से इकाईयों की स्वतंत्रता का अतिक्रमण करे। इकाईयों की सरकारों को भी परिवर्तित परिस्थितियों में केन्द्रीयकरण को स्वीकारना चाहिए और अनावश्यक विरोध नहीं करना चाहिए। भारत में संघात्मक शासन होते हुए भी केन्द्र को अधिक शक्ति प्रदान करना परिस्थितियों की आवश्यकता थी और इसीलिए इसको अर्द्ध संघ तक कहा जाता है।
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